RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
ठप-ठप दोनो की जांघे एक दूसरे से टकरा कर एक संगीत जैसा पैदा कर रही थी.
10 मिनट में ही उसकी रस गागर से रस की फुहार फूटने लगी, उसके दोनो पैरों की एडीया मेरी गान्ड पर कस गयी और कमर हवा में लहराने लगी.
फिर मैने उसको पलंग के नीचे खड़ा करके घोड़ी बना दिया और रस टपकाती उसकी गागर के मुँह पर अपना मूसल टीकाया और एक ही धक्के में पूरा लंड सर्र्ररर… से अंदर.
मैने उसके दोनो बाजुओं को पकड़ कर अपनी ओर खीच लिया अब उसकी कठोर कड़क बड़ी-2 चुचियाँ और आगे को तन गयी, कड़क हो चुके निपाल आगे को और निकल आए, बड़े -2 कुल्हों का उभार और ज़्यादा पीछे को हो गया.
धक्का लगते ही मेरे जांघों के पाट जब उसके भरे हुए चुतड़ों पर पड़ते, अहह…. मत पुछो कैसा फील हो रहा था ?
मैने उस घोड़ी को जो सरपट दौड़ाया, हाए-2 करती हुई वो फुल मस्त होकर चुदाई का लुफ्त लेने लगी.
आअहह….उफफफ्फ़…मेरीए…मालिक… बहुत मज़ा आ रहाआ..हाइईइ…और जोरे से….चोदूओ…मुझीए…फाड़ डलूऊ… भोसड़ाअ..बनाअ..दो इसस्स..निगोड़ीईइ…चुट्त्त… का..
उसकी बड़ी-2 चुचियाँ हवा में झूलती हुई कहर बरपा रही थी.
उसके बाजुओं को छोड़ अब मैने उसके पपीतों को जकड लिया और सटा-सॅट अपना लंड उसकी रस से सराबोर चूत में पेलने लगा, मुझे इतना मज़ा आज तक नही आया था.
करीब आधे घंटे की धक्का-पेल चुदाई के बाद में उसकी ओखली में अपना मूसल उडेल कर उसकी पीठ पर लद गया,
वो मेरे वजन को सहन नही कर पाई और औंधे मुँह पलंग पर गिर पड़ी.
साँसों के इकट्ठा होते ही, हम दोनो एक दूसरे को चूमने चाटने लगे, हाथ फिर से बदमाशी पर उतर आए, और जहाँ नही पहुँचना चाहिए वहाँ भी पहुँचने लगे.
एक बार फिरसे माहौल गरमा गया, और वो मेरे उपर आकर मेरे लंड पर अपनी भारी गान्ड लेकर बैठ गयी.
एक बार जब फिर से चुदाई का दौर शुरू हुआ तो बंद होने का नाम ही नही ले रहा था, अलग-अलग आसनों से अलग-अलग तरीकों से हमारी चुदाई रात तक चलती रही थोड़े-थोड़े रेस्ट इंटर्वल के साथ.
ना जाने कितनी बार बदल उमड़-घमाड़ कर आए और बरस कर चले गये..!
दोपहर 2 बजे से शाम 8 बजे तक, थक कर चूर हम दोनो पलंग पर उसी हालत में पड़े रह गये और नींद में चले गये…!
देर रात करीब दस बजे जब डोर बेल चीख रही थी, पता नही कब से..? तब हमारी नींद खुली..
रति ने मुझे उठने नही दिया और मेरे उपर एक चादर डाल दी, अपनी नाइटी पहन कर गेट खोलने चली गयी..!
थोड़ी देर में ही वो लौट आई और फिर से चिपक कर लेट गयी मेरे साथ..
कॉन था ? पुछा मैने, तो वो बोली कि आलोक थे,
मे- अरे बाप रे… चलो उठने दो मुझे..
वो हंसते हुए बोली- अरे डरो नही, मैने उन्हें वापस भेज दिया है खाना लाने, भूखे थोड़े ही मरना है..!
फिर मैने उसके होठों को चूमते हुए उसकी आँखो में झाँकते हुए पूछा-
भाभी… ! खुश तो हो ना अब..!
वो- बहुत…! जैसे मेरे सपनों का संसार अब जाके बसा हो…! अधूरी सी थी मे अब तक, अब जाके पूरी औरत होने का एहसास हुआ है मुझे...!
औरत का सुख धन दौलत में नही होता है अरुण, उपर वाले ने जो उसे नवाजा है, अगर उसका वो सही से स्तेमाल ना कर पाए तो वोही यौवन उसके लिए अभिशाप बन जाता है.
और ऐसे ही थोड़ी देर एकदुसरे को चूमने चाटने के बाद हम उठे, अपने-2 कपड़े पहने, और हॉल में आकर सोफे पर बैठ आलोक का इंतजार करने लगे.
खाना खाने के बाद, मे अपने हॉस्टिल चला आया.
अब ये मेरा रोज़ का रुटीन हो गया था, क्लासस के बाद मे सीधा रति के साथ ही लंच लेता, और फिर एक-दो राउंड रति-युद्ध होता, और लौट लेता हॉस्टिल.
