RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"मैं सहारा देता हूँ! तुम अपने दाएँ घुटने को मेज़ पर चढ़ाने की कोशिश करो" उसने ममता की दाईं जाँघ को पकड़ते हुवे कहा, उसकी मा ने भी ज़ोर लगाया और अपने दाएँ घुटने को मोड़ कर उसे मेज़ पर चढ़ने में कामयाब हो जाती है.
"रेशूउऊुउउ! उफफफ्फ़" ममता सिसक उठी. एक तो अधेड़ उमर की अन्द्रूनि जर्जरता, ऊपर से मासपेशियों में अत्यधिक खिंचाव. उस विषम स्थिति में उसकी टाँगो की जड़ समान्य से कहीं ज़्यादा चौड़ी हो गयी थी, जिसके नतीजन उसकी चूत में ना सह पाने योग्य दर्द उत्पन्न होने लगा था.
"परेशान मत हो मा! मैं तुम्हारे दूसरे घुटने को ऊपर चढ़ाने का प्रयत्न करता हूँ बस तुम अपने शरीर को साधे रखना" अपनी मा के बाएँ घुटने को पकड़ कर ऋषभ बोला. उसके शारीरिक बल के आगे ममता का वजन कोई विशेष वजनी नही था, पहले पहल तो उसने अपनी मा को अपनी गोदी मे टाँग लिया था तो अब कौन सी दिक्कत पेश आनी थी. हुंकार भरते हुवे वह उसके बाएँ घुटने को भी मेज़ पर स्थापित कर देता है और तुरंत ही अपने दाएँ हाथ की उंगलियों से उसके चूतड़ो की दरार सहलाने में जुट जाता है.
"माफ़ करना मा! मेरी निर्दयता की वजह से तुम्हारी टाँगो के जोड़ में दर्द हुवा" कह कर ऋषभ ने अपनी उंगलियों की घिसन अपनी मा के चूतड़ो की गहरी दरार के भीतर और भी अधिक तीव्र कर दी, लग रहा था मानो दरार के भीतर आग सी लगी हो और जिस की अगन से उसकी उंगलियाँ झुलस्ति जा रही हों.
"उंघह रेशू! मगर दर्द तो मेरी ...." ममता ने कुच्छ कहने के लिए अपना मूँह खोला परंतु शरम्वश अपने कथन को पूरा नही कर पाती. दर्द उसकी चूत में हुआ था लेकिन इसके ठीक विपरीत उसके पुत्र की उंगलियों की मनमोहक सहलाहट उसकी गान्ड का संवेदनशील छेद प्राप्त कर रहा था.
"क्या वाकई मेरे चूतड़ इतने आकर्षक हैं या ऋषभ ऐसे ही मेरा दिल रखने के लिए झुटि तारीफें किए जा रहा है" उसने मन ही मन सोचा और अपने निच्छले होंठ को अपने दांतो के मध्य दबा कर अपने पुत्र की उंगलियों का मन्त्र-मुग्ध कर देने वाला आनंद उठाने लगती है.
"मगर क्या मा ?" जैसा कि ममता का विचार था, ऋषभ उसके अधूरे कथन के विषय में पुच्छ ही बैठता है.
"अरे बुध्हु! जब टाँगो की जड़ में खिंचाव होता है तो दर्द कहाँ होना चाहिए. क्या तुझे इतना भी नही मालूम ?" मुस्कुराते हुवे ममता उल्टे उससे सवाल करती है. उसका पुत्र उसके चेहरे को नही देख सकता था, जिसका लाभ वह खुल कर उठा पा रही थी.
"नही मा! मुझे सच में नही पता" ऋषभ ने अंजान बनने का नाटक किया.
"चल रहने दे! मैं खुद वहाँ सहला लेती हूँ" बोल कर ज्यों ही ममता ने अपने बाएँ हाथ की उंगलियों को अपनी चूत के गीले मुहाने पर रगड़ने का प्रयास किया, अचानक से मा-बेटे की उंगलियाँ आपस में टकरा जाती हैं.
"अच्छा! अब समझा, दर्द तुम्हारी चूत में हुआ था" बोल कर ऋषभ ने अपनी मा की उंगलियों को अपनी उंगलियों से पकड़ने की चेस्टा शुरू कर दी और कुच्छ ही लम्हो की कोशिशो के पश्चात पकड़ने में सफल भी हो गया. ममता खुद इस विचित्र खेल का लुफ्त ले रही थी मगर ऋषभ के अगले निर्लज्ज प्रश्न को सुन कर उसका संपूर्ण बदन आकस्मात ही स्थिर हो जाता है.
"मा! क्या पापा भी तुम्हारे गुप्तांगो को इतना ही प्यार करते थे जितना अभी तुम्हारा बेटा कर रहा है ?"
"मा! क्या पापा भी तुम्हारे गुप्तांगो को इतना ही प्यार करते थे जितना अभी तुम्हारा बेटा कर रहा है ?" ऋषभ का यह विस्फोटक प्रश्न ममता और राजेश के निजी सेक्स जीवन से संबंधित था जिसे सुन कर वह पूर्णतया स्तभ्ध रह जाती है और इसके साथ ही मा-बेटे के बीच पनपे उस विचित्र खेल का भी मानो अंत सा हो गया था.
|