RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
कुछ ही देर मे लड़के वाले आ गये, मेरा तो मारे घबराहट के बुरा हाल था,
ये एक ऐसी फीलिंग होती है जो सिर्फ़ एक लड़की ही जान सकती है, ऐसा महसूस होता है कि हम लड़कियो की ज़िंदगी बाज़ार मे बिकती किसी बकरी की तरहा होती है जिसे देख कर टटोल का कोई कसाई पसंद करता है और अगर कसाई को ना पसंद आए तो बकरी का मालिक बकरी को ही लताड़ लगता है.
मुझे अपनी होने वाली सास और ननद के पास चाइ लेकर जाना था. मुझे सब कुछ मेरी खाला ने समझा दिया था, मैं जब जनानखाने मे पहुँची तो सब ही मुझे घूर कर देख रहे थे. मैने नाश्ता वगेरा रख और पास पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गयी.
मेरी होने वाली सास एक मोटा चस्मा लगाए मेरी तरफ घूर रही थी, उसकी आँखे बड़ी बड़ी थीं और वो एक मोटी औरत थी, बालो मे सफेदी आ चुकी थी, सूट सलवार कुछ ख़ास नही था, हाथो मे सोने के कंगन और कानो मे मोटी मोटी बालिया. आँखो मे एक दम रुबाब, उसको अपनी तरफ घूरता हुआ देखा तो ऐसा लगा जैसे कोई दारोगा किसी मुजरिम की पहचान कर रहा हो.
उसके साथ उसी की शक्ल की उसकी बेटी थी जो बहुत ज़्यादा सज धज के आई थी, ये पतली दुबली सी लड़की थी जिसकी गोद मे कोई 2 साल का एक बच्चा था. ये थोड़ा खुश मिजाज़ लग रही थी, अपनी मा की तरहा इसके नयन नक्श तीखे थे.
इतने मे उसकी मा ने मुझसे पूछा कि "बेटी आरा कहाँ तक पढ़ी हो"
इसका जवाब मेरी खाला ने दिया "जी बी.ए किया है"
इसपर उस औरत ने मेरी खाला को घूरा जैसे कोई नापसंद बात कह दी गयी हो और लगभग फटकार लगाते हुए जवाब दिया की "बहेनजी ज़रा बच्ची को भी बोलने दीजिए"
फिर मेरी तरफ मुखातिब होकर कहा कि "बताओ मेरी बच्ची कहाँ तक पढ़ी हो"
मैने जवाब दिया "जी बी.ए. कर चुकी हूँ"
मेरी होने वाली सास "प्राइवेट किया है"
मैं: "जी"
मेरी होने वाली सास "आगे पढ़ना नही चाहती हो"
मैं: "जी इतना काफ़ी है"
मेरी होने वाली सास "क़ुरान पढ़ी हो"
मैं: "जी"
मेरी होने वाली सास: "खाना पकाना, कढ़ाई सिलाई जानती हो"
मैं: "जी"
मेरी होने वाली सास: "बहुत अच्छी बात है, अच्छा ज़रा मेरे लिए थोड़ा ठंडा पानी ले आओ"
मैं : "जी अभी लाती हूँ"
ये कहकर मैं बाहर आ गयी.
कुछ घंटो बाद वो लोग चले गये. मैं अपनी मा से जानना चाहती थी कि वो लोग क्या कह गये हैं लेकिन शर्म की वजह से कुछ ना पूंछ पाई. मा ना तो खुश थी और ना ही परेशान लग रही थी.
इसी तरहा कुछ दिन बीत गये और एक सुबह मेरी खाला हिना मेरी अम्मा के पास आई और बड़ी खुश लग रहीं थी. उन्होने आते ही मेरी मा को गले से लगा लिया और कहा "उन लोगो ने हां कह दी है और वो लोग जल्द तारीख पक्की करना चाहते है"
इसपर मेरी मा ने पूछा "उन लोगो की कोई ख़ास माँग वगेरा",
खाला "अर्रे नही, उन लोगो का यही कहना है कि बच्ची बड़ी खूबसूरत और सेहतमंद है और उन्हे कुछ ख़ास नही चाहिए".
अम्मा "चलो बड़े खुशी की बात है"
खाला "" और क्या, वरना आज कल तो 4 पहिए की गाड़ी का चलन निकल आया है"
मेरे आबू जो दूर बैठे थे कहने लगे "वो लोग तो हां कह गये लेकिन हमको भी एक बार लड़के को देख लेना चाहिए कि कैसा है"
मेरा भाई भी इस चर्चा मे जुड़ गया "बाबा बिकुल सही कह रहे हैं"
खाला "ठीक है तो मैं उनसे कहलवा देती हूँ कि हम लड़के से मिलना चाहते हैं"
कुछ दिनो बाद हमारे यहाँ के लोग वहाँ गये और शाम को जब लौट कर आए तो ज़्यादा खुश नही दिख रहे थे.
मैं कुछ पूछना मुनासिब नही समझा. रात को खाने के वक़्त भाई बोल पड़ा
"बाबा मुझे वो लड़का अच्छा नही लगा"
बाबा "क्यूँ,क्या ऐब है बेचारे में?"
आरिफ़ मेरा भाई "बाबा उसकी आँखें देखी, पूरा चरसी लगता है वो"
बाबा "तुझे कैसे यकीन है"
आआरिफ :"बाबा मैं कई ऐसे लड़को को जानता हूँ जो इसी आदत मे मुब्तिल हैं"
बाबा "अच्छा अच्छा खाना खा ले,बड़ा डाक्टर बना फिरता है"
अम्मा: "लड़के की बहेन बड़ी चालाक और लालची लग रही थी,कह रही थी कि लड़के के बड़े भाई के यहाँ से उसके मिया के लिए मोटर साइकल आई थी"
बाबा: "अर्रे खाक डालो उसपर, हमारे पास इतनी रकम नही है कि लड़के की बहेन को दहेज दे दें, मेरी आरा के ससुर से बात हो चुकी है वो सिर्फ़ लड़के के लिए मोटर साइकल और तमाम चीज़ें जो चलन मे है वही चाहते हैं"
अम्मा : "तो तारीक़ क्या तय हुई है?"
बाबा: "अगले महीने की 25 तारीख"
अम्मा: "यही लगभग एक महीना?"
बाबा: "हां इतना काफ़ी है,एक हफ्ते मे फसल के पैसे आ जायें गे और फिर तैयारी सुरू हो जाएगी"
अम्मा: "चलो ऊपर वाला खैर करे मेरी बच्ची पर"
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