Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
10-12-2018, 01:16 PM,
#27
RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
शौकत अंदर आकर बैठ गया. मैने उससे चाइ के लिए पूछा,थोड़ी देर में मैं उसके लिए चाइ ले आई. उसने चाइ का कप अपने हाथो मे लिया और मेरी तरफ उम्मीद भरी नज़रों से कुछ कहना चाहा. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि मैं उसको क्या कहूँ. शायद उसके लिए मेरे दिल मे अभी भी कहीं किसी कोने मे थोड़ा प्यार या शायद थोड़ी हमदर्दी बाकी थी. वो और आदमियो की तरहा नही लग रहा था जो सिर्फ़ औरतो पर अपनी मर्ज़ी थोप देते हैं. मुझे भी ये लगने लगा था कि शौकत को अपने किए का बहोत पछतावा है. वो अब एक हारा हुआ, कमज़ोर सा दुखी इंसान लगता था जिसे जीना था

लेकिन जीने का मकसद नही मिल रहा था. मैं उससे हमदर्दी करने लगी थी. शायद वो रात उसके लिए भी उतनी काली थी जितनी मेरे लिए ,शायद वो भी अंधेरे मे कहीं खो गया हो जैसे मैं खो गयी थी,

अब मैं शायद उसको अंधेरे मे कहीं दूर एक टिमटिमाते हुए दिए सी लग रही थी. उसने काफ़ी देर मेरी आँखो मे झाँक कर अपने लिए प्यार की बूँद तलाश करनी चाही थी. मैं उससे आँखें छिपा रही थी. अभी भी वो चाइ का कप हाथ मे लिए मेरी तरफ टकटकी लगा कर देख रहा था. मैने ये सिलसिला तोड़ने के लिए उससे बात शुरू कर दी.
मैं:"चाइ पियो, ठंडी हो रही है" मैं:""
शौकत:"हां पीता हूँ" :""
मैं:"तुम्हारी तबीयत तो ठीक है"
शौकत:"क्यूँ तबीयत का क्या है"
मैं:"तुम्हारी आँखो के नीचे काले घेरे दिखते हैं, क्या शराब फिर से शुरू कर दी है"
शौकत:"नही शुरू नही की है, लेकिन सोचता हूँ कि शायद अब वही बाकी है मेरी ज़िंदगी मे"
मैं:"शौकत ज़िंदगी मे सिर्फ़ प्यार ही सब कुछ नही होता, दूसरे की ख़ुसी भी कुछ होती है, कब तक तुम सिर्फ़ अपने ही बारे मे सोचोगे,क्या तुमसे जुड़े हुए और लोगो की ख़ुसी कुछ नही है"
शौकत:"मैं शायद इतना ताकतवर नही कि अब किसी और के लिए सोच सकूँ, मैं तो अब ये ढलती शाम हूँ"
मैं:"शौकत ज़रा दूसरो का भी ख्यायाल करो,अपनी मा का,अपने बाप का, अपनी बहेन का,उनकी ख़ुसी और गम का,सबके बारे मे सोचो ज़रा, ज़िंदगी सिर्फ़ प्यार से ही नही चलती"
शौकत:"क्या तुम मुझे बहलाना चाहती हो"
मैं:"नही हरगिज़ नही, मैं तो तुम्हारी खैर ख्वाह बनना चाहती हूँ, अब मुझे तुमसे नफ़रत नही रही, अब मैं इन सब चीज़ो के बारे मे नही सोचती और तुमसे भी यही चाहती हूँ"
शौकत:"मुझे लगता है कि शायद मेरा कुछ नही हो सकता, तुम मेरे पास अब लौटना ही नही चाहती"

ये कह कर शौकत ने अपना चेहरा झुका लिया और शायद उसकी आँखो से आँसू बह निकले,मुझे बहोत बुरा लगा, वो अपनी सारी हदें तोड़ कर मेरे पास मेरे वापस अपनाने के यकीन मे आया था,

मुझे समझ मे नही आया कि क्या किया जाए, ये एक बड़ा झटका था मेरे लिए. मैं इन कमज़ोर लम्हो मे उसके पास एमोशनल होकर हां नही कहना चाहती थी और ना ही तंग दिल इंसान की तरहा उसे वही पर लगभग रोता हुआ छोड़ना चाहती थी. वो एक ऐसे बच्चे की तरहा मासूम दिख रहा था जिसकी मा उसे लेने नही आई और वो हॉस्टिल मे अकेला रह गया हो. शायद यही वजह थी कि मेरी सास और ननद जो कि मेरी तरफ दारी करती थीं अब शौकत की तरफ दारी कर रहीं थी. मैं काफ़ी देर तक शौकत तो देखती रही और उसकी सिसकिया सुनती रही. मैं नहीं जानती थी कि मैं किस शौकत से बात कर रही हूँ.ये वो आदमी तो बिल्कुल नही लगता था, ये तो कोई मुसीबत का मारा. हारा हुआ इंसान लगता था. तकदीर किसी को इतना कमज़ोर कर सकती है ये मैने कभी नही सोचा था. हम लड़कियो को इतना सख़्त होना नही सिखाया जाता.ना जाने क्या हुआ मैने शौकत को गले से लगा लिया और एक छोटे बच्चे की तरहा उसको पुचकार्ने लगी. शौकत अभी भी सर नीचे किए धीरे धीरे सिसकिया ले रहा था.

मैने सोचा की उसको थोड़ा दिलासा देना ठीक होगा.

