Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:07 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
वैसे भी थोड़ी भारी सी होकर उसकी गोल-मटोल गान्ड कुछ ज़्यादा ही मस्त हो गयी थी, 

सो घोड़ी बनाके पहले तो उसकी चूत में पेल दिया, और चोदते-2 मैने अपने हाथ का अंगूठा मुँह में लेकर गीला किया और फिर उसकी गान्ड के मुँह पर रख कर कुच्छ देर तो ऐसे ही फिरता रहा, और फिर अचानक से उसकी गान्ड के अंदर पेल दिया.

आययईीीई… गान्ड में क्या डाल दिया..? हयईए.. ये क्या कर रहे हो..?? नीचे से गान्ड हिलाती हुई भूरी बोली..

मे - कुछ नही तू मज़े ले बस.. अब में उसकी चूत के साथ-2 अंगूठे को उसकी गान्ड में अंदर बाहर करता रहा, उसे उसकी आदत हो गयी और दोनो छेद के सेन्सेशन की वजह से एक बार वो फिर जल्दी ही पानी छोड़ गयी.

मैने उसके जांघों के साइड से अपने पैर अडाके उसकी चूत को और चौड़ा दिया जिससे उसकी गान्ड का छेद और क्लियर हो गया.

मैने ढेर सारा थूक उसकी गान्ड के छेद पर ल्हेस दिया तो भूरिया को कुछ शक सा हुआ, और वो बोली- ये क्या कर रहे हो ?

मे - अब तेरी गान्ड मारूँगा भूरी…!!

वो – नही बिल्कुल नही..! गान्ड तो में कोई को भी ना दूं.. मेरा ख़सम माँगेगा तो उसको भी नही दूँगी. 

ये कहकर वो सीधी खड़ी होने लगी तो मैने अपने एक हाथ का दबाब उसकी पीठ पर डालकर उसे रोक दिया.

और फिर आव ना देखा ताव, चूत रस से लथपथ लंड गान्ड के छेद पर रखा और सटाक से पेल दिया आधा लंड उसकी गान्ड में.

हाईए.. डाइय्ाआ..माररररर..गाइिईई…रीईए… जालिमम्म… बैरीईई…फादद्ड़…डियी…मेरिइइ..गाअन्न्ँद्दद्ड…हहूओ…ससुउउ..

वो उठने को फिर जोरे करने लगी मैने उसके दोनो कंधों को दबाए रखा..

फिर उसको समझने लगा.. भूरी बस थोड़ा सा सहन करले.. फिर देखना तुझे चूत से भी ज़्यादा गान्ड मारने में मज़ा आएगा..

वो- सच कह रहे हो तुम..

मे- हां बिल्कुल सच.. तू खुद गान्ड पटक-पटक कर चुदवायेगि.

फिर मैने उसकी पीठ को सहलाया, और चूमा, चाटा.. थोड़ी देर में ही वो शांत हो गयी तो मैने फिर एक जोरे का झटका मारके पूरा लंड उसकी गान्ड में फिट कर दिया और उसकी चूत को सहलाने लगा..

कुछ देर और वो हाए-तौबा करती रही.. पर फिर जब उसको कुछ आराम मिला मैने अपने पिस्टन को मूव्मेंट देना शुरू कर दिया.

थोड़े देर के दर्द के बाद उसका सिलिंडर पिस्टन के हिसाब से सेट हो गया और वो भी गान्ड मटका-2 कर चुदने लगी, अपनी धुन में सिस्कार्ते हुए बड़बड़ाते हुए मज़े लेने लगी.

टाइट गान्ड की गर्मी, लंड ज़्यादा देर नही झेल पाया और फाइनलि मे डकराते हुए उसकी टाइट गान्ड में झड गया, वीर्य की गर्मी से उसकी चूत में सेन्सेशन हुआ और एक बार वो फिर से रस टपकने लगी.

चुदाई करते-2 मेरी साँसें उखड़ गयी थी तो कुछ देर में उसकी पीठ पर ही लदा रहा जैसे भैंसा, भैंस को चोदने के बाद उसपर पड़ा रह जाता है.

सब कुछ शांत होने के बाद वो बोली- आज तुमने मेरी गान्ड को भी नही छोड़ा..! बहुत बुरे हो तुम..मुझसे अब बैठा भी नही जारहा.

मे- सच बताना मज़ा आया कि नही,,?

वो- मज़ा तो आया पर…

पर-वर को मार गोली, और ये एक गोली.. पानी से गटक जा. 15 मिनट के बाद फिर से घोड़ी की तरह कूदने लगेगी.

