Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:21 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
चौधरी गाड़ी से उतार कर अंदर चला गया, उस दरबान ने ड्राइवर को इशारा किया और गाड़ी बंगले के साइड में बने पार्किंग की ओर चली गयी.

यहाँ 3-4 गाड़ियाँ पहले से खड़ी हुई थी, इसका मतलब यहाँ और भी लोग थे. 

सज्जाक ने गाड़ी खड़ी की और बाहर आकर बंगले का निरीक्षण करने लगा.

दो मंज़िला बंगला काफ़ी बड़ा था, अब अंदर का क्या जियोग्रॅफिया था, वो तो अंदर जा कर ही पता चलेगा, लेकिन पहले बाहर से देख लेना चाहिए.

ऐसा सोचता हुआ सज्जाक पार्किंग से ही बंगले के पिछले हिस्से की ओर चल दिया, बंगले के पीछे एक बहुत बड़ा स्विम्मिंग पूल भी था, जिसके लिए बंगले के पिछले गेट से भी आया जा सकता था.

सज्जाक स्विम्मिंग पूल से होता हुआ, दूसरी साइड से चक्कर लगा कर बंगले के गेट पर पहुँच गया, वो अंदर जाना चाहता था लेकिन उस पहलवान जैसे दरवान ने उसे रोक दिया, तो वो उससे बात-चीत करने में लग गया.

सज्जाक- ये फार्म हाउस चौधरी साब का हैं..?

दरबान - हां ! तुम्हें क्या लगा कि वो किसी दूसरे के फार्म हाउस पर आए हैं..?

सज्जाक - नही ऐसी बात नही है, लेकिन वो और भी गाड़ियाँ खड़ी दिखी इसलिए पुछा, मे अभी नया ही आया हूँ तो पता नही है ना..!

दरबान - वो कुछ लोग उनसे मिलने आए हैं यहाँ और वो सब कल सुबह तक यहीं रहेंगे.

सज्जाक - तो कल सुबह तक मे कहाँ रहूँगा..?

सज्जाक के पुच्छने पर उसने पार्किंग साइड से बने एक लाइन में कुछ क्वॉर्टर्स की ओर इशारा किया, 

और उससे बोला - वहाँ जाकर आराम से बैठो, समय पर सब कुछ पहुँच जाएगा तुम्हारे पास.

सज्जाक उन क्वॉर्टर्स की तरफ बढ़ गया, जिनमें से कुछ में पहले से ही कुछ लोग मौजूद थे जो शायद दूसरों के ड्राइवर वग़ैरह होंगे.

वो भी उन लोगों के पास पहुँचा और अपना परिचय दिया, अब वो सब लोग आपस में बात-चीत करने लगे.

बातों-2 में पता चला कि एक नेता बस्तर से आया है जिसका नाम प्रताप खांडेकर है, दो रायगढ़ के ही हैं, उनमें से एक नेता और दूसरा प्रशासनिक अधिकारी है, 

चौथी एक महिला विकास मंडल की प्रमुख अपनी दो सहायकाओ के साथ आई हुई है.

अब अंदर क्या चल रहा था, ये इनमें से कोई नही जानता था.

करीब 9:30 एक आदमी अंदर से ही इन लोगों को खाना दे गया, जो सबने मिलकर खाया, और अपने-2 क्वॅटरो में सोने चले गये.

सज्जाक ने भी एक कोने का क्वॉर्टर पकड़ा और उसमें पड़ी एक चारपाई के बिस्तेर पर लेट गया.

कोई 11 बजे के आस-पास बंगले के अंदर की लाइट ऑफ हो गयी, दो-चार कमरों को छोड़ कर, बाहर की बौंड्री वॉल पर कुच्छ बल्ब लगे थे जो टीम-टीमा कर अपनी पीली सी रोशनी फार्म हाउस में डाल रहे थे.

अंदर की लाइट ऑफ हुए कोई आधा –पोना घंटा ही गुज़रा होगा कि एक साया बंगले के पीछे प्रगट हुआ, जो अंधेरे का लाभ उठाते हुए एक पाइप के सहारे उपर की ओर चढ़ने लगा और फर्स्ट फ्लोर की छत पर पहुँच गया.

छत से वो सीडीयों के ज़रिए दबे पाव नीचे की ओर आया और सभी कमरों को चेक करता हुआ एक बड़े से हॉल जैसे कमरे के पास पहुँचा जिसकी सारी खिड़कियों पर पर्दे पड़े हुए थे.

वो अभी इधर उधर की आहट लेने की कोशिश कर रहा था, कि उसके कानों में हॉल से आती हुई कुछ सम्मिलित आवाज़ें सुनाई दी.

उसने दरवाजे के कीहोल से अंदर देखने की कोशिश की, लेकिन उस पर भी अंदर से परदा होने के कारण कुछ दिखाई नही दिया.

फिर उसने अपनी जेब से कुछ स्क्रू-ड्राइवर जैसा निकाला और एक विंडो के लॉक को खोलने लगा, जैसे ही लॉक के स्क्रू लूस हुए उसने लॉक को 90 डिग्री टर्न किया और विंडो अनलॉक हो गयी.

एक काँच के पारटिशन को बिना आवाज़ उसने सरकाया और बड़ी सावधानी से खिड़की के पर्दे को हल्का सा एक साइड में कर दिया. 

