RE: Hindi Porn Kahani अदला बदली
फिर सरिता ने अपनी कहानी शुरू की , -----------
सरिता एक पास के गाँव में अपने बाबूजी, माँ और छोटे भाई के साथ रहती थी, सामान्य माध्यम वर्ग ka परिवार था,और पिता की किराने की दुकान थी।सब कुछ बढ़िया चल रहा था।एक बार उनके घर मैं बाबूजी के बड़े भाई आए यानी तायाज़ी और फिर वो उसी समय स्कूल से आयी थी और सलवार कुर्ते में थी, तब वो १२ th में थी ,और उसका बदन अभी जवान हो रहा थी। तायाज़ी को उसने नमस्ते की और पैर छुए , तायाज़ी ने उसकी पीठ में हाथ फेरते हुए उसे आशीर्वाद दिया।सरिता को लगा कीं वो उसकी ब्रा के स्ट्रैप पर हाथ फेर रहे हैं, उसे कुछ अजीब लगा।फिर वो अंदर गयी, घर में माँ नहीं थी, और भाई दुकान पर था। वो दो ग्लास पानी लायी और बोली- बाबूजी माँ कहाँ गयी, वो बोले, मंदिर गयी है, जा तू चाय बना ला। सरिता अंदर गयी और उसको लगा की तायाज़ी की नज़रें उसकी चूचियों और नितम्बों पर थी।वो अंदर गयी और थोड़ी परेशान हो गई।
सरिता अंदर से चाय बना कर लायी और बरामदे में बाबूजी और तायाज़ी को दी।तायाज़ी चाय लेते हुए सरिता की चूचींयों को घूर रहे थे। फिर सरिता अंदर गयी और बरामदे के पास वाली खिड़की पर खड़ी हो गयी।उसने बातें सुनने की कोशिश की , धीरे से पर्दा हटाया और वो दोनों दिखने भी लगे, क्योंकि उनकी साइड थी इसलिए वो सरिता को नहीं देख सके।तायाज़ी बोल रहे थे- अरे शंकर , ये सरिता तो कड़क जवान हो गई है, कुछ मज़ा वजा लिया की नहीं? बाबूजी हैरानी से उनको देखते हुए बोले- कैसा मज़ा भाई जी ? तायाज़ी-अरे वही उसकी गदरायी जवानी का मज़ा और क्या? बाबूजी- अरे भाई जी क्या बोलते हो, मेरी बेटी है, हाँ अब जवान हो रही है, इसके लिए लड़का ढूँढना शुरू करना चाहिए।तायाजी- अरे शंकर, तू भी पागल है, इतनी मेहनत से बेटी को बड़ा किया है, अब माल तय्यार होने के बाद उसको किसी और को दे देगा मज़े लेने के लिए? बाबूजी- लेकिन दुनिया की यही तो रीत है भाई जी।ताया-अरे , मैं जस रीत को नहीं मानता, हमारी बेटी नमिता जैसी ही जवान हुई, मैंने उसको अपना बना लिया, मैंने तो उसकी सील २ साल पहले ही तोड़ दी थीऔर फिर १ साल तक मज़ा लेने के बाद मैंने उसकी शादी अपने ही शहर में एक सेल्ज़ एंजिनीयर से कर दी।अब वो रोज़ दिन में जब उसका पति ऑफ़िस में होता है, घर आकर मुझसे चूदवा लेती है।बाक़ी टाइम अपने पति से मज़ा करती है।बाबूजी का हाथ ये सुनकर अपनी धोती में चला गया और वो अपना उभार जो तंबू सा तन गया था, अजस्ट करने लगे।तभी तायाजी बोले-वैसे एक और अच्छी बात हुई ,मेरे बेटे को ३ महीने के लिए उसकी कम्पनी ने अमेरिका भेजा है , और क्योंकि बहु की अपनी सौतेली माँ से नहीं पटती , इसलिए वो बहु को मेरे पास छोड़ गया है और मैंने बहु को भी ५/६ दिन में ही सेट कर लिया और अब वो रात को मेरे बेडरूम में ही सोती है।ऐसा कहते हुए अब तायाजी ने भी अपनी धोती का तंबू ठीक किया।सरिता आँखें फाड़ी दो दो तने तंबू देख रही थी, और उसकी पैंटी भी गीली होने लगी थी ये सब सुनकर।