उसने कपड़े पहने, गोली खाई, और लंगड़ाते हुए घर की ओर चली गयी.

मोहल्ले में ही कुछ महीनों पहले, प्रेमा दादी (मेरे चाचा की रखैल) के सबसे छोटे बेटे महेश (चौथे चाचा) जो मेरे से 2 साल बड़ा था उसकी शादी हुई थी…

मैने बस सुना था कि मोहल्ले के ही किसी के रिस्तेदार की लड़की के साथ ही उसका ब्याह हुआ है.. जब उसकी शादी हुई थी तब मे गाँव में नही आया था, तो मे कभी उसको अभी तक मिल ही नही पाया था. 

एक दिन सुबह-सुबह कोई 5 बजे में अपने खेतों की तरफ जा रहा था, छोटे चाचा की नयी दुल्हन लोटा हाथ में लिए सॉंच के लिए घर से निकली, लंबे कद की हल्की साँवली अपनी 36 की गान्ड मटकाते हुए मेरे आगे आगे चल रही थी.

अपने पीछे किसी के आने की आहट पा कर वो पलटी… कुछ देर मे उसके चेहरे की ओर देखता रहा, वो भी मुझे देख कर खड़ी हो गयी…

मे उसके और नज़दीक पहुँचा, तो उसकी शक्ल कुछ जानी पहचानी सी लगी.

वो मेरे से बोली – क्या देख रहे हो..? पहचाना नही..?

मे - ओ तेरी का…! अंजलि (मीरा के मामा की लड़की) तू..! यहाँ कैसे ? कब आई..? 

वो – मुझे तो एक साल हो गया …!

मे – क्या एक साल..? मैने तो आज देखा है.. तुम्हे.. कहाँ रहती हो ..?

वो – अरे तुम्हें नही पता, अब मे इस गाँव की बहू हूँ… अपने पति का नाम लेकेर.. उनके साथ मेरी शादी हुई है..!

मे – ओह्ह्ह… तो अब तो तुम हमारी चाची हो गयी..!

वो – मे तुम्हारे लिए वही पहले वाली अंजलि ही रहूंगी… अगर तुम चाहो तो.. 

मे – लेकिन चाची में क्या बुराई है.. ? उपर-उपर चाची, नीचे गैल खुदा की.. ये बोलकर हम दोनो ही हँसने लगे.. 

अभी थोड़ा अंधेरा सा ही था, वो बोली – चलो आगे चलते हैं, यहाँ रास्ते में खड़े होकर बात करना ठीक नही है.. कोई भी आ सकता है, 

तो हम दोनो आगे बढ़ गये, और दो खेतों के बीच की पगडंडी पर आकर खड़े हो गये..

दोनो खेतों में बाजरा खड़ा हुआ था, जो सर के उपर था.. वो बोली – चाची सुनने में कुछ अजीब सा लगता है.. और फिर हमारे पुराने सम्बन्ध तो कुछ और ही हैं..!

वो मेरे सामने खड़ी थी, उसकी लंबाई, मेरे से कुछ ही कम थी, उसकी चुचिया जो अब पहले से और ज़्यादा चौड़ी होकर उसके सीने पर किसी दुधारू भैंस की तरह उसकी साड़ी के पल्लू को उठाए हुए मुझे मुँह चिढ़ा रही थी.

मैने उसे आगे बढ़कर अपने हाथ उसके भारी चुतड़ों पर कस दिए, जिससे उसके थन मेरी छाती में धँस गये, और मैने उसके होठों को किस करलिया..

आह्ह्ह्ह… रजाअ.. थोड़ा खेत के अंदर ही चलते हैं.. यहाँ ठीक नही है..

मे – नही जानेमन.. मुझे ऐसे खेत-वेत में चुदाई करने में मज़ा नही आता.. 

तुम्हें तो पता ही है.. अपने को घंटे-दो घंटे चैन से मिलते हैं तभी सही रहता है….!

छोटे चाचा की अपने बड़े भाइयों से बिल्कुल भी नही पटती थी, तो वो सब अलग-2 रहते थे, 

प्रेमा दादी, अपने छोटे बेटे यानी छोटे (महेश) के साथ ही रहती थी.. जो अब गाँव में कभी-2 ही आती थी, 

वहीं अपने ट्यूबवेल पर ही 24 घंटे पड़ी रहती थी. आँखों से भी अब दिखना कम हो गया था.

वो बोली – इतना समय कहाँ से मिलेगा.., मैने कहा – चल मेरे साथ मेरे ट्यूबवेल पर.. तो वो बोली – नहीं घर पर क्या कहूँगी कि इतनी देर कहाँ गयी थी..?

