RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मे भावशून्य अवस्था में था, वहाँ जाकर परिस्थिति को देखा और उन 6 लोगों में से दो के पीछे से गले पकड़े और उनको इंद्रमनी जी से अलग करके दूर धकेल दिया और दोबारा दो को पकड़ा और उन्हें भी अलग छिटक दिया.
मेरे चेहरे पर ना गुससा ना खुशी कोई भाव नही था, अभी भी मे अपने सुंदरकांड पाठ के इंप्रेशन में ही था.
वाकी बचे दो को उन्होने आराम से संभाल लिया, उनमें से एक का गला मेरे हाथ में आ गया सो मैने एक ही हाथ से उसे दो दीवारों के कोने में सटा कर एक ही हाथ पर लटका लिया, उसके भाई उसको छुड़ाने आए, तो किसी को लात से किसी को दूसरे हाथ से दूर छिटकता रहा.
मेरा ध्यान उस पकड़े हुए की तरफ था ही नही, मे दूसरे जो छुड़ाने आ रहे थे उनकी तरफ ही ध्यान लगाए था.
जब इंद्रमनी ने अपने शिकारों पर काबू पा लिया तब उनका ध्यान मेरी तरफ गया, एक पर्मनेंट उपर लटका रखा था, दो नीचे गान्ड के बल पड़े थे, एक और आया उसको भी उल्टे हाथ का पड़ा तो वो भी दूर जाके गिरा.
क्या कर रहा है अरुण छोड़ इसे नही तो ये मर जाएगा- जब ये इंद्रमनी के शब्द मेरे कानों में पड़े तब मेरा ध्यान उसकी तरफ गया.
बहुत देर तक गला दबे रहने के कारण उसका मुँह लाल पड़ गया था जीभ बाहर को निकालने वाली थी, अंडरवेर उसी के पेसाब से गीला हो चुका था.
जैसे ही मैने उसको छोड़ा, अनाज के बोरे की तरह धडाम से वो वहीं ढेर हो गया.
इतने में उनमें से जिसने ये झगड़ा शुरू किया था वो एक चाकू लेके मेरी ओर झपटा, मेरा ध्यान दूसरी तरफ था, लेकिन इंद्रमणि जी ने उसको झपटते हुए देख लिया और चिल्ला कर बोले- अरुण बचो.
जैसे ही मेरी नज़र घूमी, उसका चाकू वाला हाथ मेरी ओर आ ही रहा था कि मैने झट से उसकी कलाई थामी और बाजू से पकड़ कर उसको पीठ पर डाल लिया, चाकू अभी भी उसके हाथ में ही था.
पीठ पर लदे हुए उसको अपने घर के बरामदे में लाके पटक दिया और डंडे से उसके घुटने तोड़ने लगे.
अब हमारा प्लान सबूत के साथ पोलीस केस करने का था, लेकिन कुछ हमारे हितेशियों ने ही आकर उसे छुड़वा दिया कि अब इनके लिए इतना सबक काफ़ी है, नौकरी-पेशा वाले आदमी हो आप लोग कहाँ पोलीस कचहरी के चक्कर में पड़ते हो. बात इन्द्र जी को जम गयी और उसे छुड़वा दिया.
मेरी तौलिया भी ना जाने कब खुल कर गिर गयी थी, किसी दूसरे ने लाकर दी. हम कपड़े वग़ैरह पहन के चुके ही थे कि भाई साब आ गये, उन्होने जैसे ही सुना तो बड़े गुस्सा हुए कि क्यों छोड़ दिया साले को.
उनके एक मित्र भी आ गये, जो ठाकुर थे और उनकी वहाँ के ठाकुरों के साथ संबंध थे, तो तय हुआ कि चौपाल के ठाकुरों को लेके पोलीस केस किया जाए, वरना इनकी हिम्मत और बढ़ जाएगी.
जब हम ठाकुरों की चौपाल पर पहुँचे तो दूर से ही हमें वो सभी छहो भाई वहाँ बैठे दिखाई दिए और जैसे ही उनकी नज़र हम पर पड़ी तो जो अंडरवेर में मूत गया था वो थर-2 काँप उठा और बोला-
ठाकुर साब यही वो लोग हैं, हमें बचा लो प्लीज़.. ये यूपी के डाकू हैं मुझे जान से मार देंगे.
हम अभी चौपाल पर चढ़े ही थे कि ठाकुर साब ने उसकी कमर में एक लात मारी और बोले- हरामखोर, मे तुम लोगों की आदत जानता हूँ, इन लोगों पर ऐसा घिनोना इल्ज़ाम लगा रहा है, अरे सालो ये सरकारी अधिकारी हैं, भले लोग हैं, ज़रूर तुम लोगों ने इनके साथ कोई ग़लत हरकत की होगी, फिर तो उनकी नानी ही मर गयी.