अब वो हॉल में होने वाली सभी तरह की गति विधियों को साफ-2 देख सकता था, 
जैसे ही उसने हॉल में हो रहे कार्य क्रम को देखा…! उसका मुँह खुला का खुला रह गया………..!!!!
हॉल में इस समय चौधरी समेत 4 पुरुष और 3 महिलाएँ मजूद थी, 

पुरुषों के बदन पर मात्र अंडरवेर थे और वो एक बड़े से सोफे पर बैठे थे जो एक एल शेप में हॉल के बीचो-बीच पड़ा था. 

तीनों महिलाएँ मात्र ब्रा और पेंटी में उनकी गोद में बैठी हुई थी, सबके हाथ में महगी शराब के जाम थे.

उन तीन औरतों में एक औरत अधेड़ उम्र की जो थोड़ा सा भारी भी थी, 38 साइज़ की चुचिया और 42 की गान्ड, कमर भी 36 की होती. लेकिन वाकी दो युवतियाँ 25-26 की एज की और फिट शरीर वाली थी.

अधेड़ औरत प्रताप खांडेकर और एक दूसरे आदमी जो की तकरीबन 55-56 साल का तो होगा उन दोनो के बीच में बैठी थी.

वो उन औरतों के अंगों से खेलते हुए शराब की चुस्कियाँ ले रहे थे और साथ-2 में बातें भी करते जा रहे थे.

चौधरी अपनी गोद में बैठी युवती के निपल को सहलाते हुए बोला- खांडेकर साब, आपके किए हुए वादे का क्या हुआ..? 

एक महीना हो गया अभी तक चंदन और जानवरों की खाल हमारे पास तक नही पहुँचे हैं.

प्रताप - मुझे याद है, लेकिन वो साला नाबूदिया गोमेस ना तो मिलने आता है, और फोन करो तो उल्टा जबाब देता है. 

वैसे उसका कहना भी सही है, हमने अभी तक उसके हथियार जो उसने माँगे थे वो भी सप्लाइ नही किए हैं.

वो बोल रहा था, कि मेरे बहुत से आदमियों के पास हथियार ही नही है. उधर जंगल में सीआरपीएफ की गस्त बढ़ती जा रही हैं.

फिर चौधरी उस प्रशासनिक अधिकारी से मुखातिब हुआ जिसका नाम राइचंद था बोला- क्यों राइचंद जी, भाई क्या हुआ हथियार क्यों नही पहुँचे अब तक, जबकि हम उस डीलर को 25% अड्वान्स भी दे चुके हैं.

राइचंद – वो अगले हफ्ते तक पहुँचाने की बात कर रहा है, लेकिन उन्हें लाने में एंपी साब की मदद चाहिए.

चौधरी - हां तो इसमें क्या है, मदद मिल जाएगी.. क्यों एंपी साब..?

एंपी - हां..हां.. ! बिल्कुल, जब कहो में ट्रूक की एंट्री करवा दूँगा.

चौधरी - देखिए भाई लोगो, हम इसमें काफ़ी पैसा लगा चुके हैं, अब जितना समय बर्बाद होगा हम लोगों का नुकसान भी उतना ही होगा. इसलिए जैसे ही हथियार मिलते हैं, उन्हें गोमेस को सौंप कर उससे माल ले लो.

फिर वो सब लोग उन औरतों के साथ खेलने में जुट गये, और एक सामूहिक चुदाई का खेल रात भर चलता रहा, 

इस बात से बेख़बर की एक जोड़ी आँखें उनकी इस करतूत को देख ही नही रही थी अपितु ये सब एक कमरे में क़ैद भी हो चुका था.

और सुबह के 4 बजते-2 वो सब एक-एक करके वहीं फार्स पर पड़ी कालीन पर लुढ़कते चले गये.
दूसरे दिन शाम को मैं अपने लॅपटॉप पर रिपोर्ट टाइप कर रहा था, कि मेरे ट्रांसमीटर पर कुछ सिग्नल आने लगे. 

मैने हेड फोन कान से लगाए और उस तरफ की बातें सुनने लगा.

प्रताप खांडेकर अपने फोन पर किसी नाबूदिया गोमेस नाम के आदमी से बात कर रहा था.

प्रताप - गोमेस ये क्या कर रहे हो तुम ? अभी तक हमारा माल क्यों नही पहुँचा..? मेरे पार्ट्नर्स मेरी जान खाए जा रहे हैं भाई.

गोमेस - अपुन का असलाह भी तो नही मिला हमको, तुम तुम्हारा ही माल का बात करता रहता है, हमारा आदमी कैसे-2 करके माल निकालता है तुमको क्या पता, 
अब साला गवर्नमेंट का सेक्यूरिटी फोर्सस इतना बढ़ गया है जंगल में. खबर भी है तुमको कुछ..?

प्रताप – हां ! मे समझता हूँ, फिर भी एक खेप तो अरेंज करो इस हफ्ते, तुम्हारे हथियार अगले हफ्ते मिल जाएँगे.

गोमेस - तो तभिच बात करने का, अभी हमारे पास कुछ नही है. इधर तुम हमको हथियार और पैसा देगा उधर तुम्हारा माल तुमको मिल जाएगा.

प्रताप – अरे यार इतना क्यों भाव ख़ाता है, बोला ना तुम्हारा माल मिल जाएगा जल्दी ही, तब तक कुछ तो करदो…

गोमेस – एक बार बोल दिया बात फिनिश, एक हाथ ले और दूसरे हाथ दे..

प्रताप - ठीक है अगले हफ्ते ही मिलते हैं फिर, बस्तर नाके के पास.

गोमेस - ओके.. अब मे फोन रखता है.. चलो..!
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