मे – तो फिर जाने दे.. और मे फिर से उसकी गान्ड दबाकर उसके गाल को काट कर चल दिया.. तो उसने पीछे से मेरा हाथ पकड़ लिया.. और बोली – इतने निर्मोही ना बनो राजे..? 

तो फिर और क्या करूँ..? अगर तुझे मुझसे चुद्वाना है, तो इसका हल तू ही निकाल….मैने उसे कहा तो वो कुछ सोच कर बोली – ठीक है, आज शाम को मेरे घर आना तब बताती हूँ..

मे – लेकिन तेरे चाचा से क्या कहूँगा.. ? तो वो हंसते हुए बोली – चाचा तो वो तुम्हारे हैं.. मेरे तो वो, वो हैं..

मे – हां ! हां ! वही… उसको क्या कहूँगा कि मे यहाँ क्यों आया हूँ..? 

वो – तो क्या कोई मिलने नही आ सकता..? कुछ नही तो शादी की बधाई देने ही आ जाना..! कह देना तुम्हें अभी पता लगा है..

मे – वाह रानी क्या आइडिया दिया है..? चल ठीक है ! कितने बजे आउ..? वो बोली – 8 बजे के करीब आना..

फिर मे उसको एक और किस करके अपने रास्ते निकल गया और वो खेत में घुस गयी हँगने के लिए..

मे मन ही मन सोचता हुआ जा रहा था, कि यार ये तो घर बैठे-2 एक रसीली चूत का जुगाड़ हो गया.. भेन्चोद… इसे कहते हैं, खुदा जब देता है तो लहंगा फाड़ के देता है..

सच कहूँ तो अब तक कुछ ही चूतें ऐसी थी, जो ज़्यादा यादगार थी मेरी जिंदगी में, उनमें से एक ये अंजलि भी बड़ा मस्त माल थी, 

रति के बाद एक और हस्तिनी औरत… जवानी से लबालब भरी हुई, एकदम कूर्वी फिगर.. भेन्चोद छुट्टा चूतिया के तो भाग ही खुल गये थे.

लेकिन बेचारी का बाप बहुत ग़रीब था, तो उसने खेती-वाडी देख कर ब्याह दिया अपनी गदर लौंडिया एक ढीले लंड वाले के साथ….

अंजलि की चुदाई के बारे में सोचते-2 सारा दिन कब निकल गया, पता ही नही चला..

शाम को घर आया, अपने चिलम्चि यारों के पास चला गया, एक-दो गांजे के कस लगाए, फक्क्ड़ों की टोली की बातें चल रही थी, उसने उसको छोड़ा वो उसके साथ सेट है.. ऐसी ही.

फिर उनमें से एक बोला – यार मोहल्ले में चोदने लायक तो एक ही माल है आजकल..! मैने कहा- किसकी बात कर रहे हो..?

तो वो बोला – छुट्टा चाचा की चाची… साली क्या गद्दार माल है यार, उसकी गान्ड देखकर लॉडा खड़ा हो जाता है.. तूने नही देखी अभी तक..?

मे – नही मैने तो नही देखी, पर अब तुम लोग इतनी तारीफ उसकी कर रहे हो तो देखनी तो पड़ेगी ही.

दूसरा बोला – मेरा तो मन करता है, कि सारी रात उसकी चूत में लंड डालकर ही सो जाउ..!

ऐसी ही कुछ बातें होती रही कुछ देर और सट्टा लगाते रहे..! फिर मे उठकर अपने घर आया, खाना-वाना ख़ाके छोटे के घर की तरफ निकल गया.

अंधेरी रात थी, बिजली तो अभीतक गाँव में थी नही.. अभी भी लोग लालटेन से ही काम चलाते थे.. मैने दरवाजा खटखटाया…

एक मिनट में ही दरवाजा खुल गया.. वो मेरे सामने खड़ी थी, मैने पुछा महेश चाचा हैं.. तो उसने कहा कि खाना खा रहे हैं..

मैने फुसफुसा कर पुछा – क्या प्रोग्राम है.. ?

वो – थोड़ी देर बाद ये खाना ख़ाके खेतों पर जा रहे हैं, आज वहीं सोएंगे…

मे – क्या सच में…, तो वो मुस्करा कर बोली- हां..! फिर मे अंदर गया, उसके ख़सम से रामा किश्ना की..! और उसके पास ही बैठ गया..

मे – क्या चाचा ! यार चुप चाप शादी करली, कम से कम बता तो देते..

