RE: Antarvasna kahani हर ख्वाहिश पूरी की भाभी �...
मैं ने उठकर उसे जाने की जगह दी... भाभी गांड मटकाये हाइवे पर जाकर कार का दरवाज़ा बन्द करके बिंदास वापस आ गई... मैंने वापस उसे सोने को कहा... मैं वापस उसपर चढ़ गया... मैंने अपने पैर उनके पैरो पर रखे और मेरे हाथ उनके हाथ पर.. और हलके से लण्ड को चूत में घुसाने लगा... ठंडे ठंडे पवन में मैंने थोडा दबाव बनाकर भाभी की चूत में लण्ड पूरा घुस दिया। खुली हवा में चोदना अलग ही मज़ा है... मैंने अब हल्के हल्के धक्को को बड़े में तब्दील किया... मैं बकायदा घास पर उसे रगड़ रहा था.. मेरा माल जब निकलने वाला था तो उनके मम्मो को मैंने हाथ में लेकर... अपने नाख़ून से उसे दबा रहा था... जैसे मम्मा नही इक बलून हो... और ऐसे ही मैं उनको चोदते चोदते अपनी चरमसीमा पहुंच के पूरा वीर्य भाभी की चूत में उगल दिया... अहह्ह्ह... क्या बयां करू उस ख़ुशी के मौके का... मज़ा ही मज़ा... लड़की के ऊपर चढ़कर उसके अंदर हल्का होना और वो भी बाहर कहीं हाइवे पर... थोड़े थोड़े डर के साथ... मज़ा आ गया... हमने वहा कामक्रीड़ा में करीब आधा घंटा बिता दिया था...
वही पड़े पड़े पसीने से लथपथ ज़ाडिओ के बिच में एक दूसरे की बाहो में थे... भाभी की पीठ पर घास चिपके हुए थे... मम्मो पर मेरे नाख़ून के निशान दिख रहे थे... पर मैं भाभी के ऊपर से उतरा नहीं... भाभी की छाती पर मैं अपना सर टिका कर सो रहा था... भाभी मेरी उंगलिओ में हाथ घुमा रही थी...
भाभी: अब तो मेरे पास कुछ नहीं पहनने को और ऊपर से चादर भी नहीं लाइ... क्या करेंगे...
मैं: अरे तू आज मेरी बीवी है... देखा जाएगा... अपने अपार्टमेंट में वैसे भी दस बजे के बाद सन्नाटा है... मैं कपडे लाऊंगा और तू गाडी में पहन लेना ऊपर आ जाना...
भाभी: और तब तक?
मैं: अरे तब तक तो तू मेरे साथ है... हमारे पास अभी भी तिन घंटे है... कुछ् मस्ती मारते है... तुजसे किसी को खुश करवाते है...
भाभी: यहाँ ? कहा? अरे कुछ गड़बड़ हो गई तो?
मैं: तुजे चोदेंगे उस से ज्यादा तो और क्या हो सकता है?
भाभी: आप भी न....
मैं: चल अभी तो गाड़ी में चल...
भाभी: हा आप पहन लो कपड़े... मुझे तो नंगी ही रहना है...
मैं: एक काम करते है... ऐसे नंगी तो मज़ा नहीं आएगा... तू मेरा शर्ट पहन ले... मैं ऊपर से नंगा रहूंगा चलेगा... चल पहले मेरा लौड़ा साफ़ कर दे...
भाभी ने अच्छे से मेरा लौड़ा साफ़ किया और फिर हमने ऐसे ही किया जो तय किया था... जब गाडी में बैठी... वो अपने आप को पूरी ढक भी नही पा रही थी। शर्ट वैसे सिर्फ कुछ कुछ हिस्सा ढकने को तैयार था पर नंगी तो थी वो बिलकुल बयां कर रहा था... मेरा शर्ट भाभी के मम्मो के उभार पर तो कैसे आ सकता था?
हमने गाडी में फिर से एकदूसरे को मस्त किस किया और गाडी चलाने लगा... थोड़ी दूर ही गए थे की मैंने देखा की एक ढाबा आया था... वह जगह काफी सुमसाम लग रही थी.... वो अभी खोल ही रहा था... और वो होते है न कुछ ढाबे जहा सिर्फ रात को ही आते जाते है लोग और वो भी ट्रक वाले बस वैसे ही एक ढाबा लग रहा था... मैंने गाडी रोकी..
मैं: जा दो कोफ़ी बोल के आ...
