Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 01:46 AM,
#46
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
बिल्कुल ! और ये बात मुझे तुमसे एक्सपेक्टेड थी, ध्यान से सुनो, हमारे पास 4 अड्डों के अड्रेस हैं, उन चारों से हमें मुख्य अपराधी को उठाना है, मुझे नही लगता कि इस काम में हम में से 4 से ज़्यादा लोगों की ज़रूरत पड़े.

थोड़ी सी समय के हिसाब से ट्रिक लगाके काम किया जाए तो दो ग्रूप में, दो-दो के हिसाब से ये काम शांति पूर्वक 5-6 बजे तक निपट सकता है.

पोलीस की हमें परवाह करने की ज़रूरत नही है, लोगों को सिर्फ़ तमाशे से मतलब है, जैसा हम सब जानते हैं पब्लिक के बारे में.

रोहन – पोलीस की परवाह क्यों नही है..?

मे- पोलीस कहीं भी किसी मौके पर हम लोगों को नही मिलेगी, और अगर बाइ चान्स कोई एक-आध मिल भी जाए, तो उसे बोलना एसपी से बात करो.. बस.

आज शाम 4 बजे से पहले-2 सारे करप्ट पुलसीए एसपी ऑफीस में रेमंड पर पहुँच चुके होंगे, ये सब सीक्रेट प्लान है जो शायद शुरू भी हो गया होगा.

सभी एक साथ—क्या…??? क्या बोल रहा है यररर… सच में…?

मे- स्माइल के साथ.. हां.. बिल्कुल सच..!

उन चारों मुख्य बदमाशों को 5 बजे तक हमें अपने गुप्त ठिकाने तक पहुचाना ही होगा किसी भी सूरत में, 

फिर हमने ल्यूक लिया और 4-4 के दो ग्रूप बनाए, ईस्ट ग्रूप-धनंजय, सागर, मोहन, जगेश.

सेकेंड ग्रूप- कपिल, रोहन, ऋषभ और अरुण.

उसके बाद अपने-2 शिकार बाँट कर हम निकल लिए..., 
कॅंपस में दो महिंद्रा जीप थी, दोनो की चाबी ऑफीस से ली, और ग्रूप वाइज़ चल दिए अलग-अलग दिशाओं में…

थोड़ी बहुत मशक्कत के बाद हमारा आज का पहला मिशन पूरा हो गया, चारों मैं डीलरों को उठा लिया गया, हां हमारे वाले एक अड्डे पर एक चमचा ज़्यादा नौटंकी कर रहा था, अंदर जाने ही नही दे रहा था, तो ऋषभ ने उसे पेल दिया.

पता नही वो मरा या जिंदा रहा होगा, किसको फ़ुर्सत थी देखने की.

दूसरे ग्रूप में जगेश को थोड़ी चोट आ गई थी, बचते-बचाते भी एक गुंडे का चाकू उसके बाए शोल्डर को कट लगा ही गया था.

चारो गुण्डों को लाके अशरफ के साथ ही बाँध दिया गया, अशरफ को थोड़ा चाइ नाश्ता कराना नही भूले थे हम, इंसानियत का इतना तो तक़ाज़ा बनता ही है. और वैसे भी कल से भूखा प्यासा था बेचारा.

वे चारों गुंडे अशरफ को खा जाने वाली नज़रों से घूर रहे थे.

इन सबको उठाने का हमारा मेन मकसद था, लुक्का को अपाहिज़ बना देना.

सारे भृष्ट पुलसीए, शाम होते-होते एसपी की रेमंड में पहुँच चुके थे..
……………………………………………………………………….

इतनी सारी बुरी खबरें सुन-सुन के हकीम लुक्का तिलमिला रहा था, वो सोच भी नही पा रहा था कि अचानक ये हुआ तो कैसे हुआ, और किसके आदेश से हुआ..?

अभी शाम के 8 ही बजे थे, और इस समय लुक्का अपने क्लब ब्लू बर्ड में था, और बुरी तरह भन्नाया हुआ था.

