RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"रेशू! किसी सभ्य स्त्री के लिए सबसे कठिन कार्य होता है, खुद के द्वारा अपने यौन अंगो को प्रदर्शित करना. मैं तेरी मा हूँ, इक अंतिम बार तुझसे माफी माँगना चाहूँगी! हो सके तो अपनी इस पापिन मा को माफ़ कर देना" इतना कहने के उपरांत ममता ने मेज़ पर अपना संतुलन बनाते हुए अपने दोनो हाथ परस्पर अपने चूतड़ो की ओर अग्रसित कर दिए. उसकी पलकें मूंद गयी थी! जबड़े भींचते जा रहे थे! हाथो का कंपन निरंतर अत्यधिक गति पकड़ रहा था! चूत की सकुचाहत अपने चरम को पाने हेतु कुलबुला उठी थी. जहाँ उसने अपने पुत्र से अपने शमनाक कार्य को पूरा करने से पूर्व माफी माँगी थी वहीं अपने पति पर उसे बेहद क्रोध आ रहा था, यदि राजेश ने उसकी जिस्मानी ज़रूरतों का ख़याल रखा होता तो कभी वह इतनी असहाय ना होती और ना ही निर्लज्जतापूर्ण ढंग से स्वयं अपनी मर्यादों को भंग करती. आती-शीघ्र उसके हाथो के खुले पंजे उसके चूतड़ो के पाटो पर कसने लगते हैं, गद्देदार माँस में उसकी उंगलियाँ धँस जाती हैं और अत्यंत बेबसी की घुटि चीख के पश्चात ही वह अपने चूतड़ो के पाटो को बलपूर्वक विपरीत दिशा में खींचते हुवे अपने वर्जित अंग पूरी तरह से अपने सगे जवान पुत्र की आँखों के समक्ष उजागर कर देती है.
"इतना! इतना काफ़ी है ना बेटे ?" उसके कपकापाते लफ्ज़ फूट पड़े, संपूर्णा बदन सिहरन और अधभूत रोमांच से गन्गना उठता है.
"माफी की आवश्यकता नही मा! यह तो तुम्हारी हिम्मत का प्रमाण है जिसकी प्रशन्षा शब्दो में बयान करना ना-मुमकिन है. तुम्हारा अपने पुत्र के प्रति विश्वास और स्नेह का प्रतीक और जिसके लिए मैं तुम्हे कोटिक नमन करता हूँ" अपनी मा को आंतरिक बल प्रदान करने पश्चात ऋषभ अपनी कुर्सी से उठ कर खड़ा हो जाता है और बिना किसी विलंब के उसके चूतड़ो की खुली हुवी दरार के भीतरी क्षेत्र का मुआयना करने लगा. लंबी घुँगराली झांतो पर पसीने की छोटी-छोटी बूँदें ऐसा सुंदर द्रश्य दर्शा रही थी मानो घास पर जमी ओस की बूँदें और दरार के बीचों-बीच अत्यधिक स्पंदन करता हुवा उसकी मा का गहेरे कथ्थयि रंगत का गोल गुदा-द्वार, जिसकी दानेदार सतह और सतह पर सलवटों की अधिकता स्पष्ट रूप से ज़ाहिर करती है कि ममता ने अपने मल-द्वार से अब तक सिवाय मल त्याग करने के कोई अन्य कार्य नही किया होगा.
"क्या तुम्हे पता है मा कि इंसानो की रीड की हड्डी का अंतिम बीड़ू कहाँ होता है ?" पुछ कर ऋषभ ने अपना दायां हाथ अपनी मा के चूतड़ो की दरार के उभरे शुरूवाती हिस्से पर रख दिया और अपने अंगूठे को उसकी रीड की हड्डी के अंतिम छोर पर दबाने लगता है.
"हां! हां रेशू .. यहाँ हड्डी है" ममता के स्वर में थरथराहट व्याप्त थी. तत-पश्चात ऋषभ अपने अंगूठे को रगड़ के साथ नीचे की ओर फिसलाने लगा, नतीजन झाटों पर जमी पसीने की बूँदें बिखर कर उसकी मा के तीव्रता से खुलते व बंद होते गुदा-द्वार के भीतर प्रवेश करना आरंभ कर देती हैं. शीघ्र ही उसका अंगूठा दानेदार मल-छिद्र के घेराव पर टिक जाता है, जिसके व्यास ने ममता के आती-संवेदनशील गान्ड के छेद को पूर्णरूप से ढक लिया था.
"उफफफफ्फ़" अपने पुत्र के अंगूठे का गुदगुदाता स्पर्श अपने नाज़ुक छिद्र पर महसूस कर ममता ना चाहते हुवे भी सिसक उठती है, जहाँ उसका शरीर उस मादक स्पर्श की तपिश मात्र से प्रज्वलित हो उठा था वहीं आगे क्या होगा, सोच-सोच कर उसकी घबराहट बढ़ती ही जा रही थी.