भाभी: इस हाल में?
मैं: ह्म्म्म जा और थोडा तड़पा के आ इस ढाबे वाले को...
भाभी: आप भी तो आओ...
मैं: नहीं मैं देखूंगा दूर से.. क्या होता है...बिना मज़ा करवाये मत आना...
हम दोनों हस पड़े... भाभी मेरा एक शर्ट पहने हुई थी, अपने आप को संभाले हुए... क्या संभाल ने लायक था...? वैसे तो नंगी ही थी... एक शर्ट से एक लड़की अपने आप को कितना छुपा सकती है... चोबीस-पच्चीस उम्र की अल्हड़ लड़की (आपको पहले ही बताया ये पांच साल पुरानी कहानी है, और भाभी और मेरे बिच ये सम्भोग वाला रिश्ता डेढ़ साल के बाद ही शुरू हो चूका था) नंगी होये तो क्या मज़ा करवा सकती है ये आप उसपे चढ़ो तो ही जान सकते हो... भाभी गांड मटकाये गाडी से उतर कर ढाबे वाले की और चल दी। पुरे नंगे पैर गांड मुश्किल से ढकी जा रही थी और आगे भरे मम्मो के कारन शर्ट बन्द नहीं हो पा रहा था और हो भी सकता तो शायद बटन न होने के कारन तो पकडे की चलने पड़ता, क्योकि जरा सा आजूबाजू खिसके के चूत तो दिख ही जाती... दूर से मैं क्या देख पाता? सुन भी नहीं सकता था तो मैंने बाहर निकल के भाभी के साथ जाने का फैसला किया... भाभी की पास जा के मैंने कहा...
मैं: मैं मूत के आता हूँ... तब तक इसे मुता मत देना...
हम दोनों हस पड़े... ढाबे वाला दूर से सब देख रहा था... उसके हाव भाव से उसे अपने आप पर यकीन नहीं हो रहा था... अपनी आँखे मसल रहा था... उसे मुझे देखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी... वो तो सिर्फ अधनंगी एकदम मस्त माल को देख रही थी... क्या गजब की एक मस्त लड़की अपने बदन को सिर्फ एक कपडे से ढके हुए अपनी और आ रही थी उसे देख रहा था... मैं जा के ढाबे के पिछवाड़े से होकर अंदर आया... मैं उनको देख पाउ और बाते सुन पाउ ऐसे बैठ गया... भाभी अपने मम्मे को ढकने का व्यर्थ प्रयत्न करते हुए आगे बढ़ रही थी शर्म थी थोड़ी मुह पे... पर अगर मम्मे छुपाना चाहे को चूत की लाइन दिख जाने के डर से वो खुद को बचाते बचाते आगे बढ़ी और...
भाभी: भैया दो कोफ़ी देना...
ढाबेवाला: वो... ये... है न... आगे... वो सब... अभी खुला नहीं... मैं... हा हा बन जायेगी... आगे... यहाँ... नहीं अंदर... हा हा... बैठिए... हा हा कोई बात नहीं खड़ी रहिए... बैठेंगे तो... मेरा मतलब है....
भाभी: हा हा हा... लड़की नहीं देखि क्या कभी?
ढाबेवाला: हा... मतलब नहीं.... आपके जैसे नहीं.... आप बैठिए न... मतलब है खड़ी रहिए... जो आपको ठीक लगे...
भाभी: क्या करू बोल बैठु... के खड़ी रहूँ?
ढाबेवाला: ज... जो आपको ठीक लगे... मेमसाब...
भाभी: तू क्या चाहता है?
ढाबेवाला: मैं...बस... बैठिए न... नहीं नहीं खड़ी रहिए...
भाभी: हा हा हा... सकल तो देख अपनी... हा हा हा...
भाभी हँसी तो मम्मे थोड़े बाहर को निकल ने की कोशिश करने लगे... निप्पल के आजुबाजु के रिंग तक तो उनका दाया मम्मा साफ़ बाहर निकल पड़ा था... भाभी ने उसे ठीक करने की कोशिश की, तो थोड़ी हवा आई उसमे निचे से शर्ट थोडा उठ गया तो चूत के हलके से दर्शन होने लगे... ढाबेवाला तो समझ ही नहीं पा रहा था के आगे करे क्या? मतलब हालत उनकी खस्ता हो गई थी... नज़रे कहा गाड़ के रखे? मम्मो पर या चूत पर? ढाबेवाला हल्का काले रंग का और ये भाभी मस्त गोरी चिट्टी...
