Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 01:51 AM,
#71
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
रति मेरे हाथ को अपने हाथों में लेकर बोली – ये आपका बड़प्पन है अरुण, वरना लोग तो देख कर भी अनदेखा कर के निकल जाते हैं, कोई आम इंसान क्यों अपनी जान-जोखिम में डालेगा किसी और के लिए, आपने तो उन चार-चार हथियारों से लेस गुण्डों से मुझे बचाया और उन्हें मार डाला. क्या ये साधारण सी बात है..?

आलोक- हमें पोलीस को इनफॉर्म कर देना चाहिए..!

मे- भूल कर भी इस घटना का जिकर किसी से मत करना यहाँ तक कि अपने परिवार में भी, बैठे बिठाए मुशिबत मोल लेने वाली बात होगी ये.

रति- मे भी इन्हें वही समझा रही थी. लेकिन ये रट लगाए हुए थे.

इतने में उनका घर आगया, आलोक और रति ने मुझे सर आँखों पे बिठा लिया था, उन्हें लग रहा था जैसे भगवान उनके घर आए हों और वो उनको नाराज़ नही करना चाहते.

मैने उन्हें कई बार बोला, कि इतना फॉर्मल होने की ज़रूरत नही है, मुझे आप अपना छोटा भाई समझिए तो ये सुनकर उनकी आँखें छलक आईं और आलोक मेरे गले लगकर फफक-2 कर रो पड़ा..! तुम मेरे लिए भगवान का रूप हो मेरे भाई..!

मैने उसे जैसे तैसे समझा-बुझा कर शांत किया, आँखें रति की भी भरी हुई थी जिनमें आँसुओं के साथ-2 चाहत सॉफ-सॉफ झलक रही थी, जिससे मे बचना चाहता था.

रति ने अच्छे से होटेल से खाना मंगवा रखा था, तो हम तीनों ने मिलकर खाना खाया, और फिर थोड़ी देर बात-चीत करने के बाद आलोक बोला- तुम लोग बैठो बात-चीत करो, मुझे थोड़ा अर्जेंट काम है तो मे चलता हूँ. 

मे बोला मे भी अब चलता हूँ, लंच के लिए शुक्रिया, तो रति आलोक की तरफ देखने लगी..! 

आलोक नही अरुण आज का डिन्नर भी हमारे साथ ही करोगे, देखो भाई थोड़ा हमें भी सेवा का मौका दो प्लीज़..! तुम्हें अपने यहाँ देख कर हमें ऐसा लगा कि कोई हमारा अपना हमारे साथ है.

मे- ऐसी कोई बात नही है भाई साब, आप लोग जब भी बुलाएँगे मे हाज़िर हो जवँगा, अभी चलने दो थोड़ा आज के लेक्चर का रिविषन भी करना है.

रति अपनी आँखों में आँसू लाते हुए रुँधे स्वर में बोली- जाने दो आलोक इन्हें, शायद हम ही इतने बदनसीब हैं कि किसी को अपना कह सकें.

आँसू एक औरत का आख़िरी और अचूक अस्त्र होता है किसी भी मर्द को हथियार डालने पर मजबूर करने के लिए.. “एमोशनल अत्याचार”.

मैने भी हथियार डाल दिए- आप ऐसा ना कहिए भाभी जी, ठीक है मे आज शाम तक रुकता हूँ, और डिन्नर करके ही जाउन्गा, अब तो खुश.

वो दोनो खुश हो गये ये सुन कर, आलोक अपने काम पर चला गया, रह गये हम दोनो अकेले घर में, 

मे जिस बात को टालना चाहता था, वो टल नही पाई, अब पता नही क्या क्या महाभारत होना था मेरे साथ..? मैने अपने मन में सोचा. 

क्योंकि सामने कोई आम योद्धा नही था, जिससे लड़ा जा सके, एक हस्तिनी वर्न की यौवन से भरपूर औरत थी जो ना जाने कब्से प्यासी कुए का इंतज़ार कर रही थी. 

और आज जब वो कुआँ उसके पास खुद चल कर आ गया है, तो कुछ बाल्टी पानी तो लेकर ही मानेगी.

