RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
कुछ दिन बीतने के बाद मुझे अहसास हुआ कि बहन के साथ बढ़ती दूरी और आत्मीयता की कमी के कारण जो स्थान मेरे हृदय मे रिक्त हो रहा था उसे मैं माँ से नज़दीकियाँ बढ़ा कर पूरा करने की कोशिस कर रहा था. मैं बहन के साथ बहुत कम समय बिता रहा था मगर मैं तन्हा नही था. अगर मेरी बहन मेरे पास नही होती तो मेरी माँ ज़रूर होती. अगर एक औरत मेरी ज़िंदगी से दूर होती जा रही थी तो दूसरी उतनी ही पास आती जा रही थी. मैं हमेशा अपनी बहन के जिस्म को सराहता था, उसकी खूबसूरती से मोहित हो उठता था. मगर अब मेरी आँखे माँ के बदन का मुयायना करने लगी थी और जिस नज़र से मैं बहन को देखता था वो नज़र अब माँ के गदराए अंगो का जायज़ा लेती थी. माँ मुझे बहुत आकर्षक, बड़ी मनमोहक और कामुक लगने लगी थी. वो हमेशा वैसी ही थी बस उसे देखने की मेरी नज़र बदल गयी थी. मगर अब मेने ध्यान देना सुरू कर दिया था. जब मैं किताब के उन आसनो में माँ और खुद की कल्पना करता था तब भी वो मुझे इतनी कामुक, आकर्षक, गदराई नही लगती थी जितनी अब लगने लगी थी, उसका हुश्न तब भी मुझे इस तरह तरसता नही था जितना अब तरसाने लगा था. अचेतना में मैं अपनी बहन का स्थान अपनी माँ को दे चुका था. अब जब भी मैं और मेरी बहन एक साथ हमबिस्तर होते तो मुझे वो बड़ी अटपटी अपराध भावना का अहसास होता जैसे मैं अपनी माँ को दगा दे रहा होता हूँ. कहने का मतलब जल्द ही मेरा और बहन का अब कभी कभार होने वाला मिलन भी पूरी तेरह बंद हो गया था. मैं जैसे खो गया था. जो औरत मेरी थी वो अब दूर चली गयी थी, और जो मेरे पास थी वो शायद मेरी किस्मत मे नही थी.
ऐसा ही उदासी और अकेलेपन से भरा एक दिन था जब मैं टीले पर खड़ा मकयि और धान की फसल को देख रहा था, मकयि को भुट्टे निकलने सुरू हो गये थे. मुझे इस बात से बहुत दुख महसूस हो रहा था कि मैं और मेरी बहन दोनो हमारी इतनी बढ़िया फसल होने का आनंद भी नही ले सकते थे. मुझे उन दिनो की याद आ रही थी जब हम दोनो पूरी पूरी रात प्यार और कामक्रीड़ा में गुज़ारते थे. अचानक मैने अपनी कमर पर किसी की बाँह कस्ति महसूस की. वो मेरी माँ थी जो अपने बदन की एक तरफ मेरे बदन से दबाते हुए बोली "देखो इस सबको बेटा! तुम्हारी कड़ी मेहनत का फल आज तुम्हारे सामने है"
मैने अपनी बाहें छाती से खोल कर अपना बाया हाथ उसके कंधे के गिर्द लपेट दिया. उसने जैसे मेरे इशारे को समझते हुए अपने बदन की दाई साइड थोड़ी और मेरे बदन से सटा दी. उसका बाया मम्मा मेरे कंधे के नीचे मेरी छाती को छू रहा था. मुझे उसके मम्मे का कोमल अहसास बहुत सुखद महसूस हुआ.
"हमारी कड़ी मेहनत का फल माँ!" मैने माँ को दुरूष्ट किया.
वो थोड़ा बेढंग सी खड़ी थी इसलिए वो थोड़ा सा मेरी और घूम गयी. उसने बहुत धीरे से बहुत आराम से मुझे आलिंगन मैं लिया. अब उसके दोनो मम्मे मेरी बाईं ओर चुभ रहे थे. मैने उसके कंधे को थोड़ा सा दबाया और उसे कोमलता से थामे वहाँ खड़ा रहा. उसे ज़रूर अहसास रहा होगा के मैं उस दिन उदास था शायद इसीलिए उसने समझदारी दिखाते हुए कुछ ना बोलना ही उचित समझा होगा और मेरे साथ उस अर्ध आलिंगन मे बिल्कुल स तरीके से खड़ी रही जब तक कि मैने हिलने का फ़ैसला ना किया. उसकी इतनी समाझदारी और कोमलता को देख मेरा मन उसकी तारीफ से भर उठा.
