Maa ki Chudai माँ का चैकअप
08-07-2018, 10:52 PM,
#19
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"सेक्स जीवन से संबंधित! अपनी माँ के सेक्स जीवन से संबंधित तो ज़ाहिर है कि अपने पापा के सेक्स जीवन से संबंधित भी" सोचने मात्र से ही ममता के संपूर्ण बदन में फुरफुरी उठने लगी, जहाँ-तहाँ उसके मुलायम रोम खड़े हो जाते हैं. उसने हैरत से फॅट पड़ी अपनी आँखों से ऋषभ के चेहरे को घूरा, वा काग़ज़ के पन्ने पर कुच्छ लिखने में व्यस्त था.
"फिर भी रेशू! तू अपनी मा से क्या-क्या पुछेगा बेटे ?" अधीर ममता हौले से फुसफुसाई.
"ऑफ ओह मा! बताया तो मैने, तुम्हारी शारीरिक जाँच शुरू करने से पहले मुझे कुच्छ बातो का पता होना बेहद ज़रूरी है और इसी कारण मुझे तुम्हारे सेक्स जीवन के विषय में जानना होगा" अपनी मा को देखे बिना ही ऋषभ ने जवाब दिया.
"तो क्या तब तक मैं बेशरम बन कर यूँ ही नंगी बैठी रहूंगी ?" ममता ने खुद से सवाल किया.
"नही! कम से कम मुझे पैंटी तो पहेन ही लेनी चाहिए" वह फ़ैसला करती है मगर अपने उस फ़ैसले पर अमल कैसे करे, यह बेहद गंभीर मुद्दा था. एक औरत चाह कर भी अपनी नंगी काया को ढँक नही पा रही थी, कैसी अजीब परिस्थिति से उसका सामना हो रहा था.
"रेशू" वह पुनः हौले से फुसफुसाई.
"क्या .. क्या मैं अपनी पैंटी पहेन लूँ ?" तत-पश्चात एक ही साँस में अपना कथन पूरा कर जाती है और अत्यधिक लाज से अपने होंठ चबाने लगी. हाए री विडंबना, मा को अपने ही जवान पुत्र से इजाज़त लेनी पड़ रही थी कि क्या वह अपनी नंगी चूत पर शीट ओढ़ ले.
"हां पहेन लो मा मगर वापस भी तो उतारनी होगी ना ?" ऋषभ दोबारा उसकी ओर देखे बिना ही बोला, उसने अपनी मा को उसके सवाल का मॅन-वांच्छित उत्तर तो दिया ही दिया मगर बड़ी चतुराई से अपने इस नये प्रश्न के ज़रिए इशारा भी करता है कि कुच्छ वक़्त पश्चात उसे फिर से पूरी तरह नग्न होना पड़ेगा. बीते लम्हे में गहें उत्तेजना के वशीभूत वह उस अत्यंत कामुक द्रश्य को अपनी आँखों में सही ढंग से क़ैद नही कर पाया था जब उसकी मा ने पहली बार उसके समक्ष अपनी कछि को उतारा था और अनुमांस्वरूप कि शायद इस बार उसे स्वयं अपने हाथो से अपनी उसकी कछि को उतारने का सौभाग्य प्राप्त हो सके, अपने इसी प्रयास के तेहेत उसने फॉरन अपनी रज़ामंदी दे दी थी.
"मैं! मैं तब उतार लूँगी" अंधे को क्या चाहिए, बस दो आँखें. ममता ने अत्यंत हर्ष से कहा जैसे भविश्य में अपनी कछि को पुनः उतारने में उसे कोई दिक्कत महसूस नही होगी और कुर्सी से उठ कर अपने कदम कॅबिन के कोने में पड़े अपने वस्त्रो की दिशा की तरफ चलायमान कर देती है.
