Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में
09-12-2018, 11:44 PM,
#10
RE: Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में
पापा एक दम खामोश थे.......वो कुछ नहीं बोले और चुप चाप अपने सोफे पर जाकर बैठ गये......मैं उनके पास गयी और उनके कदमों के पास बैठ गयी.....

अदिति- पापा विशाल भले ही मुझसे कितना भी झगड़ा क्यों ना करता हो ......मगर सच तो ये है कि वो मुझे बहुत प्यार करता है......और मैं भी उसे बहुत चाहती हूँ.....कोई भी भाई अपनी बेहन के साथ बुरा होता हुवा नहीं देख सकता.....विशाल की यही ग़लती है कि उसने रवि को बहुत ज़्यादा मारा......उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था......

पापा मेरी तरफ एक नज़र देखे फिर विशाल की ओर देखने लगे.....विशाल अभी भी चुप चाप वही अपनी गर्देन नीचे झुकाए खड़ा था.......

मोहन- तो फिर मेरे लाख पूछने पर भी इसने सच क्यों नहीं कहा......अगर ये सच बता देता तो क्या मैं इसपर अपना हाथ उठाता......पापा ने फिर हम से कोई बहस नहीं की और सीधा अपने कमरे में चले गये......मुझे भूख तो बहुत ज़ोरों की लगी थी......सुबेह से मैने कुछ नहीं खाया था मगर आज इतना कुछ हो गया था जिससे मेरी भूख मर सी गयी थी......मैं फिर अपने कमरे में आई और फिर अपने बिस्तेर पर आकर लेट गयी.......विशाल अपने कमरे में चला गया.....मम्मी खाना बनाने किचन में चली गयी......

रात के करीब 9 बजे पापा खाना खा कर सोने चले गये....आज डाइनिंग टेबल पर ना ही मैं गयी थी और ना ही विशाल......और ना ही मम्मी......घर में चारों तरफ खामोशी थी.......कोई किसी से बात नहीं कर रहा था........मम्मी ने मेरे लिए खाना परोसा और खुद वो खाना ले आई मेरे कमरे में......मैने खाना खाने से सॉफ इनकार कर दिया........सच तो ये था कि मुझे बहुत ज़ोरों की भूक लगी थी........मगर मुझे खाने की बिल्कुल इच्छा नहीं हो रही थी ....जो आज दिन में हुआ था वो सब सोचकर......

मम्मी भी ज़्यादा मुझसे बहस नहीं की और चुप चाप अपने कमरे में चल गयी.......थोड़ी देर बाद मैं वही गुम्सुम सी बैठी रही तभी मुझे मेरे कमरे का दरवाज़ा खुलता सा महसूस हुआ......मैने अपनी गर्देन घूमकर देखा तो सामने विशाल खड़ा था......उसकी हाथों में खाना था.......वो मेरे पास आया और खाने की थाली को वही उसने मेज़ पर रख दिया.......विशाल फिर मेरे बिस्तेर पर आकर मेरे बाजू में बैठ गया और मेरे कंधे पर उसने अपना एक हाथ रखा.......

मैं उसकी तरफ अपनी नज़रें की तो वो मुझे ही देख रहा था.......मैं चाह कर भी उससे कुछ ना बोल पाई......और अपनी नज़रें दूसरी तरफ फेर ली.......

विशाल- नाराज़ हो ना मुझसे दीदी.......चलो खाना खा लो ........आपको भूक लगी होगी......आपने सुबेह से कुछ नहीं खाया है.......मेरी खातिर आप खाना खा लो......आख़िर खाने से कैसी नाराज़गी......

अदिति- मुझे भूक नहीं है विशाल......चले जाओ तुम यहाँ से.......मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी.......

विशाल- मुझसे किस बात की नाराज़गी है दीदी......आख़िर कुछ तो बताओ मुझसे......आख़िर मेरा कसूर क्या है........

अदिति- मैने कहा ना तुम चले जाओ यहाँ से.......मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी.......

विशाल- जब आपको मुझे बात नहीं करनी थी तो क्यों आप आई मेरे और पापा के बीच में.......मार खाने दिया होता मुझे......शायद वही मेरा प्रायश्चित था......क्यों बचाया तुमने मुझे........

अदिति- मैं तुम्हारे सवालों का जवाब देना ज़रूर नहीं समझती......जस्ट शटअप और चले जाओ यहाँ से.......

विशाल- मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूँ दीदी......मुझे सब मंज़ूर है मगर तुम्हारी ये नाराज़गी मैं कभी बर्दास्त नहीं कर सकता.......अगर आपकी यही ज़िद्द है तो फिर मुझे इसकी वजह बताइए......मैं आपसे कोई सवाल जवाब नहीं करूँगा.....आख़िर मुझसे कौन सी ग़लती हो गयी जो आप मेरे साथ इस तरह से बर्ताव कर रही है........क्या मैने उसे मारा इस वजह से......सबके बीच आपने मुझे थप्पड़ मारा मैं वहाँ भी चुप रहा.......मगर अब मुझसे आपकी ये खामोशी देखी नहीं जाती.......

