RE: Hindi Porn Kahani अदला बदली
सरिता मजबूर होकर बाबूजी के साथ ही हो ली और उसने कहा- ३४ साइज़ की ब्रा दिखाइए। बाबूजी उसके कान में फुसफुसाए- तुम्हारा साइज़ तो ३६ होना चाहिए,इतने छोटे तो नहीं है तुम्हारे।सरिता- बाबूजी आप चुप रहिए प्लीज़।सरिता कुछ ब्रा देखी और पूछी -बाबूजी दो ले लूँ? बाबूजी उसके कान में बोले- अरे , दो ३४ की ले लो और दो ३६ की भी ले लो,क्योंकि अब तुमको बहुत जल्दी ३६ के साइज़ की लगेगी।सरिता ने बाबूजी के हाथ में चिमटी काटी और बोली- धत्त आप कुछ भी बोल रहे हो।फिर वो पैंटी देखने लगी।बाबूजी ने एक पैंटी हाथ में ली जिसमें पीछे एक सिर्फ़ रस्सी थी, और सामने एक पतली सी पट्टी।वो बोले-बेटी,ये ले लो, तुम पर बहुत अच्छी लगेगी।सरिता ने बाबूजी को बोला- क्या बाबूजी , आप भी मरवाओगे, माँ घर से निकाल देगी।फिर उसने दो नोर्मल सी पैंटी ले ली, पर बाबूजी को कहाँ शांति थी,वो एक लेस वाली जालीदार सेक्सी ब्रा और पैंटी ज़बरदस्ती उसको दिलवा दिए।सरिता का मन धड़कने लगा था, वो समझ गई थी की बाबूजी ये उसको पहनाएँगे और यह सोचकर वो शर्म से लाल हो गई।फिर बाबूजी बोले- चलो खाना खा लेते हैं और उसके बाद तुमको मोबाइल भी दिला देंगे।सरिता बहुत ख़ुश हो गई ,आज उसका मोबाइल का सपना जो पूरा होने वाला था।फिर वो एक रेस्टरोंट में पहुँचे, वहाँ बाबूजी ने कोने की सीट पसंद की, और वो दोनों सोफ़े पर अग़ल बग़ल बैठ गए।बाबूजी ने उसका हाथ सहलाया और बोले-हमारी बेटी क्या खाएगी?और उसके जाँघ पर हाथ रखकर बोले-शहर में मज़ा आ रहा है ना? सरिता ने सर हिलाकर कहा- जी बहुत।बाबूजी ने अब अपना हाथ जाँघ पर घुटने से लेकर ऊपर तक फेरना शुरू किया, सरिता की तो पैंटी फिर से गीली होने लगी।तभी वेटर आया और बाबूजी ने हाथ हटा लिया, पर शायद वेटर ने देख लिया था, उसने ऑर्डर लिया और जाते हुए बोला-सर,मैं ये पर्दा खिंच दूँ, ताकि आप प्राइवसी से खाना खा सकते हैं।बाबूजी ने हाँ कह दिया और उसने पर्दा खिंच दिया।अब बाबूजी सरिता के पास खिसक आए और उसके कमर में हाथ डाल कर बोले-तुम्हारे तायाजी बोल रहे थे कि तुम बहुत सुंदर और जवान हो गयी हो।मैंने तो आज जब तुमको जींस और टॉप में पहली बार देखा तब समझ में आया की तुम सच में जवान हो गयी हो।सरिता को समझ में नहीं आ रहा था की क्या बोले।वो चुप रही।बाबूजी फिर उसकी कमर सहलाते हुए बोले-बेटी,तुम्हारा कोई boy friend है क्या? सरिता- नहीं बाबूजी, कोई नहीं है।वो ख़ुश होकर उसकी जाँघ पर हाथ रखकर बोले-ऐसा क्यों, तुमको कभी इच्छा नहीं हुई, आख़िर अब तुम पूरी जवान हो गयी हो? और ये बोलते हुए उन्होंने उसकी छातियों को घूरा और उसकी जाँघ के ऊपर का हिस्सा जो चूत सेथोड़ा पहले था की दबा दिया।सरिता का बदन भी ऐसी बातों से गरम होना शुरू हो गया।बाबूजी-अच्छा सच सच बताओ किसी ने आजतक तुम्हारी छातियों को दबाया है? सरिता तो हैरान हो गयी, ये कैसा प्रश्न है? वो बोली-नननहीं। बाबूजी- अरे छूपाओ मत, सच बता दो, मैं मॉ से थोड़े बोलूँगा।सरिता डरते डरते बोली- जी दो बार दबाया है दो लोगों ने।बाबूजी का लंड इतना कड़ा हो गया था की उनको दुखने लगा।