RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
चाची: अरे दीदी ये देखो, ये निशान कैसा है, पैदा हुआ था तब तो नही था.., सबने देखा कि बच्चे के दाए वक्ष के नीचे एकदम गोल आकार में, उस समय के 1 रुपये के सिक्के के बराबर का काला निशान था जो उस देवदूत की छड़ी के कारण बन गया था..
पारखी जानकी लाल समझ गये कि इसकी वापसी असाधारण है, और कुच्छ विशिष्ट तो ज़रूर हुआ है इसके साथ.
गर्भधान के समय, पद्मावती ने जो गर्भ-पात करने के उद्देश्य से उपाय किए थे उनके दुष्प्रभाव के कारण बच्चे को गर्भ में ही पांडु रोग (जानडीश) हो गया, नतीजा उसका शरीर ज़रूरत से ज़्यादा कमजोर और पीला पड़ गया था.
बड़ा परिवार, औरतों की कमी नही थी घर में बच्चे की देखभाल के लिए, लेकिन इस बीमारी का क्या किया जाए.., दिखाया वैद-हकीमों को.
एक तो वैद उनके अपने ही मोहल्ले के भाई, जो उम्र में जानकी लाल के बड़े भाई के बराबर थे, ज्योतिष् के विद्वान, लग गये ग्रह नक्षर्तों की गडना करने में, उन्होने दोनो समय के हिसाब से देखा, .. पहले का जब उसका जन्म हुआ, और बाद का जब उसमें दुबारा प्राण आए…
जानकी लाल…! तुम्हारा बच्चा बहुत कठिन काल में पैदा हुआ है, अगर इसके जन्म के समय से देखा जाए तो ये 6 साल तक ऐसा ही अस्वस्थ रहेगा,
लेकिन अगर बाद के समय के हिसाब से सब कुच्छ हुआ तो 6 महीने के बाद ये एकदम स्वस्थ हो जाएगा, तब तक तुम कितने ही जतन कर्लो ये ठीक नही हो पाएगा.., वैसे और कोई चिंता का विषय नही है.
वैद जी आगे बोले…, और एक खास बात है, कुच्छ ही सालों के बाद तुम में से किसी को भी इसकी परवाह करने की ज़रूरत नही पड़ेगी, उल्टा ये सब के लिए लाभकारी सिद्ध होगा..
घर में खुशिया वापस आचुकी थी, सभी खुश थे, बच्चे का नामकरण बड़ी धूम-धाम से हुआ, पंडितजी ने उसका नाम अरुण रखा….
इधर सारा परिवार नवजात शिशु के नामकरण की खुशियाँ मना रहा था उधर चाचा रामसिंघ अपनी सेट्टिंग प्रेमा के साथ अपने घर की खुशियाँ शेयर कर रहे थे…
लंबे कद की 5’6” प्रेमा गोरी चिट्टि इकहरे बदन की मालकिन, बड़ी ही सुंदर थी, कहीं भी एक कतरा मास का एक्सट्रा नही था उनके मादक शरीर में सिवाय जहाँ होना चाहिए..
उठे हुए एकदम सीधे कड़क 32 के चुचे, नीचे एकदम सपाट पेट, पतली 24 की कमर, थोड़ी सी पीछे को उठी हुई 30 की गान्ड एकदम ठोस गोल-गोल, हल्की सी चल में थिरकन लिए हुए, कुलमिलाकर विशुद्ध देहाती कड़क माल…
वैसे तो वे रिस्ते में रामसिंघ की चाची लगती थी लेकिन उनसे भी 4 साल छोटी ही थी, पर कहते हैं ना कि, उपर-उपर चाची, नीचे गैल खुदा की.
रामचंद काका का व्यः उनकी अधेड़ उम्र में जाके हुआ था, और प्रेमा शादी के समय 18 की भी नही थी, अब ऐसे जोड़े का जो अंजाम होना था वही हुआ..
6-8 महीने तो वो काका के लंड से काम चलती रही, वैसे तो रामचंद काका लंड-धरी थे 8” का मोटा तगड़ा लंड था उनका, जिसने काकी की चूत की दीवारे रगड़ रगड़ के खोल दी थी..
लेकिन जैसे-2 उनकी चूत रवाँ हुई, अब उनको दिन रत लंड दिखाई देने लगा, इधर काका का मामला ठंडा पड़ने लगा और वो मुश्किल से 1 या 2 बार ही चोद पाते थे, कभी-कभी तो वो प्यासी ही रह जाती थी.
रामचंद काका के खेत, रामसिंघ जी की ज़मीन से लगे हुए ही थे, काका ने अपने खेतो पर ही एक घर बना रखा था, ज़्यादातर वो वहीं रहते थे..
कुछ दिनो बाद काकी का भी खेतों पर आना-जाना शुरू हो गया था..,
शायद आप में से कुछ लोगों को पता हो, पुराने समय में गाओं के लोग धोती पहनते थे वो भी बिना अंडरवेर के…
अगर लंबा कुर्ता ना पहना हो तो आधा खड़ा लंड भी इधर से उधर पेंडुलम की तरह झूलता दिखाई देता था..
6’3” लंबे, 48-50” चौड़ी छाती, ज़्यादा गोरे तो नही लेकिन साफ गेहुआ रंग रामसिंघ एक पूर्ण मर्द थे,
वैसे रामसिंघ खेती के कामों में ज़्यादा भाग नही लेते थे, उनका काम सिर्फ़ घर-बाहर की ज़रूरतों की व्यवस्था करना ही होता था, फिर भी यदा-कदा वो खेतों पर चक्कर मारने आते थे,
एक और संयोग ये था कि उनकी दूसरी ज़मीन जो मैं चक से करीब 1 किमी दूर थी उसका रास्ता भी रामचंद काका के खेतों वाले घर के आगे से होकर ही था,
सो अक्सर आते-जाते, प्रेमा काकी बड़ी कामुक नज़रों से रामसिंघ को देखती रहती, लेकिन वो अपने रिस्ते की मर्यादा में उन्हें हमेशा इज़्ज़त से देखते थे..
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