RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मेरे नन्हे दिमाग़ ने काम करना शुरू किया, मैने मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि मरना तो है ही क्यों ना कोशिश की जाए.
स्कूल में मास्टर जी ने पढ़ाया था, कि आदमी को मरते दम तक प्रयास करते रहना चाहिए.
मेरे हाथ सबसे नज़दीक पड़ी एक लकड़ी पर जाम गये, ये लकड़ी एक लाठी के बरार मोटी और तकरीवन 5 या 6 फीट लंबी थी, और उसका एक सिरा वाइ की शेप में था,
में अपने पैरों के पंजों पर लकड़ी को कस के पकड़ के बैठ गया, लेकिन लकड़ी को उठाया नही.
लक्कड़भग्गा अपना मुँह झाड़ के दुबारा पलटा, इस बार उसने और गुस्से में मुझ पर हमला किया,
जैसे ही वो मुँह फाड़ कर मेरे उपर झपटा, झटके से में लकड़ी लेके उठा, और उसका वाई शेप वाला सिरा उसके मुँह में घुसेड दिया अपनी पूरी शक्ति और साहस के साथ.
वाई वाला सिरा, उस लक्कड़भग्गे के मुँह को और ज़्यादा खोलता चला गया, उसकी शक्ति छ्छीड हो गयी, उपर से मैने और ताक़त लगा उसे पीछे धकेला.
लक्कड़भग्गा गान्ड के वाल पीछे गिरा, फ़ौरन मैने लकड़ी घुमा कर उसके जबड़े पर कस्के रसीद कर दी.
लकड़ी के भरपूर बार से लक्कड़भग्गा ज़मीन पर दो-तीन पलटी खा गया,
उसका हौसला जबाब दे गया, कुछ देर के लिए वो ऐसे ही पड़ा रहा, मौका देख कर मैने दो-तीन बार और कस्के कर दिए उसके सर पर.
वो भयानक काले मुँह वाला जीव, निर्जीव सा पड़ा रह गया,
जब मुझे लगा कि अब ये उठके पीछे से बार करने की स्थिति में नही है, तब में वहाँ से सर पे पैर रखके भागा.
में बेतहासा घर की ओर भागे जा रहा था, कि थोड़ी दूर पर ही गाँव की तरफ से बहुत सारे लोग लाठी, डंडा लेके भागते हुए उधर को ही आते हुए दिखे.
में समझ गया कि ये लोग मुझ को बचाने के लिए आरहे हैं, में वहीं रुक गया और उन लोगों का इंतजार करने लगा.
सभी घरवाले, साथ में कुछ और मोहल्ले वाले भी थे, पास आए, और मुझे सही सलामत देखकर तसल्ली हुई.
पुच्छा की क्या-क्या हुआ, मैने सब बात बताई,
उस जगह गये तो देखा की वो लक्कड़भग्गा अभी भी वही पर मुँह से हल्की-2 गर्र्रर, गार्रररर की आवाज़ें निकालते हुए पड़ा था.
सभी लोगों ने मुझे शाबाशी दी, और मेरे भाई-बहन को बहुत डांता, मैने कहा कि इसमे इनकी कोई ग़लती नही, वो तो अचानक से आ गया,
माँ ने मुझे अपनी छाती से चिपका लिया और बलाएँ लेने लगी.
उसी दिन अदालत से लौटते समय जैल के 6 महीनों में चाचा के दूसरे बेटे मेघ सिंग की दोस्ती एक गुंडे से हो गयी थी वो मिल गया.
उसने कत्ल की सारी सच्चाई बताई, कि जीमीपाल का मर्डर क्यों और किसने किया.
अगली सुनवाई में उसे कोर्ट में गवाह के तौर पर पेश किया गया, और वहाँ उसने जो सच्चाई बयान की वो कुछ इस प्रकार थी ……
विश्वा और जीमीपाल की कॉलेज के दीनो से खास दोस्ती थी, कारण था दोनो की आदतें एक-जैसी थी, वो कहते हैं ना कि, जैसे को तैसा मिल ही जाता है.
दोनो ही गुंडे टाइप थे तो दोस्ती तो लाज़िमी ही थी, धीरे-2 वो दोस्ती गहरी और गहरी होती गयी,
जीमीपाल विश्वा के घर भी आने-जाने लगा, यहाँ तक कि कॉलेज ख़तम होने के बाद भी उसका विश्वा के घर आना-जाना लगा रहा,
विश्वा की एक छोटी बेहन थी, जिसकी आँखें जीमीपाल से लड़ गयी, वो उसके मर्दाने शरीर पर मर मिटी,
जीमीपाल की शादी के बाद भी उनका मिलना जुलना बंद नही हुआ, इसी चक्कर में वो प्रेग्नेंट हो गयी,
एक दिन वो चुदाई कर रहे थे, कि विश्वा ने उन्हें देख लिया, लेकिन सामने नही आया, और चुपके से उन्हें देखता रहा,
चुदाई के बाद विश्वा की बेहन ने बॉम्ब फोड़ा, कि वो उसके बच्चे की माँ बन गयी है,
जीमीपाल हड़वाड़ा गया, कुछ सोच विचार के उसने कहा कि तुम अबॉर्षन करा लो, में अब तुमसे शादी तो कर नही सकता.
वो सुनने को तैयार नही हुई, तो वो उसके साथ डाँट-दपट करके, गाली-गलोज करके चला आया,
विश्वा को ये बात नागवार गुज़री, और उसने मन ही मन जीमीपाल को सबक सिखाने की ठान ली,
बेहन को उसने समझा बुझ के, उसका अबॉर्षन करा दिया, लेकिन जीमीपाल को ये जाहिर नही होने दिया कि वो उसकी करतूत से वाकिफ़ है,
मौका विश्वा के हाथ लग गया, जब जीमीपाल, भूरे चाचा के मारने का प्लान बना रहे थे, तब उन्होने सोचा कि अगर किसी तरह पकड़े जाने का खतरा पैदा हुआ तो कोई तो चाहिए जो बचा सके,
फ़ौरन उन दोनो को विश्वा का नाम याद आया, उन्होने उससे बात की तुम सिर्फ़ अपने दो-तीन दोस्तों के साथ गाँव के बाहर छिप के नज़र रखना,
वैसे तो ये नौबत आएगी ही नही, क्योंकि रात के इतने वक़्त आदमी को उठाने में भी समय लगता है, तो भीड़ होने के चान्स कम हैं.
दिखावे के लिए विश्वा ने थोड़ी ना-नुकर की, पर अंत में मान गया..
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