और इसका असर उसके अपने आदमियों को झेलना पड़ रहा था.

क्लब की हॉल नुमा लॉबी में जुए, और ड्रग्स के दौर चल रहे थे, सुंदरियाँ अपने ग्राहकों का मन बहलाने का भरसक प्रयास कर रही थी, 

सारे हॉल में स्मेक, चरस, गांजे की स्मेल फैली हुई थी..

लॉबी क्रॉस करके काउंटर के साइड से होते हुए एक गेट के ज़रिए अंदर जाया जाता था, जहाँ अपने ऑफीस में लुक्का अपने खास सिपहसालारों के साथ बैठा था.

हकीम लुक्का एक 6’3” लंबा, भारी भरकम कद काठी वाला मीडियम कलर का इंसान था, उसके मजबूत शरीर से अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि उसमें कितनी ताक़त होगी.

लुक्का के दोनो तरफ दो अर्धनग्न सुंदरियाँ बैठी उसे जाम पिला रही थी, नशे में लुक्का की आँखें दहक्ते अँगारे की तरह लग रही थी.

लुक्का आज खुश नही था और उसकी खुशी को छीनने वाले कॉन हैं ? उसे ये भी नही पता था ? वो तो इस सब के पीछे पोलीस की आज की कार्यवाही को ही मान रहा था.

रात के करीब 11 बज चुके थे ज़्यादा तर ग्राहक या तो जा चुके थे, या वो नशे की अधिकता के कारण अपनी अपनी जगहों पर लुढ़के पड़े थे.

तभी वहाँ 4 नौजवान दाखिल हुए, आवरेज हाइट और कद के इन नौजवानों के चेहरों पर हल्की-हल्की दाढ़ी थी, जो उनकी उम्र से कुछ अधिक लग रही थी.
लेकिन क्लब की धुंधली सी, अधूरी सी रोशनी में पता नही चल रहा था कि उनकी ये दाढ़ी असली है या नकली.

वो चारों सीधे काउंटर पर पहुँचे, और वहाँ जाकर खड़े हो गये, काउंटर के पीछे बैठे शख्स ने उनसे पुछा, बोलिए किससे मिलना है ?

उनमें से एक नौजवान बोला- हमें तुम्हारे बॉस हकीम लुक्का से मिलना है, उसको बोलो राजपुरा से राका आया है, 

वो बंदा अंदर गया, इतने में पीछे से चार और नौजवान लॉबी में अंदर घुसे, घुसते ही उन्होने मेन गेट बंद कर दिया और वहाँ लुढ़के पड़े नशेडियों के बीच में वो भी लुढ़क गये, मानो वो उनमें से ही हों.

अंदर जाकर उस बंदे ने जब लुक्का को बताया, कि कोई राजपुरा का राका नाम का आदमी अपने 3 साथियों के साथ आया है, आपसे मिलना चाहता है…

लुक्का सोच में पड़ गया, वो किसी राका से पहले कभी नही मिला था, फिर ये कॉन है ? फिर कुछ सोचते हुए उन्हें अंदर बुलाने को कहा.

वो बंदा बाहर आया, और उसने उन नौजवानो को अंदर जाने को कहा.

सामने ही एक मास्टर सोफे के उपर लंबा चौड़ा लुक्का किसी बादशाह की तरह बैठा था, उसके पीछे उसके 5 हट्टे-कट्टे ख़ूँख़ार से दिखने वाले गुंडे अपने सीनों पर हाथ बँधे खड़े थे.

बगलों में सोफे पर दो अर्धनग्न लाड़िकयँ उससे चिपकी हुई बैठी थी, लुक्का ने अपने दोनो बाजू, उनकी नंगी कमर मे डाले हुए थे.

जैसे ही वो नौजवान उसके सामने पहुँचे, वो उन चारों की ओर सवालिया नज़रों से देखने लगा.

तुम में से राका कॉन है ? 

एक नौजवान आगे बढ़ा और उसने लुक्का की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया.
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RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा... - by sexstories - 12-19-2018, 01:46 AM

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