RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मैने चिंटू से उस खोली का खाका लिया, और अपना प्लान समझाया, मे और धनंजय खोली के पीछे से जाके छिप जाएँगे, हमारे साथ मोनू होगा, वो पीछे से अशरफ को आवाज़ देगा.
अशरफ जब पीछे की ओर आएगा तो दूर से ही ये जानने की कोशिश करेगा कि वो फिर से यहाँ क्यों आया है, और पीछे से क्यों?
मोनू उसको बोलेगा, कि माल कम पड़ गया, हम चार लोग थे इसलिए, और कुछ देर पहले पोलीस जीप को खड़ा देखा, इसकी वजह से कोई देख ना ले पीछे से आना पड़ा, समझ गये मोनू भाई.
मोनू ने हां में गर्दन हिलाई..
मैने कहा यार एक बोरी जैसा कुछ होता तो काम बन जाता, मेरे बोलते ही नॅचुरली सबने इधा-उधर नज़र दौड़ाई, थोड़ी दूर पे कबाड़ सा पड़ा था, उसमें एक फटा सा गंदा सा लेकिन काफ़ी लंबा-चौड़ा प्लास्टिक का बोरा सा मिल गया, जो शायद कोई कबाड़ इकट्ठा करने वाला फटा होने की वजह से फेंक गया होगा कचरे के साथ.
मैने उसे देखा और कहा चलेगा, अपना काम चल जाएगा इससे. हम दोनो मोनू को साथ लेके खोली के पिच्छवाड़े जाके छिप गये.
प्लान के मुतविक मोनू ने उसे आवाज़ दी, ठीक सब कुछ वैसे ही हुआ, जो मैने सोचा था.
जैसे ही अशरफ माल लेके मोनू के पास आया, मे चुप-चाप उसके पीछे से निकल कर उसके मुँह पे एक हाथ से ढक्कन लगा दिया और दूसरे हाथ से उसके कान के पीछे एक केरट मारी और वो मेरे हाथों में झूल गया.
धनंजय बोरे का मुँह खोल.. जल्दी.., अशरफ के बेहोश शरीर को फटाफट उसमें डाला, मुँह बाँध किया और डाल लिया उसे अपनी पीठ पर, जैसे पल्लेदार बोरा ढोते हैं..
लाकर पटका एक बाइक की सीट पर खुद उसे पकड़ के बैठ गया, धनंजय ड्राइविंग सीट पे, बीच में बोरा. फटाफट बाइक स्टार्ट की और चल दिए अपने हॉस्टिल की तरफ.
कपिल के साथ मोनू, और मोहन की बाइक पर चिंटू बैठा था, चूँकि हमारा हॉस्टिल जस्ट ऑपोसिट साइड में था, हमने सिटी के बाहर का रास्ता चुना, जिससे सिटी की स्ट्रीट लाइट मे बोरा देख कर किसी को शक़ ना हो.
हॉस्टिल से 1किमी पहले बाइक्स रोकी और कपिल को अपने पास बुलाया,
मे- कपिल तुम दोनो बाइक लेके जाओ हॉस्टिल और हम अपने ठिकाने पे चलते हैं, मोनू-चिंटू कुछ पुच्छे तो गोल-मोल जबाब देके समझा देना.
कपिल- कोन्से ठिकाने पे, ..?
मे- वो तुम जगेश और ऋषभ के साथ आना, उन्हें पता है..
और हां मेरे ड्रॉयर में एक टूल बॉक्स है, उसमें से मेटल कटर (कैंची जैसा) है वो, एक टॉर्च और एक बोटेल पानी लेके वहीं आना फटाफट, अब जल्दी जाओ.
वो चारों जब निकल गये, उसके बाद बाइक स्टार्ट की और चल दिए जंगल की ओर, कच्चे उबड़ खाबड़ रास्ते से होते हुए, धीरे-2 हम पहुँच गये अपने गुप्त अड्डे पर.
