RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
लाइफ भी बड़ी अजीब चल रही थी. मैं सोचना शुरू किया कि मैने कैसे ये सब किया. ये सब कुछ ऐसा था कि यकीन से परे था. क्या इंसान की जिस्मानी ख्वाशात उसको चलाती हैं या फिर वो अपनी ख्वाशात को चलाते है.मैं तो जैसे ना जाने कहाँ बढ़ी जा रही थी, क्या होगा इसका अंजाम, आख़िर क्यूँ सेक्स के मामले में हमारी सोसाइटी ने इतनी बंदिशें लगा रखी हैं? क्या वाकई इन सब चीज़ो में कोई बुराई है या फिर ये सब ढकोसले हैं? मैं चाहती थी कि मैं इस बारे में कुछ सोचूँ लेकिन ना जाने क्यूँ मैं डूबती ही जा रही थी अपनी ख्वाहिशो में, मेरी रूह अब मैली होने लगी थी,मैने ये रास्ता जो चुना था
वो मुझे कई बार डरा भी देता था. सन कुछ कैसे इतनी आसानी से हो रहा था. मेरे लिए ये सब शतरंज के मोहरे थे,एक के बाद एक फ़तह हो रही थी, कोई भी मेरे सामने टिक नही पा रहा था,मुझे अब इन सब चीज़ो में मज़ा आ रहा था और ये एक बड़ा ही ख़तरनाक नशा था. ना जाने कभी कभी ये भी लगता कि काश मैं सिर्फ़ शौकत की ही होकर रहती या सिर्फ़ इनायत की. मर्द आख़िर कार मर्द ही होता है, वो चाहे किसी भी मज़हब,मुल्क,रंग,ज़बान,कद काठी का हो लेकिन आख़िर में वो मर्द ही निकलता है.
क्या कभी ऐसा भी हो सकता है कि ये सब जो मैं कर रही थी वो वापस मेरे उपर आ जाता. आज घर में कोई बच्चा नहीं है लेकिन अगर कल कोई नन्ही सी जान आएगी तो हम उसको क्या सिखायें गे? आज मैं जीत रही हूँ लेकिन क्या किसी दिन मैं हार भी जाउन्गि? आज इनायत, शौकत मेरे क़ब्ज़े में हैं लेकिन क्या वो किसी और औरत के क़ब्ज़े में नही आ सकते? ये सब सवाल मुझे कई बार बहोत परेशान करते. मैं अब जब भी अपनी अम्मा से फोन पर बात करती
तो मुझे ये लगता कि मैं किसी अंजान औरत से बात कर रही हूँ या शायद मैं किसी और ही दुनिया की किसी औरत से बात कर रही हूँ.वो भी कभी कभी मुझे ये कह देती कि तुम बदल सी गयी हो. मैं उनसे बात करते करते कहीं खो जाती और फिर कोई बात मुझे चौका सा देती. मैं इन दिनो अकेले में हमेशा अपने माज़ी में खो जाती,अपने उस वक़्त को याद करती जब मैं छोटी सी थी, बारिश की बूंदे, स्कूल जाना, स्कूल के लौट कर साइकल पर भाई के साथ घर आना, मेरी अम्मा का मुझपर चिल्लाना कि बारिश में क्यूँ भीग गये,मेरी अम्मा का मेरे लिए गरम चाइ लाना,अपने भाई से बेलौस मोहब्बत जिसमे कोई भी गंदगी नही थी,
वो गली में अपनी हम उमर लड़कियो के साथ शाम को खेलना,वो ठंडी के दिन, जाड़े में गरम बिस्तर में अपने मा बाप और खाला की बातें सुनना ना जाने ये सब कहाँ खो गया था. आज कहने को तो मैं ये सारे आड्वेंचर्स कर रही थी लेकिन इन सब चीज़ों से मुझे सिर्फ़ सेक्स का मज़ा मिल रहा था, मेरा सुकून मेरा चैन ना जाने कहाँ चला गया था. इनायत हो या कोई और मैं सबके साथ कहीं खो जाती. ऐसा लगने लगा था की मैं एक पिंजरे में क़ैद कोई चिड़िया हूँ जो शायद ग़लत मकाम पर आ गयी है. मैं यही सवाल दोहराती कि क्या ज़िंदगी में सेक्स और बाकी फनाः होने वाली चीज़ें ही सब कुछ हैं?
लेकिन फिर जब मेरे जिस्म को सेक्स की भूक लगती तो ना जाने ये ख़याल कहाँ गायब हो जाते? मैं एक जानवर सी बन जाती जिसे सिर्फ़ सेक्स से मतलब होता. अब मुझे अपने जिस्म की नुमाइश करने मे शर्म नही बल्कि मज़ा आता था, मेरा दिल करता था कि मैं अब घर में हमेशा नंगी रहूं और जिसके साथ चाहूं जो चाहे करूँ.
खैर शाम की ताबू मेरे पास आई और हम दोनो में बातें शुरू हो गयी.
ताबू:"आरा ये सब क्या चल रहा है?"
