RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"मा! क्या पापा तुम्हे ऐसे ही प्यार करते हैं ?" ऋषभ ने पुछा और अपनी मा के चूतड़ो की दरार के भीतर उगी उसकी लंबी झांतो से खेलने लगता है. उसकी गान्ड के छेद को वह बारी-बारी लगभग अपनी सभी उंगलियों के नाख़ून से कुरेद रहा था और साथ ही बिना किसी भय के अब उसके अनुमानित कुंवारे गुदा-द्वार की संवेदनशील दानेदार सतेह को दोबारा से भेदने का आगाज़ कर चुका था.
"ह्म्म्म" अपनी गान्ड के छेद को सिकोडती ममता तड़पने लगती है. उसके होश ओ हवास तो उसका साथ काफ़ी पहले ही छोड़ चुके थे, अब वह मात्र उस अकल्पनीय सुख से कराह रही थी जिसका ज़िम्मेदार स्वयं उसके अपना सगा जवान पुत्र था.
"मा! अपने चूतड़ मत सिकोडो, मैं तुम्हारी गान्ड के छेद के भीतर अपनी उंगली नही घुसा पर रहा हूँ" ऋषभ ने बेहद अश्लीलतापूर्वक कहा और ममता मानो उसकी इस नीच इक्षा के समर्थन में वाकयि अपने चूतड़ो को उभार कर उन्हे ढीला छोड़ देती है.
"अब ठीक है ना रेशू ?" ममता ने अपनी मुंदी पलकों को खोल कर अपने पुत्र की आँखों में झाँकते हुवे पुछा और तत-पश्चात अत्यधिक शरम्वश अपने निच्छले होंठ को चबाने लगती है.
"उन्हूँ! ऐसे नही मा" ऋषभ ने अचानक अपनी मा के चूतड़ो की दारार से अपने बाएँ हाथ को बाहर खींचा और अपने उसी हाथ के विशाल पंजे से उसकी बाईं जाँघ की पिच्छली गद्देदार सतह के माँस को भींच लेता है. इसके उपरांत ही उसने अपनी मा की बाईं जाँघ को ऊपर की दिशा में उठाते हुवे उसे अपने खुद के चूतड़ो पर कस लिया, तथा पॅंट के भीतर खड़े अपने फौलादी लंड की दो-चार असहनीय चोटें भी उसकी चूत के गीले मुहाने पर बेरहमी से ठोक देता है.
"ओह! यह .. यह तू क्या कर रहा है रेशू! उफफफफफ्फ़" ममता अपने पुत्र के इस अप्रत्याशित हमले को सह नही पाती और खुद भी अपने दोनो हाथ उसकी पीठ से ऊपर की ओर रगड़ते हुवे, उसकी गर्दन पर झूल सी जाती है. उसके पुत्र के पत्थर समान कड़क लंड की ठोकर प्राणघातक थी, जिसके प्रभाव से ममता की पेशाब का अनियंत्रित बाहव पुनः रुक गया. वैसे भी उत्तेजना की अधिकता में पेशाब की भला क्या औकात.
"मुझे कस कर पकड़ लो मा" कह कर ऋषभ ने अपने दाएँ हाथ की मुट्ठी जिसमें उसने ममता के सर के बालो को जाकड़ रखा था, उन्हे मुक्त कर अपने दाएँ हाथ को उसके चूतड़ के मांसल पाटों तक ले जाता है और अपने असीम बलप्रयोग से वह उसे अपनी गोदी में उठा लेता है.
"मैं गिर जाउन्गि रेशूउऊुउउ" ममता किसी गुड़िया सम्तुल्य अपने पुत्र की छाति से लिपट ते हुवे बुदबुदाई, उसके आश्चर्य की तो यह परकाश्ठा थी जो ऋषभ ने उसकी बेहद वज़नी काया को फूल की भाँति अपनी गोद में उठा लिया था.
"नही गिरोगि मा! तुम्हे शायद पता नही कि तुम्हारा बेटा कितना शक्ति-शालि हो गया है. यदि तुम्हारी आग्या हो तो मैं पूरे दिन तुम्हे इसी तरह अपने सीने से चिपका कर खड़ा रह सकता हूँ" ऋषभ ने मुस्कुराते हुवे कहा. नीचे गिर जाने के भय से उसकी मा अपनी दोनो टांगे उसकी पीठ पर कस चुकी थी और इस स्थिति में उसके चूतड़ काफ़ी हद्द तक फैल जाते हैं. अब ऋषभ चिंता मुक्त था और अल्प समय की बाधा के पश्चात ही वह उसके चूतड़ो के पाट तीव्रता से मसल्ने लगता है.
