RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
माँ का चैकअप--9
"ऋषभ! उसका सगा पुत्र उसके बदन का चक्षु-चोदन करते हुवे उसकी नंगी जवानी की जम कर तारीफ़ करना शुरू कर दे" ममता के आकस्मात ही अपनी बाहों को फैला देने से उसका ऊपरी बदन बेहद तन जाता है. उसके मम्मो की स्वाभाविक बनावट तो पूर्व से ही कसावट से भरपूर थी, अब वे इस कदर उभर चुके थे मानो फूले हुवे गोल-गोल गुब्बारे हों.
"मैं भला तुम से झूट क्यों कहूँगा ? मैने कुँवारी लड़कियों के नंगे बदन भी देखे हैं मा मगर इतने कसे हुवे मम्मे उन में से किसी के नही थे" ऋषभ ने बताया, अपनी बेशरम आँखों को मंत्रमुग्ध कर देने वाले अपनी सग़ी मा के सुडोल मम्मो के ऊपर से हटा पाना उसके लिए असंभव था, वह जितना अधिक उन्हें घूरता जाता उतने ही वे उसे अपनी ओर आकर्षित करते जाते. यदि हक़ीक़त में उसके समक्ष बैठी हुवी उस नंगी, अत्यधिक रमणीय औरत से उसका मा नामक अत्यंत पवित्र रिश्ता ना होता तो कब का वह उसके प्रभावशाली मम्मो को निचोड़ना शुरू कर चुका होता.
"सिर्फ़ मम्मो के आंकलन मात्र से यह साबित नही हो सकता कि किसी बूढ़ी औरत को एक जवान लड़की की सन्ग्या दे दी जाए" ममता ने मुस्कुराते हुवे कहा और बिना किसी अतिरिक्त झिझक के अपने सुडोल मम्मे अपने दोनो हाथो के पंजो से तोलने लगती है मानो उनका वज़न पता करने की इक्शुक हो, साथ ही साथ उन्हे हौले-हौले सहला भी रही थी.
"बिल्कुल हो सकता है मा! तुम्हारी उमर की औरतों के मम्मे अत्यधिक चर्बी बढ़ जाने की वजह से अक्सर बेदोल हो कर नीचे को झूलने लगते हैं मगर मैं दावे से कह सकता हूँ कि तुम्हारे मम्मो को ब्रा की भी आवश्यता नही" जवाब में ऋषभ भी मुस्कुरा उठा. उसकी मा उसके समक्ष ही स्वयं अपने हाथो से अपने नंगे मम्मो को गूँथ रही थी, इतने कामुक द्रश्य से तो वह आज तक महरूम रहा था. कुच्छ ही लम्हो में बात इतनी तीव्रता से आगे बढ़ जाएगी शायद दोनो ही इससे पूर्णतया अंजान थे. पहले ममता का निर्लज्जतापूर्वक अपनी चूत से खेलना और अब अपने मम्मो से, उसकी असल कामोत्तजना को प्रदर्शित कर रहा था.
"तो तेरा कहना है कि अब मुझे ब्रा पहनानी छोड़ देनी चाहिए ?" ममता ने अत्यंत गर्व से कहा, हर स्त्री की तरह उसे भी अपने विशाल मम्मो की कठोरता पर शुरूवात से ही गुमान था. तत-पश्चात अपनी उंगलियों को वह गहरे भूरे रंगत के अपने तने हुवे निप्पलो की विकसित मोटाई पर गोल आक्रति में घुमाना आरंभ कर देती है.
"ह .. हां वाकाई मा! तुम कम से कम घर में रहते हुवे तो इन्हे राहत की साँसें लेने दे ही सकती हो" ऋषभ काँपते स्वर में बोला, चुस्त फ्रेंची की जकड़न में क़ैद उसका लंड भी उसके अल्फाज़ो की तरह ही फड़फडाए जा रहा था.
"मैं वादा तो नही करती रेशू! फिर भी कोशिश ज़रूर करूँगी" ममता अपने निप्पलो को अपने अंगूठे और प्रथम उंगली के दरमियाँ ताक़त से मसल्ते हुवे बोली, उसका आशय तो खुद उसकी समझ से परे था कि भविश्य में आख़िर किस को लुभाने के उद्देश्य से वह घर पर अपने उच्छल-कूद करते मम्मो को ब्रा की क़ैद से मुक्त रखने वाली थी.
