RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
मेरी ये बात सुन कर तो जैसे रीना के होश ही उड़ गये, कुछ देर तक वो कुछ बोली नहीं लेकिन फिर जैसे उसमे कोई भूत आ गया हो, वो कड़क अंदाज़ मे बोली
रीना: "पागल लड़की, तुम्हारा दिमाग़ खराब है क्या, खून ख़राबा कर्वाओ गी क्या, उस पिक्निक पार्टी इनायत के साथ रहकर पग्ला तो नयी गयी हो क्या"
मैं: "पागल मैं नही हूँ, पागल तो वो लोग हैं जो हम औरतो हो मज़ाक समझते हैं, कभी इस हाथ मे तो कभी उस हाथ मे"
रीना: "अर्रे मेडम, इसके लिए आप खुद राज़ी हुई थी, आप जिनके साथ आप अपने सपना सज़ा रही है वो इनायत साहब का पास्ट शायद आपको पता नहीं है. ज़िंदगी कोई पिक्निक पार्टी नही है जो इतनी हल्की हो"
मैं: "मुझे लेक्चर मत दो, हां मैं राज़ी थी, तो क्या करती अपने बाप और मा के दिल का मरीज बना के रहती, इनायत कोई छोटा बच्चा नही है और ना ही मैं कोई दूध पीती बच्ची हूँ"
रीना: "आप बिल्कुल के छोटी सी बच्ची हैं जो सिर्फ़ लॉलीपोप के ज़रिए बेहलाई जा सकती हैं, इनायत साहब करते क्या हैं, क्या इनकम है साहब की, आपके सपने के महल का खर्चा कौन उठाए गा?"
मैं: "वो अपने और मेरे खर्चे के लिए काफ़ी हैं, हम मिल कर कमाए गे, मैं एक ब्यूटी पार्लर चलाना चाहती हूँ और वो अभी बच्चो को ट्यूशन पढ़ा रहे हैं बाद मे वो अपनी खुद की एक
कोचिंग क्लास खोलना चाहता है"
रीना: "वाह, ख्याली पुलाव अच्छा है, और शौकत क्या करेगा? तुम्हारे लिए वो इतना सह चुका है, क्या वो ये सब होने देगा, पागल ना बनो, ठंडे दिमाग़ से सोचो "
मैं उसे मज़ीद कुछ बात नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैं फोन काट दिया. मुहे एहसास नही था कि रीना के साथ हुई बात एक तूफान ले आएगी. अगली सुबह मेरी मा ने फोन कर दिया.
अम्मा: "मेरी बच्ची मैं क्या सुन रही हूँ, ये सब क्या है बेटा?"
मैं: "आप ने जो सुना है वो सही है, क्यूँ मैं फिर उस शराबी के निकाह मे जाउ?"
अम्मा: "लेकिन मेरी बच्ची तुमने ही हो ये फ़ैसला किया था?"
मैं :"हां, लेकिन मैने ये फ़ैसला बदल दिया"
अम्मा: "ऐसा मत करो बेटा, गजब हो जाएगा"
मैं:"कोई गजब नही होगा, मैं खुश हूँ और आप कह रही हैं मैं फिर वही मज़लूमो वाली ज़िंदगी बसर करूँ जिसमे कोई सुकून और चैन ना हो, कोई इज़्ज़त ना हो, बस किसी के सुधरने का झूठा
का यकीन हो, क्या आपने इस परेशान हाल बेटी के उस खौफनाक दिनो को महसूस भी किया है"
अम्मा: "मेरी बच्ची, इस समाज मे हमेशा औरतें से ही क़ुर्बानी की तवक्को की जाती है, तुम क्या कोई इंक़लाब लाना चाहती हो"
मैं:"नही अम्मा, मैं तो बस अपने इस छोटे से संसार मे खुश हूँ और वापस नाउम्मीदि के अंधेरो मे नही भटकना चाहती, आप ज़्यादा इसरार ना करें, क़ानूनी और शार_ईए लहाज़ से मैं बिल्कुल
ठीक हूँ, कोई मुझपर उंगली नही उठा सकता"
अम्मा: "अब मैं क्या कहूँ, मैं फिर एक दफ़ा तेरे बाबा से बात करके तुझे फोन करती हूँ, लेकिन मेरी बच्ची अपने फ़ैसले पर फिर से गौर कर, ठीक है, चल अपना ख़याल रख"
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