RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
शाम को ही मैं अपना सामान लिए ट्रेन मे बैठ चुकी थी. इनायत मेरे बगल मे था. इनायत शौकत से थोड़ा
लंबा था लेकिन थोड़ा पतला था. ये ज़्यादा हसीन था और हमेशा अपने फ़ोन से ही चिपका रहता था. जिसकी वजह
से इसको मेरी सास से हमेशा डाँट खानी पड़ती. मुझसे ये ज़्यादा मुखातिब न हो सका था क्यूंकी मैं कम
बोलना ही पसंद करती थी.
मैं एक नये घर मे जा पहुँची थी, घर पर फ़ोन कर के बता दिया था कि मैं यहाँ आ गयी हूँ. इनायत
मेरे लिए होटल से खाना ले आया. मैने थोड़ा ही खाया और मैं थक हार कर सो गयी. ये एक अपार्टमेंट था .
दो बेडरूम थे और एक हॉल और एक ड्रॉयिंग रूम था. इसमे दो बाथरूम और टाय्लेट थे. एक बाल्कनी थी जो बिल्डिंग के
पिछले हिस्से मे थी. बाल्कनी से दूसरी बिल्डिंग्स नज़र आती थी और साथ मे नीचे का पार्क नज़र आता था. ये
अपार्टमेंट मेरे आने से पहले ही सज़ा दिया गया था. घर मे पर्दे, कालीन,रेफ्रिजरेटर और किचिन मे बर्तन
सब चीज़े थी. मुझे बाद मे मालूम पड़ा कि ये घर शौकत ने लिया था और वो मुझे यहाँ लाना चाहता
था कि इससे पहले ही मेरी किस्मत फूट गयी.
इनायत दूसरे बेडरूम मे सोता था. इस बिल्डिंग मे सिर्फ़ 4 फ्लॅट ही थे और ये फ्लॅट फर्स्ट फ्लोर पर था. सामने वाले फ्लॅट
मे हमेशा लॉक ही रहता था. ये शहेर के बाहर ही लगा हुआ था. यहा से शहेर सुरू होता था. कुछ दिन इसी
तरहा खामोशी से बीत रहे थे. हम नये मिया बीवी सिर्फ़ उतनी ही बात करते थे जितनी कि ज़रूरत हो. इनायत सुबह ही
कहीं चला जाता और दोपहर को घर मे वापिस आ जाता. घर की ज़रूरत की चीज़े वो ला देता और फिर अगले दिन
वही शेड्यूल रहता.
मैं दिन भर टीवी देखती या शाम को बाल्कनी मे बैठ कर चिड़ियो और बच्चो को पार्क मे देखती. ये वक़्त घर के
वक़्त से थोड़ा अच्छा था. यहा मैं खुद मे आकर कहीं गुम हो गयी थी.
अब मुझे यहाँ आए लगभग 2 हफ्ते गुज़र चुके थे. एक शाम को मेरी खाला ज़ाद बहेन का फ़ोन आया.
इधर उधर की बात करने के बाद वो मुझसे पूछ पड़ी कि क्या हुआ है अभी तक. मैने उसकी बात को काटना
चाहा, मुझे इस बात पर कुछ नही कहना था इसलिए मैं अंजान ही बनती रही कि अचानक मेरी बहेन बिफर पड़ी
और लगभग झल्ला के पूंछ बैठी "मैं पूंछ रही हूँ कि उसने तेरी बुर मे अपना हथियार पेला कि नही?" उसके
इस अचानक सवाल और उसके अंदाज़ के लिए मैं तैयार ना थी इसलिए मैने भी झल्ला कर फोन काट दिया.
रात को मैं बहुत अपसेट थी. इनायत भी कुछ परेशान लग रहा था. उसने कुछ खाया नही और इस तरहा हमारे
बीच कुछ बातें हुई.
मैं: इनायत तुमने कुछ खाया क्यूँ नही, क्या बात है.
इनायत: वो भाभी,,,,
मैं: मैं तुम्हारी बीवी हूँ अब समझे
इनायत: "सॉरी मैं भूल गया था"
मैं" क्या फ़र्क पड़ता है तुम्हारे भाई भी भूल गये थे"
इनायत: "मैं भी वो सब भूलना चाहता हूँ, मैं भी इन सब के लिए तैयार ना था लेकिन अम्मी की बीमारी ने
मुझे ये करने के लिए मजबूर कर दिया"
मैं : "क्यूँ क्या हुआ उनको?"