वो अपने नाम के अनुरूप सच में रति का ही स्वरूप थी जो किसी भी मर्द के सोए हुए कामदेव को जगाने में सक्षम थी. और उपर से ना जाने कबे से प्यासी थी, जिसका पति सिर्फ़ आग लगा पाता था, बुझा कभी शायद ही पाया हो…!

आलोक के जाने के बाद रति बोली चलो अरुण अभी-2 खाना खाया है तो थोड़ी देर आराम कर्लो और मुझे लेकर वो अपने बेडरूम में आ गई.

मे अभी बेड के पास खड़ा ही हुआ था कि वो मेरी पीठ से चिपक गयी और मुझे अपनी मांसल बाहों में कस लिया..!

मे- अरे भाभी जी क्या कर रही हो ? देखो ये ठीक नही है, मैने आपकी इज़्ज़त बचाई है, तो इसका मतलब ये नही है कि मुझे आपसे उसके बदले में कुछ चाहिए, प्लीज़ छोड़िए मुझे और आराम करने दीजिए वरना मे चला अपने हॉस्टिल.

रति- अरुण प्लीज़ ! मे ये कोई अहसान चुकाने के लिए नही कर रही, मुझे तो तुम्हारा एक और अहसान चाहिए.. प्लीज़ करोगे मुझ पर एक और अहसान..?

मे- बोलिए क्या चाहिए मुझसे आपको..? 

रति- मे माँ बनना चाहती हूँ..! क्या दोगे मुझे माँ बनने का सुख..?

मे- उसके लिए तो आपके पति हैं ना.. मे कैसे..ये..सब..?

रति- मेरे पति इस काबिल नही हैं कि वो मुझे ये सुख दे सकें..!

मे- क्या..? क्या उनमें सेक्स क्षमता नही है..?

रति- नही ऐसी बात नही है, शुरू-2 में वो सेक्स को बहुत एंजाय करते थे, कुछ सालों तक हमने काफ़ी एंजाय किया लेकिन कुछ सालों के बाद भी मे माँ नही बन सकी तो इनके पेरेंट्स इसके लिए मुझे दोषी समझने लगे और मेरे उपर दबाब डालने लगे.

लेकिन ना जाने कैसे आलोक को अपनी कमी का पता चल गया और वो दुखी रहने लगे, माँ-बाप के तानों से बचने के लिए ही हमने ये घर लिया और अलग रहने आगये.

अब तो उन्होने अपने आपको बिज़्नेस में इतना डूबा लिया है कि मेरी इच्छाओ को भी नज़र अंदाज करने लगे हैं.

मे- तो फिर मे ही क्यों..? उनका अपना भाई भी तो है या और कोई…!

रति – तुम नही समझोगे अरुण ! एक औरत अपना शरीर जो उसकी पूंजी होता है, यूँ ही हर किसी को नही सौंप देती, जो उसके दिल में बस जाए वो उसी को देती है ये सौगात.

मैने आज तक आलोक के सिवाय किसी के लिए भी वो भावनाएँ अपने दिल में महसूस नही की थी.

लेकिन कल जब तुमने ना मेरी इज़्ज़त बचाई बल्कि एक अंजान औरत के लिए अपनी जान जोखिम में डाल कर उन बदमाशों को उनके अंजाम तक पहुँचा दिया. 

तबसे मेरे दिल में तुम्हारे लिए जो इज़्ज़त, जो भावना पैदा हुई है वो अभी तक मेरे अपने पति के प्रति भी कभी नही हुई.

तुम्हारे द्वारा कल मुझे यूँ ठुकरा के चले जाने के बाद तो और भी जयदा इज़्ज़त बढ़ गयी तुम्हारे लिए मेरे दिल में. 

मैने सच्चे दिल से आलोक को अपनी भावनाओं के बारे में सब सच-2 बताया तो उसने भी मेरी भावनाओं को उचित ठहराते हुए तुमसे रीलेशन बनाने को कहा, इसलिए तो हम दोनो तुम्हें लेने तुम्हारे हॉस्टिल गये, क्योंकि मुझे पता था कि अगर मे अकेली तुम्हें लेने जाती तो शायद तुम नही आते.
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