"उफफफ्फ़ मा! तुम्हारे यह मांसल चूतड़ मुझे पागल कर देंगे" ममता के चलना शुरू करते ही ऋषभ उसके चूतड़ो को निहारते हुवे बुद्बुदाया. चलते हुवे ना तो वह जानबूच कर मटक रही थी और ना ही उसके मंन में अपने पुत्र को रिझाने समान कोई विचार पनपा था, उसके चूतड़ो की स्वाभाविक थिरकन वाकयि जानलेवा थी और जिसके प्रभाव से ऋषभ के विशाल लंड की ऐठन असकमात ही दर्द में तब्दील होने लगती है.
"रेशू ने मेरे मम्मो की तारीफ़ की, मेरे चूतड़ो के विषय में कहा मगर एक बार भी मेरी चूत को नही देखा" बेमुशक़िल से 5-6 कदम चलने के उपरांत ही ममता के मॅन में संदेह का अंकुर फूट पड़ा.
"कहीं ऐसा तो नही कि इसे औरतो की चूत पर झाँते पसंद ही ना हों, फिर मैने तो पूरा जंगल उगा रखा है नही तो क्या मज़ाल की कोई मर्द औरत की चूत को इस तरह से नज़र-अंदाज़ कर सके" सोचते-सोचते वह अपने उतरे हुवे वस्त्रो के समीप पहुँच चुकी थी.
"ओह्ह्ह्ह मा! कितनी ज़ुल्मी हो तुम" ममता के नीचे झुकते ही ऋषभ के खुले मूँह से सीत्कार निकल गयी, वस्त्र बेहद उलझे हुवे थे और उनके बीच से अपनी छोटी सी कछि तलाशने में उसकी मा को कुच्छ ज़्यादा ही समय लग रहा था. उसके चूतड़ो के पाटो की अत्यंत गोरी रंगत से उनकी गहरी दरार अपेक्षाकृत बहुत काली नज़र आ रही थी जो सॉफ प्रमाण था कि दरार के भीतर भी बड़ी-बड़ी झाटों का साम्राज्य फैला हुवा है.
"मिल गयी" ममता ने कछि को उठाते हुवे कहा, उसकी हौले मगर कोयल समान मीठी कूक ऋषभ के कानो से भी जा टकराती है. तत-पश्चात उसका अचानक से पलटना हुवा और उसके पुत्र की योजनाबद्ध निगाहें तो मानो उसकी मा की आवाज़ को सुन कर ही उसकी ओर मूडी हों, दोनो एक-दूसरे की आँखो में झाँकने लगते हैं मगर अति-शीघ्र उस मा को पुनः उसके पुत्रा की आँखों का जुड़ाव उसके चेहरे से हट कर उसके सुडोल मुम्मो से जुड़ता प्रतीत होता है.
"देखती हूँ! कब तक यह इसी तरह मेरी छूट की उपेक्षा करता है" ममता विचलित हो उठी और अपनी कुर्सी के नज़दीक आने लगती है. उसके दाएँ हाथ के पंजे में उसकी चूत के गाढ़े कामरस से भीगी हुवी कछि थी, जिसे पहेन्ने की इज़ाज़त लेने के उपरांत वह पूर्वा में फूली नही समाई थी परंतु अब उसका मॅन बदल चुका था. उसने प्रण कर लिया था कि वह अपनी चूत को नही धाँकेगी और वापस नंगी ही अपनी कुर्सी पर बैठ जाती है.
"क्या हुवा मा! क्या अब तुम्हे कछि नही पहेनना ?" ऋषभ ने बेशर्मी से मुस्कुराते हुवे पुछा.
"नही! ऐसी बात नही रेशू मगर मेरी पैंटी गंदी है, मैं कैसे इसे पहनु ?" ममता ने बड़े भोले पन से जवाब दिया और अपने कथन की सत्यता को उजागर करते प्रश्न के साथ ही उसके समर्थन में अपनी गीली कछि फॉरन अपने पुत्र के चेहरे के समक्ष लटका देती है.
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