एक दिन जब हम तीनों लंच ले रहे थे, कि रति का जी मिचालाने लगा, और वो उठकर वॉश-बेसिन पर चली गयी और उल्टियाँ करने लगी, आलोक घबरा गया, गाड़ी उठाई, हॉस्पिटल ले गये, मे भी साथ ही था.
डॉक्टर. ने चेक-अप किया और आलोक से बोली- कंग्रॅजुलेशन्स मिस्टर. वर्मा, आप बाप बनने वाले हैं..!
आलोक झेन्प्ते हुए अपनी खुशी का इज़हार करने लगा – हे हे हे… थॅंक यू डॉक्टर.
मैने रति की ओर देखा, तो वो शरमा का सर झुकाए मुस्करा रही थी,
डॉक्टर ने कुछ हिदायतें दी, शुरू के दिनो के लिए, और घर आ गये.
आलोक ने रति को पूरी तरह आराम देने के लिए, जो नौकरानी आधे दिन तक काम निपटा के चली जाती थी, उसी को 24 घंटों के लिए रखने का बोल दिया.
आलोक के चले जाने के बाद मैने रति को बाहों में भर लिया और उसके होंठ चूमते हुए.. कहा..!
क्यों जानेमन अब तो पूरी हो गयी या अभी कुछ और कमी है..?
वो हंसते हुए बोली - ये सब तुम्हारी मेहनत का फल है, मुझे तो कभी आशा ही नही थी कि मे इस जीवन में कभी माँ बनने का सुख ले पाउन्गि.
मे - एक सुझाव है, अगर मानो तो..!
वो- हुकुम करो मालिक, सुझाव नही..! बोलो क्या चाहिए तुम्हें..? मेरी जिंदगी भी अब तुम्हारे लिए है..!
मे- देखो ! नौकरानी तो ठीक है वो तो काम ही करेगी, लेकिन कोई अपना, समझदार वो भी फीमेल, अब यहाँ कुछ दिन होना चाहिए, पता नही कब क्या ज़रूरत आन पड़े… ? समझ रही हो ना ! मे क्या कहना चाहता हूँ.
रति- बात तो सही है, लेकिन अब कॉन आ सकता है मेरे पास, सासू जी हैं तो वो उस घर को छोड़ के आने वाली नही है, वो भी हमेशा के लिए… तो..
मे- देखो अगर तुम मानो तो कुछ पहचान की लड़कियाँ हैं, कॉलेज में पढ़ती हैं, और हॉस्टिल में ही रहती हैं, मेरे दोस्तों की वो फ्रेंड्स हैं, तो अगर तुम चाहो तो एक दो से बात कर सकते हैं यहाँ रहने के लिए कुछ दिनो तक..
वो- मे समझ गयी, तुम्हें अपने दोस्तो की भी चिंता है, है ना..! तुम्हारी तो नही हैं ना कोई…एँ..एँ.. और मेरी बगल को गुदगुदा दिया उसने..
मैने हँसते हुए कहा- मेरी भी हैं ना… ! पर वो अभी मेरी बाहों में है, और मैने कस लिया उसे अपने सीने में.
वो खुशी से झूम उठी, शुक्रिया मेरे मालिक.. मुझे अपनी गर्लफ्रेंड कहने के लिए…! बोल दो उनको, दो-चार तो आराम से रह सकती है, जगह की तो कोई कमी नही है घर में….!
हॉस्टिल आके मैने अपने तीनो यारों को बिताया अपने पास और पुछा कि और बताओ कैसा चल रहा है सब, तो वो पहले तो भड़क गये और बोले-
तुझे क्या हमसे..? तेरा तो आजकल कुछ पता ही नही रहता ? कहाँ जाता है ? क्या करता है..? नये भैया भाभी क्या मिल गये, हैं तो भूल ही गया है हमें..!
मे- अरे शांत मेरे प्यारे मित्रो..! शांत ! और बताओ तुम लोगों की प्रेम कहानी कहाँ तक पहुँची..?
धनंजय- इनकी तो पता नही लेकिन मेरी प्रेम कहानी का तो दा एंड ही समझो..?
मे- क्यों ? ऐसा क्या हुआ भाई ? हसीना रूठ गयी क्या..?
धनंजय- रूठ ही जाएगी जब कोई मौका उसे नही मिलेगा आगे बढ़ने का तो..! अब मे कहाँ से उससे 5स्टार होटेल ले जाउ यार..?
मे- हमम्म.. .और तुम लोगों का..मैने जगेश और ऋषभ से पुछा..
ऋषभ- मेरा भी ऐसा ही कुछ है, जब भी मिलता हूँ.. यही सवाल कि कुछ करो.. कब तक ऐसे ही होंठो से प्यास बुझाते रहेंगे..?
जगेश- मुझे तो एक मौका लग गया जंगल में, पर साला तसल्ली नही हुई यार…!
मे- क्या बात है मेरे शेर..! तूने कुछ तो किया, ये दोनो तो साले चूतिया ही निकले..!
वो दोनो- ऐसे खुले में डर लगता है भाई..! हमारी हिम्मत नही होती..
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