RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मुझे इस बात का अहसास ही नही था कि हम दोनो एक दूसरे के साथ कितना खुल गये थे. एक दिन जब मकयि की फसल पूरी तैयार हो गयी थी और भुट्टे सूखने सुरू हो गये थे तो मेरा दिल में एक विचार आया और मैं मकयि के खेत के बीचो बीच जाकर लेट गया, मैं बस सफलता के अहसास को महसूस करना चाहता था. मेरे गायब होने के काफ़ी समय बाद मा मुझे ढूँढते हुए मेरे पीछे पीछे वहाँ आ गयी और मुझे लेता देख वो भी मेरे साथ ही लेट गयी. हम दोनो लंबे समय तक वहाँ साथ साथ लेटे हुए फसल काटने, संभालने और बेचने की योजनाएँ बना रहे थे. हम वहाँ कुछ एक घंटे लेटे रहे और उतने समय में लेटने से, करवटें बदलने से हमारी पीठें और बाल धूल से भर गये थे. आख़िर मे जब हमने उठने और बाकी के काम निपटने का फ़ैसला किया तो माँ ने मेरी पीठ मिट्टी और सूखे पत्तों से भरी देखी तो उसे सॉफ करने लगी. उसे काफ़ी समय लगा मेरी कमीज़, पेंट और बालों से मिट्टी निकालने में. और पेंट से धूल निकालते समय उसको मेरे चुतड़ों को झाड़ना था ता कि पेंट से धूल निकल सके जिसे करने मे उसने लेश मात्र भी हिचकिचाहट नही दिखाई. उसके हाथ मेरे चुतड़ों पर घूमते हुए मुझे बहुत आनंदित कर रहे थे और मैं अपने जंघीए मैं थोड़ी हलचल महसूस कर रहा था. एक बार जब उसका काम निपट गया तो उसने मेरी और अपनी पीठ घुमाई और बोली,
"अब तुम्हारी वारी है. देखना अच्छे से सॉफ करना. मैं नही चाहती गाँव वाले सोचे हम दोनो खेतों में काम करने की बजाए एक दूसरे का काम कर रहे थे"
उसने वो बोल भोलेपन से कहे थे और उनमे उन शब्दों का मतलब क्या हो सकता है या क्या निकाला जा सकता था ये सोच विचार नही था मगर उन लफ़्ज़ों को सुन मेरा दिल ज़ोरों से धड़क उठा. पहले तो मेरे मन मे एक तस्वीर उभरी जिसमे मेरी माँ मकयि के खेत के बीचो बीच लेटी हुई थी और मैं उसके उपर चढ़ा हुआ था. मेने खुद को अपनी माँ की चूत मे गहराई तक कस कस कर धक्के लगाते हुए कल्पना की, मेरे धक्कों से मिट्टी मेने उसके मचलते, तड़फटे जिस्म की कल्पना की. उन कल्पनाओं से, उन ख़यालों से पहले से कड़े हो रहे मेरे लंड में हाइ वोल्टेज करेंट सा दौड़ने लगा जिससे वो और भी कड़ा होने लगा. और जब मेरे हाथ उसकी पीठ पर धूल साफ करने का काम रहे थे तो वो करेंट और भी तेज़ होता जा रहा था. सर के बालों से सुरू होकर नीचे आते हुए गर्दन पर, कंधो पर, कमर पर, उसकी टाँगो पर और अंत में उसकी गान्ड पर मेरे हाथ धूल सॉफ करने के बहाने उस मनमोहक, कामुक देह का आनंद ले रहे थे. मेरे हाथ बुरी तरह कांप रहे थे जब मैं उसके नरम, कोमल कुल्हों से धूल सॉफ कर रहा था. उसके