वो बोले-कौन दबाया? सरिता-पहली बार आपके एक दोस्त असलम अंकल आए थे ना, जब आप बाथरूम गए तो मैं उनको पानी दी तो वो अकेले देखकर मुझे अपनी गोद में खिंच लिए थे और मेरे होंठ चूसते हुए मेरी छातियों को दबाए थे,दूसरे दिन तक मुझे दुखा था।बाबूजी हैरान हो गए वो असलम को शरीफ़ समझते थे।वो अपने लंड को दबाते हुए बोले-क्या वो जब तुमको अपनी गोद में बिठाए थे तो तुमको अपने चूतरों में कुछ चुभा था? सरिता- जी बाबूजी, बहुत ज़ोर से चुभा था।बाबूजी-फिर क्या हुआ? सरिता- कुछ नहीं, फिर आप आ गए और उसने मुझे जल्दी से छोड़ दिया।बाबूजी- दूसरा कौन था?सरिता-हमारे पड़ोसी श्याम अंकल! वो दुकान में आए थे,मैं अकेली थी क्योंकि आप और भाई खाना खाने आए थे,वो अंदर आए समान देखने के बहाने और मुझे एक दम से अंदर साइड में खिंच लिया और मेरे होंठ चूसते हुए मेरी छातियों को दबाने लगे , उन्होंने तो नीचे भी हाथ डाला था, मैं स्कर्ट में थी।मैं चिल्लाना चाहती थी, पर तभी एक ग्राहक और आ गया और वो भी भाग गए।बाबूजी बहुत गरम हो गए थे, उन्होंने उसको प्यार से अपनी गोद में खिंच लिया और उसको चूमते हुए बोले- बेटी तुमने मुझे उसी समय बताया क्यों नहीं, मैं उन सबकी पिटायी कर देता।सरिता बोली- बाबूजी मैं डर गयी थी।बाबूजी ने अपना हाथ सरिता की चूत पर पैंट के ऊपर से रखते हुए कहा- क्या वो कमीना श्याम यहाँ हाथ लगाया था? सरिता की चूत अब पानी छोड़ने लगी , वो हाँ में सर हिला दी। सरिता ने महसूस किया की उसके पिछवाड़े में बाबूजी का डंडा वैसे ही चुभ रहा है जैसे उस दिन असलम अंकल का चुभा था।फिर बाबूजी ने उसकी एक चूची पर हल्के से हाथ रखा और धीरे से सहलाते हुए बोले-इसको ऐसे प्यार से सहलाते हैं, उन्होंने ज़ोर से दबाया था ना? सरिता बाबूजी की हरकत से हैरान थी पर उसको बड़ा मज़ा आ रहा था, वो बोली- नहीं बाबूजी ऐसे नहीं, वो बहुत ज़ोर से दबाए थे, और हमको दुखा था।बाबूजी बोले- अरे ये तो ऐसे प्यार से सहलाने की चीज़ है, कोई हॉर्न थोड़े है जो ज़ोर से दबा दिया।फिर उन्होंने दूसरी चूची भी सहलाने लगे।अब सरिता मस्त हो गई थी। बाबूजी एक हाथ से उसकी एक चुचि, एक हाथ उसकी चूत को दबा रहे थे, और उनका लंड उसकी गाँड़ में धँसा जा रहा थ।सरिता को लगा उसकी पेशाब निकल जाएगी, तभी वेटर खाना ले आया, और वो दोनों अलग अलग होकर बैठ गए, और खाना खाने लगे।बाबूजी ने अपने हाथ से सरिता को कई कौर खिलाए और फिर सरिता ने भी उनको कौर खिलाए।बाबूजी उसकी उँगलियों को काटने का नाटक भी करते थे।खाना खाने के बाद , बाबूजी ने सरिता की सभी उँगलियों को चाटकर साफ़ किया।सरिता की तो जैसे आनंद की अधिकता से आँखें बंद होने लगी। तभी वेटर आया और बिल देकर वो बाहर आए।फिर वो एक पास के दुकान मेंमोबाइल लेने को घुसे।वहाँ बाबूजी ने उसको उसकी पसंद का मोबाइल ले दिए।सरिता की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।उसका बस चलता तो बाबूजी का मुँह चूम लेती।
फिर वो दोनों बाइक से वापसी के लिए निकल पड़े। इस बार सरिता अपने आप बाइक के दोनों ओर पाँव रखकर बैठी और अपने बाबूजी से चिपक गई ।उसकी छतियाँ अब बाबूजी की पीठ से सट गयीथीं।और उसने अपने हाथ बाबूजी के पेट पर रख दिया।
