RE: Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में
विशाल- इसी हाथ से तूने मेरी बेहन का हाथ थामा था ना......देख मैं तेरे हाथों का क्या हाल करता हूँ....फिर विशाल बिना रुके अपने पैरो से रवि के हाथों पर चोट करने लगता है......रवि के मूह से दर्द भरी कराह निकल रही थी.....मगर विशाल को तो जैसे उसकी कोई परवाह ही नहीं थी.....कारेब 10, 12 बार एक ही जगह लगातार चोट करने से रवि के हाथ की हुड्डी टूट जाती है और वो वही दर्द से चीखते हुए बेहोश हो जाता है.....मगर विशाल अब भी उसे मारे जा रहा था......विशाल के भी हाथों से खून निकल रहा था.........ये सब तमाशा देखकर मेरे आँखों में भी आँसू छलक पड़े थे......
अगर ये सिलसिला कुछ देर तक यू ही चलता रहता तो यक़ीनन रवि मर जाता.......मैं फ़ौरन आगे बढ़ी और विशाल के पास गयी.....
अदिति- प्लीज़ स्टॉप दिस विशाल......मार डालोगे क्या उसे ........मैने विशाल को एक तरफ धकेला मगर विशाल अपनी जगह से बिल्कुल हिला भी नहीं......फिर मैने उसे ज़ोर का धक्का दिया......
अदिति- विशाल.............तुम्हें मेरी कसम.......अगर तुमने इसपर अपना एक भी और हाथ उठाया तो......मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा........
विशाल मेरे इस तरह बोलने पर कुछ शांत हुआ और फिर मुझे घूर कर देखने लगा- तुम्हें पता भी है दीदी कि तुम क्या कर रही हो......इसने मेरी आड़ लेकर तुम्हें पाने की कोशिश की है......ये दोस्त नहीं दोस्ती के नाम पर एक दाग है.......ऐसे लोगों का मर जाना ही बेहतर है......फिर विशाल आगे बढ़कर एक दो लात और रवि पर जड़ देता है......मेरा भी सब्र टूट चुका था मैं विशाल के पास गयी और उसके गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा मार दिया जिससे उसके गालों पर मेरे पाँचों उंगलियाँ छप सी गयी......थप्पड़ इतना ज़ोर का था कि मेरे हाथ झंझणा उठे थे.......मेरे हाथ की कलाई लचक गयी थी........मगर मुझे उस वक़्त अपनी परवाह नहीं थी.......मेरे इस हरकत पर विशाल मुझे सवाल भरी नज़रो से देखने लगा.....जैसे वो मुझसे पूछ रहा हो कि आख़िर इसमें मेरी क्या खता है......
अदिति- क्या साबित करना चाहते हो तुम अपने आप को......गुंडे हो कहीं के........या अपने आप को कहीं का डॉन समझते हो........क्या हो तुम........हां मानती हूँ कि इसने जो तरीका अपनाया वो ग़लत था.......इसने सरे आम मेरा हाथ पकड़ा वो ग़लत था.......मगर मैं पूछती हूँ कि जो तुमने इसके साथ किया क्या वो सही था.......देखो कैसे जानवरों की तरह इसे मारा है.......
विशाल- दीदी.......कोई आपके साथ बढ़तमीज़ी करेगा तो क्या आपका ये भाई चुप बैठेगा......अभी तो इसकी किस्मेत अच्छी है कि ये बच गया.......नहीं तो साले का मार मार कर वो हाल करता कि........ये बात पूरे भी नहीं हुई थे कि अदिति का एक और करारा थप्पड़ विशाल के गालों पर पड़ता है.......
अदिति- गेट आउट फ्रॉम हियर.......दूर हो जा मेरी नज़रो से.......मैं तेरी शकल भी देखना नहीं चाहती.........नफ़रत हो गयी है मुझे तुमसे.......चला जा यहाँ से इससे पहले कि और कोई तमाशा खड़ा हो........
विशाल चुप चाप अपनी नज़रें नीचे झुकाए खड़ा था......मगर अब वो कुछ भी नहीं बोल रहा था......
अदिति- सुना नहीं तूने......दूर हो जा इस वक़्त मेरे सामने से......
