Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:39 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
खालिद के ऑफीस के एक दो मुख्य-2 सिक्यॉरटी वालों के फेस मास्क जो मैने बनवाके रखे थे वो लिए, 

उसके सेक्यूरिटी गार्ड की यूनिफॉर्म पहन कर अपनी बाइक लेकर निकल पड़ा.

हेड क्वॉर्टर से पहले ही मैने अपने बॅग और बाइक को एक सेफ जगह देख कर छुपा दिया और मेन गेट से हटके वहाँ का जयजा लेने लगा.

हेड क्वॉर्टर मेन रोड से हटकर कोई 500 मीटर अंदर एक सिंगल रोड से कनेक्टेड था. 

थोड़ी देर वहीं छिप्कर बैठा में आस-पास की गति विधियों का जायज़ा लेता रहा, 

लेकिन ऐसी-वैसी कोई हल-चल नही दिखी जिससे कोई अनुमान लगाया जा सके कि अंदर 
कुछ अनहोनी जैसी घटित हुई हो. 

कोई आधा घंटा मे ऐसे ही पड़ा रहा और फिर मेन गेट की तरफ बढ़ने लगा.

मेन गेट से लेकर रोड के दोनो तरफ घने उँचे पेड़ों की कतार जैसी मेन रोड तक थी, 

मे उन्ही पेड़ों की आड़ लेता हुआ मेन गेट के करीब तक पहुँच गया. 

अभी मे और आगे कुछ करता कि तभी मैने एक गाड़ी की हेड लाइट को मेन रोड से इस रोड पर मुड़ते देखा.

मे तुरंत ऐसी जगह छिप गया जहाँ हेडलाइट ना पड़ सके. 

देखते-ही देखते एक जीप मेरे सामने से गुज़री, जिसमें मात्र एक ड्राइवर और उसके बाजू में बैठा एक सेक्यूरिटी गार्ड ही था.

जीप मेन गेट पर आकर रुकी और उसमें से वो गार्ड निकल कर गेट की तरफ बढ़ा, 

सही मौका देखकर में उस जीप के नीचे सरक गया और दोनो व्हील के बीच के एक्सल को पकड़ कर चिपक गया.

थोड़ी ही देर में वो जीप गेट से होकर बिल्डिंग के अंदर चली गयी और आगे के लॉन से गुजरती हुई मेन बिल्डिंग के पोर्च में जाकर रुकी.

थोड़ी देर मे यूँही उससे चिपका रहा, कुछ मिनटों में जीप फिर आगे बढ़ी और घूम कर साइड में बने पार्किंग की ओर बढ़ गयी.

पार्किंग में जीप खड़ी होते ही मे उसके नीचे से निकला अभी वो ड्राइवर जो खुद भी एक सेक्यूरिटी गार्ड ही था, 

वो जीप से उतर कर बिना उसकी चाबी निकाले एक तरफ को बने अपने क्वॉर्टर की तरफ बढ़ गया. 

इस समय रात के 11:30 का समय हो रहा था, चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुया था, 

इक्का-दुक्का सेक्यूरिटी गार्ड इधर-उधर खड़ा बीड़ी फूँक रहा था. 

समय बर्बाद ना करते हुए मैने अपने कपड़ों में से एक मास्क निकाला जो उसके सेक्यूरिटी चीफ का था, पहना और ऑफीस के मुख्य गेट की तरफ चल दिया.

चीफ की आवाज़ मे फोन पर सुन ही चुका था, आवाज़ बदलने की अपनी कला का उपयोग मे भली भाँति करना जानता था.

गेट पर एक गार्ड खड़ा था, मुझे देखते ही वो कुछ चोन्का फिर सलाम करते हुए उसने मेरे लिए गेट खोल दिया.

मैने उसको पुछा, अभी जो गार्ड बाहर से आया था वो किधर गया, उसने मेरी तरफ आशंका भरी नज़रों से देखा, 

मैने उसे झिड़कते हुए पुछा- जबाब क्यों नही देते…?

उसने हड़वाड़ाकर अपनी उंगली उठाकर एक तरफ को इशारा कर दिया.. 

मे बिना कुछ बोले उस तरफ को जाने वाली गॅलरी में बढ़ गया..

गॅलरी के दोनो तरफ लाइन से कमरे बने हुए थे, अभी मे गॅलरी में कुछ ही दूर चला था कि सामने से किसी के आने की आहट सुनाई दी, 

मे झट से एक पास के ही कमरे में घुस गया और आने वाले की आहट लेने लगा.

ये वही गार्ड था जो उस जीप से आया था, जैसे ही वो मेरे वाले गेट से आगे बढ़ा मैने पीछे से निकल कर उसे आवाज़ दी…
मे – आए सुनो…!

वो अपने चीफ की आवाज़ सुन कर पलटा, लेकिन अपना नाम मेरे मुँह से ना सुन वो पहले चोन्का फिर बोला – जी जनाब..!

मे – इधर इतनी रात गये कहाँ से आ रहे हो..?

वो बुरी तरह चोन्कते हुए बोला - क्या जनाब ! आपको नही पता मे कहाँ से आ रहा हूँ..?

मे उसके सवाल पर गड़बड़ा गया… लेकिन फिर बात संभालते हुए बोला – नही वो मेरे दिमाग़ से निकल गया था, 

वैसे तुम्हें तो बाहर भेजा था ना, फिर इधर से कहाँ से आ रहे हो ?

वो – बाहर से तो कब से लौट आया जनाब ! और खालिद साब का डिन्नर भी उनके ऑफीस में पहुँचा दिया, अभी वहीं से आ रहा हूँ.

मैने मन ही मन सोचा, तो ये उसका डिन्नर लेने गया था, फिर प्रत्यक्ष में अपने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए पुछा – अभी खालिद साब क्या कर रहे हैं..?

वो हंसते हुए बोला - अरे जनाब ! वो अपनी नयी माशुका को मनाने में लगे हैं, ताकि उसे खाना खिला सकें, 

लेकिन पता नही वो क्यों बेसूध सी पड़ी है, उनकी बात ही नही सुन रही, पता नही क्यों इतनी ड्रामेबाज़ी में लगी हुई है..

मे – वैसे वो ठीक तो है या जनाब ने उसे कुछ ज़्यादा ही…. मे अपनी बात अधूरी छोड़कर हँसने की आक्टिंग करते हुए बोला..

वो- पता नही जनाब मुझे तो वो कुछ बेहोशी जैसी हालत में लगी.

मैने कहा ठीक है तुम अपना काम करो, कुछ होगा तो खबर करता हूँ..

वो – जी जनाब ! बेहतर और इतना बोलकर वो वहाँ से चला गया…, उसके जाते ही मैने राहत की साँस ली…

मे कुछ देर वहीं सोच में डूबा खड़ा रहा फिर सर को झटक कर उसी तरफ बढ़ गया जिधर से वो आया था.

आगे जाकर वो गॅलरी दो तरफ को जाती थी, अब मे वहीं खड़ा सोचने लगा कि किधर जाउ..? 

सारे कमरे या तो बंद थे या फिर अंधेरे में डूबे हुए थे.

कुछ सोच कर मे एक तरफ को बढ़ गया, भाग्यवस थोड़ा आगे जाते ही मुझे एक कमरे में रोशनी का एहसास हुआ और किसी के बड़बड़ाने की आवाज़ें सुनी.
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