"हां रेशूउऊउ! मुझे सच में पता नही चल पाया कि मेरा बेटा कितना अधिक बलवान हो चुका है" ममता की सिसकियाँ निरंतर ज़ारी रही, जवानी के दिनो में अक्सर राजेश भी उसे इसी आसान में घंटो तक चोदा करता था. फ़र्क़ बस इतना सा था कि वर्तमान में वह अपने पुत्र ऋषभ की गोद में चढ़ि हुवी थी और निश्चित तौर पर उसके पुत्र का वस्त्रो से ढका होना उसे बेहद आखर रहा था.
"मा! बचपन में तुम मुझे अपनी गोद में उठाए रखती थी और आज मैने तुम्हे उठा रखा है" ऋषभ ने उसकी गान्ड के अत्यंत कसे छिद्र पर अपने दाएँ हाथ का अंगूठा दबाते हुवे कहा.
"आहह! उस वक़्त तू नंगा हुआ करता था और आज तेरी मा नंगी है" ममता कराह कर बेशर्मी से अंतर स्पष्ट करती है.
"वक़्त भी कैसे अजीब खेल खेलता है! जहाँ एक बेटे ने ता-उमर अपनी मा को मर्यादा के मजबूत बंधन में बँधे हुवे देखा हो और अचानक उसकी वही मा उसके समक्ष नंगी खड़ी हो जाए, विश्वास ना करने योग्य पल .. है ना मा ?" ऋषभ ने आकस्मात ही अपने अंगूठे को अपनी मा के गुदा-द्वार के भीतर ठेलने का प्रयत्न करते हुवे कहा.
"उंगग्गघ .. ऐसा! ऐसा मत बोल बेटे! तेरी मा मजबूर है और तभी उसे अपनी पिच्छली सभी मर्यादों का एक-साथ त्याग करना पड़ा है" ममता ने अपने जबड़े को बलपूर्वक भींचते हुवे कहा, उसके चेहरे पर लगातार उभरते पीड़ा दाई भाव को देख ऋषभ का दिल पिघलने लगता है और अत्यंत तुरंत ही उसे अपनी मा को मेज़ पर बिठा दिया. उंगली हो या लंड, बिना किसी चिकनाई के औरतो के गुदा-द्वार को भेदना बेहद मुश्क़िल होता है और उसके अनुमांस्वरूप उसकी मा की गान्ड का छेद यक़ीनन अब तक कुँवारा था.
"मैं तुम्हारे हर स्वाभाव से पूर्ण रूप से परिचित हूँ और पूर्ण संतुष्ट भी! मा अब हमे देर नही करनी चाहिए, तुम मेज़ पर खुद घोड़ी बन सकोगी या मैं कुच्छ मदद करूँ ? ऋषभ ने कुटिल मुकसान छोड़ते हुवे पुछा, उसकी नीचता इस बात का प्रमाण थी कि अपनी मा के मम्मो को अब भी वह निर्लज्जतापूवक घुरे जा रहा था.
"रेशू! तू समझ बेटे, मेरे वहाँ दर्द नही है" ममता फुसफुसाई, उसने भी स्वयं महसूस किया कि उसके मम्मे आज से पहले कभी इतने अधिक नही फूल पाए थे और निप्पलो के तनाव की तो कोई सीमा ही नही थी.
"अगर भविश्य में होने लगा तो क्या तुम वापस मेरे सामने नंगी हो पाओगि ?" ऋषभ ने विस्फोटक सवाल दागा, इतनी लज्जा और गर्माहट का सामना करने के बाद तो शायद ही उसकी मा कभी दोबारा उससे नज़रें मिला पाती.
"नही .. नही रेशू! तू जाँच ले मगर इस बंद कॅबिन के बाहर हम अब भी मा-बेटे के मर्यादित रिश्ते में बंदे रहेंगे" कह कर ममता ने अपना सर नीचे झुका लिया और पुनः बुदबुदाई.
"पहले मेरी सॅंडल उतार दे रेशू! फिर घोड़ी बनने में मेरी मदद कर देना"
क्रमशः.....................................................
|