एक बार जब हमारे बीच ऐसा संपर्क बन गया तो आगे ऐसा संपर्क बनाना आसान हो गया. मैं हर शाम थोड़ा उदास सा टीले पर खड़ा होता और वो अपनी बाँह मेरी कमर के गिर्द लपेट देती और फिर मेरा हाथ पकड़ कर अपने कंधे पर रख देती. मैं अपनी बाँह उसके कंधे के गिर्द लपेटता तो वो मुझसे सटते हुए अपने बदन का बयान हिस्सा मेरे दाएँ हिस्से में दबाती. लगभग एक हफ्ते तक हमें इसकी आदत पड़ गयी थी और ये हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गया था. हमारा यह संपर्क इतना सामान्य सी बात बन गया था कि एक दिन जब मैने थोड़ी उज्जडता दिखाते हुए अपनी बाँह कंधे की बजाए उसकी कमर के गिर्द लपेटकर उसको अपने सामने खींचा तो वो मेरे सामने आ गयी और मैने अपनी दूसरी बाँह भी उसकी कमर में डाल कर कर उसके पेट पर अपने हाथों को बाँध दिया और उसे पीछे से आलिंगन में लिए ऐसे ही खड़ा रहा. उसने अपने हाथ मेरे हाथों पर रख दिए और अपने बदन को थोड़ा पीछे को झुकाया तो उसके कंधे मेरे सीने से लग गये. कंधो से नीचे उसका पूरा जिस्म मेरे जिस्म से थोड़ा सा दूर था. मैं ऐसे ही उसके पेट पर हाथ बाँधे उसे लेकर कुछ समय तक खड़ा रहा और फिर उसे छोड़ते हुए कहा कि अब हमे घर चलना चाहिए, अंधेरा हो रहा था.
उसे मालूम था या नही मालूम था, उसे अहसास हुआ था या नही हुआ था, मगर मैने हमारे बीच आत्मीयता बढ़ाने की, रिश्ते मैं खुलापन लाने की कोशिस की थी और उसने अपनी सहमति जताई थी.
मैने वोही कोशिस अगले दिन और आने वाले कई दिनो तक जारी रखी जिसका नतीजा पहले दिन जैसा ही था. उसकी कमर में बाहें डाले, उसके पेट पर हाथ बाँधे में उसके साथ खड़ा होता और वो अपनी कमर पीछे को झुकाए अपने कंधे मेरे सीने पर टिका देती, उसका सर मेरे बाएँ कंधे पर आराम करता और उसके लंबे बाल मेरे गालों पर खेलते मगर वो भी इत्तेफ़ाक़न ही होता.
धीरे धीरे लगातार उसकी कमर और मेरे जिस्म के बीच का फासला कम होने लगा और एक दिन आख़िरकार मैं उसे अपनी बाहों में लेकर खड़ा था और उसकी पीठ मेरे बदन से स्पर्श कर रही थी. जहाँ तक कयि बार उसके चुतड भी मेरी जाँघो से सटे होते.
माँ और मैं सारा दिन साथ साथ काम करते, जानवरों की देखभाल करना, फसलों से खर पतवार निकालना, खाद डालना, बारिश के पानी को ज़रूरत के हिसाब से फसल में पहुँचाना और बाकी के काम या यूँ कहिए भूमि के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक हम सारा काम इकट्ठे करते. यहाँ तक कि हम दोनो ने मिलकर गाय का प्रसव करवाया और एक नई बछिया के जनम से हमारा पशु धन फिर से बढ़ने लगा. हम मिलकर गाय का दूध दोहते. धीरे धीरे हमने बछिया को दूध पिलाना कम कर दिया, दूध बस घर के गुज़ारे लायक ही होता इसलिए हमने उसे बेचने के बारे में सोचा भी नही.
हम दोनो अब एक जोड़े की तरह मिलकर काम करते थे. वो मेरी औरत थी और मैं उसका मरद, कम से कम मेरी सोच तो ऐसी ही थी. हम दोनो एक दूसरे की हल्की फुल्की चोटों का इलाज करते क्यॉंके किसानी जीवन बहुत कठोर होता है इसलिए कुछ चोटें लगना स्वाभाविक ही था. एक के बदन में किसी अंग में दर्द होता या किसी मांसपेशी में खींचाव होता तो दूसरा मालिश करके उसका दर्द कम करने में मदद करता. इस सबसे हमारी घनिष्टता, हमारी आत्मीयता इतनी प्रगाढ़ हो गयी थी कि अगर कभी कभार हमारे बीच कोई ऐसा संपर्क बन जाता जो आम हालातों में माँ बेटे के बीच अनुचित माना जाता तो हम उसकी परवाह किए बगैर फिर से अपने काम इन जुट जाते.
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