Maa ki Chudai माँ का चैकअप
08-07-2018, 10:56 PM,
#34
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"मैं! नही नही .. तुझे जो करना है तू खुद कर, मुझ में इतना सामर्थ्य नही रेशू" ममता ने हकलाते हुवे कहा. वह अब तक बगैर हीले-दुले एकदम सीधी, तंन कर मेज़ पर बैठी थी.

"तुम बहुत नौटंकी करती हो मा! अगर मैं खुद ही तुम्हारे चूतड़ो की दरार को खोलूँगा तो तुम्हारी गान्ड के छेद की जाँच कौन करेगा ? हे हे हे हे! मैं कोई राक्षस तो हूँ नही जो मेरे 4-4 हाथ हों" ऋषभ ने चटकारा लिया, उसकी बेढंगी सी हँसी ममता के कानो में रस घोल देती है.

"तू ना! तू बहुत ज़ालिम है और बेशरम भी" ममता बे जवाब में कहा. उसके कथन में उसकी मुस्कुराहट व्याप्त थी, जिसे ऋषभ फॉरन ताड़ जाता है.

"ज़ालिम तो नही मा मगर बेशरम ज़रूर हूँ और मेरी यह बेशर्मी औरतो को ख़ासी पसंद भी आती है, जैसे तुम खुद अभी चोरी-छिपे मुस्कुरा रही हो" ऋषभ पुनः उसे छेड़ते हुवे बोला. अपनी जिस संकोची मा से पिच्छले कयि सालो तक उसने नाम मात्र का वार्तालाप नही किया था, वर्तमान में कितनी सुगमतापूर्वक कर रहा था और सबसे ख़ास कि उसका हर संवाद उनके मर्यादित रिश्ते पर सिवाए कलंक के कुच्छ और ना था.

"धात! मैं क्यों मुस्कुराउन्गि, मैं कोई आम औरत थोड़ी हूँ .. मैं तेरी मा हूँ रेशू! तेरी सग़ी मा" कहते हुवे ममता के गाल सुर्ख हो उठे, अपनी नंगी अवस्था के तेहेत अपने पुत्र के समक्ष बार-बार उनके पवित्र रिश्ते का उल्लेख करना उसे अत्यधिक सिहरन से भरता जा रहा था, एक अजीब सी चाह थी जो इस वक़्त उसके संपूर्ण बदन को झुल्साती ही जा रही थी.

"यदि मुझे तेरी बेशर्मी का हल्का सा भी भान होता तो कब की तेरी अक़ल ठिकाने लगा चुकी होती" ममता की मुस्कुराहट ज़ारी रही, चूत का सकुचना गति पकड़ चुका था.

"मुझे बहुत खुशी होगी मा! मैं तुम्हे तुम्हारे इस रोग से निजात दिला देता हूँ और बदले में तुम मेरी बेशर्मी का ख़ात्मा कर देना, इसलिए अब देर मत करो! तुम्हे घर भी जाना है" ऋषभ ने अपनी आँखों को अपनी मा के चूतड़ो की दरार के शुरूवाती मुहाने पर गढ़ाते हुवे कहा ताकि ज्यों ही ममता अपने निचले धड़ को ऊपर की दिशा में उठाना आरंभ करे, उस अदभुत द्रश्य का लम्हा-लम्हा वह अपनी आँखों में क़ैद कर पाए.

"मैं तेरी बेशर्मी का ख़ात्मा क्या करूँगी भला ? तेरी मा तो तुझसे भी कहीं अधिक बेशरम बन चुकी है रेशू" बोलने के उपरांत ही ममता ने अपनी पलकें मूंद ली और अपने हाथो के दोनो पंजों को मेज़ पर टिका लेती है, जिस कारण जहाँ उसका ऊपरी धड़ हल्का सा नीचे को झुक गया वहीं उसके चूतड़ पूर्व से कहीं ज़्यादा उभर जाते हैं.

"नही! मुझसे नही होगा" वह शरम से बिलबिला उठी, मात्रित्व की कचॉटना अब भी उसके मार्ग को बाधित कर रही थी.

"मा! तुमसे पहले जो औरत यहाँ आई थी, उसके साथ उसका पति भी था और उसी ने अपनी पत्नी के चूतड़ो की दरार को खोला था ताकि मुझे उसकी पत्नी की गान्ड के छेद की जाँच करने में दिक्कत का सामना नही करना पड़े. अब तुम अकेली हो और पापा यहाँ आ नही सकते! तुम ही बताओ मैं क्या करूँ ?" जाने अचानक से ऋषभ को क्या सूझता है, अपने नीच कथन में अपने पिता की भूमिका को बाँध कर वह अपनी कुर्सी से उठ कर खड़ा हो जाता है.

"तुम्हे कोई हल समझ आए तो मुझे बता देना, तब तक मैं पानी पी लेता हूँ" उसने खुद को चलायमान करते हुवे कहा, उसके कदमो की चाप सुन अत्यंत तुरंत ममता की चूत कुलबुला उठती है. फ्रिड्ज ठीक उसके चेहरे के सामने स्थापित था और घुटनो के बल बैठी होने की वजह से उसकी चूत पूरी तरह से उजागर हो रही थी. हलाकी उसके पुत्र ने अब तक उसकी चूत की महज उपेक्षा ही की थी परंतु किसी कारणवश यदि वह उसकी तरफ अपनी नज़रे घुमा लेता तो सरलतापूर्वक उसे अपनी मा की चूत के दर्शन हो जाते. कुच्छ ही पलो के सोच-विचार के उपरांत ममता ने अपनी बंद पलकों को पुनः खोल दिया और तीव्रता के साथ अपने घुटनो को विपरीत दिशा की ओर फैलाना आरंभ कर देती है. एक ऐसा विध्वंशक काल्पनिक द्रश्य उसकी आँखों के सामने नृत्य करने लगा था जिसमें रीमा की जगह वह स्वयं ले चुकी थी और उसका असहाय पति उसके चूतड़ो की दरार को खोले खड़ा, ऋषभ को उसकी सग़ी मा एवं अपनी पत्नी के गुदा-द्वार का अवलोकन करने में सहायता प्रदान कर रहा था.

