Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:00 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मेरी नज़र जैसे ही उधर गयी तभी उनकी भी नज़र मुझ पर पड़ गयी, जैसे ही हमारी नज़र चार हुई, वो थोड़ा ठितकी और फिर सर नीचे करके मुस्कराती हुई जल्दी से अपने बेड रूम में घुस गयी. 

मैने विजेता को दूध दिया और मे भी टीवी देखने में लग गया पर अब मेरा ध्यान टीवी में नही लग रहा था, बार-2 उनका वो सेक्सी रूप पेटिकोट में जबर्जस्ती से जकड़ा हुआ हुश्न मेरी आँखों के सामने आजाता.

बहुत दिमाग़ हटाने की कोशिश करता पर कुछ देर बाद फिर वही सीन सामने आ जाता. 

गीले लंबे बाल जो कुल्हों तक आ रहे थे, शर्म से झुकी मुस्कुराती वो चंचल आँखें जिनकी एक झलक ने ही पता नही मेरे दिल में झंझनाहट सी पैदा करदी थी, सुरहिदार गर्दन, 

और उसके नीचे जहाँ वो पेटिकोट खाली उडेसा ही हुआ था.. उफ़फ्फ़… क्या मदभरे कलशो का उठान जो पेटिकोट के अंदर से ही अपनी पुश्टता बयान कर चुके थे.

घुटनों से थोड़ा सा उपर तक पहुँच पाया था वो पेटिकोट, उतने से ही उन केले के तनों का आकर पता लग रहा था कि वो उपर कैसे होंगे.

बार-बार वोही सीन, साला करूँ तो क्या करूँ मैने बहुत कोशिश की उस बारे में ना सोचूँ, लेकिन सोचों को आज तक थम पाया है क्या कोई ??? 

विश्वामित्र जैसे ऋषि नही रोक पाए तो फिर हम आम इंसानो की क्या बिसात.

मैने थोड़ा बाज़ार में चक्कर लगाने की सोची की शायद कुछ ध्यान बँटेगा लेकिन समस्या विजेता की थी, और अगर उसको भी साथ ले जाता हूँ तो घर में ताला लगाना पड़ेगा. 

करूँ तो क्या करूँ अजीब कस-म-कस में फँस गया.

फिर मैने सोचा कि बाहर की साइड से अंदर से बंद करके किचेन साइड से निकल जाता हूँ गॅलरी से होके, 

कोमल भाभी को बोल देता हूँ वो ध्यान रखेंगी, क्योंकि किचेन साइड का गेट उनके बेडरूम के सामने ही था. 

मैने विजेता से पूछा की मार्केट घूमने चलेगी तो वो तैयार हो गयी, मैने अंदर से बाहर वाला गेट बंद किया और किचेन साइड वाले गेट की कुण्डी लगाई, 

विजेता की उंगली पकड़ी और उनको ध्यान रखने के लिए बोलने उनके बेडरूम के गेट पर पहुँचा, 

वो तब तक कपड़े पहन कर ड्रेसिंग टेबल के सामने तैयार हो रही थी, मुझे देखते ही खड़ी हो गयी और मेरी ओर देखकर हल्की सी मुस्कराहट के साथ बोली- जी भाई साब कोई काम था.

मे - भाभी जी मे और विजेता बाज़ार की तरफ जा रहे हैं तो आप थोड़ा घर की तरफ ध्यान रखना.

वो - कोई काम है बाज़ार में..?

मे- नही बस ऐसे ही थोड़ा मूड चेंज करने जा रहा था.

वो थोड़ा स्माइल करके बोली- मार्केट में ऐसा क्या है मूड चेंज करने लायक..?

मे भी थोड़ा स्माइल देते हुए - ऐसा वैसा कुछ नही, विजेता को कुछ खिला-पिलाके लाता हूँ जो इसको पसंद आजाए बस और क्या..?

वो- वैसे मे चाइ बनाने वाली थी, अगर आप पीना चाहे तो…!

मे- आपको तो पता ही है मे चाइ कम ही पीता हूँ, 

वो बात को थोड़ा बढ़ाने के साथ-2 टीज़ करने के मूड में थी सो बोली- तो दूध पी लीजिए और मुँह थोड़ा दूसरी साइड करके मुस्करा दी..

