RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
उधर लगभग आधे घंटे से ज़्यादा समय तक दरवाजा नही खुला, तो अरुण के दोस्तों को अब चिंता होने लगी.. और उन्होने दरवाजे को पीटना शुरू कर दिया.. जब काफ़ी देर तक भी कोई रेस्पॉन्स नही हुआ, तो वो सब मिलकर उसे तोड़ने की कोशिश करने लगे.
लेकिन दरवाजा भी काफ़ी मजबूत था, आसानी से टूटने वाला नही था, वो चोट पे चोट मारते रहे, लेकिन वो टस से मस नही हो पाया..
इधर अरुण को अपनी मौत दिखाई देने लगी, लुक्का के मजबूत हाथ की पकड़ ज़रा भी ढीली नही हो रही थी….
इतनी आसान मौत मरने नही आया हूँ में इस धरती पर…, जैसे धमाका सा हुआ हो उसके दिमाग़ में…! अपनी पूरी शक्ति से अपने शरीर को झूले की तरह झूलाया उसने, और अपने सेधे पैर की एक ठोकर लुक्का के जांघों के जोड़े पर दे मारी…!
चोट इतनी पवरफुल और सटीक थी लुक्का के गुप्तँग पर की लगते ही अरुण उसके हाथ से छूट कर धडाम से ज़मीन पर गिरा…!
लुक्का अपने दोनो घुटने पेट से जोड़कर ज़मीन पर लॉट-पॉट होने लगा, दर्द के मारे उसके मुँह से हृदय बिदारक चीख कमरे में गूंजने लगी. वो घायल भैंसे की तरह डकरा रहा था.
अरुण ने कुछ देर अपनी साँसें संयत की और फिर देर ना करते हुए उठा, लुढ़कते हुए लुक्का को सीधा करके उसकी छाती पर पैर रख के खड़ा हो गया.
लुक्का का दर्द के मारे बुरा हाल था, शायद उसके आँड फट गये थे जुते की भरपूर चोट से.
अरुण ने अपने पेंट की जेब से एक सफेद पाउडर की थैली निकाली और उसे फाड़ कर लुक्का के मुँह मे ठूंस दिया..
ले लुक्का चख अपने ही जहर का स्वाद कैसा होता है… ? हराम जादे खा इसे..! अब क्यों नही ख़ाता मदर्चोद…….?
लुक्का के मुँह में ठूँसा पाउडर धीरे-2 उसके पेट मे भी जा रहा था, उसके मुँह से गुउन्ण—गुउन्ण की आवाज़ें आ रही थी,
एक और थैली अरुण ने अपनी दूसरी जेब निकाली ही थी कि इतने में बाहर की कोशिश काम कर गयी, और दरवाजा धडाम से अंदर की ओर आ गिरा,
जैसे ही सबने अंदर का नज़ारा देखा, सबकी बान्छे खिल उठी..!
ऋषभ, धनंजय, इस हरामजादे के हाथ पकडो.. अरुण चिल्लाया,
वो दोनो लुक्का के हाथों के उपर पैर रखके खड़े हो गये, अरुण ने दूसरी थैली भी उसके मुँह में उडेल दी.
जगेश मूत साले के मुँह मे, जगेश हक्का बक्का.. अरुण को देखने लगा, अरुण अभी भी अपने आपे में नही था..! चिल्लाया..! अब्बेय हिज़ड़ा है क्या साले ? खोल पेंट और मूत इसके मुँह मे, जिससे ये पूरा का पूरा जहर इसके पेट मे चला जाए.
जगेश ने शरमाते सकुचाते हुए अपने पेंट की जिप खोली, लौडे को बाहर निकाला और छोड़ दी मूत की धार लुक्का के मुँह मे…!
लुक्का बेहोश हो चुका था, हिला डुला के देखा, जब उसके शरीर में कोई हलचल नज़र नही आई, तब उसे उसी हालत में छोड़ कर क्लब से बाहर निकल गये वी 8 बिना लेवेल के सच्चे समाज के सेवक………………!