फिर ताऊजी बोले-तू ऐसा कर एक दिन आ जा हमारे घर मैं तुम्हें दोनों माल का मज़ा कराऊँगा।वो भी ख़ुश हो जाएँगी वेरायटी पाकर। बाबूजी- हाँ भाई अब तो आना ही पड़ेगा, नमिता और बहु दोनों को चोदनेके लिए अब मैं भी बेक़रार हूँ। तायाजी बोले- लेकिन एक शर्त है, जब तुम सरिता को पटा लोगे तो मुझे भी उसकी चूत का मज़ा दिलवा देना।बाबूजी हँसते हुए बोले- ये भी कोई पूछने की बात है।थोड़ी देर और इधर उधर की बात करके ताऊजी खड़े हो गए जाने के लिए,उनकी धोती का आगे का हिस्सा अभी भी फूला हुआ था, वो बोले- ज़रा एक बार सरिता को बुला दे ना, जाने के पहले एक बार उसको अच्छी तरह से देख लूँ, और आशीर्वाद दे दूँ।ऐसा कहते ही अपनी धोती में हाथ डाल कर उभार को दबाने लगे। तब बाबूजी ने सरिता को आवाज़ दी और वो बाहर आइ ,बाबूजी बोले- चल, ताऊजी जा रहे हैं, इनसे आशीर्वाद ले ले, सरिता झुकी तो ताऊजी ने उसके कंधों को पकड़ कर उठा दिया और ऐसा करते हुए उसकी चूचियों को साइड से छू लिया, सरिता काँप उठी।फिर वो उसकी पीठ सहलाकर बोले- बेटी अब हमारे घर आना नमिता तुमको याद करती है।और कहते हुए उसकी कमर का हिस्सा सहला दिए। बाबूजी सब देख रहे थे,मुस्कुराते हुए।फिर बाबूजी ताऊजी को बाहर तक तक छोड़ने गए।वापस आकर बाबूजी अपने कमरे में गए और सरिता को आवाज़ दी । सरिता ने उनके कमरे में जाके पूछा - क्या काम है बाबूजी? बाबूजी ने उसको एक भरपूर नज़र से देखा,सरिता काँप उठी, उसे लगा कि ताऊ जी की बातों का लगता है इन पर असर हो गया है।बाबूजी बोले- बेटी ज़रा पैर दबा दे बहुत दर्द हो रहा है , तेरी माँ भी मंदिर गयी है, वो पलंग पर जगह बना कर बोले- आओ यहाँ बैठ जाओ।सरिता बाबूजी के पैरों की तरफ़ बैठ गयी।बाबूजी ने देखा की बैठते उसके कुल्हे बाहर को निकल आए, उनकी धोती में क़ैद नाग ने फिर सर उठाया।फिर बाबूजी ने अपनी धोती घुटनों से ऊपर कर दिया और उनके बालों से भरे पैरों को सरिता दबाने लगी।इसके पहले भी सरिता ने कई बार उनके पैर दबाए थे, पर आज उसके मन में शांति नहीं थी। बार बार ताऊजी की बातें उसके दिमाग़ में आ रही थी।तभी बाबूजी ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखा और बोले- सरिता,पढ़ाई कैसी चल रही है? सरिता- ठीक चल रही है बाबूजी।फिर उसने सरिता की कुर्ती के सिरे को हाथ में लेकर बोले- बेटी, ये कुर्ती तो बहुत पुरानी हो गयी है, मैं कल तुम्हें नए कपड़े दिलाऊँगा।मेरे साथ बाज़ार चलना।सरिता-ठीक है बाबूजी माँ को भी ले चलेंगे। बाबूजी- अरे वो जाके क्या करेगी,उसको मंदिर से ही फ़ुर्सत नहीं रहती और वो क्या जाने नए फ़ैशन के बारे में।हम दोनों चलेंगे और तुम अपनी पसंद के कपड़े ले लेना।सरिता ने ख़ुश हो कर हाँ में सर हिला दिया।फिर बाबूजी ने धोती और ऊपर करके बोला- बेटी आज तो जाँघों में भी दर्द हो रहा है, ज़रा यहाँ भी दबा दो। सरिता अब पास आकर साइड में बैठ गयी और बाबूजी की mascular बालों से भरी जाँघों को दबाने लगी, अचानक उसने ऊपर देखा तो वहाँ एक ज़बरदस्त उभार था, जिसको इतने पास देखकर उसकी पैंटी फिर से गीली होने लगी।