RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
समय बीतता गया, और एक दिन बड़े भाई स्वर्गवासी हो गये, बाप के मरते ही, उनके लड़ाकों ने बँटवारा कर लिया, और अपने हिस्से की ज़मीन और आधा घर ले लिया.
आधा घर इसलिए उन्हें मिल गया क्योनि छोटे भाई जो अपनी ससुराल में घर जमाई बन गये थे, उन्होने अपने हिस्से का घर भी उन नालयक भतीजों के नाम कर दिया..
संतोषी सदा सुखी, इस बात पे कायम जानकी लाल ने अपने छोटे भाई को समझा बुझा के शांत रहने के लिए मना लिया.
दोनो भतीजों ने अपनी मन मर्ज़ी शादियाँ भी कर ली, इसमें थोड़ा समय और आगे बढ़ गया. समय का पहिया कभी रुकता नही, वो सदैव चलता ही रहता है..
लेकिन कहते हैं ना कि, आग एक बार भड़क जाए, तो कुछ देर के लिए शांत ज़रूर हो जाती है, लेकिन बुझती तभी है, जब सब कुछ स्वाहा कर देती है…
और आग तो कभी बुझी ही नही थी...सुलग रही थी लगातार…..
भूरे लाल 6 फीट लंबा, मजबूत कद काठी का गोरा चिट्टा जवान था, वहीं जीमीपाल शरीर में उससे भी तगड़ा लेकिन थोड़ा साँवले रंग का था, भैसे की बराबर ताक़त थी जीमीपाल में, अपनी ताक़त का बड़ा घमंड भी था दोनो भाइयों में.
लेकिन पता नही उनकी ताक़त चाचा रामसिंघ और उनके दोनो बड़े बेटों के सामने फीकी पड़ जाती थी, लाख कोशिसों के बावजूद वी उनका कुछ नही बिगाड़ पाते थे, झगड़े होते रहे, इन सबके बीच जानकी लाल की भमिका एक बीच-वचाब के मधय्स्थ की ही रहती.
वो थोड़ा शांत स्वभाव के व्यक्ति थे, लेकिन पक्ष वो चाचा और उनके बेटों का ही लेते थे, क्योंकि अपने बड़े भाई के बेटों की आदतें उन्हें भी पसंद नही थी.
जानकी लाल के छोटे बेटे ब्रिज बिहारी और चाचा के छोटे बेटे यशपाल दोनो ही दूसरे शहर में रह कर पढ़ाई कर रहे थे,
चाचा के भी दोनो बड़े बेटों की शादियाँ हो चुकी थीं.
जीमीपाल की पत्नी उस समय शादी के बाद अपने मायके में गयी हुई थी, दोनो भाइयों चाचा की भाषा में दुर्योधन और दुशाशन का षड्यंत्र रंग लाने वाला था.
सेप्टेंबर का महीना था, बारिश बंद हो चुकी थी, लेकिन बाहर के वातावरण में रात के वक़्त थोड़ी ठंडक आ चुकी थी.
जैसा कि पहले लिखा जा चुका है, इनका घर बहुत बड़ा था, चार हिस्सों में बँटा हुआ, बीच में एक बहुत ही बड़ा आँगन, घर के बाहर पूरी लंबाई की बारादरी और उसके आगे बहुत बड़ा सा चबूतरा.
सारे घर के पुरुष या तो उस बारादरी में सोते थे या चबूतरे के उपर चारपाई बिच्छा कर सोते थे.
शड्यंत्रा की रात, बड़ी देर तक वो तीनों भाई, कुछ मशवरा करते रहे, चौथा चूँकि छोटा था, 18 साल की एज थी, उसको शामिल नही करते थे.
जिस समय का ये वाकया है, उस समय अरुण कोई 4 या 5 साल का था.
इन तीनों को छोड़ कर वाकी सभी लोग अलग-अलग चबूतरे पे सोए हुए थे, चाचा रामसिंघ बारादरी में एक किनारे चारपाई डालकर सोते थे.
देर रात जीमीपाल और दोनो भाई सोने के लिए अपने हिस्से के घर से बाहर आए, कॉन जनता था कि होनी क्या रंग दिखाने वाली है.
जीमीपाल के बिस्तर के अंदर एक तलवार छुपि हुई थी, उसका प्लान था, कि आज रात सुबह के प्रहर चाचा का कत्ल करके भाग जाएगा, थोड़ी देर में 2 किमी पे रेलवे स्टेशन था, जहाँ से सुबह 4 बजे एक ट्रेन उसकी ससुराल की तरफ जाती थी, उससे निकल भागेगा, सब जानेन्गे की वो तो ससुराल गया है.
प्लान के मुतविक, जीमीपाल के 4 साथी, गाँव के बाहर छुपे बैठे होंगे, अगर कोई ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो भी जाती है, कि वो फँस जाए तो वो लोग उसे बचा के निकल ले जाएँगे, ये बॅक-अप प्लान भी बना के रखा था.
