RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
उधर जब उस नौजवान ने फोन कट किया तो रुखसाना ने रुआंसे स्वर में उससे पुछा - अब तो बता दो कि तुमने ऐसा क्यों किया..? हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है..?
नौजवान ने उसके रसीले होठों को अपने अंगूठे से रगड़ते हुए कहा - बता दूँगा मेरी जान..! सबर कर ! सब कुछ बता दूँगा..!
अभी वो ये बातें कर ही रहे थे कि तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज़ सुनाई दी.
उसने आगे बढ़ कर दरवाजा खोल दिया, सामने वही दोनो खड़े थे, जो अब उस नौजवान के गले मिल रहे थे.
अंदर आकर उन्होने कुछ पॅकेट जो वो बाहर से लेकर आए थे, उन्हें सेंटर टेबल पर रख दिया. और सोफे पर बैठ गये जहाँ वो दोनो पहले से ही बैठे थे.
उनकी बातचीत में अभी तक उन्होने एक दूसरे का नाम नही लिया था, बस संकेतिक शब्दों से ही काम चला रहे थे.
फिर उनमें से एक आदमी एक पॅकेट लेकर स्टोर रूम की ओर चला गया,
वहाँ जाकर उसने उस क़ैद किए हुए आतंकवादी जो अब एकदम ठीक हो चुका था, उसे खोला, और उसको खाना दिया.
उधर उस नौजवान ने भी खाना निकाला, रुखसाना को दिया और खुद भी खाया.
वो थोड़ा नखरे कर रही थी, लेकिन फिर मान गयी, क्योंकि भूखे रहना किसी भी सूरतेहाल में उसके लिए फ़ायदा नही होता.
दूसरे दिन दोपहर के बाद उस नौजवान ने गनी को फोन किया, जब उसने बताया कि वो तैयार है पैसे देने को बोलो कहाँ और कब आना है,
तो उसने जगह का नाम और समय बता दिया और साथ ही साथ हिदायत भी दी कि अगर कोई चालाकी की तो बीवी तो हाथ से जाएगी ही,
वो भी इतना बदनाम हो जाएगा कि कहीं मुँह छुपाने के काबिल नही रहेगा.
शाम साडे 6 बजे, जब सूर्यास्त हो रहा था, वो नौजवान और एक बंदे ने उस क़ैदी के हाथ-पैर बाँधे और मुँह पर एक टेप चिपका कर रुखसाना की बिना नज़र में आए उसे गाड़ी की डिग्गी में डाल दिया,
दूसरे बंदे को रुखसाना पर नज़र रखने को छोड़ कर वो दोनो उसे लेकर निकल गये.
शाम 7 बजे एक काले रंग की स्कॉर्पियो भारोल स्टेशन के पास वाले उजाड़ और टूटे-फुट रोड पर आकर रुकी, अभी उसमें से कोई बाहर नही आया था,
उसमें बैठे गनी को फोन आया और उसको पास के ही बंद पड़े मिल के अंदर गाड़ी लेजाने को कहा,
स्कॉर्पियो फॅक्टरी के टूटे-फूटे गेट के अंदर चली गयी.
फोन पर लगातार इन्स्ट्रक्षन मिल रहे थे, देखते-2 स्कॉर्पियो फॅक्टरी के पीछे की ओर बने लोडिंग कॉंपाउंड में पहुँच गयी और खड़ी हो गयी.
उसमें से गनी भाई एक सूटकेस लेकर उतरा, उसका ड्राइवर गाड़ी में ही रुका रहा,
तभी फोन पर फिर से दहाड़ सुनाई दी कि ड्राइवर को गाड़ी लेकर वापिस भेजो..!
ये सुनकर गनी हड़बड़ा गया, और बोला- फिर मे वापस कैसे जाउन्गा..?
आवाज़ आई- फोन करके बाद में बुला लेना, अभी उसको यहाँ से दूर भेजो.
गनी ने ड्राइवर को जाके कुछ बोला, एक मिनट के बाद ही स्कॉर्पियो वहाँ से चली गयी और उस एरिया से दूर हो गयी.
गनी को इन्स्ट्रक्षन दी कि वो अंदर जाकर वेट करे.
दो मिनट के बाद उसी जगह पर एक सूडान कार आकर रुकी और उसमें से वो नौजवान उतरा, दूसरा बंदा कहाँ गया हमें भी पता नही चला.
उस नौजवान ने गाड़ी की डिग्गी खोली और उस क़ैदी के पैरों की रस्सी खोल कर उसे बाहर निकाला और उसकी बाजू पकड़के घसीटते हुए अंदर ले गया.
गनी इस समय एक हॉल जैसे अहाते में खड़ा था, अंधेरा घिरने लगा था, फिर भी इतनी रोशनी थी कि सब कुछ नंगी आँखों से दिखाई दे रहा था.
गनी को अपने पीछे कुछ आहट सुनाई दी तो वो पलटा, और जैसे ही उसकी नज़र उस आतंकवादी पर पड़ी.. वो उच्छल ही पड़ा..…तूमम्म..!!