विशाल- ठीक है दीदी ये मत समझना कि मैं चुप हूँ तो मैं डर गया.....अगर किसी ने आप पे बुरी नज़र डाली तो मैं उसकी आँखे निकाल लूँगा.....अगर आपकी इज़्ज़त के खातिर मुझे गुंडा भी बनना पड़े तो मुझे वो भी मंज़ूर है......
मैं उस वक़्त बिल्कुल खामोश सी वही विशाल को जाता हुआ देख रही थी.......थोड़े देर बाद रवि को किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में शिफ्ट कर दिया गया.......मेरे आँखों से अब भी आँसू नहीं थमे थे......कितना भरोसा करती थी मैं विशाल पर मगर आज विशाल ने मेरे सारे भरोसे को पल भर में तोड़ दिया था......विशाल का ये रूप आज मैं पहली बार देख रही थी......अब भीड़ बहुत हद तक कम हो चुकी थी.........पूजा मेरे पास आई और उसने मेरे आँखों से बहते आँसू पूछे......
पूजा- अदिति चलो मेरे साथ.......इस वक़्त तुम्हारा मूड ठीक नहीं है.......
अदिति- पूजा मेरा एक काम करोगी....प्लीज़ मैं इस वक़्त घर जाना चाहती हूँ......क्या तुम मुझे अपने घर तक छोड़ दोगि.......प्रिया वही खड़ी थी उसने झट से अपनी स्कूटी की चाभी पूजा के हाथों में थमा दी.......पूजा ने भी मुझसे कोई बहस नहीं की और फिर उसने स्कूटी निकाली और मैं उसपर चुप चाप बैठ गयी.........पूरे रास्ते भर पूजा ने मुझसे कोई बात नहीं की.......शायद आज उसने पहली बार मेरा ये रूप देखा था.
जैसे जैसे मेरा घर नज़दीक आ रहा था वैसे वैसे मेरे दिल में घबराहट और बेचैनी और भी बढ़ती चली जा रही थी......अंदर ही अंदर मैं मम्मी के सवालों से डर रही थी कि मैं उन्हें कॉलेज से जल्दी आने की क्या वजह बताउन्गि......इस वक़्त भी मेरी आँखें नम थी......जब मेरा घर आया तब मैने अपना चेहरा अच्छे से सॉफ किया और मैने अपने घर की डोर बेल दबा दी........मेरे ठीक पीछे पूजा खड़ी थी......थोड़ी देर बाद मम्मी ने आकर दरवाज़ा खोला.......
जब मम्मी की निगाह मुझपर गयी तो वो मुझे सवाल भरी नज़रो से देखने लगी.......मम्मी को शायद मेरी आने की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी.......
स्वेता- अरे बेटी तू.....आज कॉलेज से इतनी जल्दी.......सब ठीक तो है ना......मैं अपनी गर्देन नीचे झुकाए चुप चाप खड़ी थी.......मेरे मूह से चाह कर भी एक शब्द नहीं फुट रहें थे.....तभी पूजा मम्मी के सवालों का जवाब दे देती है.........
पूजा- वो आंटी बात ये है कि आज अदिति की तबीयत थोड़ी ठीक नहीं है.......शायद कमज़ोरी है थोड़ी बहुत......इसे चक्कर आ गया था कॉलेज में......इस लिए मैं इसे घर ले आई........पूजा की बातों को सुनकर मैं भी हां में अपना सिर हिला दिया मगर मम्मी अभी भी मेरे चेहरे की ओर देख रही थी........शायद वो मेरे चेहरे की सच्चाई को पढ़ने की कोशिश करना चाह रही हो...........
स्वेता- कितनी बार बोला है इसे कि अपने उपर ज़रा ध्यान दिया कर........मगर इस लड़की को मेरी बात की परवाह कहाँ होती है........अच्छा किया बेटी जो तू इसे घर ले आई.......अब बाहर खड़ी रहेगी या अंदर भी आना है.......मम्मी मेरे चेहरे को घूरते हुए एक बार फिर से बोली......मैने उनकी बातों का कोई जवाब नहीं दिया और चुप चाप अपने कमरे में चली गयी......पूजा जाना चाहती थी वापस मगर मम्मी ने उसे रोक लिया और चाइ पीकर जाने को कहा.....चाइ पीकर पूजा कॉलेज के लिए निकल पड़ी........
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