मे - अरे भाभी छोड़िए मे किसी और के हिस्से का दूध नही पीता हूँ, आपको कम पड़ जाएगा.

वो- अगर किसी के पास एक्सट्रा दूध हो तो.. ? अब मे समझ गया कि इसके आगे अगर मे बढ़ा तो ये खुलने लगेगी और यही मे नही चाहता था, 

तो मैने कहा कि नही भाभी अभी मेरी कुछ भी पीने की इच्छा नही है और बिना उसका कोई जबाब सुने मे वहाँ से निकल गया.. 

जाते समय मैने नोटीस किया कि वो थोड़ा अपसेट सी हो गयी थी.

बाज़ार में भटकने के बाद, भतीजी को कुछ चाँट पड़ाके खिलाए जिसकी वो शौकीन थी, और एक-डेढ़ घंटा बर्बाद करके मे घर लौटा तब तक भैया और भाभी दोनो ही आ चुके थे. मेरा भी थोड़ा मूड चेंज हुआ.

अब तो जब भी मेरा आमना-सामना कोमल भाभी से हो मुझे उनकी आँखों में कुछ अलग से ही भाव दिखें, जैसे मानो उनकी वो आँखें कुछ कहना चाहती हो मुझसे, कुछ अनुनय विनय हो उनमें, कुछ चाहत हो, 

अब पिछले कुछ वर्षों में मे औरतों की आँखों की भाषा अच्छे से समझने लगा था.

अब क्या करूँ क्या ना करूँ जितना उन नज़रों से भागना चाहता था वो और उतनी ही मेरी ओर आकर्षित होती लगी मुझे.

एक दिन शाम का समय था लाइट चली गयी थी, थोड़ा गर्मी सी महसूस हो रही थी तो मे बच्चियों को लेके छत पर चला गया और उनके साथ खेलने लगा. 

थोड़ी देर बाद वो भी उपर आ गई और हमारे पास आकर बैठ गयी और बच्चों के साथ खेलने लगी.

बच्चियों से खेलने के बहाने वो मुझसे टच करने लगी, एक बार तो विजेता मेरे सामने थी और वो मेरे दोनो बगल से हाथ निकाल कर उसको पकड़ने लगी जिससे उनके दोनो अमृत कलश मेरी पीठ में गढ़ गये.

मैने विजेता का हाथ पकड़ कर उसे उनकी तरफ कर दिया और फिर एक तरफ जाके खड़ा हो गया.

एक दो बार और जब ऐसा ही कुछ करने की उन्होने कोशिश की तो मे नीचे जाने के लिए जीने की ओर बढ़ा, उन्होने झट से मेरी कलाई पकड़ ली, और मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली- 

क्या मुझ में काँटे हैं अरुण जो मुझसे दूर-2 भाग रहे हो..?

मे - भाभी ! ये आप क्या बोल रहीं हैं..? मे तो बस ऐसे ही नीचे जा ही रहा था..!

वो- लेकिन मे तो आपकी वजह से उपर आई थी… और आप मेरी वजह से नीचे जा रहे हो.. ! ऐसा क्यों..?

मे- सॉरी भाभी ! अगर आपको लगा कि मे आपकी वजह से नीचे जा रहा था तो उसके लिए एक्सट्रीम्ली सॉरी, पर मेरा ऐसा कोई इरादा नही था जिससे आपको कोई ठेस पहुँचे.

वो- मे कई दिनो से देख रही हूँ, आप मुझसे बचने की कोशिश करते रहते हैं, मे आपसे कुछ बातें करना चाहती हूँ और आप इग्नोर करदेटे हैं मुझे, बताओ ऐसा है या नही ?

मे- वैसे तो ऐसा कुछ नही ! अच्छा बोलिए क्या बातें करना चाहती हैं आप मेरे साथ ?

वो- बस ऐसे ही, मन करता है, आपके साथ बैठ कर बातें करूँ कुछ अपनी कहूँ कुछ आपकी सुनू और क्या..? 

और ये कहते-2 मेरे दोनो हाथ अपने हाथों में ले लिए.
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