RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"हां! तुमने बताया था कि तुम्हारी चूत हर वक़्त रिस्ति रहती है" ऋषभ ने कहा और अत्यंत तुरंत कछि को अपने हाथ में खींच लेता है.
"ह्म्म्म! यह तो वाकाई बहुत गीली हो चुकी है मा, मानो अभी इसमें से रस टपकने लगेगा" वह कछि को निचोड़ने का नाटक करते हुवे बोला.
"ला इधर दे! मैं इसे अपने पर्स में रख देती हूँ" अपने पुत्र की नीच हरक़त देख ममता लजा गयी और तभी ऋषभ को उस पारदर्शी कछि के भीतर उसकी मा की झाँत के दो-चार घुँगराले बाल फसे हुवे नज़र आ जाते हैं.
"वैसे तो हमारे सर के बालो से हमारे गुप्तांगो के बाल कहीं अधिक मजबूत होते हैं मगर तुम्हारी झांतो का इतना ज़्यादा झडाव अच्छा संकेत नही मा" ऋषभ ने कछि के भीतर से एक लंबे बाल को बाहर निकाला और उसे अपनी मा को दिखाते हुवे कहा. ममता फॉरन अपने निचले होंठ को अपने नुकीले दांतो के मध्य भींच लेती है ताकि होंठ के दर्द की आड़ में वह अपनी चूत की कुलबुलाहट को कम कर सके मगर उसका पुत्र तो जैसे उसकी कामोत्तजना को भड़काता ही जा रहा था. इससे पहले कि वह उसकी कछि को अपनी नाक के समीप ले जा कर उसे सूंघने में कामयाब हो पाता ममता ने लघ्भग चीखते हुवे अपनी कछि उसके हाथ से वापस छीन ली.
"गंदी! गंदी है रेशू" ममता काँपते स्वर में बोली.
"तुम इतनी घबरा क्यों गयी मा ?" जानते हुवे भी ऋषभ ने पुछा, अपनी मा के छर्हरे बदन और उसकी अत्यंत कामुक भावनाओ से खेलना उसे बेहद रास आ रहा था.
"पहली बात तो यह की एक चिकित्सक के शब्कोष में घिन और गंध जैसे कोई शब्द मौजूद नही रहते और फिर तुम तो मेरी मा हो" उसने गंभीरता पूर्वक कहा.
"ना तो मैं घबरा रही हूँ रेशू और ना ही शरमा रही हूँ, तुझे बे-वजह ऐसा लग रहा है बेटे" ममता भी फूटी हसी हस्ते हुवे बोली.
"चलो फिर ठीक है मा! अपना शारीरिक अनुपात बताओ ?" ऋषभ ने तपाक से पुछा.
"क्या यह जानना ज़रूरी है रेशू ?" ममता प्रत्युत्तर में बोली.
"बेहद ज़रूरी मा" ऋषभ ने मुस्कुरा कर कहा.
"36-26-38" ममता फुसफुसाई, बोलते हुवे उसकी गर्दन नीचे को झुक जाती है.
"बहुत अच्छा अनुपात है मा! तुम्हे तो खुद पर गर्व होना चाहिए, ख़ास कर तुम्हारे कसे हुवे मम्मे और सुडोल चूतड़ देख कर तुम्हारी असल उमर का अंदाज़ा लगाना नामुमकिन है" ऋषभ ने अपनी मा की थोड़ी को ऊपर उठाते हुवे कहा. ममता की अनियंत्रित सांसो के उतार-चढ़ाव से उसके मुम्मो का आकार निरंतर घाट'ता वा बढ़ता जा रहा था और उन पर शुशोभित गहरे भूरे रंग के निपल टन कर बेहद ज़्यादा कड़क हो चुके थे.
"जैसा कि तुमने बताया था कि तुम्हारी चूत में तुम्हे महीने भर से अधिक समय से दर्द महसूस हो रहा है! क्या तुम्हे कुच्छ अनुमान है कि इस दर्द की क्या वजह हो सकती है ?" ऋषभ ने पुछा, अब तक उसका हाथ ममता को थोड़ी को पड़के हुवे था ताकि वह पुनः अपनी गर्दन नीचे ना झुका सके.
"नही पता रेशू" ममता ने अंजान बन कर अपनी असहमति जताई.
"पापा और तुम्हारे बीच चुदाई कब से नही हुई मा ?" ऋषभ ने विस्फोट किया, हलाकी इस अश्लील प्रश्न को पुच्छने में उसे अपनी गान्ड का पूरा ज़ोर लगाना पड़ा था मगर आख़िरकार वह पुच्छ ही बैठता था.
"रेशू" अचानक ममता क्रोधित स्वर में चिल्लाई.
"तू अपनी हद्द से बाहर जा रहा है" वह तिलमिला उठी थी मगर उसका क्रोध झेलने के लिए ऋषभ पहले से ही तैयार था.
"मुझे पता था मा कि तुम्हे अपने बेटे के इलाज पर विश्वास नही है मगर सिर्फ़ मेरा दिल रखने के लिए तुमने अपनी झूठी स्वीकृति दी. अगर मुझे तुम्हारे और पापा की चुदाई संबंधो की जानकारी नही होगी तो मैं कैसे तुम्हारा इलाज कर सकूँगा ?" ऋषभ ने बिना किसी झिझक के पुछा.
"तुम अपने कपड़े पहेन लो और घर जा सकती हो, शायद अब मैं कभी तुम्हारी चेहरे से अपनी नज़र नही मिला सकूँगा" उसने मायूसी से अपनी मा की ठोड्डि को छोड़ते हुवे कहा और हाथ में पकड़े हुवे अपने पेन का ढक्कन बंद करने लगाता है.
"क्यों मैं बार-बार अपने बेटे का दिल दुखा देती हूँ ? क्या महज इस लिए कि वह मेरी चूत की उपेक्षा कर केवल मेरे मम्मे और चूतड़ो की ही तारीफ़ रहा है ? क्या यह कम है कि अब तक उसने मेरे नंगे बदन को च्छुआ तक नही वरना एक नंगी औरत को इतने नज़दीक पा कर तो कोई भी मर्द उसे अपनी वासना का शिकार बना चुका होता. ग़लती मेरी और मेरे पति की है तो मेरा बेटा उसे क्यों भुगते ?" ममता उस अप्रत्याशित चोट को सह नही पाती. नंगी वह स्वयं अपनी मर्ज़ी से हुई थी और सारा इल्ज़ाम उसका पुत्र अपने सर पर ले रहा था. वह कुर्सी से नही उठी और कुच्छ छनो तक ऋषभ के उदासीन चेहरे को निहारती रहती है.
"रेशू! मेरा इरादा तेरा दिल दुखाने का नही था, अब तू जो कुच्छ भी पुछेगा मैं जवाब दूँगी बेटे" ममता रुवासे स्वर में बोली.
"हम ने पिच्छले दो महीनो से चुदाई नही की, तू तो जानता ही है कि तेरे पापा अस्थमा के मरीज़ हो गये हैं" उसने सच बयान किया, उसकी आँखें हल्की सी डबडबाने लगी थी.
"तो फिर तुम अपनी शारीरिक ज़रूरत को कैसे पूरा करती हो मा ?" नाज़ुक वक़्त की महत्ता के मद्देनज़र ऋषभ ने एक और निर्लज्ज सवाल पुच्छ लिया, अब तक उसके मन-मुताबिक चले घटना-क्रम को देख वह निश्चिंत था कि उसकी मा अब उसकी मर्ज़ी के बगैर हिल भी नही सकती थी.
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