RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"तुम हर बार भूल जाती हो कि मैं एक यौन चिकित्सक हूँ, मेरे सह-क्षेत्र में गंदा कुच्छ भी नही होता और रही बात मेरी रुचियों की तो हां मा! तुम्हारे बेटे को भी औरतों की गान्ड का छेद अत्यधिक रुचिकर लगता है और यह भी पूर्णतया सच है कि तुम्हारा बेटा अब तक इस सुख को पाने से वंचित रहा है. तुम्हे गुदा-मैथुन से परहेज है क्यों कि तुमने अपने गुदा-द्वार का इस्तेमाल मात्र मल-विसर्जन हेतु ही किया है और तभी तुम खुद मेरी तरह इस अधभूत सुख से वंचित रही हो" अपने सांकेतिक कथन के ज़रिए ऋषभ ने अपनी मा को प्रस्ताव देने का प्रयास किया था और ममता को भी समझते देर ना लगी कि उसके पुत्र के इशारे की असलियत क्या है. दोनो के हालात समतर थे, एक सुख पाने को तड़प रहा था तो दूजा उस सुख का कारण खोजने पर विवश हो चला था.
"मैं! मैं नही मानती रेशू, अप्राक्रातिक विषयो को नकार देना ही उचित रहता है" ममता ने कहने में ज़्यादा वक़्त नही लिया और अपने इनकार से अपने पुत्र के प्रस्ताव को फॉरन खारिज कर देती है परंतु उसके मन में जिग्यासा का अंकुर फूट चुका था. ऋषभ के दुस्स-साहस से वह आश्चर्या में पड़ गयी थी, जिसने जान-बूचकर अपनी सग़ी मा के साथ गुदा-मैथुन करने की अमर्यादित इक्षा जताई थी, जबकि इसके ठीक विपरीत ममता ने अब तक नही सोचा था कि उसके मेडिकल चेकप का अंत क्या होना था ?
"सबकी अपनी-अपनी पसंद होती है मा! खेर छोड़ो, हम क्यों बे-वजह इस विषय पर वाद-विवाद करें" अपनी मा की मीठी वाणी में अचानक से आई कठोरता के बदलाव ने ऋषभ को आगाह कर दिया कि वह उसके सांकेतिक कथन से ख़ासी खुश नही हुवी थी और तभी ऋषभ प्रेमपूवक उस विवादित विषय को वहीं समाप्त कर देने पर मजबूर हो जाता है. अब सिर्फ़ एक अंतिम कार्य ही शेष था, जिसे करने की अनुमति भी उसे अपनी मा से काफ़ी वक़्त पिछे मिल चुकी थी और अपने उसी सोचे-विचारे हुवे कार्य के तेहेत वा यह साबित करने को उत्सुक हो गया की गुदा-मैथुन का प्रारंभिक एहसास ही इतना अधिक आनंदतीरेक होता है, जिसे पाने के उपरांत दुनिया की कोई भी स्त्री अपनी गान्ड के छेद को चुदवाने से खुद को नही रोक सकती.
"मा! थोड़ा दर्द होगा मगर मैं तुम्हारी हिम्मत से परिचित हूँ. आशा करूँगा, तुम सह सकोगी" कहने के पश्चात ही ऋषभ अपने अंगूठे को छिद्र के मुहाने से हटा कर उसके स्थान पर अपने उसी हाथ की सबसे लंबी उंगली को टीका देता है और बलपूर्वक अपनी उंगली अपनी मा के कसे हुवे गुदा-द्वार के भीतर ठेलने का दुर्दांत प्रयत्न करने लगा.
"आह्ह्ह्ह रेशू! क्या तेरा ऐसा करना ज़रूरी है ?" ममता ने व्यकुल्तापूर्वक पुछा. उसके पुत्र की उंगली का अंश मात्र हिस्सा भी उसकी गान्ड के कुंवारे छेद के भीतर नही पहुँच पाया था और अभी से उसकी अनिश्चित-कालीन पीड़ा की शुरूवात हो गयी थी, यक़ीनन अग्यात भय ने उसके मष्टिशक पर पूर्णरूप अपना क़ब्ज़ा जमा लिया था, जो उसकी घबराहट को भी अकारण ही बढ़ाने लगा था.
"अगर उंगली नही डालूँगा तो छेद के अन्द्रूनि विकारो को कैसे जान पाउन्गा मा ?" अपने प्रश्न के साथ ही ऋषभ ने ज़ोर लगाया और तत्काल उसकी आधी उंगली छिद्र के कसावट से भरपूर छेद को अपने व्यास-अनुसार चौड़ाती हुवी उसके भीतर घुसने में सफल हो जाती है.
"सीईईई उफफफफ्फ़" ममता ने अति-शीघ्र अपनी गान्ड के छेद को सिकोडा परंतु पीड़ा की अधिकता से अपनी सीत्कार को नही रोक पाती.