भाभी: कोफ़ी बना रहे हो के जाउ?
ढाबेवाला: अरे रुको रुको... बना रहा हूँ... बस... हा...
भाभी: हा हा हा... अभी झांखना बंद करो... और काम करो.. क्या नाम है तुम्हारा?
ढाबेवाला: भोलू...
भाभी: भोलू... जरा भी भोला नहीं है तू... कहा कहा नज़रे जमा के रख रहा है... काम कर अपना... मेरे पति यही है... आते ही होंगे...
भोलू: अरे मेमसाब... मैं... अपना... पर आप ने... कपडे... पर... ठीक है... माफ़ कीजिए....
वो नीची मुंडी करके अपना काम करने लगा पर तिरछी नज़र से तो वो भाभी के हुस्न को पि रहा था... कोफ़ी बनाने पे उनका ध्यान ही नही था... दूध की थैली ली पर दूध काटने गया और फर्श पे गिर गया... पोछा मारना चाह रहा था और जाड़ू से सफाई कर रहा था... गैस पर बर्तन जो रख्खा था वो सिर्फ पानी उबल रहा था... नमक लिख्खा था फिर भी डाल दिया... दूध की दूसरी थैली आधा निचे आधा अंदर... वो क्या कर रहा था... उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था... भाभी उसे देख देख कर हस रही थी के अचानक भाभी का हाथ शर्ट से छूटा और भाभी के मम्मो की स्पस्ट घाटी के साथ साथ... दो सेकेण्ड के लिए चूत के दर्शन हो गए... ये तो अचानक ही था वो मुझे भाभी के हावभाव से पता चला....
भोलू: मेमसाब अभी लोग आना चालू करेंगे... जल्दी से कोफ़ी पीके चलते बनिए... प्लीज़...
भाभी: तू कोफ़ी भी तो कहा बना रहा है... इतना क्या शरमा रहा है?
भोलू: वो... मेमसाब... है न?
भाभी: सब ख़राब कर रहा है... सीधा सीधा बोल क्या है?
भोलू: आप ऐसे एक कपडे में हो इसलिए मेरा ध्यान वहा से हट नहीं रहा है... आपके पास कपडे नहीं है क्या? क्या हुआ कुछ हुआ क्या? ये हाइवे में ऐसा कभी कुछ गलत नहीं हुआ पहले...
भाभी: तो तू क्या चाहता है... पुरे कपडे पहन के आउ? तो मज़ा आएगा?
साली ने अब लाइन देना स्टार्ट किया तो ये तो वैसे भी ढाबेवाला था... उनकी भाषा को तो कोई कैसे पहोच पाये?
भोलू: ऐसे नंगी घुमोगी तो किसीका ध्यान कही पे भी भटकता रहेगा... क्या खाक काम में मन लगा रहेगा... हादसे ऐसे ही हो जाते है...
भाभी: वाह... मुझे जैसे कपडे पहन ने हो ऐसे पहनू... तू कौन होता है बोलने वाला?
भाभी ने उनके हावी होने से पहले खुद को हावी कर दिया... भोलू चुप चाप काम करने लगा... वो अकेले अकेले बोले जा रहा था...
भोलू: पहले बोले के सीधा बोलो तो सीधा बोल दिए... फिर जब सीधा बोले तो मिर्ची लग गई... खुद अधनंगी घूम रही है और मुझे ज्ञान दिए जा रही है... मैं भी मर्द हूँ... भले अच्छा हु पर नियत नही बिगड़ेगी क्या?
भाभी सुन तो सब रही थी पर कुछ नहीं सुनने का नाटक कर रही थी... भाभी हलके से गैस के उस और थी वो साइड से होकर अंदर आने लगी... भोलू अंदर की और जाने लगा...
भोलू: मेमसाब आपके पति आजायेंगे और हमारे ग्राहक भी... एक तो दूसरा आदमी भी आज छुट्टी पर है... आप बाहर खड़े रहे... गाडी में चले जाए... चाय आपको वही दे जाऊँगा... कितना नुकसान कर दिया मैंने धंधे के खोलते ही...
वो अब अपने काम पर लग चूका था... बात को भाभी भी आगे बढ़ा नहीं रही थी... ढाबेवाले का नुकसान मुझे भरपाई करवाना था भाभी से... मैं अब आया...
मैं: क्या डार्लिंग, बिना कपड़ो के ही बाहर आ गई...
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