पिछवाड़े का स्पर्श बहुत सुखद और आनंदमयी था और मैने स्थिति का लाभ उठाते हुए उसके कुल्हों से मिट्टी झाड़ने के बहाने उसके कुल्हों को सहलाना सुरू कर दिया ख़ासकर दोनो कुल्हों के बीच के हिस्से पर मेरे हाथ बहुत कोमलता से घूम रहे थे. मुझे यह देखने के लिए कि मिट्टी कहीं रह तो नही गयी है नीचे झुकना पड़ा, एक तरह से यह अच्छा था क्योंकि मैं अब अपने पूरे खड़े लंड को अपनी जाँघो के बीच दबाकर छुपा सकता था. मगर जब उसने देखा कि उसके कुल्हों से धूल सॉफ करने के लिए मैं ज़रूरत से कहीं ज़्यादा समय ले रहा हूँ तो उसने कंधे के उपर से सर घूमाकर मेरी ओर देखा कि मैं क्या कर रहा हूँ. मैने जल्दी से थोड़ा बहुत हाथ उसकी टाँगो पर चलाया और उसे बताया कि धूल पूरी सॉफ हो गयी है. वो मेरी और मूडी और उठने मे मेरी मदद करने के लिए मेरी ओर अपना हाथ बढ़ाया. मगर मैं उठना नही चाहता था क्यॉंके उस समय मेरी पेंट मेरे कठोर लंड की वजह से आगे से पूरी फूली हुई थी. मगर ना चाहते हुए भी मुझे उठना पड़ा क्योंकि नीचे बैठे रहने का मेरे पास कोई बहाना नही था. मालूम नही उसका ध्यान मेरे खड़े लंड पर गया या नही गया मगर मेरे घुटनो पर लगी धूल पर उसका ध्यान चला गया जो मेरे नीचे बैठने के कारण लग गयी थी. वो मेरे घुटनो को सॉफ करने के लिए झुकी और ऐसा करने से उसका सर मेरे लंड के एकदम सामने आ गया. घुटनो से धूल सॉफ करने के पश्चात उसने सर उठाकर मेरी ओर देखा तो उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी, मगर जब उसकी नज़र पेंट में स्टील की रोड की तरह अकडे और उठक बैठक कर रहे मेरे लंड से टकराई तो उसकी मुस्कान उसके होंटो से एकम से गायब हो गयी.
माँ के चेहरे का रंग उड़ गया और वो तेज़ी से दूसरी ओर घूम गयी. वो मकयि के खेत से निकल जल्दी जल्दी मुझसे दूर भाग गयी. मैं कह नही सकता था कि वो घबरा गयी है या शर्मिंदा है मगर मैने इतना ज़रूर देखा था कि बाकी पूरा दिन वो जब भी मेरे नज़दीक आती या जब भी मैं उसके पास जाता तो वो अपनी आँखे फेर लेती थी. उसके रवैये में किसी बढ़ाव की बात उस समय पक्की हो गयी जब वो उस दिन शाम को टीले पर भी नही आई जो हमारी दिनचर्या का अटूट हिस्सा बन चुकी थी.
असलियत मैं हमारा टीले पर बैठ कर हर रोज शाम को होने वाला सर्वेक्षण पूरी तरह से बंद हो गया था. हम अब भी इकट्ठे काम करते थे मगर फिर भी हमारे व्यबहार में या यूँ कहिए उसके व्यबहार में फरक आ गया था. और कारण मुझे समझ नही आ रहा था. वैसे तो उसे इतना तो मालूम था ही कि मेरे पास एक लंड भी है. और उसके खड़े होने से ऐसा क्या पहाड़ टूट पड़ा था जिससे उसका रवैया एकदम से इतना बदल गया था.?
