Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:11 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
अब लोग चाहे मुझे सूपरस्टिशस समझें या कुछ और, लेकिन में आत्मा-परमात्मा, प्रारब्ध में विश्वास करता हूँ, तो अपनी माँ द्वारा किए गये पुन्य कर्मों का प्रताप अपने जीवन में समझता आया हूँ और समझता रहूँगा.

मेरे पास अभी कुछ दिन थे ट्रैनिंग जाय्न करने में. घर पर अब मेरा ज़्यादा मन नही लगता था, सोचा पुराने मित्रों से मिल लिया जाए, फिर ना जाने कब मुलाकात हो, हो भी या नही जिंदगी में.

तो मैने धनजय के गाँव जाने का निश्चय किया और भाई की बाइक ली और चल दिया उसके गाँव की ओर. 

उसके घर जाकर पता चला कि वो गुरगाँव में जॉब करता है, शादी अभी नही हुई थी. 

उसके रहने ना रहने से उसके घरवालों को कोई फ़र्क नही पड़ता था. उन्होने मुझे बड़े ही अप्नत्व भाव से वेल कम किया. 

रेखा की शादी हो चुकी थी और वो भी किसी शहर में अपने पति के साथ रहती थी.

घर पर उसके पेरेंट्स और भैया भाभी ही थे. सबसे पहले उसके घर से उसका कॉंटॅक्ट नंबर लिया और अपने सेल से उसको कॉल किया, 

जब उसने कॉल पिक की तो मैने उसको 36 गालियाँ दी. 

उसने रिक्वेस्ट की, कि मे आज की रात उसके घर रुकु, वो कल दोपहर से पहले कैसे भी करके पहुँच जाएगा. 

भाबी और माँ पास ही बैठी थी, तो मैने टॉंट मारते हुए कहा.

मान ना मान मे तेरा मेहमान, किसी के भी घर में ऐसे कैसे कोई रुक सकता है, भाभी ने फटकार लगा कर भगा दिया तो..? 

वो फोन पर ही हसने लगा, भाभी और आंटी भी हसने लगी, 

फिर भाभी ने मेरे हाथ से फोन ले लिया और धनजय से बोली, देवर जी तुम कल आराम से आ जाना, इनके तो हम हाथ पैर बाँध कर डाल देंगे, 

जाने की बात तो दूर, यहाँ से हिलने भी नही देंगे और खिल-खिला कर हँसने लगी. 

वो इतनी खुश दिखाई दे रही थी मेरे आने से की मानो कोई उनकी कोई बहुत पुरानी मनोकामना पूरी हो गयी हो.

कुछ देर बाद आंटी भी उठके अपने काम में लग गयी, तो मैने उनसे पुछा कि अमर कहाँ है..? तो उन्होने बताया कि वो स्कूल गया है..!

मे- वाउ ! स्कूल जाने लगा, तो वो बोली- क्यों नही, अब तो वो २न्ड स्ट्ड. है, बड़ी-2 बातें करता है बिल्कुल तुम्हारी तरह.

कुछ देर में ही वो स्कूल से आ गया, मे उसे देखता ही रह गया, क्या सुंदरता पाई थी उसने, एकदम गोरा-चिटा बिल्कुल अपनी माँ पर गया था, हां आँखें मुझसे मिलती थी. 

धूप में चल कर आया था सो उसका चेहरा एकदम लाल हो रहा था, मैने उसे अपनी गोद में बिठा कर उसके गाल पर एक किस किया.

अमर- मम्मी ये कॉन हैं..?

वो कुछ देर चुप रही.. तो मैने ही कहा, बेटा मे तुम्हारे धन्नु अंकल का दोस्त हूँ. 

तो वो बोला- फिर तो आप भी मेरे अंकल हुए ना ! मैने कहा- बिल्कुल बेटा ! हम भी आपके अंकल है ये कहकर मैने उसे अपने सीने से लगा लिया….!

उसे गले लगाते ही ना जाने क्यों मेरी आँखें नम हो गयी………

भाभी मेरी ओर देख रही थी, और आँखों-2 में ही शुक्रिया अदा किया. फिर अमर को लेकर उसके कपड़े वगिरह चेंज करने चली गयी.

रात को 1 बजे भाभी, अपने बच्चे और पति को सुलाने के बाद मेरे कमरे में आ गयी, लिपट गयी मुझसे. सुबक्ते हुए बोली-

कितने दिनों में खबर ली है मेरी, भूल ही गये थे अपनी दासी को..?

मे- अच्छा जी उल्टा चोर कोतवाल को डान्टे.. हान्ं..!! मे यहाँ आ गया तो लगी शिकायत करने, कभी आपने खबर ली की देवर मार गया या जिंदा है.

वो- मेरे मुँह पर हाथ रखते हुए बोली - मरें आपके दुश्मन, भगवान से यही दुआ है मेरी कि तुम सौ साल जियो..!

मे- बस सौ साल…? उसके बाद..? तो वो हँस पड़ी और मुझे और ज़ोर से जाकड़ लिया.. 

मैने भी उसकी पीठ पर से हाथ फेरता हुआ उसके कुल्हों पर ले जाकर मसल दिया, और बोला..

वाउ ! आपकी गान्ड तो और ज़यादा मोटी हो गयी हैं भाभी, क्या खाती हो..? थोड़ा बहुत मेहनत किया करो..!