दूसरी सुबह इस शहर के लिए कुछ हंगामे खेज होने वाली थी, लोगो के लिए कुछ खुशियाँ लाने वाली थी..,
शहर से नशे का कारोबार बंद हो चुका था, लोकल न्यूज़ पप्रेर्स इन्ही सब खबरों से भरे पड़े थे, पोलीस ने इस सारे मामले को अपनी एक बड़ी उपलब्धि बताया था…हकीम लुक्का नशे की अधिकता से मर चुका था.
हमें इससे कोई फ़र्क नही पड़ने वाला था, वैसे भी जितना आम लोगों की नज़र ना आयें उतना ही हम लोगों के लिए अच्छा भी था.
कमिश्नर और एसपी स्पेशली प्रिन्सिपल ऑफीस में बैठे, हम लोगों द्वारा मिली कामयाबी की भूरी-भूरी प्रशन्शा कर रहे थे, जिससे मेरे दोस्तों का सीना चौड़ा हो गया. आज उन्हें गुमान हो रहा होगा कि निस्वार्थ भाव से किया गया कार्य कितना दिली शुकून देता है.
हम सभी दोस्त अपने सफल प्रयास से अति उत्साहित थे, हम लोगों में सेल्फ़ कॉन्फिडॅन्स का लेवेल काफ़ी बढ़ गया था, और ये बात अच्छी तरह घर कर गयी, कि आदमी अगर चाहे तो कुछ भी असंभव नही है.
उस घटना के 5 दिन बाद पोलीस हेड क्वॉर्टर मे एक पोलीस उपलब्धि समारोह आयोजित किया गया, जिसमें राज्य के होम मिनिस्टर से लेके आइजी, डीआइजी, कमिश्नर तक सभी बड़े-2 लोग थे, हमारे प्रिन्सिपल के साथ-2 हम 8 दोस्तों को स्पेशली इन्वाइट किया गया था वो भी स्पेशल पास भेज कर.
हम सभी समारोह मे शामिल हुए, मिनिस्टर, आइजी और डीआईजी ने पोलीस की तारीफ मे कसीदे पढ़े, जिससे हमारे प्रिन्सिपल को थोड़ा दुख हुआ, वो मेरी ओर निराशा भरी नज़रों से देख रहे थे. मैने इशारे से उनको मौन रहने को कहा.
लेकिन कमिश्नर को ये बातें हजम नही हो रही थी, तो जब उनकी बारी आई बोलने की तो वित ऑल रेस्पेक्ट टू सीनियर्स उन्होने कहा—
दोस्तो आप सब के अंदर खुशी देखकर बड़ा अच्छा लगा, कि चलो समाज से एक बड़ी बुराई का अंत देख कर सभी खुश हैं, ये एक छोटी-मोटी कामयाबी नही है, आज शायद ही कोई शहर या देश, इस बुराई की चपेट से मुक्त हो.
ये एक ऐसी बुराई है, जो हमारे समाज को ही खोखला नही करती अपितु हमारे बच्चो का भविष्य बर्बाद कर देती है, जो बच्चे आनेवाले भविष्य मे एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने वाले होते हैं, उन्ही को ये बुराइयाँ ग़लत कामों की ओर धकेल देती हैं.
नतीजा जो स्वस्थ और संपन्न समाज हमें मिलना चाहिए, वो नही मिल पाता.
में मेसी कॉलेज के प्रिन्सिपल मिस्टर. रुस्तम सिंग और उनके 8 स्टूडेंट को स्टेज पर आमंत्रित करता हूँ, कृपया आप लोग स्टेज पर पधारने की कृपा करें.
जब हम सब स्टेज पर पहुँचे, तो फिरसे उन्होने बोलना शुरू किया..
दोस्तो ये बुराई तो निरंतर ना जाने कितने ही गत वर्षों से हमारे बीच थी, लेकिन क्या हम लोग इससे छुटकारा पा सके… ? नही ! बल्कि जानबूझ कर उसे अनदेखा करते रहे और जाने अंजाने हम भी उसमें लिप्त हो गये.
मुझे इस बात को स्वीकार करने में भी कोई शर्म महसूस नही हो रही कि हम में से ही कुछ स्वार्थी पोलीस अधिकारी उनका साथ देते रहे.
तो उस बुराई का अंत अभी संभव कैसे हुआ ? ये कभी सोचा किसी ने..?
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