मैं:"शौकत ऐसे ना टूटो, तुम अगर मुझे कमज़ोर करके वापस पाना चाहते हो तो शायद मैं तुम्हारी तरफ लौट आउ, तुमने मुझे इनायत के पास शायद वापस हासिल करने के लिए भेजा था लेकिन मैं इस शख्स से प्यार कर बैठी, तुम नही जानते कि इनायत ने मुझे इतना प्यार और हौसला दिया है कि मैं उसकी कर्ज़दार हो चुकी हूँ, तुमको इस तरहा बिलखता देख कर मुझे लगता है कि शायद मेरा मर जाना ही हर चीज़ का हाल होगा, तुम भी खुश रहो , इनायत भी, सभी लोग,,,"

शौकत:"नही, आरा तुम क्यूँ मरने की बात करती हो, मैं ही क्यूँ ना मर जाउ, मुझसे ही तो ये सब बर्दास्त नही होता"
मैं:"नही शौकत नही, तुम मुझसे वादा करो कि तुम ऐसा कुछ भी नही करोगे चाहे कुछ भी हो जाए और अगर तुम्हारा मरने का जी चाहे तो मुझे बता देना,शायद हम दोनो ही साथ मे ज़हेर खा लें"

मेरे इस जवाब ने शौकत को थोड़ा हैरान किया, वो मुझे देखने लगा, मेरी आँखो मे भी आँसू झलक आए थे. वो मेरे आँसू पोंछते हुए बोला
शौकत:"आरा, मैं तुम्हे तकलीफ़ मे नही डालना चाहता,मैं तो बस तुमसे अलग होकर नही रह सकता हूँ, मुझे समझ मे नही आता कि मैं कैसे अपनी ज़िंदगी तुम्हारे बिना तसव्वुर मे लाउ"
मैं:"जानते हो अगर मैं इनायत से कहु कि मैं शौकत के पास लौटना चाहती हूँ तो वो मुझे नही रोकेगा अपने पास लेकिन वो भी किसी ताश के पत्तो की तरहा बिखर जाएगा, वो तुमसे भी मोहब्बत करता है और हर वक़्त इसी जुर्म की तकलीफ़ मे गिरफ्तार रहता है कि उसने मुझसे प्यार क्यूँ कर किया"
शौकत:" तो तुम ही बताओ आरा, मैं कैसे अपनी ज़िंदगी बिताऊ"
मैं:"जैसे मैने शुरू की तुम्हारे मुझसे अलग होने के बाद, मुझे ये ख़याल आया कि मेरी मा, मेरे बाप, मेरा भाई मेरे लिए कितने ज़रूरी हैं, उनका भी मेरी तरहा बुरा हाल था, मैं उनके लिए ही तुम्हारा ये सुझाव क़ुबूल किया, लेकिन धीरे धीरे वक़्त बदला, तुम भी किसी अच्छी लड़की से शादी कर लो,मुझ जैसे हज़ारो लड़किया अपने शौहर की ज़िंदगी को जन्नत बनाने के लिए इंतेज़ार मे बैठी हैं,

लेकिन ना जाने क्यूँ आदमी लोग ही उनकी मोहब्बत को ठुकरा देते हैं, मैं भी तुम्हारे साथ ही हूँ एक दोस्त की तरहा, मैं भी तुम्हारे सुख दुख मे शामिल हूँ, तुम मेरे एक अच्छे दोस्त नही बन सकते,

क्या सिर्फ़ मिया बीवी का ही कोई रिस्ता होता है? , मेरी मान लो शौकत ज़रा, अपनी ज़िंदगी फिर शुरू करो, तुम एक अच्छे आदमी हो, तुमने ये साबित कर दिया है, ज़रा अपने चारो ओर नज़र दौड़ाओ,ये ज़िंदगी खुशियों से भरी पड़ी है."

शौकत:"अच्छा लगा तुम्हारे मूह से अपने लिए ये सब सुन कर"
मैं:"अच्छा बहुत हुआ ये सब, ये बताओ कुछ खाओगे, मैने बिरयानी बनाई है"
शौकत:"हां ले आओ, थोड़ा खा लेता हूँ, भूख भी लगी है"
मैं झट से किचन मे गयी और उसके लिए खाना ले आई, उसने इतमीनान से खाया. फिर वो वहीं ड्रॉयिंग रूम मे बैठ गया. मैं उसके पास गयी और उसको फिर अपने गले से लगा लिया.
कुछ देर बाद उसने मुझसे कहा कि वो ज़रूर मेरी बात के बारे में सोचेगा. मैने भी उससे अपनी बात दोहराई और कहा कि अगर वो कोई ग़लत कदम उठाएगा तो वो सबको तकलीफ़ देगा और मैं उसे कभी माफ़ नही कर पाउन्गा. वो अब थोड़ा रिलॅक्स लग रहा था. अब वो मुझे सलाम कह कर चला गया. उसके जाने के बाद इनायत भी घर पर आ गया. इनायत को मैने सारी चीज़ें जो वो इंटरकम पर सुन चुका था दोहराई, लेकिन ये नही बताया कि मैने उसको गले से लगाया था. शायद ये कहना सही नही होता. मर्द कभी भी औरतो को समझ नही सकते. वो दोस्त और शौहर का फ़र्क़ तो कभी नही समझ सकते, मैं फिर से शौकत के उदास चेहरे के बारे में सोचने लगी, आज सेक्स का मूड नही था, आज तो एक बार फिर शौकत के साथ बिताए लम्हो में गुम हो जाने का मूड था.

इनायत कितना भी अच्छा शौहर क्यूँ ना हो लेकिन कुछ बाते औरत मर्द से हमेशा छुपा कर रखती है, ये कोई बड़ी बात हो ये ज़रूरी नही, हां मगर कोई छोटी बात भी कभी कभी बाई हो सकती है.

मैं शौकत के ख़यालो मे ही गुम थीं ना जाने कब नींद आ गयी.
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RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है - by sexstories - 10-12-2018, 01:16 PM

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