RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
शाम को मेरी खाला ने फोन किया लेकिन मैं टस से मस ना हुई. सब लोग मुझे मना कर हार गये. इनायत ने इस मसले पर मुझसे कुछ ना कहा था लेकिन वो भी एक रात मुझसे पूछ बैठा
इनायत:"तुम क्या चाहती हो आरा"
मैं:"मैं जो चाहती हूँ वो तुम अच्छी तरहा जानते हो लेकिन तुम क्या चाहते हो"
इनायत:"मुझे समझ मे नही आ रहा"
मैं" इसमे समझने वाली बात क्या है, मुझे यकीन नही हो रहा कि तुम ऐसा कह रहे हो"
इनायत: "शौकत इस बात को कभी क़ुबूल नही करेगा, मैने उससे वादा किया था, अब मैं ना जाने क्या उससे और घर वालो से क्या कहूँगा"
मैं: "शौकत ने जो मेरे साथ किया वो मुझे क़ुबूल नही था, अब जो तुम इस तरहा की बात कर रहे हो वो मुझे क़ुबूल नही है,तुमने मुझे इतने सपने दिखाए, एक नया इंसान बनाया अब तुम भागना
चाहते हो मुझे इस दो राहे पर खड़े करके, तुमसे वो तुम्हारा भाई ही ठीक था जिससे मैं कोई बड़ी उम्मीद नही करती थी, मेरे बारे मे भी सोचो, अपने बारे मे भी सोचो"
और ये कहकर मैं फूट फूट कर रोने लगी,मुझे रोता देखकर इनायत पसीज गया और उसने मुझे अपनी बाहों मे ले लिया और फिर हम दोनो इसी तरहा काफ़ी टाइम तक खामोश रहे फिर अचानक वो बोला
"आरा, अब मुझे सिर्फ़ हम दोनो का ही सोचना है, शौकत ने तुम्हे अपनी ग़लतियो से खोया,मैने तुम्हे किस्मत से पाया है लेकिन मैं तुम्हे खोना नही चाहता, चाहे वादा मैने जो किया था "
इनायत के बस इतना ही कहने से मुझे बड़ा सुकून मिला.
उधर मे घर मे भी एक कोहराम मचा था, मेरी मा,मेरा बाबा और मेरे भाई मे. मेरी मा मेरे खिलाफ थी लेकिन मेरे बाबा और मेरा भाई मेरे साथ थे. इसका पता मुझे कई महीने बाद चला जब
मुझे रीना ने इसके बारे मे बताया लेकिन इससे बड़ा कोहराम मेरे ससुराल मे था.
मेरी सास जो मुझसे खुश रहा करती थी अचानक ही मेरी दुश्मन बन बैठी थी और मेरे ससुर ने खामोशी अख्तियार करली थी.एक रोज़ मेरी सास और इनायत मे फोन पर बड़ी बहस चल रही थी, ये इतनी
सख़्त और गर्म बहस थी कि इनायत अपनी आवाज़ की इंतेहा पर था, वो गुस्से से काँप रहा था. बात चीत के ख़तम हो जाने के बाद भी वो काफ़ी देर तक काँप रहा था. मैं भी थोड़ा डर सी गयी थी.
मुझे आने वाले ख़तरे का कोई अंदाज़ा ना था, मुझे इस बात का ख़याल ना था कि आगे क्या हो सकता है. सुबह हुई कोई लगातार घंटी बजाए जा रहा था, हम मिया बीवी नाश्ता कर के फारिघ् ही हुए थे.
इनायत ने जाकर दरवाज़ा खोला और मेरी सास अंदर आई, उनके साथ मेरी ननद साना भी थी. मेरे अंदर जैसे अचानक डर ने घर लिया हो, उनको देखती ही मेरा चेहरा सफेद पड़ गया. इनायत भी कुछ
परेशान से हो गये. मैने अंदर ही अंदर ये दुआ की ये तूफान मेरे ख्वाबो के महल को कहीं उड़ा ना ले जाए. मुझमे अब तिनका तिनका जमा करके नया घोसला बनाने की ताक़त नही थी. मैं सोफे पर ही
बैठ गयी.
मेरी सास ने इनायत को बाहर जाने को कहा. इनायत ने उन्हे अनसुना कर दिया लेकिन फिर मेरी सास गरज कर बोली तो वो मेरी तरफ देख कर बोला. "आरा, घबराना नही, मैं तुम्हारे साथ हूँ". फिर वो
बाहर चला गया. मेरी साँसें तेज़ हो चुकी थी. मैं घबराई हुई थी. कुछ देर तक मेरी सास और मेरी ननद मुझे घूर कर देखते रहे और फिर मेरी सास अपना लहज़ा तब्दील कर के बोली.