उस क़ैदी आतंकवादी के पीछे खड़ा वो नौजवाना बोला- क्यों सत्तार मियाँ .. झटका लगा ना..?
गनी की नज़र पहली बार उस नौजवान पर पड़ी, वो हकलाते हुए बोला - कौन हो तुम…और ये कॉन है..? मेरी बीवी कहाँ है..?
नौजवान - क्यों इसको नही पहचानते..?
गनी - नही मे नही जानता कि ये कॉन है..?
नौजवान - तो इसे देखकर इतना उच्छल क्यों पड़े थे..?
गनी – म.म्मईएनी सोचा था, मेरी बीवी यहाँ होगी… लेकिन उसकी जगह इसको देखा तो वो..चौंक गया बस.. और कुछ नही.
नौजवान - अच्छाअ ! लेकिन ये तो कहता है कि ये तुम्हें अच्छी तरह से जानता है..! और तुम बोल रहे हो, कि इसको नही जानते…इसका मतलब ये झूठ बोल रहा है..? लेकिन क्यों..?
गनी - अब मे क्या जानू, ये क्यों झूठ बोल रहा है..?
नौजवान – फिर तो भी झूठ होगा, कि तुम्हारी रुखसाना बेगम ****** है..?
नौजवान के मुँह से ये शब्द सुनते ही, गनी का मुँह खुला का खुला रह गया.. वो उसे किसी अजूबे की तरह देख रहा था…
नौजवान - जबाब नही दिया तुमने प्यारे..?
फिर तो शायद ये भी झूठ होगा कि ******************************* का सरगना ज़फ़्फरुल्ला ख़ान तुम्हारा साला है..?
और तुमने ही इस बंदे और इसके तीन साथियों को ना केवल पनाह दी, बल्कि इन्हें अपने साथ, *** शहर तक लेकर गये थे, अपने पोलिटिकल कद का सहारा लेकर.
गनी बिल्कुल हक्का-बक्का सा खड़ा रह गया, फिर अचानक उसने अपनी लंबी सी कमीज़ के नीचे से रेवोल्वेर निकाल कर उस नौजवान पर तान दी.
रेवोल्वेर तान कर वो दहाडा - काफ़िर की औलाद, तू मेरे बारे में सब कुछ जान चुका है, अब तेरा जिंदा रहना मेरे लिए सही नही होगा…,
अपनी जान से अज़ीज़ बीवी को तो में बाद में भी ढूँढ लूँगा, लेकिन तेरा जिंदा रहना अब मेरे लिए ठीक नही है, ये कहते हुए उसकी उंगली ट्रिग्गर पर कसने लगी.
पित्त्तत्त…एक हल्की सी आवाज़ हुई और गनी की रेवोल्वेर ज़मीन पर जा गिरी, वो अपने घायल हाथ को पकड़ कर वहाँ से भागने के लिए एक तरफ को लपका ही था,
कि एक बार फिर से पित्त्तत्त… की आवाज़ हुई और एक गोली उसकी जाँघ में घुस गयी, वो ज़मीन पर बैठ कर दर्द से तड़पने लगा.
दरअसल हुआ यूँ कि गनी जैसे ही ट्रिग्गर दवाने वाला था, कि वो दूसरा बंदा जो इन पर नज़र रखे हुए था उसने साइलेनसर युक्त रेवोल्वेर से उसके हाथ पर गोली चला दी.
नतीजा अब सत्तार मियाँ उनकी गिरफ़्त में थे.
वो नौजवान जो कोई और नही एनएसएसई एजेंट अरुण था, गनी को अपने कब्ज़े में लेने के लिए उसकी ओर बढ़ा,
मौके का लाभ उठाते हुए वो क़ैदी आतंकवादी वहाँ से खिसकने की फिराक़ में चुप-चाप पीछे वाले गेट की ओर खिसकने लगा,
तभी एक गोली और चली और सीधी उसकी खोपड़ी में सुराख बना गयी, वो वही ढेर हो गया, सेकेंड के सौवे हिस्से में ही उसकी आत्मा एश्वरपूरी की शैर पर जा चुकी थी.
गनी की मस्क कस्के उन्दोनो ने गाड़ी की डिग्गी में डाला और 20 मिनट के अंदर वो फार्म हाउस में थे.
अब मियाँ बीवी दोनो आमने-सामने थे, फ़र्क इतना था, कि बीवी आज़ाद थी और मियाँ जी बँधे पड़े थे.
रास्ते में आते-2 उन्होने पोलीस को इनफॉर्म करके बता दिया कि चौथा आतंकवादी कहाँ पड़ा है,
जब पोलीस द्वारा बताने वाले का नाम पुचछा गया तो जबाब मिला, कि आम खाओ, पेड़ गिनने के चक्कर में मत पडो.
वैसे भी पोलीस को इस मामले में अपनी ज़्यादा नाक ना घुसेड़ने की खास हिदायत दी गयी थी,
पोलीस ने उसकी बॉडी बताए गये स्थान से प्राप्त कर ली थी………….
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