RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"क्या कोई सर्जन मा अपने घायल जवान बेटे का ऑपरेशन महज इस लिए ना करे कि उसे अपने बेटे को नंगा देखना पड़ सकता है, चोट तो शरीर के किसी भी हिस्से में लग सकती है मा ? क्या कोई डॉक्टर पिता अपनी सग़ी बेटी की प्रेग्नेन्सी के दौरान उसकी डेलिवरी करने से खुद को रोक सकता है, सिर्फ़ इस वजह से कि होने वाला बच्चा उसकी बेटी की चूत के अंदर से निकलेगा ?" ऋषभ ने दो अश्लील परंतु ऐसे विचित्र उदाहरण पेश किए जिसे सुन कर तुरंत ममता की उंगली ने उसके पेटिकोट के नाडे की सरकफूंद गाँठ को खींच दिया और बिना किसी रुकावट के उसका पेटिकोट पूर्व से फर्श पर बिखरी पड़ी उसकी साड़ी के ऊपर इकट'ठा हो जाता है.
"उफफफफ्फ़" इस पूरे घटना-क्रम में पहली बार हुआ जब ममता भरकस प्रयास के बावजूब अपनी कामुक सिसकी को अपने अत्यंत सुंदर मुख से बाहर निकलने से रोक नही पाई थी. ऋषभ का भी कुच्छ यही हाल था, वह अपनी भौच्चकी आँखों से अपनी मा की कछि को घूर्ने लगता है जो उसके अनुमान्स्वरूप ममता की ब्रा के मुक़ाबले उससे कहीं ज़्यादा छोटी थी. वही पारदर्शी कपड़ा और उसके भीतर छुपि अपनी मा की काली घनी झांतो को वह बेहद सरलतापूर्वक देख पा रहा था और जिसमें अधिकांश झाटें उसे ममता की तीनोकी कछि के अग्र-भाग की बगलों से बाहर निकलती नज़र आती हैं.
"अरे मा! तुम तो अपनी कमर में किसी छोटे बच्चे की तरह काला धागा भी बाँधती हो" ऋषभ ने आश्चर्य से कहा, हलाकी इतनी दूर से उसे सॉफ तौर पर नज़र नही आ पा रहा था कि ममता की कमर में बँधी वस्तु सच में काला धागा थी या कोई मॅग्नेटिक बेल्ली चैन, मगर वो जो भी थी उसकी मा की बेहद गोरी रंगत पर बहुत फॅब रही थी.
"तेरे पापा ने पहनाया था! हां, काला धागा ही है रेशू" ममता ने बुदबुदाते हुए बताया. मिलन की पहली रात को राजेश ने उसकी सुंदर काया पर मोहित होने के पश्चात उस काले धागे को खुद अपने हाथो से उसकी कमर पर बाँधा था.
"तुम हो ही इतनी खूबसूरत मा! बेदाग बदन है तुम्हारा! ज़रूर पापा को डर सताता होगा कि तुम्हे किसी पराए मर्द की बुरी नज़र ना लग जाए" ऋषभ खिलखिला कर हँसने लगता है. ममता के घुटनो में अन असहनीय दर्द होना शुरू हो गया था, ए/सी के ठंडे वातावरण में भी जिस तरह उसका जिस्म पसीने से तर था, उसमें ऐंठन सी उठ रही थी मानो वह एक ज़ोरदार अंगड़ाई लेने के लिए भी तरस रही हो.
"वाकाई मा! जब तुम्हारी कछि की आगे से यह हालत है फिर पिछे तो निश्चित क़यामत होगी" उसने मन ही मन सोचा, इस मर्तबा उसे अपने सैयम की पूरी ताक़त झोंकनी पड़ी थी ताकि उसके लफ्ज़! अल्फ़ाज़ बन कर उसके मूँह से बाहर ना निकल आएँ. अति-शीघ्र उसे उसकी मा का हाथ उसकी कछि के अग्र-भाग को धाँकने की चेष्टा करता हुवा जान पड़ता है और जिस पर चाह कर भी रोक लगवा पाना उसके लिए संभव नही हो पाता.
"मुझे माफ़ करना रेशू! शायद मेरी नग्नता ने तुझे उत्तेजित कर दिया है बेटे" ममता अपने दूसरे हाथ से अपने मम्मो को भी छुपाने का प्रयास करते हुए कहा मगर अपने छोटे से पंजे के भीतर उनके संपूर्ण व्यास को एक साथ समेट पाना उसके लिए असंभव था और थक-हार कर अपनी टेढ़ी बाईं कलाई को अपनी पारदर्शी ब्रा से स्पष्ट रूप से उजागर होते निप्पलो के ऊपर रखने भर से उसे संतोष करना पड़ता है.
"मैं भले ही तुम्हारा बेटा हूँ लेकिन हूँ तो एक मर्द ही" ऋषभ ने शर्मिंदगी के स्वर में कहा परंतु हक़ीक़त में उसकी शर्मिंदगी मात्र उसका दिखावा थी. अब तक उसका दायां हाथ मेज़ की आड़ में सफलतापूर्वक उसके विशालकाय लंड को तेज़ी से मसल्ते हुवे उसे उसकी चुस्त फ्रेंची की असहाय जकड़न से राहत पहुँचाने का कार्य कर रहा था.
"तुम मेरी चिंता छोड़ो मा! मैं ठीक हूँ और मुझे अपनी हद्द का बखूबी अंदाज़ा है" उसने अपनी अगली माशा के तेहेत ममता को अपने शब्दो के जाल में फ़साया.
"तुम्हारे ठीक पिछे मेरे पेन का ढक्कन पड़ा है, क्या तुम उसे उठा कर मेरी तरफ फेंक दोगि ? यह मेरा लकी पेन है मा" बोल कर वह फर्श पर पड़े अपने पेन के ढक्कन की ओर देखने लगता है. बिना सोचे-विचारे ममता भी अपने पुत्र के झाँसे में आ गयी और पलट कर ढक्कन उठाने के प्रयास में तुरंत अपना शरीर आगे को झुकाने लगती है. आकस्मात ही मन्त्र-मुग्ध कर देने वाले उस कामुक द्रश्य को देख कर तो मानो ऋषभ की आँखें फॅट ही पड़ी थी. उसकी मा के सुडोल चूतडो के दोनो पट बिल्कुल नंगे थे, बिना उसके झुकने के विश्वास कर पाना बहुत कठिन था कि उसने कछि नामक कोई वस्त्र पहना भी है या नही और जो उस वक़्त उसके चूतडो की गहरी दरार में पतले से धागे के रूप में फसि हुई थी. इस चन्द लम्हे के घटना-क्रम ने ऋषभ को इतना आंदोलित कर दिया कि सपने में ही सही मगर वह अपनी सग़ी मा के चूतडो की दरार के भीतर अपनी लंबी जीभ तीव्रता से रेंगती हुवी महसूस करने लगता है, वह बेहद उद्विग्न हो उठा था जैसे सत्यता में भी उसे अपनी मा की गान्ड के पसीने से लथ-पथ छेद को चाटना था.
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