इनायत: "ज़रा ज़रा सी बात पर बेहोश होकर गिर पड़ती हैं"
मैं: "एक इंसान ने ना जाने कितनो को बीमार कर दिया"
इनायत: "वो खुद भी तो बेकार से हो गये हैं, खैर आप जानती हैं कि हम यहाँ किस लिए आए हैं, हम को अपना
मकसद पूरा करना चाहिए"
मैं:"मैं जानती हूँ कि मुझे तुम्हारे सामने नंगा होना है ताकि तुम मुझे भोग सको"
ये बात मेरे मूह से निकल तो गयी फिर मुझे एहसास हुआ कि मैने क्या कह दिया है. मेरी बात से इनायत कुछ
झल्ला सा गया लेकिन फिर ठंडा होकर बोला
इनायत: "अगर आप उनसे अभी भी नफ़रत करती हैं तो इस शादी के लिए राज़ी क्यूँ हुई?"
मैं: "उसी वजह से जिस वजह से तुम हुए, मेरे बाबा को हार्ट अटॅक आ चुका है और डॉक्टर ने ,,,,,ह्म्म्म" और
ये कहकर मैं रोने लगी. इनायत ने फिर कोई सवाल ना किया और मुझे अपने कंधों का सहारा दिया बस इतना कहा
उसने कि आप भी खाना खा लो फिर कल हम चिड़िया घर घूमने जायेंगे.
मैं थोड़ा देर से उठी, नहा धो कर नाश्ता बनाया और इनायत को आवाज़ दी, वो तैय्यार बैठा था. उसके चेहरे
पर मुस्कान थी.
नाश्ता कर के हम चिड़िया घर घूमने निकल पड़े.ये भी अजब इत्तेफ़ाक़ था कि वो लोग जिनको किस्मत ने तमाशा
बना दिया था आज परिंदो और हैवानो का तमाशा देखने आए थे. आज सुबह से ही बादल छाए हुए थे,
धूप ना नामो निशान ना था. मौसम बड़ा अच्छा मालूम पड़ता था.
आज छुट्टी का दिन नही था इसलिए कुछ कम लोग ही नज़र आते थे. चिड़िया घर मे एक छोटी सी ट्रेन थी जो जगह जगह
जाकर रुकती थी और फिर चल पड़ती. ये मेरे पहले मौका था जब मैं शादी के बाद घूम रही थी. अच्छा लग
रहा था.
काफ़ी वक़्त बीत गया था, हम ने चिड़ियाघर मे ही खाना खाया. इनायत बीच बीच मे अपने बचपन की कुछ
मीठी बातें बताता जिसपर मुझे हसी आ जाती.
उसका शक़सियत मुझे हमेशा अच्छी लगती. वो बड़ा समझदार सा इंसान था.
अब हम वापिस जाना चाहते थे कि अचानक बूँदा बाँदी शुरू हो गयी और तेज़ हवा चलने लगी. हम एक पेड़
के नीचे आकर खड़े हो गये. इनायत ने आज मुझे कई बार छुआ था, उसका हाथ मेरे कंधो पर या मेरी
कमर पर ही रहा. मुझे भी बुरा नही लगा, कुछ भी हो आख़िर वो मेरा शौहर ही था.
हम यहाँ कुछ मिनिट ही रुके थे कि अचानक ज़ोरदार ज़मझम बारिश शुरू हो गयी. मैने आज एक साड़ी पहनी
थी जो एक दम ट्रंपारेंट थी. अब मैं और इनायत भीगने लगे थे. इनायत ने बाहर खड़े एक ऑटो रिक्क्षा को
आवाज़ दी, हम रिक्शा मे बैठ कर घर की तरफ निकल पड़े. लेकिन बारिश इतना तेज़ थी कि मैं पूरी तरहा भीग
सी गयी थी. मेरा ब्लाउस सफेद रंग का था जो थोड़ा बारीक था लेकिन बारिश मे भीगने की वजह से बिल्कुल आर पार
दिख रहा था. आज मैं फँस गयी थी क्यूंकी आज ब्रा भी नही पहेना था मैने.
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