हमारे हॉस्टिल के पीछे से ही जंगल जैसा शुरू हो जाता है, जिसे में पहले ही डिस्क्राइब कर चुका हूँ,
उसी जंगल में तकरीबन एक-डेढ़ किमी अंदर जाके कोई बहुत पुरानी इमारत जो अब एकदम जर्जर खंडहर में तब्दील हो चुकी थी, उसकी एक भी दीवार या छत सही सलामत नही बची थी,
एक दिन हम चारों रूम मेट ऐसे ही भटकते हुए, इधर निकल आए थे, उत्सुकतावस हमने उसको थोड़ा बारीकी से चारों ओर अंदर-बाहर सब जगह घूम फिर के देखा, उसके सबसे पिछले हिस्से में कोई बहुत बड़े एरिया मे शायद कोई असेंब्ली ग्राउंड रहा होगा, उसके एक साइड की दीवार से हमें एक होल जैसा दिखाई दिया, जो नीचे ज़मीन की ओर जा रहा था.
हमने जब और वहाँ से पत्थर वग़ैरह हटाए, तो हमारी आखें खुली की खुली रह गयी, ये कोई 5 फीट चौड़ा रास्ता जैसा था, जिसके आगे नीचे को जाती हुई सीडीयाँ नज़र आई.
“आथतो घुमक्कड़ जिगसा” वाली बात, सीडीयाँ उतरते गये हम चारों, तो कोई 15-20 फीट नीचे जाके हम एक हॉल नुमा कमरे में थे, तमाम धूल, मकड़ी के जालों से अटा पड़ा था वहाँ,
सीडीयों के जस्ट सामने की दीवार में एक और गेट था, जो अब सिर्फ़ पत्थर के फ्रेम में रह चुका था, किवाड़ उसके टूट-टूटकर लटक रहे थे.
जब हम उस गेट में घुसे तो ये एक सुरंग जैसी थी, जो लगभग 10 फीट चौड़ी और कोई इतनी ही उँची होती. जिग्यासा वस हम सुराग के रास्ते चलते गये… करीब 500-600 मीटर चलने के बाद सुरंग ख़तम हुई, उसके दूसरे छोर पर भी एक दरवाजा जैसा ही था जो पत्थरों द्वारा बंद किया गया था.
पत्थरों को हटाने के बाद हम जब बाहर निकले, वाउ !! ये तो कोई पुरानी नदी रही होगी, जो अब सिर्फ़ रास्ता जैसा रह गया था, और चारों ओर घने जंगल थे.
हमने यही जगह चुनी थी अपने शिकार को रखने के लिए.
अशरफ को हमने वहीं खंडहर में बाहर ही पटक दिया, और वेट करने लगे अपने दोस्तों का.
धनंजय- इसका क्या करने वाला है तू अरुण ..?
मे- आचार डालेंगे साले का और क्या करेंगे…
धनंजय- मज़ाक नही यार…! बताना क्या करने वाला है तू इसके साथ…?
मे- धन्नु..! तेरे अंदर ये बहुत ग़लत आदत है यार…!
धनंजय- क्या…,
मे- तू हर बात में यही क्यों बोलता कि अब तू क्या करेगा, तू ये कैसे करेगा..वगैरह-2.. अरे भाई ये मेरा अकेले का काम थोड़ी ना है, जो मे ही करूँगा.
धनंजय – ओह्ह.. सॉरी यार… बता ना अब हम क्या करने वाले हैं इसके साथ..?
मे- ये हमें इस रास्ते पर आगे बढ़ने मे मदद करेगा..
धनंजय- वो कैसे… ??
मे- देखता जा…!
तब तक कपिल के साथ जगेश और ऋषभ भी आ गये, टॉर्च के ज़रिए, हम अशरफ को लेके नीचे हॉल में पहुँचे.
अशरफ अभी तक बेहोश था, हमने उसे एक खंबे के सहारे बिठाया और उसके हाथ खंबे के दोनो ओर से पीछे लाकर आपस में बाँध दिए, टाँगों को आगे लंबा करके आपस में बाँध दिया.
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