थोड़ी ठंडी की वजह से चाचा रामसिंघ ने एक रज़ाई अपने सिर तक ओढ़ रखी थी,
ढाई बजे रात का वक़्त था, घनघोर अंधेरी काली रात, जीमीपाल अपने बिस्तर से उठा, बिस्तर गोल किया और घर के अंदर रखा, एक बॅग लटकाया कंधे पर जिसमें उसके कपड़े बगैरह थे.
सभी जानते हैं, 2- ढाई का वक़्त ऐसा होता है जिसमें हर आदमी गहरी नींद में होता है.
हाथ में नंगी तलवार लिए, चुपके से वो बारादरी जो चबूतरे के लेवेल की थी, और ज़मीन से कोई 2-21/2 फीट उँची थी. चाचा की चारपाई बारादरी में किनारे पर ही थी, सो उनकी चारपाई के बगल में पहुँचा.
उसने देखा कि चाचा तो रज़ाई ओढ़ के सो रहे है, अगर रज़ाई हटाता हूँ तो जाग सकते हैं, ताक़त का घमंड था ही, सोचा पूरी ताक़त से तलवार का बार करूँ तो गले तक बार कर सकती है.
ये सोच कर उसने तलवार उठाई और भरपूर ताक़त से रज़ाई के उपर से ही बार किया,
पहले बार में रज़ाई थोड़ा शरीर से उठी हुई थी सो उसका बार शरीर में चोट नही पहुँचा पाया,
लेकिन चाचा की नींद टूट गयी, फिर भी उन्होने अपना पूरा मुँह नही खोला सिर्फ़ आँखों तक रज़ाई नीचे की और दूसरे बार का इंतजार किया,
जब उसने देखा कि पहले बार का कोई ज़्यादा असर नही हुआ है, तो फिर से अपनी पूरी शक्ति लगा कर बार किया,
लेकिन तब तक चाचा चोकन्ने थे, और जब तक तलवार उन्हें कोई हानि पहुचाती, उन्होने दोनो हाथों से रज़ाई समेत तलवार को जकड लिया, फिर भी इस बार तलवार का बार अपना कुछ तो काम कर गया,
तलवार रज़ाई को चीरती हुई, उनकी गर्दन की वजे, उनकी ठोडी (चिन) में घुस गयी, उनके मुँह से एक दर्दनाक चीख निकल गयी.
भले ही जीमीपाल कितना ही ताक़तवर सही लेकिन वो चाचा के द्वारा जकड़ी हुई तलवार को छुड़ा नही पाया, और चीख सुन कर और लोग भी जाग गये.
हड़बड़ा कर वो तलवार वहीं छोड़ कर भाग लिया.
आनन फानन में सभी लोग उठकर उनके पास आ गये, देखा तो एक तलवार नीचे पड़ी है और उनकी चिन से खून निकल रहा है,
वैसे तो उन्होने जीमीपाल को पहचान ही लिया था, दूसरे उस तलवार पे भूरे लाल का नाम खुदा हुआ था, बात वहीं सॉफ हो गयी, की जीमीपाल कत्ल करने के इरादे से आया था और नाकाम हो कर भाग गया है.
इधर भूरे लाल बात खुलती देख, पेन्तरा बदल कर चाचा के पैरों में गिर पड़ा, और बोलने लगा...
चाचा कसम ख़ाता हूँ, मुझे इस बारे में कुछ पता नही है, आज से वो मेरे लिए मर गया, में उसे अब से इस घर में घुसने भी नही दूँगा वग़ैरह-2.
फिर भी रिपोर्ट तो करनी ही थी, सो थोड़ा देसी इलाज से खून को रोका और कुछ मलहम पट्टी करके सभी लोग कस्बे के थाने पहुँचे, वहाँ पोलीस ने डॉक्टर बुला के मेडिकल कराया, और रिपोर्ट लिखने का सिलसिला शुरू हुआ,
इन सब बातों में लगभग सुबह के 6 बज गये, चाचा रामसिंघ, उनके दोनो बेटे और उनके बड़े भाई जानकी लाल थाने में ये सब कार्यवाही करा रहे थे,
इतने में रेलवे पोलीस का एक आदमी थाने में आया और उसने खबर दी कि एक आदमी स्टेशन से पश्चिम की ओर ट्रॅक पर मरा पड़ा है, और उसके शरीर पर अनगिनत घाव हैं.
तुरंत थाने की एक जीप दौड़ी, और मौकाए वारदात से लाश लेकर आए, और लाकर उसे थाने में रखा,
जैसे ही सबकी नज़र उस लाश पर पड़ी, सबकी आँखें फटी की फटी रह गयी….
भूरे लाल समेत वहाँ मौजूद सभी लोगों की चीख निकल पड़ी उस लाश को देखकर,
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