अदिति- बात मारने या ना मारने की नहीं है विशाल.......आज तुमने ये साबित कर दिया कि तुम एक गुंडे हो.......और मुझे इसी बात का दुख है......और शरम आती है मुझे अपने उपर की मैं एक गुंडे की बेहन हूँ....

विशाल- मारता नहीं तो और क्या करता......कोई आपको बुरी नज़र से देखे ये मैं कभी बर्दास्त नहीं कर सकता......आप मेरी बेहन है........और मैं आपको अपनी जान से बढ़कर चाहता हूँ......दुनिया का कोई भाई कभी नहीं चाहेगा कि कोई उसकी बेहन पर बुरी नज़र डाले........ फिर मैं कैसे चुप रहता.....

अदिति- तो उसकी ग़लती की सज़ा क्या ऐसे देते.......तुम तो उसे ऐसे मारते रहें जैसे कोई इंसान जानवरों को मारता है......और तुम क्या समझते हो कि मैं तुमसे प्यार नहीं करती......अपनी जान से बढ़कर तुम्हें चाहती हूँ........मगर मैं ये नहीं चाहती कि कल को कोई ये कहे कि ....वो देखो ये उस गुंडे की बेहन जा रही है......

विशाल- तो फिर ठीक है मुझे आपकी खातिर सब मंज़ूर है.......अगर आप चाहती है कि मैं आज के बाद कभी किसी पर अपना हाथ ना उठाऊं तो फिर आज के बाद ये हाथ कभी नहीं उठेगा......ये मेरा आपसे वादा है.......अब तो खाना खा लो दीदी.....इतना कहकर विशाल धीरे से मुस्कुरा पड़ता है......मैं भी ना चाहते हुए विशाल को देखकर मुस्कुरा देती हूँ और उसके कंधों पर अपना सिर रख देती हूँ......विशाल मुझे बड़े प्यार से अपने गले लगा लेता है.......

दरवाज़े के बाहर मम्मी हमे देख रही थी......उनके चेहरे पर भी मुस्कान थी......वो भी हमारे पास आई और फिर हम दोनो उनकी सीने से लग गये......फिर कुछ देर बाद मम्मी अपने रूम में सोने चली गयी.......मम्मी के जाते ही विशाल मेज़ पर रखा खाना निकाल कर मुझे बड़े प्यार से खिलाने लगा......मैं उसे बिल्लकुल इनकार ना कर सकी और धीरे से अपना मूह खोल दिया.......फिर मैने भी विशाल को अपने हाथों से खाना खिलाया......उसका हाथ उठ नहीं रहा था दर्द की वजह से.......उसके हाथों में बहुत चोट आई थी......फिर भी वो मुझे बड़े प्यार से खाना खिलता रहा और मैं उसे खिलाती रही......

खाना ख़तम होने के बाद मैं अपने बर्तन उठाकर किचन में रख दिए......और फिर हल्दी और तेल और एक पेनकिलर दवाई लेकर अपने कमरे में चल पड़ी.....विशाल अभी भी मेरे बिस्तेर पर चुप चाप बैठा हुआ था......उसने जब मुझे देखा तो एक बार फिर से उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गयी......

विशाल- इसकी क्या ज़रूरत थी दीदी.......सुबेह तक ठीक हो जाता......

अदिति- मुझसे बहस मत करो......और हां अपनी शर्ट उतार कर यहीं बिस्तेर पर सो जाओ.....मैं तुम्हें हल्दी और तेल लगा देती हूँ....सुबेह तक आराम हो जाएगा.......विशाल ने एक नज़र मुझे देखा फिर वो अपने शर्ट उतारने लगा.....फिर बाद में अपनी बनियान भी उतार कर वही बिस्तेर पर रख दिया........मैने आज से पहले ना जाने कितनी बार विशाल का बदन देखा था मगर आज मैं विशाल के इतने करीब थी कि एक पल तो मानो मुझे ऐसा लगा कि मैं आज कहीं बहक ना जाऊं.........

एक बार फिर से मेरे अंदर की तपिश भड़क उठी थी.......एक बार फिर से मेरे मन में अपने भाई के लिए बुरे ख्यालात जनम लेने लगे थे.......विशाल पेट के बल बिस्तेर पर लेटा हुआ था......मैं बहुत मुश्किल से अपने आप को संभाल रही थी......पता नहीं ये मुझे क्या होता जा रहा था......एक पल तो मुझे ऐसा लगा कि मैं भी अपने सारे कपड़े उतार कर यहीं विशाल की बगल में सो जाऊं........मगर कितना भी था तो वो मेरा भाई था और मेरे अंदर ऐसा करने की बिल्कुल हिम्मत नहीं थी.......
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