वो- क्यों घरके काम क्या पड़ोस की रामा काकी करने आती होगी..? सारे घर के काम तो करती हूँ और कितनी मेहनत करूँ..हान्न्न..?

मे - तो फिर ये और बाहर को ही क्यों निकलते आ रहे हैं, भैया मेहनत करते हैं क्या इनपर..?

वो - अरे कहाँ !! वो तो आगे से ही कर लें यही बहुत है..?

ऐसी ही छेड़ छाड़ के साथ-2 हम लोग गरम हो गये, और फिर हो गये शुरू अपने पसंदीदा खेल को खेलने में, 

सुबह के चार बजे जाकर ही दम लिया. उसके तीनों छेदों की अच्छे से सर्विस करके मे सो गया और वो उठके अपने कमरे में चली गयी.

दूसरे दिन दोपहर तक धनंजय आ गया, और आते ही मुझसे लिपट गया, कुछ देर शिकवे-शिकायत हुए और फिर हम दोनो दोस्त अपने-2 भविष्य की बातों में लग गये.

वो गुरगाँव में ही किसी कंपनी में असिस्टेंट मॅनेजर था . 

जब उसने मेरे बारे में पुछा तो मैने उसको बता दिया कि मे तो आज-कल सब कुछ छोड़-छाड़ कर घर पर ही मज़े कर रहा हूँ, लेकिन मेरा जॉब गुजरात में एक पीएसयू में फिक्स हो गया है, 6-7 महीने के बाद जाय्न करूँगा.

फिर मैने उससे पुछा कि कितने दिन की छुट्टी लेके आया है, तो वो बोला- तू बता कितने दिन रहेगा मेरे साथ उतने दिन की ले लूँगा..!

मैने कहा तो चल जगेश के यहाँ चलते हैं, फिर उसको लेके ऋषभ से मिलते हैं.

उसके पास दोनो के कॉंटॅक्ट नंबर थे, तो उसने पहले जगेश को फोन किया वो भी उसी शहर में किसी दूसरी कंपनी में था, 

जब उसको बताया कि हमारा प्लान क्या है ? तो वो तुरंत तैयार हो गया और दूसरे दिन धनंजय के घर ही आने को तैयार हो गया.

जब हमने ऋषभ को कॉल किया तो वो पुणे की एक बड़ी फर्म में जॉब पर ही था, अब उससे कैसे मिला जाए ? 

वो बोला कि क्यों ना तुम लोग भी यहीं आ जाओ, और फिर चारो मिलकर गोआ घूमने चलें. 

आइडिया बुरा नही था सो हो गया तय, और उसी शाम हम तीनो बाइक से मेरे घर पहुँचे, रात रुक कर दूसरे दिन पुणे के लिए ट्रेन पकड़ ली अपने शहर से.

ऋषभ से घर परिवार की राज़ी खुशी से पता चला कि उसकी बेहन ट्रिशा ग्रॅजुयेशन के बाद आइपीएस के लिए सेलेक्ट हो गयी है और इस समय पोलीस ट्रैनिंग कॅंप में ट्रैनिंग ले रही है जो अगले 1 साल में कंप्लीट भी हो जाएगी. 

ऋषभ और जगेश दोनो ने सदी कर ली थी, लेकिन फिलहाल वो सिंगल ही रहते थे.

हम चारो दोस्त गोआ पहुँचे, वहाँ हमने जी भरके मस्ती की, वहीं पहली बार मैने बीयर भी पी, 

धन्नु और जगेश तो पहले से ही आल्कोहॉलिक हो चुके थे, मैने और ऋषभ ने पहली बार टेस्ट किया था किसी तरह के आल्कोहॉलिक ड्रिंक को.

2-3 दिन गोआ एंजाय करने के बाद हम सब अपने-2 ठिकाने लौट लिए, क्योंकि मेरे कॅंप जाय्न करने की डेट नज़दीक थी, इस विषय को मैने अपने दोस्तों को हवा भी नही लगने दी.

कुछ दिन घर रुक कर माँ की सेवा की और एक दिन उसका आशीर्वाद लिया, उठाया झोला और निकल लिया सरफरोशी के रास्ते पर जिसका मेरे अलावा मेरे किसी जानने वाले को हवा तक नही थी….!!

मन में एक सवाल सा उठा..! मे अपनों से दूर, अपनों से सच्चाई छिपाकर एक अंजानी राह पर निकल पड़ा हूँ दरअसल ये है क्या…? 

कोई मकसद तो कतई नही हो सकता..? क्योंकि मकसद तो कुछ पाने के लिए होता है, एक टारगेट डिसाइडेड होता है, 

यहाँ तो मैने सब कुछ खो दिया था, रिस्ते-नाते, प्रेम, विश्वास सब कुछ, घर, जयदाद सब कुछ.. ! आख़िर क्यों..? किसलिए..?

फिर स्वतः ही मुझे मेरे अंदर से ही जबाब भी मिल गया.. शायद वो मेरी अंतरात्मा होगी जिसने ये जबाब दिया- ये तुम्हारा प्रारब्ध है ! 

इसमें तुम्हारा अपना कोई फ़ैसला नही है, और ना ही ले सकते हो. 

जन कल्याण के कार्यों में भागीदारी के लिए नियती कुछ लोगों को चुनती है, जिनमे से एक तुम हो, इसलिए बिना सोच – विचार किए, वही करो जो नियती तुमसे करना चाहती है.
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