RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
शौकत जब बाहर आया तो उसका लंड खड़ा था, ये मैं उसकी पॅंट के ऊपर से ही देख सकती थी. मैने उससे पूछा
मैं:"कुछ खाओ गे, तुम्हे भूख लगी होगी"
ये कहकर मैं उसको बाहर ले आई हॉल में और उसके सामने अपनी कुर्सी पर अपने पैर उठा कर बैठ गयी जिससे मेरी चूत उभार कर सॉफ देखा जा सकता था.शौकत ने मेरी चूत की तरफ देखा और फिर मेरे सीने की तरफ, वो समझ नही पा रहा था कि वो क्या करे उसने पाने को काबू मे करके कहा
शौकत:"कुछ पहेन लो आरा"
मैं:"क्यूँ क्या पहले मुझे नंगी नही देखा"
शौकत:"तुम तो बिल्कुल ही बेशर्म हो चुकी हो"
मैं:"वाह, और तुम कितने शर्म वाले हो ,किसी और की बीवी को नंगा देखने चले आए"
शौकत:"वो तो मैं अपना इम्तेहान देने आया था, तुम ही ने तो कहा था कि मुझे ये सब देखना होगा, तब ही तुम मेरे पास वापस लौटने के बारे मे सोचोगी"
मैं:"हां मैने कहा था, मैं अब ज़रूर इसके बारे मे सोचुगी, अब तुम जाओ, तुमने मुझे कन्फ्यूज़ कर दिया है"
शौकत:"क्या कन्फ्यूज़ कर दिया है"
मैं:"यही कि अगर मैं अब तुम्हारी बीवी बन जाउन्गि तो मुझे इनायत के साथ सेक्स का मौका कभी नही मिलेगा"
शौकत:"आरा लाइफ मे सेक्स ही सब कुछ नही होता,ज़िंदगी सिर्फ़ सेक्स का नाम नही है"
मैं:"अर्रे वाह, क्या बात है शौकत शहाब तो फिर ज़िंदगी किस चिड़िया का नाम है"
शौकत:"ज़िंदगी ख़ुसी गम,वफ़ा,मोहब्बत, क़ुर्बानी, इंतेज़ार,हिम्मत और तकदीर का नाम है"
मैं:"ये सब तुमने किसी शराब की दुकान पर पढ़ा था क्या"
शौकत:"मैं अब शराब के पास भी नही जाता"
मैं:"मुझे मालूम है ज़िंदगी किस चीज़ का नाम है"
शौकत:"किस चीज़ का"
मैं:"बॅलेन्स और तालमेल का"
शौकत:"कैसा बॅलेन्स"
मैं:"तुमने जिस चीज़ का नाम लिया उनमे एक बॅलेन्स ज़रूरी है और तालमेल भी होने उतना ही ज़रूरी है सोचो अगर क़ुर्बानी सिर्फ़ बीवी ही दे तो बॅलेन्स कैसे होगा और अगर मिया बीवी मे सुख दुख के दरमियाँ कोई तालमेल ना हो तो क्या होगा"
शौकत:"तुम बड़ी समझदार हो गयी हो"
मैं:"क्या करूँ शौकत साहब हम ग़रीबो को वक़्त की लाठी और आप जैसे लोग समझदार बनने पर मजबूर कर देते हैं"
शौकत:"तो मैं क्या समझू अब, क्या कुछ मुमकिन है"
मैं:"अभी थोड़ा वक़्त दो मुझे, इनायत ने मुझे खुद्दार बनाया, अपने पैरो पर खड़ा होने की तालकीन की, मुझे इज़्ज़त दी,मेरे मस्वरे को तरजीह दी, मेरे मा बाप को उम्मीद और प्यार दिया, मुझे अच्छी आज़ादी दी, वो मेरा एक सबसे अच्छा दोस्त है और तुमने मुझे क्या दिया शौकत मिया"
शौकत:"मुझे मौका तो दो एक बार"
मैं:"मैने तुम्हे एक मौका दिया था अफ़ोसोस तुमने उसको खो दिया"
शौकत:"एक बार और दो, मैं तुम्हारे बिना जी नही सकता आरा, मेरे पास लौट आओ"
मैं:"तुमको मौका देना किसी खतरे से कम नही है लेकिन फिर भी मैं इसपर गौर करूँगी लेकिन तुम मेरे फ़ैसले को हर हाल मे मानोगे और मुझे दोबारा तंग नही करोगे"
शौअकत:"ठीक है, मैं इंतेज़ार करूँगा. अब मैं चलता हूँ"
मैं:"रूको मुझे तुम्हे कुछ देना है"
मैं बेडरूम मे गयी और अपनी एक पैंटी ले आई.मैने उस पैंटी से अपनी चूत सॉफ की और शौकत की तरफ बढ़ा दी. वो थोड़ा हैरान सा हो गया और उसने पूंचा
शौकत:"ये क्या है"
मैं:"देखते नही मेरी पैंटी है"
शौकत:"तो"
मैं:"तो क्या, इसको ले लो और मेरी याद समझ कर खुद को मेरे फ़ैसले तक सम्भालो, अगर तुम चाहो तो मेरा बाथरूम इस्तेमाल कर सकते हो अपने खड़े लंड को शांत करने के लिए"
शौकत कुछ देर सोचता रहा फिर उसने मेरी पैंटी मुझ से ले ली लेकिन बाथरूम की तरफ नही बल्कि बाहर जाने लगा, मैने भी उसको रोका नही और उसके जाने के बाद डोर लॉक कर दिया. मैं अब और ज़्यादा परेशान थी, ज़िंदगी मे मुझे कभी ये भी करना होगा मैने सोचा नही था, अब मैं अपने कपड़े पहन चुकी थी कि डोर बेल बजी. जब देखा तो इनायत बाहर खड़ा मुस्कुरा रहा था.
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