सरिता बाबूजी से चिपक कर बैठी थी।बाबूजी भी मस्ती मेंउसकी चूचियों के दबाव का मज़ा ले रहे थे,, और उनका लंड कड़क हो गया था।थोड़ी देर जाने के बाद एक सुनसान जगह पर बाबूजी ने बाइक रोक दी और बोले-बेटी मुझे पेशाब आयी है।चलो उधर झाड़ियों के पीछे चलते हैं। सरिता बोली- बाबूजी आप हो आओ , हम यहीं खड़े हैं।बाबूजी ने कहा-तुम भी चलो , यहाँ अकेले खड़ी रहोगी, वो सुरक्षित नहीं है।वो दोनों थोड़ी दूर जाते हैं और वहाँ घने पेड़ रहते हैं , जिनके पीछे वो दोनों आ जाते हैं।अब बाबूजी बोले- चलो ये ठीक जगह है, यहाँ कोई देख नहीं सकता , मैं तो पेशाब करूँगा, तुमने करनी हो तो तुम भी कर लो।ऐसा कहकर बाबूजी ने अपने जींस कि जीप खोने लगे सरिता को लगा कि कहीं उनके सामने ही नंगे ना हो जाएँ , पर फिर उन्होंने उसकी तरफ़ पीठ की और पेशाब करने लगे, सरिता ने देखा की उनकी पेशाब की धार बहुत दूर तक जा रही थी, वो हैरानी से उनकी धार को देख रही थी, तभी बाबूजी अपने सर को घुमाए सरिता को देखते हुए बोले- ओह देख रही हो? चलो और ठीक से देखो।और ऐसा बोलते हुए वो थोड़ा सा सरिता की तरफ़ घूम गए और अब सरिता आँखें फाड़े उनके लम्बे लंड से निकलती पेशाब की धार देख रही थी।वो तो जैसे अपने स्थान पर जड़वत खड़ी रह गई,फिर जब बाबूजी उसको देखते हुए लंड होलकर पेशाब की आख़री बूँदें निकालने लगे,तो उसने शर्मा कर मुँह घुमा लिया। उसकी पैंटी अब पूरी गीली हो गयी थी, और उसको भी अब ज़ोर से पेशाब लगी थी।तभी बाबूजी अपनी जीप बन्द करते हुए आए और बोले- बेटी तुमको भी लगी होगी , तुम उस पेड़ के पीछे जाकर कर लो। सरिता पेड़ के पीछे जाकर अपनी जींस खोली और पैंटी को नीचे करके मुतने बैठी,और उसकी चूत से पेशाब की धार एक सिटी की आवाज़ के साथ निकलने लगी, बाबूजी धीरे से गोल घूमकर उसको एक पेड़ के पीछे से देखने लगे, उसकी मस्त चूत और पेशाब की धार को देखकर वो अपने आप को संभाल नहीं पाए और ठीक सरिता के सामने आके बैठ गए और उसकी चूत को एकटक देखने लगी। सरिता तो बिलकुल झटके में आ गयी, पेशाब का दबाव इतना था की वो उठ भी नहीं सकी और शर्माकर उसने अपनी आँखें ढक ली फिर वो ख़त्म करके उठी, और अपनी पैंटी ऊपर की और पैंट को भी ऊपर खिंचने लगी, तभी बाबूजी बैठे बैठे ही आगे आए और उसकी पैंट खिंचकर नीचे गिरा दी। अब उसकी ज़ालिम जवानी सिर्फ़ पैंटी में क़ैद बाबूजी के सामने थी।उसकी पैंटी उसके कामरस और पेशाब की बूँदों से गीली थी।बाबूजी ने उसकी पैंटी पर अपनी नाक रख दी और उसकी चूत को सूँघने लगे। सरिता को समझ नहीं आ रहा था की क्या करे? तभी बाबूजी ने उसकी पैंटी नीचे खिंच दी और उसकी मस्त चूत उनके आँखों के सामने थी। उन्होंने अपने हाथ से उसकी चूत को सहलाया और उसके मादक स्पर्श से वो दोनों ही सिहर उठे।फिर वो अपना मुँह उसकी जाँघों के बीच घुसेड़कर उसकी मस्त चूत को चूमने लगे।अब सरिता के पागल होने की बारी थी, वो इस अनजाने सुख से बिलकुल अनजान थी, बाबूजी ने उसकी चूत मी पंखुड़ियों को खोलकर उसने अपनी जीभ डालके उसको अंदर बाहर और ऊपर नीचे करने लगे।सरिता ने मज़े में आकर बाबूजी का सर अपने हाथों में लेकर उसकी अपनी चूत पर दबा दिया, और मज़े से आऽऽहहह मर्रर्र गाइइइइइइ , चिल्लाने लगी।