"मा! पापा को गुदा-मैथुन पसंद नही था ना ?" ऋषभ ने छिद्र के मुहाने पर अपने अंगूठे के नाख़ून को घिसते हुवे पुच्छा, ममता की पतिव्रता छवी के मद्देनज़र उसे यकीन था कि उसकी मा ने सदैव ही अपने पति की इच्छाओ का अनुकरण किया है और यदि उसके पिता को गुदा-मैथुन में रूचि होती तो उसकी मा की गान्ड का छिद्र इतना दानेदार व कसा हुवा नही होता.
"मैं! मैं नही बताती, तेरे इस उत्पाटांग सवाल का उत्तर देना मेरे बस में नही रेशू" एक बार पुनः पति-पत्नी की निजिता में दखलंदाज़ी करते अपने पुत्र के प्रश्न से ममता हड़बड़ा जाती है मगर सच तो यही था कि राजेश को गुदा-मैथुन से सख़्त नफ़रत थी और उसकी राह पर चलायमान उसकी पत्नी ने भी इस विषय पर कभी गौर नही किया था. अक्सर अपने पुत्र की उमर के लड़को की नज़रें वह अपने मांसल चूतड़ो पर जमी पाती थी और शरम्वश उससे विचारते भी नही बनता था कि ऐसा क्यों होता है. आज पहली बार ममता को एहसास हुआ कि वक़्त कितना बदल चुका है, समझ में आ गया था कि क्यों ऋषभ उसकी चूत से कहीं अधिक उसके चूतड़ो पर आकर्षित है. पाश्चात्य संस्कृति के बोलबाले ने गुदा-मैथुन को बहुत बढ़ावा ही नही दिया था बल्कि रोज़मर्रा की यौन क्रीड़ाओ में खुद को शामिल भी कर लिया था.
"पापा इतने पुराने ख्यालातो से संबंध रखते होंगे, जान कर हैरानी हुई मा! वरना अब तक जितनी भी स्त्रियों की गान्ड के छेद मैने देखे, शत-प्रतिशत ढीले थे" ऋषभ ने अश्लीलतापूर्वक बताया. अपनी मा के कुंवारे गुदा-द्वार को अपने अंगूठे के नाख़ून से खुजाना उसे बेहद रास आ रहा था.
"ओह्ह्ह! ढीले .. ढीले से तेरा क्या मतलब है रेशू ?" ममता ने सिसकते हुवे पुछा. अधेड़ उमर के बावजूद रति-क्रियाओं में उसकी जानकारी काफ़ी कम थी, बस उतने में ही परिपक्व थी जितना अपने पति से सीख पाई थी.
"ढीले! मतलब कि वे सभी अपने पतियों से अपनी गान्ड भी चुदवाती होंगी और इसमें बुरा क्या है मा ? चुदाई की संतुष्टि के लिए मर्द हमेशा कसे हुवे छेद की आशा रखते हैं, जिसका आनंद उन्हें चूत से कहीं अधिक औरतो के गुदा-द्वार को चोदने से मिलता है और नयेपन की उनकी चाहत भी पूरी हो जाती है" ऋषभ ने बेहद सहजता से जवाब दिया मानो मेज़ पर घोड़ी बनी बैठी, उसके कथन को सुनती वो नंगी औरत उसकी सग़ी मा ना हो कर कोई आम औरत हो.
"हॅट! क्या अपनी मा से इतनी गंदी बातें करने में तुझे तनिक भी लज्जा नही आती रेशू ?" अपने पुत्र की अश्लील भाषा प्रयोग से ममता के होश उड़ गये थे, उसने उसे डाँटने के लहजे में पुछा.
"चिकित्सको की छवि कितनी सॉफ-सुथरी होती है, उनके बात करने का ढंग मन मोह लेता है और एक तुझे देखो. सच में तू बहुत बिगड़ गया है रेशू, मुझे लगता है तेरी भी रूचि .. छि! वो जगह कितनी गंदी होती है" उसने अपनी मुंदी हुवी पलकों को खोलते हुवे कहा मगर अपने पुत्र की ओर गर्दन घुमाने का साहस नही जुटा पाती, घुमाती भी कैसे ? ऋषभ स्वयं अविलंब अपने अंगूठे के नाख़ून से उस गंदी जगह, उसकी गान्ड के अति-संवेदनशील छेद को कुरेद रहा था जिसके रोमांचक एहसास से ममता का चेहरा सुर्ख लाल हो उठा था और यदि ऐसे में वह उससे अपनी नज़रें मिलाती तो निसचीत ही वह उसकी उत्तेजना को समझ जाता.
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