RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
ये कह कर मैं सोने के लिए लेट गयी, काफ़ी देर तक मैं अपने पास्ट के बारे मे सोचती रही, उन पलो के बारे में जब मैं शौकत की बीवी थी, कितनी अच्छी लाइफ थी, ये सेक्षुयल आड्वेंचर्स तो मैने कर लिए थे लेकिन कभी कभी मैं ये भी सोचती कि काश ये सब हुआ ही ना होता, कभी कभी मैं खुद को एक डर्टी चीप रोड साइड प्रॉस्टिट्यूट की तरहा फील करती. मुझे खुद पर ही गुस्सा आता और मैं सोचती कि शायद मैने काफ़ी ग़लत किया, मैने पहली बार ही इन सब के लिए मना कर सकती थी आख़िर किसी ने मुझपर ये जबरन फोर्स तो नही किया.
मैं एक ऐसी मछली की तरहा महसूस कर रही थी जो एक बहती रिवर से खूद कर एक तालाब मे आ गयी थी और जिसने उस वक़्त के थोड़े से फ़ायदे के लिए रिवर के लोंग टर्म बेनिफिट्स को छोड़ दिया था. नदी मे ख़तरा तो दिख रहा था लेकिन उसमे रवानगी थी, फ्रेशनेस थी, प्योर्टि थी लेकिन इस तालाब मे अब सिर्फ़ घुटन, सदन और डलनेस आ चुकी थी. यही सोचते सोचते सुबह हो गयी. मैने वॉल क्लॉक मे देखा तो सुबह से साथ बज चुके थे और सूरज सर चढ़ आया था. इनायत हमेशा की तरहा अपने ट्यूशन क्लासस के लिए निकल गया था. मैं उठी और बाहर फ्रेश होने चली गयी. जब फ्रेश होकर बैठी तो सास ने मुझे अपने साथ नाश्ता करने के लिए बिता लिया. हम ने ब्रेक फास्ट किया और फिर हम सास के तख्त पर आकर बैठ गये. बातो का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो गया.
सास:"बहू कल रात तुम्हारा इनायत से कोई झगड़ा हुआ क्या"
मैं:"नहीं क्यूँ?"
सास:"वो इनायत आज नाश्ता किए बगैर चला गया"
मैं:"पता नहीं, ऐसा तो वो कभी नहीं करते?"
सास:"अच्छा छोड़ो हो सकता है कि वो बाहर नाश्ता करना चाहता हो, तुम ये बताओ कि तुम बात करने वाली थी ना अपने घर पर?"
मैं:"हां वो, जी वो ,मैं ये कह रही थी कि अगर वो...."
सास:"क्या बात है आरा सॉफ सॉफ कहो मुझे अगर मगर वाली बात से नफ़रत होती है"
मैं:"जी वो ये शायद इस रिश्ते के लिए राज़ी नहीं है"
मेरा इतना कहना था कि मेरी सास के अपना माथा सिकोड लिया और पास बैठी साना का भी चेहरा मुरझा सा गया
सास:"भला क्यूँ?"
मैं:"पता नहीं शायद उन्हे आरिफ़ पसंद नहीं"
सास:"हो सकता है कि वो उस वक़्त के आरिफ़ के रवैय्ये को भूला ना हो, लेकिन तुम ये बताओ कि तुम्हारी तरफ से तो कोई वजह नहीं है ना?"
मैं:"जी बिल्कुल नहीं"
सास:"तो ठीक है, तुम अपनी अम्मा को फोन लगाओ मैं बात करना चाहती हूँ अभी"
मैने अपना फोन उठाया और अम्मा को डाइयल कर दिया. अम्मा ने फोन रिसीव कर लिया.
अम्मा:"अस्सलाम बेटी कैसी हो, इतनी सुबह सुबह फोन, सब खारीयत से तो है"
मैं:"वलेकुम सलाम अम्मा सब ठीक है, वो मेरी सास आपसे बात करने को कह रही थीं कल रात तो मैने सोचा कि रात को क्या बात करें,इसलिए सुबह ही फोन लगा दिया"
अम्मा:"अच्छा, लेकिन ऐसी क्या बात है, सब ठीक है ना?"
मैं:"हां अम्मा सब सही है, आप खुद ही बात कर लो"
अम्मा:"अच्छा लाओ बात करवाओ"
मैं:"लीजिए बात कीजिए"
सास:"अस्सलाम कैसी हैं आप, बहुत दिन हुए आप से बात किए हुए सोचा बात ही कर लूँ"
अम्मा:"वेलेकम सलाम, सब ठीक है, अच्छा किया आप ने फोन किया और बताइए घर मे सब कैसा चल रहा है"
सास:"सब ठीक है, बढ़िया है, मैं आप से मिलना चाहती हूँ, कहिए कब आउ मैं आप के घर"
अम्मा:"आप का ही घर है जब चाहे आ जायें"
सास:"अच्छा तो कल शाम को मैं और शौकत के अब्बा कल आपके घर आ जायेंगे"
अम्मा:"ठीक है, कोई ज़रूरी बात है, आरा से कोई ग़लती तो नहीं हुई"
सास:"नहीं कैसी बात कर रही हैं, वो दर असल ऐसा है कि मैं अपनी बच्ची के लिए आरिफ़ के बारे में सोच रही हूँ"
अम्मा:"ये तो बड़ी अच्छी बात है लेकिन इन सब मामलो में तो ये ही सब तय करते हैं, आप घर आ जायें, सब बैठ कर सुकून से बात करेंगे"
सास:"ठीक है, चलो फिर खुदा हाफ़िज़"
अम्मा:"अच्छा खुदा हाफ़िज़"
हम लोग फिर ऐसे ही बात करते रहे और शाम को मेरी सास मे अपना फ़ैसला इनायत को सुना दिया, वो मेरी तरफ घूर कर देखने लगा तो सास ने उसे टोकते हुए ताकीद कर दी कि ये उनकी ही ज़िद थी वरना आरा तो खुद ही मना कर रही थी. अगली शाम को मेरे घर जाने की तैयारी होने लगी. साना काफ़ी खुश थी लेकिन इनायत नही. शौकत को मैने खुद सारे हाल के बारे में बता दिया था. शुरू में तो उसको मेरे और आरिफ़ के बारे में सुनकर झटका लगा लेकिन मैने उसे ये कह कर ठंडा किया कि आरिफ़ की प्राब्लम को दूर करने के चक्कर में मैने ये कदम उठाया. खैर उसने भी फ़ैसला सास और बाकी बडो पर छोड़ दिया लेकिन उसने भी यही कहा कि पता नहीं साना कैसे रिएक्ट करेगी जब उसे मेरे और आरिफ़ के बारे में पता चेलगा. मैं भी थोड़ा नर्वस थी कि कैसे सब कुछ ठीक होगा लेकिन काफ़ी सोचने के बाद मैने ये फ़ैसला किया कि अगर ये रिश्ता तय होता है तो मैं कैसे भी करके साना को पहले ही इनायत के नीचे बिछ्वा दूँगी ताकि मामला बॅलेन्स मे आ जाए और मेरा आरिफ़ के साथ सेक्स अड्वेंचर चलता रहे.
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