महेश – अरे यार ! तू यहाँ था ही नही, वरना दावत तो मिलती ही.. चलो कोई नही, कल आजाना दोपहर खाना यहीं करवा देते हैं.. 

फिर वो अपनी पत्नी से मुखातिब होकर बोला – अंजलि ! ये अरुण , अपना भतीजा है, शादी पर यहाँ नही था, कल इसकी दावत कर देते हैं.. थोड़ा अच्छा सा खाना बना लेना…! 

तबतक उसका खाना हो गया तो बोला – आज मुझे वारी रखाने जाना है, साली नील गाय बहुत नुकसान कर गयी हैं, तो मे तो निकलता हूँ, 

मैने कहा तो फिर ठीक है मे भी निकलता हूँ, कल मिलते हैं..

महेश – अरे तू बैठ ना ! नयी चाची से बात चीत कर, पहचान बना.. कब-कब मिलते हैं..

मे मन ही मन खुश हो रहा था, और शायद अंजलि भी, लेकिन प्रत्यक्ष में बोला- नही चाचा, पता नही चाची क्या सोचेगी..? 

अकेले में मेरा यहाँ रहना ठीक नही है.. तो चलो में भी निकलता ही हूँ.

महेश – अरे यार ! मुझे आदमी की पहचान है, तू बैठ.. बातें कर.. क्यों अंजलि, तुझे कोई दिक्कत तो नही होगी इससे..

वो – मुझे क्यों दिक्कत होगी, और वैसे भी जैसा मैने इनके बारे में सुना है, बहुत ही अच्छे आदमी हैं.. सबके भले के लिए ही सोचते हैं..

फिर छोटे चाचा तो निकल गया अपने खेतों के लिए और मैने अंजलि को बाहों में लेकर चूम लिया…


मे – और मेरी जान ! कल दावत में क्या खिला रही हो..?

वो हंसते हुए बोली… पहले आज की दावत का तो मज़ा लेलो.. कल की कल देखेंगे..

मैने उसकी गान्ड मसल्ते हुए कहा – यार अंजलि ! तू तो और ज़्यादा मस्त हो गयी है… चाचा के तो मज़े हो गये, भेन्चोद क्या गदर माल मिला है..

वो – छोड़ो ना इन बातों को ! और हमें जो करना है वो करते हैं..फिर उसने मेरे गले में अपनी मांसल बाहें डालकर मेरे होठों का रस चूसना शुरू कर दिया...

मेरी साँसें उसकी साँसों के साथ घुलने लगी, दोनो की मस्ती भारी हरकतें अपना असर दिखा रही थी. 

हम दोनो ही उसके किचेन में खड़े एक दूसरे में समाने की कोशिश में लगे थे, जल्दी ही मैने उसकी सारी उसके बदन से निकाल फेंकी.

ब्लाउस में कसी उसकी भरी पूरी चुचियाँ, ब्लाउस के उपर से छल्क्ने को उतावली दिख रही थीं, 

मैने उसके दोनो उरोजो के बीच अपना मुँह डाल दिया और उनके उपरी भाग को अपनी जीभ निकाल कर चाटने लगा.

मेरा लंड नीचे पाजामे में अकड़ कर ठीक उसकी चूत के उपरी हिस्से पर दस्तक दे रहा था, मानो उसे भी अपनी प्रियतमा के दीदार का इंतेज़ार हो.

मैने उसके होठों को चूस्ते हुए उसकी चुचियों को ब्लाउस के उपर से ही इतनी ज़ोर से मसला कि उसकी कराह ही निकल गयी…

आअहह…..अरूंन्ं…धीरीए…रजाआअ…. इसी के साथ उसके ब्लाउस के दो-तीन बटन चटक कर गिर पड़े….

वो अपने होठ को चबाते हुए बोली – मेरे दूधों की दीवानगी अभी तक गयी नही तुम्हारी…

मे – अरे मेरी रानी… तेरी चुचियाँ हैं ही इतनी कमाल की, जी करता है इन्हें हमेशा के लिए अपने पास ही रख लूँ…!

मेरी बात सुन कर वो खिल-खिलाकर हँस पड़ी और मेरे मूसल को पकड़ कर ज़ोर से मसल्ति हुई बोली – तो बदले में मुझे ये चाहिए.. हमेशा के लिए..

आअहह… ले ले… रानी… ये तो कब्से तेरी कुप्पी में मुँह डालने के लिए बेकरार है….
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RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा... - by sexstories - 12-19-2018, 02:07 AM

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