"खेर और मुझ में ऐसा क्या है जो मुझे किसी जवान लड़की के सम्तुल्य दर्शाता है ?" उसने अत्यंत व्याकुल स्वर में पुछा, अपने पति या किसी पर पुरुष की तुलना में अपने सगे बेटे से अपनी नंगी काया की अश्लील प्रशन्षा सुनना उसे एक ऐसे अधभूत रोमांच से भरता जा रहा था मानो इस वक़्त अपने पुत्र के समक्ष उसका नग्न विचरण करना ही उसके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि बन गयी हो. ऐसा भी कतयि नही था कि अब उसकी शरम का पूर्णरूप से अंत हो चुका था. अक्सर ममता समान संकोची स्त्रियाँ जिन्होने कभी अपनी सीमाओ का उल्लघन नही किया हो, जब पथ्भ्रस्ट होने की कगार पर पहुँचती हैं तब उन्हे पूर्व में रही अपनी सभी मर्यादाओ और अतम्सम्मान का कोई विशेष ख़याल नही रहता. वे महसूस तो अवस्य करती हैं कि उन्हे अपने डगमगाते हुवे कदम अत्यंत तुरंत वापस पीछे खींच लेने चाहिए मगर तब-तक परिस्थित उनके अनुकूल नही रह पाती और वे निरंतर गर्त में धँसती ही जाती हैं. अपनी जवानी से ले कर अब तक अनगीनती उसने अपने हुस्न की तारीफ़ सुनी थी मगर अपने सगे बेटे का नीचतापूर्णा हर संवाद उसे आनंदित ही नही वरण बेहद उत्तेजना भी महसूस करवा रहा था.
"वैसे तो तुम्हारे अंग-अंग में कामुकता व्याप्त है मा मगर तुम्हारे मांसल चूतड़! अगर में कवि होता तब भी तुम्हारे इन सुंदर चूतड़ो की तारीफ़ कर पाना मेरे लिए संभव नही हो पाता" अपने अमर्यादित कथन को पूरा करने के उपरांत ही ऋषभ पुनः अपनी मा के बाएँ गाल को चूम लेता है, इस एहसास के तेहेत की वह उसके मुलायम गाल को नही बल्कि उसके गद्देदार चूतड़ के पाटों को चूम रहा है.
"अब तो वाकयि मुझे लग रहा है रेशू कि तू अपनी मा का दिल रखने के लिए उससे झूट पर झूट बोले जा रहा है" ममता ने बेहद नखरीले अंदाज़ में कहा और फॉरन अपने बाएँ गाल पर चुपड़ी हुवी अपने पुत्र की लार को पोंच्छने लगती है.
"मैं झूट नही कह रहा! मा सच में तुम्हारे नंगे चूतड़ तो किसी नमार्द का भी लंड खड़ा कर देने में सक्षम हैं, मेरा तुम्हारा बेटा होना कोई अपवाद थोड़ी ना है" बोलते हुवे ऋषभ अपना चेहरा नीचे झुका कर अपनी पॅंट के तंबू को देखने लगता है ताकि उसकी मा भी उसके लंड के खड़े होने के विषय में जान सके और साथ ही उसके कथन की सत्यता की भी पुष्टि हो जाए.
"उफफफ्फ़" अपने पुत्र के विशाल तंबू को देखते ही ममता सिसकते हुवे अपने निप्पलो को बलपूर्वक उमेठ देती है, निश्चित ही वह अपनी सोच में अपने पति और पुत्र के लंड की आपस में तुलना करने लगी थी.
"ये पाप है रेशू! एक मा और उसके बेटे के दरमियाँ ऐसा रिश्ता कैसे हो सकता है ? मुझे तो यकीन ही नही हो रहा कि तेरी मा हो कर भी मैं तेरे सामने नंगी बैठी हुवी हूँ और इतनी नीचे गिर गयी कि अब तेरे गुप्ताँग को भी घूर्ने से खुद को रोक नही पा रही. देख! कितना तन चुका है अपनी सग़ी मा की निर्लज्ज हरक़तो की वजह से, ये सरासर ग़लत है बेटे" कहने के उपरांत ममता ने अपनी पलकें मूंद ली. अचानक से महसूस हुई शर्मिदगि के एहसास ने अपने आप उसके मूँह से ऐसे विध्वंशक अल्फ़ाज़ बाहर निकलवा दिए थे, जिन्हे सुन कर पल भर को ऋषभ भी सकते में आ जाता है.
"कैसा पाप मा ? हम कहाँ कुच्छ ग़लत कर रहे हैं ? मा-बेटे के रिश्ते से पहले तुम एक औरत और मैं एक मर्द हूँ. तुम जान-बूझ कर हर बार मेरा दिल दुखाने की चेष्टा करती हो जब कि थोड़ी देर पहले तुमने ही कहा था कि मैं तुम्हारे कारण उत्तेजित हो गया हूँ और अब अपनी उसी बात पर शोक भी मना रही हो" बोलते हुवे ऋषभ ने अपनी मा के माथे का गहरा चुंबन लिया और प्यार से उसके बालो पर अपना हाथ फेरने लगता है.
"मैं अपनी दोस्त ड्र. माया को कॉल कर देता हूँ, अब वे ही तुम्हारा बाकी का इलाज करेंगी" उसने अपने दूसरे हाथ को अपने पॅंट की जेब में डाल कर अपना सेल बाहर निकालते हुवे कहा, ममता की बंद पलकें फॉरन खुल जाती हैं जब वह ऋषभ की बात पर गौर फरमाती है.
"मैने यह भी तो कहा था कि मैं किसी गैर के सामने अपने कपड़े नही उतारुँगी और फिर भी तू अपनी मा को बदनाम करने से बाज़ नही आ रहा! नलायक" ममता ने अपने पुत्र की आँखों में झाँका और उसके हाथ से उसका सेल छुड़ा कर मेज़ पर रख देती है.
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