RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
मेरी बात सुन कर आरिफ़ के चेहरे का रंग स्याह सा हो गया, ऐसा लगा कि शायद मैने उसकी कोई दुखती रग छेड़ दी हो. वो खामोश सा हो गया
मैं:"क्या हुआ, क्या मेरी बात तुम्हे बुरी लगी"
आरिफ़:"नहीं"
मैं:"तो फिर खामोश क्यूँ हो गये"
आरिफ़:"कुछ नही"
मैं:"देखो आरिफ़ मुझे बताओ, इस तरहा तो तुम हम सबको दुखी कर रहे हो"
आरिफ़ ना जाने क्यूँ एक दम से झल्ला उठा, उसकी आवाज़ भी जैसे गूँज सी गयी, उसके चेहरे के रंग सुर्ख हो गया
आरिफ़:" क्या बताऊ, क्यूँ तुम लोग मुझे जीने नही देते, नहीं करनी मुझे कोई शादी"
मैं उसका ये रूप देखकर बड़ी हैरान थी, मैं एकदम से चुप सी हो गयी, कुछ देर मैं उसकी तरफ देखती रही फिर मैं उठ कर नीचे जाने लगी, आरिफ़ को एहसास हुआ कि उसने ओवर रिएक्ट किया है इसलिए उसने मेरा हाथ पकड़ना चाहा, लेकिन अब मैं वाकई नीचे जाना चाहती थी.
आरिफ़:"सॉरी यार, मुझे ऐसे रिएक्ट नही करना चाहिए था"
मुझे अभी भी उसपर बहुत गुस्सा आ रहा था तो मैं भी थोड़ा ओवर रिएक्ट कर गयी
मैं:"मैं अब तुमसे इस बारे मे बात नही करूँगी, ये तुम्हारी ज़िंदगी है जैसे चाहे जिओ. क्या फ़र्क पड़ता है चाहे कोई कुछ भी उम्मीद करे तुमसे, आख़िर तुम एक मर्द ही तो हो, तुमसे कौन सवाल कर सकता है"
आरिफ़:"मैं सच में शर्मिंदा हूँ अपनी इस हरकत पर, सॉरी यार अब बैठो यार"
मैं:"क्या करूँ तुम्हारे साथ बैठ कर"
आरिफ़:"चलो और कुछ बात करते हैं"
मैं:"मुझे रात का खाना बनाना है, मुझे जाने दो"
आरिफ़:"बैठो तो सही, खाना बन जाएगा, इतने दिन बाद आई हो, अपने किस्से बताओ"
मैं:"देखो आरिफ़ मुझे अभी कोई बात नही करनी, तुमसे जो पूंछ रही हो उसके बारे में कुछ क्यूँ नही कहता, आख़िर तुम वजह तो बताओ क्या है, हर चीज़ का हल होता है, इस तरहा खामोश रहने से किसी परेशानी का हल नही निकल सकता"
अब मैं थोड़ा ठंडे लहजे मे बात कर रही थी. आरिफ़ ने अब मेरा हाथ छोड़ दिया था लेकिन अब वो बड़ी तकलीफ़ मे नज़र आ रहा था, कुछ देर वो खामोश बैठा फिर धीरे से बोला
आरिफ़:"कुछ परेशानियो के कुछ हल नही होते आरा और हर परेशानी बाँटी भी नही जा सकती"
मैं:"तुम कहो तो सही शायद इसका हल हो"
आआरिफ:"ये मैं तुमसे नही कह सकता, ये मुनासिब नही"
मैं:"मुझसे नही कह सकते, आख़िर क्यूँ? और अगर मुझसे नही कह सकता तो बाबा से या अम्मा से ही कह दो"
आरिफ़:"मैं उनसे भी कुछ नही कह सकता"
मैं:"तो किससे कह सकता है आरिफ़"
आरिफ़:"किसी से भी नही"
मैं:"उफ्फ आरिफ़ तुम मुझे बताओ तो सही, एक दोस्त की तरहा बताओ मैं वादा करती हूँ कि अगर मेरे पास इसका हल ना हुआ तो मैं किसी से इसका ज़िक्र नही करूँगी"
आरिफ़:"तुम दोस्त नही हो तुम मेरी बहेन हो और भाई बहेन मे ऐसी बात नही हुआ करती"