फिर जब हमने सारी बात बताई तब वो ठाकुर बोले- हरामियो इनसे माफी माँगो, और भविष्य में अगर कोई ऐसी वैसी बात सुनाई दी तो समझ लेना ये मारेंगे वो तो अलग, हम तुम्हारी खाल खींच लेंगे.
इस तरह से मामले को सुलझा कर उन्हें घर भेजा और हमसे भी कहा कि आप लोग जाओ अब इन सालों की हिम्मत नही पड़ेगी आप लोगों से उलझने की.
पूरा मोहल्ला हमें बधाई दे रहा था उन बदमाशों को सबक सिखाने के लिए.
इंद्रमनी जी ने मेरी पीठ थपथाइ उनका साथ देने के लिए, और अपने भाई को झिड़का नाकाम होने की वजह से. क्योंकि जो लोग तमाशा देख रहे थे उन्होने ही बोला कि तुम इस लड़के की वजह से बच गये वरना पता नही वो लोग क्या कर डालते तुम्हारा.
खैर एक और मुशिबत टल गयी थी मेरी वजह से और लोगों में मान भी बढ़ा मेरे भाई का.
पर एक जोड़ी आँखें और थी जिनमें मेरे प्रति कृीतग्यता, चाहत और प्रेम की भावना पनप रही थी जिसका मुझे कोई भान नही था……!
इस घटना के कुछ महीने बाद ही श्याम जी की शादी हो गयी, जिसके लिए हम सब गाँव गये, 10-15 दिन गाँव में रहने के बाद फिर आकर वही ड्यूटी और पानी की समस्या.
इंद्रमनी भाई साब की 29 वर्षीया धर्म पत्नी कोमल, जो अपने पति से कोई 7-8 साल छोटी थी, फक्क सफेद हल्का गुलाबी पन लिए उनका रंग,
सुंदर हंसता हुआ गोल चेहरा जिसपर मुख्य आकर्षण का कारण थी उनकी आँखें, जिसे मृगनयनी कहते हैं.
36-30-36 का एक दम साँचे में ढला बदन 5’5” की हाइट, कुलमिलाकर किसी भी व्यक्ति को आकर्षित करने के सारे गुण थे. लंबे घने काले बाल, कमर तक आते थे.
वैसे तो वो हरसंभव खुश ही दिखाई देती थी हर समय, किंतु उनकी आँखों में कुछ तो ऐसा था जो व्यक्त करता था उनके अधूरेपन को.
पर मे ठहरा छोटा भाई, मेरी नज़र चाहे वो मेरी अपनी भाभी हो या वो कभी उनके कमर से उपर ही नही पहुँची थी अभी तक.
दोनो में सग़ी बहनों जैसा प्रेम था, सो जो रेस्पेक्ट मेरी अपनी भाभी के लिए थी वही उनके लिए.
लेकिन कहते हैं ना, कि जो होना होता है, वो हमारे बस में नही होता और जब हो जाता है, तब सोचते हैं कि ये हुआ तो कैसे हुआ ? हमने तो ये सोचा भी नही था.
उस घर के बाहरी पोर्षन में हम रहते थे और अंदर के पोर्षन में इंद्रमनी जी की फॅमिली.
हमारे पोर्षन के सामने एक वरामदा था और उससे हमारे वाले पोर्षन का गेट, मेन गेट से वरामदे में आना होता और सीधे जाओ तो गॅलरी से होते हुए एक आँगन और उसके वाद उनका पोर्षन,
गेलरी के एक साइड में ही हम दोनो के अलग-2 टाय्लेट बात थे. आँगन के दूसरी साइड में बराबर में ही दो किचिन पहले हमारा, फिर उनके साइड में उनका.
इंद्रमनी जी की माताजी बीमारी की वजह से ज़्यादातर पड़ी ही रहती थी, बिना किसी के सपोर्ट के वो चल फिर भी नही पाती थी.
कुछ दिनो के बाद उनका छोटा भाई भी अपने एग्ज़ॅम देने जबलपुर अपने बड़े भाई के पास चला गया.
सनडे का दिन था, भाई साब और इंद्रमनी दोनो कहीं बाहर गये हुए थे, मेरी भाभी अपनी दो छोटी बेटियों को लेके अपनी किसी सहेली के यहाँ गयी हुई थी, मेरी बड़ी भतीजी विजेता और मे ही घर पर थे,
वो टीवी देखने में लगी थी उसके पसंदीदा कार्टून चल रहे थे.
उसे भूख लगी तो मेरे से बोली- अंकल जी मुझे भूख लगी है, मैने कहा दूध पिएगी, तो उसने हाँ करदी.
मे उसके लिए किचेन में जाके दूध ग्लास में डाल रहा था कि तभी कोमल भाभी बाथरूम से निकली मात्र एक पेटिकोट जो उन्होने अपने वक्षों के उपर बाँध रखा था.
अनायास उनकी पायल की आवाज़ सुनकर मेरा ध्यान उनकी ओर चला गया.
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