फिर बाबूजी ने सरिता के कमर को सहलाते हुए कहा-बेटी, तुम कई दिनों से मोबाइल माँग रही हो ना? चलो कल तुमको वो भी दिला देंगे।सरिता ख़ुशी से बोली- सच पापा, आप बहुत अच्छे हो। बाबूजी ने उसे खिंच के अपनी छाती से चिपका लिया और बोले- बेटी, तुम भी तो बहुत प्यारी हो, ऐसा कहते हुए उसके गाल चूम लिए। तभी दरवाज़े में आवाज़ आइ और सरिता की माँ अंदर आकर सरिता को आवाज़ दी और पानी माँगी।बाबूजी ने सरिता को अपने से अलग किया और अपनी धोती ठीक की और लंड को भी अजस्ट किया और बाहर आ गए। सरिता तो पहले ही किचन जाकर पानी ले के आयी थी।
उस दिन बस यही हुआ और बाबूजी दुकान चले गए और सरिता अपनी माँ के साथ घर का काम करने लगी।
अगले दिन शनिवार था, और सरिता की स्कूल की छुट्टी थी।बाबूजी ने अपनी पत्नी से कहा-चलो बाज़ार चलते हैं। उसने माना कर सिया क्योंकि मंदिर में वक सत्संग था, जहाँ उसको जाना ही था। फिर बाबूजी बोले- चलो मैं सरिता को के जाता हूँ , उसे कुछ कपड़े ख़रीदने हैं।सरिता की माँ ठीक है कहकर मंदिर चली गई, और बाबूजी अपने कमरे में तय्यार होने गए, आज उन्होंने जींस पैंट और टी शर्ट पहनी थी, और स्मार्ट लग रहे थे।उधर सरिता ने भी टॉप और जींस पहनी।उसने अपनी माँ की लिप्स्टिक भी लगा ली।जब वो तय्यार होके आइ तो बाबूजी उसको देखते ही रह गए।टाइट टॉप में कसी उसकी छातियाँ किसिका भी लंड खड़ा कर सकतीं थीं। बाबूजी का लंड जींस के अंदर अँगड़ायी लेने लगा।फिर बाबूजी बोले-पास के शहर चलेंगे ना , यहाँ तो अच्छे कपड़े मिलेंगे नहीं अपनी बस्ती में।सरिता ने सर हाँ में हिला दिया।बाबूजी और सरिता बाहर आए, और बाहर रखी मोटर साइकल यानी बाइक में बैठ गए, सरिता अपने दोनों पैर एक तरफ़ रखकर साइड से बैठी ताकि उसका कंधा बाबूजी की पीठ की तरफ़ था। बाइक जब बस्ती से दूर हो गई, तब बाबूजी बोले- बेटी, तेरे ऐसे बैठने से बाइक एक तरफ़ को झुक रही है,चल दोनों तरफ़ पैर करके बैठ जा।बाइक रुकने पर सरिता दोनों तरफ़ एक एक पैर रखके बैठ गयी,अब उसकी छातियाँ बाबूजी की पीठ के सामने थी और उसने बाबूजी के कंधे पर हाथ रख दिया।बाबू जी ने थोड़ी देर बाद ब्रेक मारी और सरिता की छातियाँ उनके कंधे पर दबने लगी, और उनका लंड खड़ा हो गया।फिर वो सरिता से बोले- बेटी, मेरा कंधा दुःख रहा है, तुम अपना हाथ मेरी कमर पर रख लो।सरिता ने हाथ उनकी कमर पर रख दिया और थोड़ा आगे आकर बैठी।अब थोड़ा भी झटका लगता तो उसका सीना बाबूजी की पीठ से टकराता था।सरिता का हाथ बाबूजी के कमर से खसक कर उनकी जाँघों पर आ गया।इधर बाबूजी का लंबालंड जींस के अंदर एक जाँघ पर रखा था अकड़ा हुआ, और उसका स्पर्श जैसे ही सरिता को हुआ , उसके शरीर में जैसे बिजली दौड़ गयी।उसने एकदम से हाथ हटा लिया और उधर बाबूजी मन ही मन बहुत ख़ुश हो रहे थे, की चलो शुरुआत तो हुई।