मैं:"उफ्फ फिर वही रट, देखो हम सब पढ़े लिखे लोग हैं,तुम कहो तो सही"
आरिफ़:"किस मूह से कहूँ और वो भी तुमसे"
मैं:"देखो आरिफ़ मैं जिस दौर से गुज़री हूँ तुम नही जानते हो,ये एक अज़ीयत थी जिसका अंदाज़ा कोई नही लगा सकता, अब मुझमे ताक़त है कि हर मुसीबत का हल निकल सकूँ"
आरिफ़:"मैं जानता हूँ लेकिन तुम इसरार ना करो, तुम्हारे पास मेरी परेशानी का हल नही है"
मैं:"एक बार कह के तो देखो"
आरिफ़:"कैसे कहु,वो ... वो ऐसा है कि मुझे लगता है,,,कि मैं ,,,,वो, उम्म्म "
मैं:"आरिफ़ घबराओ मत, डरो मत मैं तुम्हारे साथ हूँ भरोसा रखो"
आरिफ़:"मुझे लगता है कि मैं बाप नही बन सकता"
आरिफ़ ने एक बॉम्ब फोड़ दिया था, मुझे शॉक सा लगा, मुझे उम्मीद नही थी कि ये वजह होगी, मैं आरिफ़ की तरफ देख रही थी, समझ मे नही आ रहा था कि क्या कहा जाए, मुझे लगा कि मुझे ये सब नही पूछना चाहिए था, आरिफ़ की हालत मे होगा ये कहकर और वो भी अपनी सग़ी बहेन से. वो बहुत शर्मिंदा सा लग रहा था. लेकिन फिर मैने सोचा कि जब बात सामने आ ही गयी है तो उसका हौसना बढ़ाया जाए, मैने उसके कंधे पर हाथ रखा , अब वो मेरी तरफ नही देख रहा था.
मैं:"आरिफ़ शायद तुम ठीक कहते हो, मुझे इसरार नही करना चाहिए था, लेकिन क्या मैं जान सकती हूँ कि तुम्हे ऐसा क्यूँ लगता है"
आरिफ़:"अब तुम जान ही चुकी हो तो ये भी जान लो कि मैं किसी औरत को देख कर एग्ज़ाइटेड तो होता हूँ लेकिन इस एक्साइटेशन को कायम नही रख पाता"
मैं:"खुल कर बताओ, आरिफ़, शरमाने की ज़रूरत नही है"
आरिफ़:"मैं ज़्यादा देर तक अपने आप को रोक नही पाता और जल्दी फारिघ् हो जाता हूँ"
ना जाने क्यूँ मुझे अब इस बात मे इंटेरेस्ट आ रहा था, मेरे निपल्स सख़्त हो चुके थे और मेरी टाँगो के दरमियाँ सनसनाहट शुरू हो गयी थी.
मैं:"क्या तुम किसी लड़की के साथ सेक्स कर चुके हो"
आरिफ़ मेरे मूह से ये बात सुनकर दंग रह गया लेकिन मैने ऐसा ज़ाहिर किया कि जैसे मैने कोई नॉर्मल सी बात पूछी हो
आरिफ़:"हरगिज़ नही"
मैं:"तो तुम इतना यकीन से कैसे कह सकते हो कि तुम जल्दी फारिघ् हो जाते हो"
आरिफ़:""वो वो मैं,,,मुझे
मैं:"क्या तुम मास्टरबेट करते हो और इसी से अंदाज़ा लगा रहे हो"
आरिफ़:"हां, ना ना नही,, ये वो मेरा ,,, मैं"
मैं:"आरिफ़ रिलॅक्स, तुम घबराओ तो नही, इसमे शर्मिंदा होने की बात नही है, ये नॉर्मल है, अडल्ट्स ऐसा करते हैं, मैं भी शादी से पहले ऐसा करती थी"
मेरी ज़ुबान हमेशा ज़्यादा ही बोल जाती है, मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ लेकिन आरिफ़ को इस बात से थोड़ा शॉक सा लगा और वो थोड़ा सा और शर्मिंदा सा हो गया, उसको समझ मे नही आ रहा था कि क्या कहा जाए और वो मुझसे कोई आइ कॉंटॅक्ट भी नही कर रहा था.
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