RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
सबा ने आते ही अंदर बिस्तर पर चारो तरफ देखा और फिर मेरी तरफ देखा, उसके चेहरे पर मायूसी और थोड़ी परेशानी नज़र आई फिर मेरी पास आकर कहा कि नाश्ता तैयार है आप नाश्ता कर लीजिए.
मैं उठी और कमरे से जुड़े बाथरूम की तरफ बढ़ गयी, इस बाथरूम के लिए मुझे अपने कमरे से थोड़ा बाहर जाना पड़ा. बाहर मेरी सास तख्त पर बैठी क़ुरान पढ़ रही थीं.
मेरी नज़र उनसे मिली फिर मैं बाथरूम की तरफ बढ़ गयी. शादी वाला घर था, दूर से आए हुए मेहमान अभी भी घर मे ही थे, मैं अपने साथ कुछ कपड़े लाई थी जो मैने नहा कर पहेन लिए और जब कमरे मे वापस गयी तो मेरे मिया अभी भी सो रहे थे. मैं खामोश होकर बिस्तर के कोने मे बैठी रही. कुछ देर बाद मेरी सास मेरे कमरे मे आ गयी और अपने बेटे को उठाने लगी. लेकिन वो कहाँ उठने वाले थे.
मेरी सास मुझे दूसरे कमरे मे ले गयी और वहाँ मैने उनके साथ नाश्ता किया.
वालीमा का दिन था. ये दावत लड़के वालो की तरफ से लड़की वाले और तमाम रिश्तेदारो के लिए होती है. इसमे मेरी मा और मेरे घरवाले सभी आए.
मेरी बहन रीना मुझसे मिलने के लिए बेताब थी. लेकिन मैने किसी पर ये ज़ाहिर नही होने दिया कि मेरे साथ रात मे क्या हुआ था. ये एक शर्म और सदमे वाली बात थी जिसे मैं किसी से शेअर नही करना चाहती थी. बनावटी मुस्कान के पीछे रात की खलिख और भयानक अंधेरा छुप गया. रात के राज़ राज़ ही रहे और दुनिया मे एक और लड़की सब की खातिर क़ुरबान हो गयी. लड़किया हमेशा से ही क़ुरबान होती रही हैं, क़ानून और मज़हब चाहे कितना ही क्यूँ ना उन्हे हक़ दे लेकिन मर्दो के इस समाज मे औरतें हमेशा क़ुरबान ही होती रही हैं.
धीरे धीरे सब मेहमान जाने लगे. मेरी सास ज़्यादा तर खामोश ही रही.
शाम हो चुकी थी,मेरे मियाँ अब अपने दोस्तो के साथ आँगन मे बैठे बात चीत कर रहे थे.
रात को मेरी ननद सबा मेरे कमरे आ आई और कहने लगी.
"भाभी मैं जानती हूँ कि शायद आपकी पिछली रात ख़ुशगवार नही गुज़री थी,हमारे यहाँ मेरे भाई बड़ी परेशानी से गुज़र रहे है और शायद इसलिए वो शराब पी लेते हैं लेकिन यकीन मानो वो शराबी नही हैं, अब्बा तो उन्हे कई बार पीट भी चुके हैं लेकिन वो कभी कभी अपनी शराब वाली हरकत दोहरा ही देते हैं"
मैं: "शायद मेरी यही किस्मत है"
और मैं ये कहकर फूट फूट कर रोने लगी.सबा मेरे करीब आई और मुझे अपने सीने से लगा कर मुझे चुप करने लगी.
सबा "भाभी हम सब इस बात पर खुश नही हैं, अम्मा पर जैसे कहेर ही टूट पड़ा है, सुबह से उन्होने कुछ नही खाया है, हम ने ये सोचा कि एक खूबसूरत बीवी के प्यार से शायद शौकत (मेरे मिया का नाम) सुधर जाए,"
मैं "आप परेशान ना हो, शायद ऐसा ही हो"
सबा: "मेरी प्यारी भाभी, आप का कितना बुलंद हौसला हैं"
मैं: "और इस हालत मे एक लड़की कर भी क्या सकती है"
इतने मे बाहर से मेरी सास की आवाज़ आई तो मैं आँसू पोछ कर सही तरीके से बैठ गयी.
मेरी सास मेरे करीब आकर बैठ गयी, उन्होने इस वक़्त अपना मोटा चस्मा नही पहना था और वो बड़ी शर्मिंदा सी लग रहीं थी, ये वो औरत नही लग रहीं थी जो मुझे देखने आई थी, ये तो कोई मज़लूम बेसहारा सी एक ख़ौफजदा सी ज़माने की सताई औरत की तरहा लग रही थीं, उन्होने मेरी तरफ इस तरहा देखा जैसे वो अपने किसी गुनाह के माफी माँग रही हों.
उन्होने आते ही सबा को बाहर जाने का इशारा किया.
सबा के जाते ही वो भी मुझसे लिपट गयी. और एक मा की तरहा मेरे सर पर बोसा दिया.
फिर कहने लगी
"मेरी बच्ची मैं तुझे यकीन दिलाती हूँ कि मैं तेरी ज़िंदगी बर्बाद नही होने दूँगी बस यकीन रख और थोड़ा वक़्त दे"
मैं: "अम्मी आप इस तरहा रोए नही और कुछ खा लें , मुझे उम्मीद है कि मेरे साथ बुरा नही होगा"
सास "शाबाश बेटा, तुझसे यही उम्मीद है"
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