बाबूजी ने एक हाथ टॉप के अंदर डालकर उसकी चुचि तक ले गए और ब्रा के ऊपर से उसको दबाने लगे और निप्पल को भी छेड़ने लगे।सरिता का मज़ा दुगुना हो गया,और वो अपनी कमर आगे पीछे करके बाबूजी के मुँह पर अपनी चूत रगड़ने लगी।जल्द ही वो झड़ने लगी और चिल्लाई उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ बाबुउउउउजीइइइइइ और बाबूजी के मुँह में उसने अपनी पिचकारी छोड़ दी। बाबूजी मज़े से पूरा रस पी गए।फिर सरिता के पाँव काँपने लगे और वी पीछे होकर पेड़ का सहारा के कर खड़ी हो गई।बाबूजी भी खड़े हुए और उसकी चूत को अपने रुमाल से बड़े प्यार से पोंछा और फिर पैंटी ऊपर करके उसको पहना दिए और फिर पैंट भी पहना दिए। फिर उन्होंने उसको बहिन में लेकर पूछा- बेटी, कैसा लगा, मज़ा आया? सरिता शर्माके उनके सीने में घुस गई और बोल- जी बाबूजी बहुत अच्छा लगा।फिर वो उसको प्यार करते हुए बोले- बेटी तुमने तो मज़ा ले लिया अब मुझे भी थोड़ा मज़ा दे दो।सरिता ने सवालिया नज़रों से बाबूजी को देखा, मानो पूछ रही हो मुझे क्या करना है। बाबूजी ने अपनी पैंट की तरफ़ इशारा किया और बोले- थोड़ा इसे सहला दो ना।सरिता शर्मा गयी और धत्त बोलकर बाऊजी के सीने में चिपक गयी।फिर बाबूजी ने उसको अलग किया और अपनी जींस खोलकर नीचे गिरा दिए, उनकी चड्डी में एक तंबू सा तना लंड देखकर वो सिहर उठी। फिर बाबूजी ने अपनी चड्डी भी उतार दी और उनका लम्बा मोटा लंड हवा में उछलने लगा।सरिता उसको हैरत से देख रही थी, तभी बाबूजी ने उसका हाथ अपने तने लंड पर रख दिया और उसको हिलाने को बोला। सरिता उनका लंड हिलाने लगी, मुट्ठी में लेकर।बाबूजी की आँखें बंद थीं और वो अपनी बेटी के हाथ से मूठ मरवाकर मज़े में आकर उसकी चूचियाँ दबाने लगे और जल्दी ही झड़ने लगे।बाबूजी का लंड का रस बहुत दूर तक गिर रहा था और सरिता के हाथ में भी वीर्य लग गया था।बाबूजी ने सरिता को बोला- ये वीर्य है इसे चाट के देखो, तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा।सरिता ने बाबूजी के कहने पर वीर्य को चाट लिया, और बुरा सा मुँह बनाया।बाबूजी-बेटी बहुत जल्दी इसका स्वाद तुम्हें पसंद आएगा।अब तुम मेरे लंड को चाट के साफ़ कर दो।सरिता हिचकते हुए नीचे बैठ गयी,और जीभ से उनका लंड चाटने लगी।बाबूजी मस्त हो गए ये। देखकर की उनकी बेटी उनके रंग में ढल रही है।फिर वो सरिता को खड़ा करके उसको चूमने लगे।फिर वो अपने लंड को अंदर किए और बोके- बेटी आज रात को हम तुम्हारी प्यास बुझाएँगे।सरिता- घर में माँ भी होंगी। बाबूजी- तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारी माँ को नीद की गोली खिला दूँगा, फिर रात भर हम मौज करेंगे।ठीक है ना? सरिता ने कहा- जी बाबूजी।टी फिर चलें, ये कहकर इन्होंने सरिता के नितम्बों पर थपकी मारी और दबा दिया,और दोनों बाइक में बैठकर वापस बस्ती की ओर चल पड़े।इस बार सरिता बाबूजी से छाती सटा कर बैठी थी और उसने उनके जाँघ पर हाथ रखा था, उसको बाबूजी ने उठाकर अपने लंड पर रख दिया।उसने मज़े से बाबूजी का लंड दबाना शुरू किया।जैसे ही कोई गाड़ी आती, वो हाथ हटा लेती और बाद में फिर अपना हाथ वापस उनके लंड पर रख देती।इस तरह वो दोनों घर पहुँच गए।
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