RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
रामसिंघ को पूरी बात समझ में आ गई कि प्रेमा क्यों घर छोड़ के चली गयी है, फिर वो थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करके अपने घर आए और खाना वाना खा पीकर रामचंद काका के पास पहुँचे…
राम राम काका….. राम राम बेटा राम सिंग..., आओ-आओ कैसे हो, और इस वक़्त कैसे आना हुआ… ?
रामसिंघ- क्या काका, हमें आप अपना हितेशी नही समझते क्या..?
काका- क्यों ऐसा क्यों बोल रहे हो …?
रामसिंघ- गाओं में चर्चा है कि, ककीिई…मतलबव....नाराज़ होके…. चली गई हैं अपनी माँ के घर… थोड़ी हिचकिचाते हुए पुछा…
काका – हां यार… पता नही क्या हुआ उसको एक साथ, में खेत में काम कर रहा था, दोपहर में आई मेरे पास और झगड़ा करने लगी, कि तुम्हें सिर्फ़ काम-काम और सिर्फ़ काम ही दिखता है, घर में नई बीबी है उसकी कोई फिकर नही है…
मेने उसे बहुत समझाने की कोशिश कि और पुछा कि बात क्या है, लेकिन उसने मेरी एक ना सुनी और भनभनाते हुए वहाँ से चली आई,
पीछे-2 में भी आया और उसको समझाने लगा, लेकिन वो तो ज़िद पकड़ के बैठ गई कि अब मुझे तुम्हारे साथ नही रहना है, में अपने घर जा रही हूँ.. और खबरदार अगर मुझे लेने आए या किसी और को भेजा तो में या तो उसका कतल् कर दूँगी या खुद मर जाउन्गि.
मेरे तो हाथ-पैर फूल गये और डर के मारे मैं उसे रोकने की कोशिश भी नही कर पाया फिर, …थोड़ा रुक कर हताशा भरी आवाज़ में बोले…
अब क्या होगा बेटा…? हमारी तो कुछ समझ में नही आरहा… छोटे भाई की भी शादी नही हो पा रही, और अगर ये भी नही आई तो हमारा तो वंश ही डूब जाएगा….
रामसिंघ- आप चिंता मत करो काका… में कुछ हल निकालता हूँ…
काका – क्या कर सकोगे अब तुम…? अगर तुम्हारे पास कोई रास्ता है, ऐसा हो गया तो जीवन भर हम तुम्हारे अहसानमंद रहेंगे.. राम सिंग…, लेकिन ये होगा कैसे..?
उसकी आप चिंता मत करो.., जानकी भैया की ससुराल पड़ोस में ही है, और वहाँ के कुछ जाट जिनका आस-पास अच्छा प्रभाव है, वो मुझे जानते हैं, और बहुत मानते भी है, उनकी बात कोई नही टाल सकता…
लेकिन इससे तो बात फैल जाएगी, और हमारी कितनी बदनामी होगी, ये तो सोचो…
अरे काका… उसकी आप चिंता मत करो, में बात को सीधे-2 नही करूँगा, आप बेफिकर रहो और भरोसा रखो… सब ठीक हो जाएगा…
दूसरे दिन सुबह-2 राम सिंग चल दिए काका की ससुराल, और 2-3 घंटे की पैदल यात्रा के बाद करीब 10 बजे वो उनकी ससुराल में थे..
उधर काका की ससुराल में, प्रेमा घर पहुँची, तो उनके माँ-बाप भाई, सोच में पड़ गये, कि ये कैसे अकेली आ गयी वो भी सारे कपड़े-लत्ते समेट कर और सवालों की बौछार कर दी…
बाकी सब को तो उन्होने ज़्यादा कुछ नही बताया, लेकिन अकेले में अपनी माँ को सारी बात बता दी कि वो वहाँ क्यों खुश नही है, और अब वो नही जाएगी वहाँ पर…, और अगर तुम भी नही रखोगे तो में यहाँ से भी कहीं और चली जाउन्गी..,
माँ को लगा, कि अगर ज़्यादा कुछ इसको कहा तो बात और बिगड़ सकती है इसलिए वो चुप हो गयी थी…
राम सिंग जब प्रेमा के घर पहुँचे तो उस समय घर पर उनकी माँ और वोही थी, बाकी लोग खेतों में काम कर रहे थे…,
जैसे ही प्रेमा की नज़र राम सिंग पर पड़ी, मन ही मन वो बहुत खुश हुई, लेकिन प्रकट रूप से वो भड़क कर गुस्सा दिखाते हुए बोली…..,
क्यों आए हो यहाँ? उसी बुड्ढे ने भेजा होगा तुम्हें? है ना? साले की गान्ड में दम नही था तो व्याह क्यों किया? नही जाउन्गी अब वहाँ.
राम सिंग थोड़ा मुस्कराते हुए बोले….,, अरे.. अरे.. काकी थोड़ा साँस तो लेने दो, और घर आए मेहमान को ना चाइ, ना पानी कुछ नही पुछा और चढ़ दौड़ी आप तो मेरे उपर कम-से-कम सुसताने तो दो मुझे…
प्रेमा की माँ… आओ, आओ बेटा बैठो, अरे प्रेमा तेरा गुस्सा उन लोगों से है, कम-से-कम इनकी थोड़ी बहुत आवभगत तो कर, चाइ-पानी पिला…
चाइ पानी ख़तम करने के बाद, प्रेमा अपनी माँ से बोली…., माँ तुम थोड़ा खेतो की तरफ घूम के आओ, मुझे इनसे अकेले में बात करनी है…
माँ जब बाहर चली गयी, तो प्रेमा तुरंत लपक कर राम सिंग के हाथ पकड़ कर बोली… क्यों आए हो अब यहाँ ?
