RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मैने एक पवर फुल रिमोट ऑपरेटेड बॉम्ब उस आर्म्ड स्टोर में ऐसी जगह फिट कर दिया जहाँ खोजी नज़रों से ही देख पाना संभव होता.
उसके बाद दोनो साइड में जहाँ अमूमन ट्रेनिंग होती थी, और कुछ ऐसे फ्रेम फॅब्रिकेटेड किए हुए थे जो एक्सर्साइज़ करने के काम आते थे, उसके एक पाइप को खोल कर उसके अंदर ऐसा ही एक बॉम्ब फिट कर दिया.
पीछे की तरफ ये लोग फाइरिंग की प्रॅक्टीस करते थे, जहाँ शूटिंग टारगेट बना रखे थे, उन टारगेटों के सेंटर में एक खड्डा खोद कर उसमें एक बॉम्ब फिट कर दिया.
ये सारा काम निपटा कर मे जैसे गया था उसी तरह वापस भी आ गया बिना किसी रुकावट के.
मेरा उद्देश्य, दहशतगर्दों और आर्मी को ये जताना था, कि वो जो कर रहे हैं, उसका जबाब भारत के सपूतों द्वारा उनके घर में घुसकर भी दिया जा सकता है.
सारे एविडेन्स मे पहले ही मैल कर चुका था इन कंपों से संबंधित.
आनेवाले कल में ये पाकिस्तानी हुकूमत जो एक फ़ौजी के ही हाथों में थी, के मुँह पर एक करारा तमाचा पड़ने वाला था जिसकी गूँज पूरी दुनिया को सुनाई देने वाली थी,
और जिसकी चोट ये मुल्क कुछ दिनों तक महसूस करने वाला था.
रात 3 बजे मे खिड़की के ज़रिए अपने रूम में लौट आया और एक सुकून भरी नींद में डूब गया….!
दूसरे दिन उस कॅंप में कुछ स्पेशल था, खुद मोहम्मद हफ़ीज़ का दाया हाथ कहे जाने वाला उसका कमॅंडर खुद ट्रेनिंग देखने आया था,
4 पाकिस्तानी आर्मी के ऑफिसर्स भी उसके साथ थे.
ट्रैनिंग सुबह अपने समय से शुरू हो चुकी थी, 8 बजते ही वहाँ ट्रैनिंग एरिया में सभी मजूद थे,
अभी उन्हें ट्रैनिंग शुरू किए हुए कोई आधा घंटा ही गुजरा होगा, कि तभी मैदान के उत्तरी भाग में जहाँ फिज़िकल ट्रैनिंग चल रही थी, एक जबरदस्त बिस्फोट हुआ, चारों ओर अफ़रा तफ़री, देखते ही देखते वहाँ लाशें ही लाशें नज़र आने लगी.
इससे पहले कि शूटिंग एरिया में में मौजूद लोग जिनमें वो कमॅंडर और फ़ौजी भी शामिल थे कुछ और समझ पाते कि वहाँ पर भी एक भयंकर बिस्फोट हुआ.
यहाँ पर मौजूद भी ज़्यादातर लोग बिस्फोट से उड़ गये,
चूँकि वो लोग थोड़ा दूर खड़े शूटिंग देख रहे थे, सो बच तो गये लेकिन बिस्फोट ने उन्हें बहुत दूर उछाल दिया…
जैसे तैसे करके दोनो तरफ के बचे हुए लोग सीधे बिल्डिंग की तरफ भागे, लेकिन मौत से बचकर कहाँ तक भाग सकते थे, सो जैसे ही वो उस वर्कशॉप में पहुँचे कि भडाम !
सब कुछ तहस नहस हो गया. शायद ही कोई जिंदा बचा हो सिवाय गेट पर मौजूद गार्डस के.
ट्रॅन्समिज़्षन सिस्टम भी कंट्रोल रूम के साथ तबाह हो चुका था.
जब तक बात आर्मी हेडक्वॉर्टर तक या प्रशासन तक पहुँच पाती बहुत देर हो चुकी थी.
ये बात मीडीया में आम होने का भी ख़तरा था, लेकिन किसी तरह मीडीया को भनक लग ही गयी, और शाम होते-होते इंटरनॅशनल मीडीया भी वहाँ पहुँच गया.
पाकिस्तान की हुकूमत आतंकवाद को पनाह देने के मामले पर पूरी दुनिया के सामने एक बार फिर नंगी हो गयी.
हिन्दुस्तान की मीडीया ने ये खबरें चला-2 कर पूरी दुनिया में फैला दी की पाकिस्तान अपने देश में आतंकवाद की फॅक्टरी चला रहा है.
पाकिस्तानी हुकूमत ने इसका खंडन करना चाहा तो भारत की सरकार सबूत देने को तैयार हो गयी. नतीजा उन और अमेरिका से पाकिस्तान को फटकार पड़ने लगी.
पाकिस्तान के अंदर ये बात आग की तरह फैल गयी थी कि ये हिन्दुस्तान की फौज द्वारा किया गया एक सर्जिकल स्ट्राइक है, जिसको रोकने में हमारी हुकूमत नाकाम रही है.
उसका मुख्य कारण हैं, दहशतगर्दी के ये कॅंप जो अवैध्य ढंग से हुकूमत के इशारों पर चल रहे हैं.
अपने ही देश में फ़ौजी हुकूमत फँस गयी थी, विरोधी जबाब माँग रहे थे, जो उनके पास नही थे
नतीजा, फौज का गुस्सा लोगों पर उतरने लगा. फौज की दमन नीति और बढ़ गयी.