"पागल कहीं का! कुच्छ भी बोल देता है. अपनी मा को नही बक्श रहा तो कम से कम अपने पापा को तो बक्श दे" ऋषभ के नज़र आते ही ममता बुदबुदाई और सहसा उसकी लाचार आँखें उसके पुत्र की पॅंट में बने उसके विशाल लंड के तंबू पर चिपक कर रह जाती हैं. लाख कोशिशो के बावजूद भी उसके मूँह से दबी सिसकारी छूट पड़ी और अत्यंत कामुकता से अभिभूत वह निर्लज्ज मा अपनी चूत की अनंत गहराई में गाढ़ा कामरस उमड़ता महसूस करती है.

"तुम्हे यकीन हो या ना हो मा मगर यदि हक़ीक़त में पापा यहाँ होते तब भी मैं तुम्हारा इलाज करता" ममता के कथन से कहीं अधिक उसकी सितकार ध्वनि पर गौर कर ऋषभ फॉरन उसकी ओर पलट'ते हुवे बोला, उसकी आँखों ने जब अपनी मा के चेहरे की बदलती आकृति को देखा तो काँपते हुए खुद ब खुद उसका विकराल लंड उसकी पॅंट के भीतर ठुमकना शुरू कर देता है.

"नही ऐसा कभी नही होता रेशू! तेरे पेशे से संबंधित यह आम सी बात हो सकती है मगर मेरे लिए .. उफफफ्फ़ मैं कैसे! सोचना भी कितना ग़लत है" ममता ने अपने पुत्र के विकराल तंबू पर लगे उसके स्वयं के कामरस के सूखे दाग-धब्बो को ध्यानपूर्वक परखते हुवे कहा और कामोत्तजना से विवश तत्काल अपना दायां हाथ मेज़ से उठा कर बिना किसी लज्जा के अपनी उंगलियों से व्यग्रतापूर्वक अपनी चूत के रिस्ते मुहाने को रगड़ने लगती है. उसकी नीच इक्षा की प्रबलता उसे इतना अधिक उद्विग्न कर चली थी कि जिसके तेहेत क्षण मात्र को उसके मश्तिश्क से उसके मा होने की मर्यादित पदवी का भी स्मरण मानो मिट चुका था.

"तुम पियोगी ?" फ्रिड्ज से बॉटल निकाल कर ऋषभ ने अपनी मा के रक्त-रंजीत चेहरे को घूरते हुवे पुछा. ममता का निरंतर हिलता हुवा हाथ और हाथ में पहनी हुवी काँच की चूड़ियों की अत्यंत कामुक खनक से परिचित होने के बावजूद भी वह अपने चेहरे के सामन्य भाव को बरकरार रखता है.

"उँ हूँ" अपने पुत्र के सवाल से ममता की तंद्रा टूट गयी और इनकार की सूरत में उसने अपना सर हिला दिया. उसकी सारी कोशिश धरी की धरी रह जाती है जब ऋषभ उसे दोबारा चलता हुवा जान पड़ता है.

"शायद इसे झाँत रहित, चिकनी चूत पसंद है वरना संभव नही की मर्द, औरत की चूत को इस तरह नज़रअंदाज़ कर दे. मेरी चूत कोई आम चूत थोड़ी ना है मगर फिर भी रेशू इसकी उपेक्षा क्यों रहा है ?" ममता ने मन ही मन खुद से प्रश्न किया, जिसका उत्तर वह काफ़ी समय पूर्व से ढूँढने को प्रयासरत थी और अब तक उसे कोई संतुष्टिपूर्वक उत्तर नही मिल पाया था. वहीं ऋषभ अपने कठोर सैयम के लिए खुद को धन्यवाद दिए जा रहा था, गुदा-द्वार हो या चूत! अंत में तो सर्वस्व उसकी मा की सुंदर काया पर उसका अधिकार हो जाना तय था.

"काश कि मैने यहाँ आने से पहले अपनी इन कलमूहि झांतों को सॉफ कर लिया होता" ममता का अश्लील अफ़सोस ज़ारी रहा और अपने पिछे रखी कुर्सी के चरमराने की ध्वनि कानो में सुनाई पड़ने के उपरांत ही वह अपने तलवो पर टिके अपने मांसल चूतड़ो को ऊपर की दिशा में उठना आरंभ कर देती है. इस समय क्रोध नामक एहसास ने उसके मश्तिश्क पर पूर्णरूप से अपना क़ब्ज़ा जमाया हुआ था, जो उसके निकरष्ठ कार्य को पूरा करने हेतु उसे तीव्रता से उकसा रहा था. आकस्मात वह बीते पुराने उस स्वर्णिम वक़्त को याद करती है जब पहली बार उसने राजेश के समक्ष अपनी कुँवारी चूत को उजागर किया था और जिसे देखते ही बेचारे की घिघी बँध गयी थी, वह कितना अधीर हो उठा था मानो दीर्घ निद्रा में पहुँच गया हो वहीं इसके ठीक विपरीत उसकी वही चूत उसके पुत्र को ज़रा भी लुभा सकने में पूर्णरूप से नाकामयाब रही थी.
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