देखो काकी..., आपको ऐसा नही करना चाहिए था, उनकी नही तो कम-से-कम आपने माँ-बाप की मान मर्यादा का तो ख्याल करना चाहिए था ..,
अच्छा !! और में अपनी जवानी जो अभी ठीक से शुरू भी नही हुई है, उसे ऐसे ही बर्बाद कर लूँ..? तुम भी जानते हो वो बुड्ढ़ा मुझे कितने दिन सुख दे पाएगा…? कान खोल कर सुनलो… उसके भरोसे तो में वहाँ नही रह सकती अब…
तो फिर क्या सोचा है आगे का…? मन टटोला राम सिंग ने प्रेमा का..
अभी तो कुछ नही, लेकिन कोई ना कोई तो मिलेगा, जो मेरे लायक हो और खुश रख सके ..
तो और कोई रास्ता नही है, जिससे आप काका के पास वापस लौट सको…., जानते हुए भी पुछा रामसिंघ ने…
प्रेमा भड़क कर…. रास्ता था तो..ओ.. , वो तुमने बंद कर दिया… में तुम्हें शुरू से ही पसंद करती थी, और सोचा था इसी के सहारे पड़ी रहूंगी यहाँ अगर ये अपनाले तो… लेकिन सब की इच्छानुसार सब कुछ तो नही होता है ना, … तो…अब..,
रामसिंघ- मुस्कराते हुए… में ये कहूँ कि वो रास्ता अभी भी खुल सकता है तो…..
सचह…. ! सच कह रहे हो तुम…. ओह्ह्ह… रामू तुम नही जानते, में तुम्हे किस हद तक पसंद करती हूँ… यह कह कर काकी, रामसिंघ के सीने से छिप्कलि की तरह चिपक गयी…
अगर तुम चाहो, तो जीवन भर में उस बुड्ढे के लूंज से खूँटे से बँधी रहूंगी और कोई शिकायत भी नही करूँगी, लेकिन तुम्हें वादा करना होगा, कि तुम मुझे हमेशा खुस रखोगे अपने इस औजार से… ये कह कर उन्होने उनके लंड को धोती के उपर से ही कस के मसल दिया..
वादा तो नही कर सकता काकी…ईई.., आह… ससुउउहह…, हां.. कोशिससश..आ.. करूँगा की आपको ज़्यादा तड़पना ना पड़े कभी, और ये कह कर उन्होने उसके कड़क 32” चुच्छे अपने कठोर और बड़े-बड़े हाथों से कस कर मसल दिए….
आआययईीीई…… रामुऊऊउ, क्या करते हो धीर्रररीए रजाअ…, दर्द होता है… और उचक कर रामसिंघ के होठों पे टूट पड़ी… किसी भूखी शेरनी की तरह….मानो उन्हें वो कच्चा ही चवा जाएगी….
प्रेमा वासना की आग में तड़प रही थी, वो रामसिंघ के होठों को अपने मुँह में भर कर लगभग चवाने सी लगी, उधर रामसिंघ ने भी अपना मुँह खोल दिया और अपनी मोटी लपलपाति जीभ को प्रेमा के मुँह में ठूंस दिया…,
एक दूसरे की जीभ आपस में कुस्ति करने लगी, खड़े-खड़े ही दोनों के शरीर काम वासना के आग से भभकने लगे…
कितनी ही देर वो एक-दूसरे में गूँथे रहे… प्रेमा किस तोड़ते हुए अपनी नशीली आँखें राम सिंग की आँखों में डाल के बोली…..
ऊहह… रामू में बहुत प्यासी हूँ, भगवान के लिए मेरी प्यास बुझा दो ना….
अरे मेरी जान... काकी…. अब देख में तेरी प्यास कैसे बुझाता हूँ… और उसके ब्लाउज को झटके से फाड़ दिया….और उसकी गोल-2 चुचियों जो ठीक रामसिंघ के हाथों के माप की थी हाथों में भर के ज़ोर से मींज दिया..
ऊओह…. ससिईइ… आअहह मेरे राजा, अब तो काकी सिियहह… कहना बंद कर्दे… में तुम्हारी काकी दिखती हूँ.?. और उसने रामू के लंड को धोती से बाहर निकाल लिया…
8”+ लंबा और 3.5” मोटा लंड जब प्रेमा ने हाथ में लपेटा, जो पूरी तरह हाथ में नही आया, एकदम कड़क, बबूल के चिकने और तेल पिलाए हुए डंडे की तरह,
हाई… मेरी रानी, तू तो अब मेरी काकी ही क्या, सब कुछ हो गई….अब ये दरवाज़ा तो बंद कर्दे रानी…. फिर देख तुझे कहाँ-कहाँ की सैर कराता हूँ अपने खुन्टे पे बिठा के….
प्रेमा ने लपक के दरवाजे को अंदर बंद करके कुण्डी लगा दी….
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