इस सवाल का जबाब मुझे भारी मूसलाधार बरसात के आने से मिला. जैसा हमारे कभी कभार होता था, यकायक बादल फट पड़ते थे और इतनी ज़ोरदार बारिश होती थी कि उसमे कुछ भी करना नामुमकिन होता. एक दिन दोपहर को एसी ही बरसात आई और हम दोनो उसमे फस गये. जब तक हम जानवरों को उनके बाडे में पहुँचाते हुए हम पूरी तरह से भीग चुके थे, हमारे कपड़े कीचड़ से भर गये थे. हमारे पास अब कपड़े उतारने के सिवा और कोई चारा नही था. इतनी तेज़ बरसात और तूफ़ानी हवा में गीले कपड़े पहने रहना निमोनिया को बुलावा देने जैसा था. मैने माँ को कंबल दिया और बिना कुछ बोले मकयि के खेत की ओर चल दिया. माँ को कुछ बोलने की ज़रूरत नही थी वो खुद समझ सकती थी मैने उसे कंबल क्यों पकड़ाया था. मैने जल्द से जल्द मकयि के खेत से आठ दस भुट्टे तोड़े और वापस शेड की ओर चल दिया. माँ ने कंबल ओढ़ा हुआ था और एक तार पर अपने कपड़े बरसात के पानी से धोकर डाल रही थी. मैने भी कपड़े उतार चादर ओढ़ ली और उन्हे थोड़ा बहुत बरसात के पानी से सॉफ कर दिया. उसके बाद शेड में रखी हुई सुखी लकड़ी से आग जलाई और अपने और माँ के कपड़े आग के पास एक लकड़ी पर रख दिए ताकि आग की गर्मी से सुख जाएँ. मैने खाने के लिए आग पर चार पाँच भुट्टे भुन लिए.
माँ कंबल ओढ़े फोल्डिंग बेड पर बैठी थी. जब मैं भुट्टे सेंक रहा था और कपड़े सूखा रहा था तो मैने उसे बेड से उठकर खिड़की के पास जाते देखा, खिड़की में खड़ी वो बाहर खेतों की ओर देख रही थी. वहाँ खड़ी वो बहुत समय से बाहर देख रही थी. उसकी मुद्रा एन कुछ ऐसा था जिसे देखकर मुझे लगा कि वो बाहर खेतों को नही बल्कि बहुत दूर किसी और समय को किसी और स्थान को देख रही थी. मैं एक भुना हुआ भुट्टा लेकर उसके पास गया और उसके पीछे खड़ा होकर वो क्या देख रही है, देखने की चेस्टा करने लगा. वहाँ खड़े हम दोनो चुपचाप भुट्टा खा रहे थे जब उसने लंबे इंतज़ार के बाद अपनी चुप्पी तोड़ी.
"मुझे एसी बारिश बहुत अच्छी लगती है" वो धीरे से बुदबुदाई थी.
मुझे उसका मतलब नही समझ में आया क्यॉंके इतनी तेज़ बरसात फसल के लिए अच्छी नही थी, हमारे खेतों में पानी ही पानी हो गया था.
"जिस तरह यह बारिश हो रही है हम वास्तव में बाकी पूरी दुनिया से कट गये हैं" वो फिर से धीरे से बोली " कितनी शांति है यहाँ. कितना सुकून है इस बात में कि यहाँ तुम बिल्कुल अकेले हो, कि कोई भी तुम्हारी शांति भंग करने यहाँ नही आ सकता, कि कोई भी यह नही जान सकता कि तुम क्या कर रहे हो. यहाँ सिरफ़ तुम और तुम हो; और कोई नही"
वो मुझसे ज़्यादा खुद से बात कर रही थी क्योंकि उसके वाक्यों में मेरा कोई सन्दर्भ नही था.
"मैं हमेशा से ऐसे तेज़ ग़रज़ने, बरसने वाले तूफान के बारे में सोचती थी. मैं हमेशा से चाहती थी कि कोई ऐसा तूफान सा आए और कयि दिनो तक यू ही चलता रहे ताकि मैं इससे होने वाली तन्हाई को महसूस कर सकूँ. ज़रा सोचो; कोई भी नही जानता हो कि तुम कहाँ हो, क्या कर रहे हो, तुम्हारे साथ क्या हो रहा है. तूफान चलने तक तुम बिल्कुल गुमनाम हो जाओगे!"
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