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मे आज कई दिनों के बाद घर लौटा था, आते ही सबने सवालों की बौछार कर दी, मैने उनको माकूल जबाब देकर चुप करा दिया,
रहमत अली अब काफ़ी दुरुस्त हो गया था, और काम काज में हाथ बंटाने लगा था, साथ ही साथ रेहाना के साथ एक्सर्साइज़ भी करने लगा था.
कॅंप ब्लास्ट वाली खबर प्रशासन द्वारा दबाई जा रही थी इसलिए अभी तक यहाँ किसी को पता नही चली थी.
शाकीना कहीं दिखाई नही दे रही थी, जब मैने पुछा तो रेहाना ने बताया कि वो उसी दिन से गुम-सूम सी रहने लगी है,
ना किसी से बात करती है, और ना ही कुछ खा-पी रही है. बस पड़ी रहती है, पुछने पर कोई जबाब भी नही देती.
उसकी इस हालत से पूरा घर परेशान था, अमीना बी अपनी बेटी के इस तरह गुम-सूम होने से परेशान थी.
रेहाना ने पूरी बात अपनी अम्मी को भी बता दी थी, कि वो क्या चाहती है, लेकिन इस मामले में वो बेचारी भी क्या बोलती.
मे सीधा उसके कमरे में गया, वो आँखें बंद किए बिस्तर पर पड़ी थी.
जैसे ही मैने उसके सर पर हाथ रख कर सहलाया उसने अपनी आँखें खोली और मेरी ओर देख कर फिर से बंद करली.
मैने उसको कहा - शक्कु ये क्या बात हुई ? मेरे से नाराज़गी है, लेकिन इन सबको किस बात की सज़ा दे रही हो तुम ?
तुम्हें पता भी है ये लोग तुम्हारे लिए कितने परेशान हैं..?
वो आँखों में आँसू भरकर बोली- मे अब जीना नही चाहती, आप मुझे अकेला छोड़ दो..!
मे - तो आओ चलो मेरे साथ, मे बताता हूँ, कैसे मरना है..? मैने उसका हाथ पकड़ा और उसको उठा कर बिस्तर पर बिठा दिया.
वो - कहाँ ले जाना चाहते हैं आप..?
मे - चलो मरना ही है तो दो-चार को मार कर मरो, ऐसे बिस्तर पर पड़े-2 तो बुजदिल मौत का इंतजार करते हैं, और जहाँ तक मुझे पता है अब तुम बुजदिल तो नही रही.
वो - छोड़िए मेरा हाथ, आपको जहाँ जाना है जाइए, मरिये और मारिए, जो मर्ज़ी हो करिए. मुझे कहीं नही जाना है.
मे - इसका मतलब मौत से डर भी रही हो और मरना भी चाहती हो. ये क्या बात हुई..?
वो – आप होते कॉन हैं ये सवाल करने वाले..? किस हक़ से कह रहे हैं ये सब..?
मे – हक़ ! ये वाकी सब लोग किस हक़ से मेरी बात सुनते हैं..? और क्यों..? क्या हक़ है मेरा इन सब पर..?
और फिर मे यहाँ किस हक़ से रह रहा हूँ..? मुझे अभी के अभी चले जाना चाहिए इस घर से ..! ये कहकर मे उसके पास से उठ खड़ा हुआ…!
उसने झट से मेरा हाथ पकड़ लिया, और बोली- प्लीज़ अशफ़ाक़ साब ऐसा ना कहो, खुदा के लिए आप हम सब को छोड़ कर ना जाओ..!
मे - क्यों जब मेरा कोई हक़ ही नही है तो मेरा यहाँ रहने का क्या मतलब..?
वो सुबक्ते हुए बोली - मे क्या करूँ..? आपको भूल भी नही सकती, जितना भूलने की कोशिश करती हूँ, आपके साथ बिताए पल मुझे और सोचने पर मजबूर कर देते हैं..! आप ही बताइए मे क्या करूँ..?
मे – क्या निकाह ही एक मात्र रास्ता है ? उसके अलावा और कोई संबंध नही हो सकते दो इंसानो के बीच ?
तुम निकाह की ज़िद पकड़ के बैठी हो जो मेरे लिए मुमकिन नही है, इसके अलावा जो तुम चाहो वो मे करने के लिए तैयार हूँ.
वो - तो फिर मे भी जिंदगी भर शादी नही करूँगी, चाहे जिस रूप में ही सही आपकी बन कर ही रहूंगी, बोलिए मंजूर है.
मे - ये कैसी ज़िद है तुम्हारी शक्कु..? फिर मैने उसकी डब-दबाती हुई आँखों से आँसू पोन्छते हुए कहा - चलो! ठीक है ऐसा है तो यही सही..
लेकिन कभी जिंदगी के किसी मोड़ पर तुम्हें लगे कि किसी और के साथ तुम्हें शादी करके अपना घर बसाना है तो उसके लिए तुम आज़ाद हो.
वो मेरे सीने में लग कर सुबकने लगी और बोली- मे आपको छोड़ कर कहीं नही जाउन्गि, चाहे आप मुझे अपने से दूर ही क्यों ना करना चाहें.
अब आइन्दा मे कभी आपको निकाह की बात करके परेशान नही करूँगी.
मे - तो चलो खाना खाओ, और हसी ख़ुसी सबके साथ रहो, मेरे इतना कहते ही वो उठ खड़ी हुई,
लेकिन भूखे रहने की वजह से बहुत कमजोर हो गयी थी, सो चक्कर खा कर फिर से बिस्तर पर गिर पड़ी.
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