सास :"मुझे मालूम था कि इनायत की ही करतूत होगी ये और वो ही तुम्हे बरगला रहा है"
मेरी ननद साना: "हां भाभी, हम को तो अपने कानो पर यकीन ही नही हुआ जब हम ने ये सुना"
मैं: "ये मेरा फ़ैसला है, मैं कोई बच्ची नही हूँ और ना ही इनायत कोई छोटा बच्चा है"
सास: "ये क्या कह रही हो, होश मे तो हो, हमारे साथ धोखा करना चाहती हो"
मैं:"धोका को आपके बेटे शौकत ने मेरे साथ किया था,और कुछ देर के लिए मैं भी खुद से धोका ही कर रही थी वापस शौकत के पास जाने का सोच कर"
साना: "आपका दिमाग़ ठीक है, या आपको इनायत भाई ने कुछ पीला दिया है जो आप नशे मे बात कर रही हैं"
सास: "देखो आरा, क्यूँ भाई भाई मे लड़ाई करवा कर मेरा बसा हुया घर उजाड़ना चाहती हो, जो ख्वाब तुमने देखा है वो सिर्फ़ आँखो का धोका है, ऐसे ख्वाब आँख खुतले ही टूट जाया करते हैं"
मैं:"जो हक़ीक़त के तूफ़ानो से गुज़रा करते हैं वो फूल, कलियो और गुलज़ारो की बात पर कम ही यकीन किया करते हैं"
सास: "तुम्हे एहसास भी नही है कि तुम्हारी वजह से एक तूफान आएगा जो हमारा सब तबाह कर देगा, कई ज़िंदगिया तुम्हारे फ़ैसले पर टिकी हैं"
मैं: "औरत से ही क़ुर्बानी की तवक्को करने वाले समाज का मैं अब हिस्सा नही बन सकती, मेरी ज़िंदगी का फ़ैसला मैं खुद करूँगी उसके लिए मुझे किसी का सहारा नही चाहिए"
सास: "एक पल के लिए शौकत का भी सोचो, क्या वो ये बर्दास्त कर पाएगा"
मैं:"मैं क्यूँ उनके बारे मे सोचु, जब वो खुद अपने बारे मे नही सोच सकते थे,आप मुझसे ऐसे शख़्श के बारे मे गौर करने को कह रही हैं जो खुद एक बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है"
सास: "देखो मुझे कुछ नही सुनना, तुम वही करोगी जो हम कहेंगे, मुझे सिर्फ़ एक मिनिट लगेगा तुम्हे ख्वाबो से जगाने में"
इस बात का मैने कोई जवाब ना दिया. लेकिन मैं खुद हैरान थी कि मुझमे इतनी हिम्मत कहाँ से आई. मेरी सास और ननद मेरी तरफ देखते रहे और बिना कुछ कहे बाहर चले गये.काफ़ी देर तक मैं
यही सोचती रही कि मैं ये क्या कह चुकी हूँ. जब इनायत वापस आया तो उसके चेहरे पर ऐसा अंदाज़ था कि जैसे कुछ हुआ ही नही हो. उसके चेहरे को देख कर मुझे थोड़ी हिम्मत आ गयी.
अगले दिन मेरे बाबा का फोन आया, उस वक़्त इनायत मेरे सामने बैठा टीवी देख रहा था, मैने उसे बताया कि बाबा का फोन है तो उसने कहा कि घबराओ नही, सुकून से बात करो.
मैने फोन उठा लिया
बाबा: "अस्सलाम वालेकुम बेटी, कैसी हो"
मैं:"अच्छी हूँ बाबा आप कैसे हो"
बाबा: "सब ठीक है, तुम सूनाओ क्या हाल हैं. बस तुम तो जानती हो कि तुम्हारी सास कैसी हैं, कल रात को वो यहाँ आई थी, हंगामा करने के लिए, मैने जवाब दे दिया कि हम अपनी बेटी के फ़ैसले की इज़्ज़त
करते हैं, तुम घबराओ नही, सब ठीक हो जाएगा"
मैं:"क्या कहूँ बाबा, वो जानती हैं आपकी तबीयत के बारे मे, फिर भी उनका ऐसा रवैयय्या है, यकीन नही होता"
बाबा: "क्या करें वो भी, दोनो बेटो को चाहती हैं, बस मा की आँखो से देख रही हैं, मैं भी तो एक बाप हूँ कैसे अपनी बेटी को दोबारा वहीं धकेल दूं जहाँ से वो उभर कर आई है"
मैं:"बाबा मैं आपको परेशान नही करना चाहती थी"
बाबा:"मैं इतना भी कमज़ोर नही हूँ कि ज़रा सी बात पर परेशान हो जाउ, बस उस कम्बख़्त शौकत के बारे मे थोड़ा बेचैनी है"
मैं:"क्यूँ क्या हुआ बाबा, अब वो क्या चाहता है"
बाबा:"वही तुम्हे वापस पाना चाहता है, लेकिन मैने कह दिया जब वो थोड़ी देर पहले आया था कि वो तुम्हे अब भूल जाए"
मैं:"बाबा आप परेशान ना हो, मैं खुद उससे बात करूँगी"
बाबा:"तुम उससे बात नही करना, मैं नही चाहता कि वो कोई मुश्किल खड़ी करे"
मैं:"मैं उससे फोन पर ही बात करूँगी, आप परेशान ना हो, मैं कोई मुसीबत नही खड़ी करूँगी, ठीक है आप अपना ख्याल रखें"
ये कह कर मैने फोन काट दिया.
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