थोड़ी देर में वो दोनों शहर पहुँच गए,और एक बड़े कपड़े की दुकान में वो अंदर पहुँचे।दुकान में अलग अलग काउंटर थे,और काफ़ी भीड़ थी।दोनों लेडीज़ काउंटर पर पहुँचे तब वहाँ काफ़ी भीड़ थी।सरिता को आगे करके बाबूजी उसके पीछे हो गए।सरिता ने भीड़ में आगे जाकर अपने लिए टॉप और जींस दिखाने को कहा।बाबूजी भी आगे बढ़कर उससे सटकर खड़े हो गए।सरिता टॉप देख रही थी, तभी भीड़ का फ़ायदा उठाकर उन्होंने अपना लंड सरिता की गाँड़ से लागा दिया।सरिता को लगा की कोई उसके चूतरों पर ऊँगलीलगा रहा है, वो थोड़ा मुड़कर देखी तो किसी का हाथ नहीं दिखा,लेकिन बाबूजी की सटी हुई जाँघ से उसको समझ आ गया की ये ऊँगली नहीं कुछ और है, अब १८ साल की उम्र में इतना तो समझती थी कि ये क्या हो सकता है! तभी बाबूजी ने कहा- बेटी ये रंग ठीक नहीं, कोई दूसरा रंग का लो।सरिता दूसरे रंग के कपड़े देखने लगी।सरिता ने एक टॉप बाबूजी को दिखाया और बोली- ये कैसा है?आपको पसंद है? बाबूजी धीरे से उसके कान में फुसफुसाए- बेटी, ये तो बहुत छोटा टॉप है, फिर उसके पीछे से झाँकते हुए उसकी छातियों को देखते हुए बोले- तुम्हारे अब काफ़ी बड़े हो गए हैं, ये तुमको छोटा होगा।सरिता लाल हो गयी शर्म से और बोली- हमको अपना साइज़ पता है, ये आ जाएगी।सेल्ज़ मैन बोला- आप वहाँ ट्राइयल ले लो।सरिता भीड़ में मुड़ी और उसकी छाती बाबूजी के सीने से टकराई।फिर trial room में जाकर टॉप पहनकर बाबूजी को दिखाया और बोली- देखिए फ़िट हैं ना? बाबूजी उसकी छातियों को घूरते हुए कहा-हाँ सच में ऐसा लगता नहीं था की इतना छोटा टॉप तुम्हारे इन बड़ी बड़ी -- मतलब छा- मतलब शरीर में आ जाएगा।वो हकलाने से लगे।सरिता हँसती हुई बोली- चलिये अब जींस ले लूँ। और दिर दोनों भीड़ में घुसे।इस बार बाबूजी ने अपना लंड थोड़ा सामने की ओर किया और उसको सीधे उसकी गाँड़ से चिपका दिया।सरिता चिहुंक उठी, उसे साफ़ साफ़ लंड का अहसास हो रहा था अपनी गाँड़ में।उधर बाबूजी ने उसके टॉप को छूते हुए बोले- कपड़ा अच्छा है और फिर टॉप को थोड़ा हटाकर उसकी नंगी कमर पर हाथ फेरने लगे। सरिता का शरीर काँप उठा।एक तरफ़ लंड का अहसास और दूसरी तरफ़ बाबूजी का कडे हाथ का स्पर्श, उसकी पैंटी गीली हो उठी।अब वो जींस लेकर trial room में घुसी।बाहर आकर पूछी - बाबूजी ठीक है? बाबूजी ललचायी आँखों से उसकी गदराई जाँघों को देखते हुए बोले- हाँ मस्त है और पीछे की भी फ़िटिंग मस्त है। उसके चूतरों पर चिपकी जींस देखकर उनका लंड बहुत कड़ा हो गया था।फिर बाबूजी बोके- बेटी, ब्रा पैंटी भी ले लो।मैंने तुम्हारी ब्रा और पैंटी को धुलने के बाद सूखते देखा है, सब पुरानी हो गई हैं, पैंटी तो फट भी रही हैं, सही बोला ना? सरिता के गाल गुलाबी हो गए। वो बोली- जी बाबूजी दिलवा दीजिए।तब वो दोनों उसी दुकान के दूसरे काउंटर पर पहुँचे, वहाँ भीड़ कम थी।सरिता- बाबूजी आप यहाँ मत अयिए, आपके सामने हमको शर्म आएगी। बाबूजी- अरे इसमें शर्म कैसी।
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