"इसे मल-द्वार का आरंभिक छल्ला कहते हैं मा, तुम्हारी तरह ही कोई भी अन्भिग्य स्त्री जब अपनी गान्ड के छेद को सिकोड़ने की ग़लती करती है तब यह छल्ला छिद्र के भीतर पहुँचने वाली वास्तु, चाहे उंगली हो या लंड! अपने प्राक्रातिक आकार को त्याग कर उसे रोकने के लिए फॉरन अपने गहराव को कम कर लेता है" ऋषभ ने अपनी उंगली को छल्ले की गोलाई पर घुमाते हुवे कहा, ममता के अपनी गान्ड के छेद को अकसामात सिकोड लेने के उपरांत उसके पुत्र की उंगली उस छल्ले के भीतर बुरी तरह से फस गयी थी.
"तो .. तो अब मुझे क्या करना चाहिए रेशू ? अजीब सा महसूस हो रहा है, दर्द तो है ही मगर ......" ममता ने उस विषम परिस्थिति से बचने हेतु पुछा, उसका कथन अधूरा हो कर भी पूरा था.
"अपने छेद को ढीला छोड़ दो मा! बस यही एक मात्र विकल्प है वरना मेरी पिच्छली मरीज़ की तरह ही तुम्हारा गुदा-दार भी चोटिल हो सकता है" ऋषभ ने उसे समझाते हुवे कहा और साथ ही अपनी नीच मंशा की पूर्ति के लिए उसे डरा भी देता है.
"अब नही सिकोडूँगी रेशू! तू ख़याल रखेगा ना अपनी मा का ? बोल रखेगा ना ?" डर से बहाल ममता अधीरतापूर्वक बोली. कुच्छ वक़्त पूर्व कॅबिन में गूँजी उस चीख पर उसका ध्यान केंद्रित हो जाता है, जिसे सुनने के उपरांत वह विज़िटर'स रूम की खिड़की से कॅबिन के भीतर झाँकने को मजबूर हो गयी थी और जो विध्वंशक द्रश्य उसने देखा था, लम्हा-लम्हा याद कर उसका शरीर काँपने लगता है.
"हां मा! तुम्हारा ख़याल तो मुझे रखना ही पड़ेगा" कह कर ऋषभ ने इंतज़ार नही किया और ममता के अपने गुदा-द्वार को ढीला छोड़ने से पहले ही वह अपनी संपूर्ण उंगली ज़बरदस्ती उस अवरुद्ध मार्ग के भीतर तक ठूंस देता है, हलाकी वह अपनी मा को दर्द नही देना चाहता था मगर आने वाली उसकी अगली क्रियाओं के मद्देनज़र जबरन उसे ऐसा करना पड़ा था.
"अहह रेशूउऊउउ! निकाल .. बाहर निकाल ले बेटे .. उफफफ्फ़" ममता की असहनीय चीख से कॅबिन गूँज उठता है. जिस परिस्थिति के विषय में सोच कर वा घबरा रही थी, उससे बचने का उपाय ढूँढ रही थी, कुच्छ भी सोचने से पूर्व ही उस परिस्थिति से उसका सामना हो गया था.
"लो मा निकाल ली" ऋषभ खुद अपनी मा की चीख से हड़बड़ा जाता है और तत्काल अपनी उंगली छेद से बाहर खींच लेता है.
"ओह्ह्ह! तू बहुत ज़ालिम है रेशू. मैं तेरी मा हूँ, इसके बावजूद भी तू मेरे साथ अन्य रोगियों की तरह ही बर्ताव कर रहा है" अपने पुत्र की उंगली अपनी गान्ड के छेद से बाहर निकालने के उपरांत ममता राहत की साँसे लेती हुवी बोली.
"माफ़ करना मा! मुझसे ग़लती हो गयी, मुझे सूखी उंगली का इस्तेमाल नही करना चाहिए था मगर मैं क्या करूँ, सारे स्टाफ के अचानक से छुट्टी पर चले जाने से मुझे जाँचो में प्रयोग होने वाली वस्तुओं के बारे में कोई जानकारी नही की वे कहाँ रखी होंगी" ऋषभ ने माफी माँगते हुवे कहा. उसके कथन की सत्यता जानने हेतु इस बार ममता अपनी गर्दन घुमा कर उसके चेहरे को घूरती है, उसने स्पष्ट रूप से देखा कि उसके पुत्र के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव थे. तत्काल ममता के हृदय में टीस उठी, इसलिए नही कि उसका पुत्र अपने किए पर शर्मिंदा था बल्कि इसलिए कि उसकी मा हो कर भी अब तक वह उसे ठीक से पहचान नही पाई थी, जाने क्यों आज उसके पुत्र का चेहरा पहली बार उसे किसी अजनबी समतुल्य नज़र आ रहा था.
"मुझे अपनी उंगली को चिकना करना होगा मा ताकि तुम्हे दोबारा कष्ट ना पहुँचे" कह कर ऋषभ अपने दाएँ हाथ को अपने चेहरे के नज़दीक लाने लगता है, उसकी आँखे उसकी मा की हैरत से फॅट पड़ी आखों में झाँक रही थी.
"नही रेशू ऐसा ग़ज़ब मत करना बेटे" ममता उसकी मंशा को ताड़ते हुवे चीखी.
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