Porn Sex Kahani पापी परिवार
10-03-2018, 03:55 PM,
RE: Porn Sex Kahani पापी परिवार
पापी परिवार--46

दीप को कल्प्नास्वरूप यह एहसास हुआ जैसे उसका मोटा सुपाड़ा इस वक़्त किसी कुँवारी चूत के अंदर फस गया हो और वह जान गया कि निम्मी को लंड चूसने का सही ग्यान नही होने से वह कुछ भी कर सकने में असमर्थ है ...... " दिक्कत हो रही हो तो मत कर " ......कुछ देर तक जब निम्मी के मूँह ने कोई हलचल नही की तब दीप ने उसे समझाइश दी और इसके परिणामस्वरूप निम्मी आहत हो उठी ..... " नही ठीक है " .....बस इतना कहने के लिए उसने सुपाडे को मूँह से बाहर निकाला और फिर जितना मूँह फाड़ सकती थी, फाड़ने के बाद पुनः मूँह के अंदर दाखिल कर लिया ...दूसरी बार की कोशिश में वह काफ़ी हद्द तक सफल हुई थी और अब उसके होंठ भी लगभग संपूर्ण सुपाड़ा चूसने में कामयाब होने लगे थे, बेटी की इस कोशिश ने दीप को नयी ऊर्जा से भर दिया और वह भी पूरी तत्परता से उसकी चूत का मर्दन करने लगा.

निम्मी की कोशिशें लगातार ज़ारी रही और उसने अपनी थूक से लंड को भिगो डाला, तत्पश्चात अपनी जीब को सुपाडे पर गोल - गोल घुमाती हुई पूरी कठोरता से उसे चूसने भिड़ गयी ...उसके मश्तिश्क में दिक्कत और विवशता बस यही दो शब्द उथल - पुथल मचाए हुए थे ....... " वह अपने पिता से अत्यधिक प्रेम करती है, फिर उसे कैसी दिक्कत ? " ......हौले - हौले वह भी सारी काम - कलाओं का अच्छा - ख़ासा ग्यान अर्जित कर लेगी और फिर अपने पिता की सारी विवशता का पूर्ण रूप से अंत कर देगी ...शारीरिक सुख की चाहत को तो वह भी कभी नज़र - अंदाज़ नही कर सकती है, भले ही वे सुख उसे अपने पिता से प्राप्त होंगे ...परंतु उसे यह मज़ूर है, आख़िर वे दोनो ही सूनेपन से गुज़र रहे हैं फिर इसमें कैसा पाप ...जो है बस आनंद ही आनंद है.

अपने अजीबो - ग़रीब तर्क - वितर्क में उलझने के बाद भी निम्मी पूरे होशो - हवास में थी ...दीप भी पूरे ज़ोर - शोर से उसके भग्नासे को चूस रहा था और साथ ही अपनी तीन उंगलिओ की मदद से वह, बेटी की चूत की आंतरिक गहराई में उमड़ते गाढ़े रस को बाहर निकाल कर उसे सुड़कने लगता ...उसने कई बार अपनी लंबी जिह्वा चूत मुख से लेकर गुदा - द्वार तक रगडी थी और उसके ऐसा करने से निम्मी का उत्साह दोगुना हो जाता ...वह कयि - कयि बार अपने मूँह को नीचे दाबति हुई पूरा लंड निगलने की असफल कोशिश करने लगती ...जो अभी मुश्किल से सुपाड़ा भी क्रॉस नही कर पाया था.

कमरे में पाप और वासना का अच्छा ख़ासा खेल चल रहा था, जिसमें जीत एक बाप की होगी या फिर एक बेटी की और अब वे दोनो ही हारने के बेहद करीब आ चुके थे ...इस जद्दो - जहद में निम्मी का हौसला पहले पस्त हुआ और वह अपने पिता के मूँह पर तेज़ी से अपनी चूत थप्तपाने लगी, वह झड़ने लगी और इसी जोश में उसके होंठ इंचो में सरकते हुए सुपाडे के नीचे की खाल पर अपना क़ब्ज़ा जमाने लगे.