मैं:"मैं तुम्हे वक़्त आने पर सब बता दूँगी"
ताबू:"तुम तो सेक्स अडिक्ट बन चुकी हो, बाहर आओ इन सब चीज़ो से, हर चीज़ का एक्सट्रीम बुरा ही होता है, चेंज के लिए कुछ किया करो, तुम चाहती थी ना कि तुम एक ब्यूटी पार्लर खोलो, तो चलो मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ देल्ही, तुम्हारी अट्टेन्स्षन भी डाइवर्ट हो जाएगी."
मैं:"मेरी जान मैं बिल्कुल ठीक हूँ"
ताबू:"देखो ये तुम्हारी लाइफ है, रिश्तो को मिक्स मत करो, हम लोग आपस मे जो चाहे करें लेकिन हमको अपना रीलेशन का दायरा उलझाना नहीं चाहिए"
मैं:"तुम क्या कहना चाहती हो"
ताबू:"देखो कहीं ऐसा ना हो कि तुम सेक्स और एमोशन्स को जोड़ कर कहीं खो जाओ और फिर तुम्हाई लाइफ के लिए ज़रूरते बदल जायें"
मैं:"मैं ये सब हॅंडल कर सकती हूँ, तुम टेन्षन मत लो"
ताबू:"सेक्स ईज़ आ पार्ट ऑफ लाइफ बट लाइफ ईज़ नोट जस्ट अबाउट सेक्स"
मैं:"बस यार तुम तो जैसे अटके हुए टेप रेकॉर्डर की तरहा एक बात बार बार रिपीट कर रही हो"
ताबू:"आरा, मेरी बात पर ज़रा ध्यान से सोचना, मुझे तुम्हारी फिकर है"
ताबू ये कहकर किचेन में चली गयी और मैं एक बार फिर कन्फ्यूज़ हो गयी.ना जाने क्यूँ ताबू की बातें मेरे सर के चक्कर काट रही थीं, मैने सोचा कि मुझे अपना ध्यान किसी और चीज़ मे लगाना चाहिए,मैं टीवी सीरियल्स देखने बैठ गयी लेकिन इसमे भी मुझे कुछ दिलचस्प नही लगा. आख़िर का ना जाने कब मेरी आँख लग गयी और साना मुझे रात के खाने के लिए बुलाने को आई.
हम सब डाइनिंग टेबल पर बैठे थे.मेरे सामने इनायत और शौकत, मेरे बगल में साना और ताबू, एक एंड पर ससुर और एक एंड पर सास.आज साना और इनायत के बीच में आँख मिचोली चल रही थी. वो एक दूसरे को देख कर खूब मुस्कुरा रहे थे और मैं ना जाने क्यूँ थोड़ी सी अनकंफर्टबल सी थी. मैं बस सूप ले रही थी और प्याले मे गोल गोल स्पून घुमा रही थी. मुझे ये मालूम नही था कि जैसे सब शांत से हो गये हैं और मेरी तरफ गौर से देख रहे हैं.जब मैने मूह उठा कर देखा तो सबकी निगाहें मेरी तरफ थीं
. मेरी सास मेरी तरफ देख कर बोली.
सास:"आरा ठीक तो हो"
मैं:"हाँ.....न, क.....क्य..क्या, हां ठ....ठीक हूँ"
सास:"तुम लगता है कई रातो से सोई नही हो."
मैं:"नहीं ऐसा नहीं है,वो सब ऐसे ही बचपन की यादो में खो गयी थी"
हमसब ने खाना खाया और फिर धीरे धीरे अपने कमरो में चले गये. मैं उस वक़्त हो रही घुटन से दूर जाना चाहती थी, इसलिए मैं सोचा की कैसे भी हो आज मैं वो खेल फिर शुरू करूँगी जो सुबह रह गया था, इसलिए मैं अपनी सास के कमरे में गयी,
वो बैठी हुई टीवी देख रही थी,मुझे देख कर उन्होने वॉल्यूम कम कर दिया और मेरी तरफ देख कर बोली.
सास:"क्या बात है आरा, कुछ कहना है?"
मैं:"हां वो कि साना थोड़ी टेन्षन में है"
सास:"क्यूँ?"
मैं:"शायद उसको शादी वगेरा का कोई टेन्षन हो, आप आज उसके साथ सो जायें"
सास:"ठीक है और तुम"
मैं:"मैं आज इनायत के साथ सो रही हूँ"
ससुरजी:"आरा आज यहीं सो जाओ"
मैं:"मेरी जान मैं भी यही चाहती हूँ लेकिन पहले साना और इनायत एक दूसरे के हो जायें और फिर साना आप की , ऐसा हो गया तो मैं फिर खुल कर आपसे प्यार कर सकती हूँ"
ससुरजी:"तो तुम कहाँ तक पहुँची हो?,इनायत और साना का कुछ हुआ कि नहीं"
मैं:"नहीं अभी नहीं, अभी तो वो बस एक दूसरे से शरमा से रहे हैं"
ससुरजी:"और तुम्हारा अनीला"
अनीला मेरी सास का एक और नाम था जो वो स्कूल के लिए इस्तेमाल करती थीं, कभी कभी प्यार से मेरे ससुर उनको इसी नाम से पुकारते थे.
मेरी सास, ससुरजी के सवाल से चौंक पड़ी.
सास:"मेरा, मेरा क्या?"
ससुरजी:"अपने बेटे को अपने हुस्न के जलवे दिखाए कि नहीं"
सास:"आप भी ना"
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