दीप ने इस बार भी बेटी की जवानी का अंश मात्र भी व्यर्थ नही जाने दिया और ...... " गून - गून " ......करती निम्मी को और भी ज़्यादा सुख पहुचाने की गर्ज से उसके अति संवेदनशील, कोमल गुदा - द्वार पर अंगूठे की मालिश करने लगा ...जब उसने चूत की फांको के अंदर छिपा सारा गाढ़ा रस चूस्ते हुए अपने गले के नीचे उतार लिया ...इसके फॉरन बाद वह अपनी दूसरी मनपसन्द चीज़ गान्ड के सिकुदे छेद पर टूट पड़ा.

गुदा - द्वार पर दीप की जिह्वा का स्पर्श पाते ही निम्मी सिहर उठी और अपना सारा ज़ोर इकट्ठा करते हुए उसने लगभग आड़ा लंड अपने मूँह के अंदर उतार लिया ...पित्रप्रेम में वह इससे भी आगे बढ़ना चाहती थी लेकिन अब ऐसा कुछ भी संभव नही हो पाता, लंड का अग्र भाग सीधा उसके गले को चोट करते हुए अंदर फस गया और इसके साथ ही निम्मी की साँसे उखाड़ने लगी ...उसकी आँखों से आँसू बहने लगे और अपना दम घुट'ता देख वह घबरा गयी, उसने ऊपर उठने की भरकस कोशिशें की लेकिन उसके जिस्म की ताक़त को इस आशाए पीड़ा ने लकवा मार दिया था.

अपना अंत इतने करीब से देखने के बाद निम्मी ने एक अंतिम गुहार अपने पिता से लगानी चाही और इसके लिए उसने अपने दाँत सख्ती से दीप के विकराल लौडे पर गढ़ा दिए ...दीप चीख उठा, हलाकी उसकी चीख निक्की के कमरे तक नही पहुच पाती परंतु उसने झटके से निम्मी की कमर थाम ली और उसे ऊपर को खीचने लगा ...लंड मूँह से बाहर आते ही निम्मी बेहोश हो गयी और उसका पस्त शरीर अपनी पिता के शरीर पर ढेर हो गया.

" निम्मी !!! " ......अपने दर्द की परवाह ना करते हुए दीप ने फॉरन अपनी बेटी का सुस्त जिस्म पलट दिया और अब निम्मी अपनी पीठ के बल बेड पर लेट गयी ...दीप ने उसके मूँह से बहती लार देख कर अनुमान लगाया कि आख़िर ऐसा क्यों हुआ है और काफ़ी कुछ उसका अनुमान सही बैठा ...इसके बाद उसने बेटी के कंधे थामते हुए उसे अपनी छाति से चिपका लिया ...वह रुन्वासा होने लगा था, कयि बार उसने निम्मी के चेहरे को थपथपाया और अथक कोशिशों के बाद उसकी बेटी की आँखें खुल गयी.

अपनी आँखें खोलने के बाद कुछ पल तक निम्मी खाँसती रही ...उसके गले में उसे अब भी काफ़ी तीव्र पीड़ा महसूस हो रही थी ....... " सॉरी डॅड !!! मैं हार गयी " .......बस उसने इतना ही कहा और अपनी बाहें दीप के पीठ पर बाँध ली और वह सिसकती हुई जाने कब सो गयी ...खुद दीप भी नही जान पाया.

इस हादसे ने दीप को विचलित कर दिया था, उसका अंतर्मन कुंठित हो कर उसके तोचने लगा ...वह इसी तरह सारी रात अपनी बेटी को अपनी धधकति छाती से चिपकाए बैठा रहा और जब सुबह के 5 बज गये ...उसे गोद में उठा कर उसके कमरे में सुला दिया.
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