RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मैने चूत के दाने को अपने होंठो के बीच दबाया और ज़ोर से चूसने लगा, उसका पूरा बदन अकड़ गया और फिर उसका पूरा जिस्म मिर्गी के दौरे की तरह काँपने लगा. उसका पूरा जिस्म उस ज़ोरदार स्खलन की चपेट में आ गया, पूरे जिस्म को मरोडते हुए वो थरथरा रही थी, कराह रही थी, सीस्या रही थी. मैने चूत के दाने से होंठ हटाए और उस पर फिर से अपनी जीभ रगड़ने लगा, उसने अपनी एडियो से हाथ हटा लिए, उसकी बाहें सर के पीछे को फैल गयीं, उसके हाथों ने चड़दर को मुट्ठी मे कस लिया, उसकी काँपति हुई टाँगे खुली और उसने अपने पाँव मेरी पीठ पर रख दिए, उसकी जांघे मेरे सर पर कस गयीं. मेरी जिव्हा की रफ़्तार थोड़ी कम हो गयी मगर वो अब भी हरकत में थी. मेरी जीभ की हर छोटी सी हरकत से उसका पूरा जिस्म उस कामनीय आनंद की तेज़ लहरों से काँपने लगता. उसके लिए बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था. यह आनंद हद से ज़यादा था. उसकी जाँघो ने मेरे सर को और भी मज़बूती से कस लिया था. वो बुरी तरह हाँफ रही थी.
मैने अपनी थक चुकी जीभ को अपने मुँह मे समेटा और उसके हवा मे उठे हुए कुल्हों को नीचे बेड पर रखा. मैने चेहरा उपर उठाया और उसकी जाँघो को सहलाते हुए अपने हाथ उसकी एडियो पर रखे.
उसकी निगाह मेरे चेहरे पर जमी हुई थी. कमरे में हालाँकि काफ़ी अंधेरा था मगर मुझे यकीन था वो मेरे चेहरे को ज़रूर देख सकती है जो उसके चूतरस से भीग कर चमक रहा था. वो अभी भी हाँफ रही थी. मैने उसकी टाँगे अपने सर से खोली और उसकी जाँघो को चूमने लगा.
"मज़ा आया!" मैने उससे मुस्कराते हुए पूछा.
वो उखड़ी सांसो के मध्य हँसती है और फिर सहमति मे सर हिलाती है. "हुउन्न्ञणन्........तुम जानते हो मुझे कितना मज़ा आया"
"अब अंदर डालूं?" मैने उससे कहा
"हां . कितना.....कितना समय बीत गया है तुमने मुझे प्यार नही किया" उसके स्वर में नाराज़गी और बैचैनि का अहसास था.
उसके ऐसा कहने की देर थी कि मेरे अंतर में फिर से उदासी छाने लगी मगर क्यों ये मेरी समझ से बाहर था.
मैने उसकी टाँगे पकड़ी उन्हे घुटनो से मोड़ उसकी छाती पे दबाया. मैं अपने घुटनो पर खड़ा हो गया. बहन की नज़र मेरे मोटे लंड पर टिकी हुई थी जो झटके मार रहा था.
"इसे अंदर का रास्ता दिखाओ" मैने धीरे से उसे कहा.
उसने अपने कंधे झटके और मेरे लंड को हाथ बढ़ा कर पकड़ लिया. वो जानती थी वो मुझे किस हद तक उत्तेजित कर सकती थी और उसे इसी में मज़ा आता था. मेरी कामग्नी भड़का कर मेरा लंड खड़ा कर देना उसके लिए बाएँ हाथ का खेल था.
"लंड की टोपी को पहले चूत के होंठो पर रगडो फिर दाने पर" मैने उसे कहा
उसने हाँ मैं सर हिलाया. जब भी मैं उसे ऐसा करने को बोलता तो उसे बेहद मज़ा आता. जैसे ही लंड ने चूत को स्पर्श किया उसकी आँखे बंद हो गयीं. जब लंड का सिरा उसकी चूत के दाने को छेड़ता है तो उसके बदन को फिर से झटका लगता है.
"अयाया.....हां, ऐसे ही....बिल्कुल तुम्हारी चूत के दाने पर........ऐसे ही घिसो........हाए मुझे बड़ा मज़ा आ रहा है..." मेरी आवाज़ बहुत धीमी और भर्राई हुई थी.
उसे भी बेहद मज़ा आ रहा था बावजूद इसके कि स्खलन के बाद वो अतिसंवेदनशील थी. लंड का चूत के दाने पर स्पर्श होने से उसका बदन अकड़ जाता, बदन ऐसे झटके ख़ाता जैसे बिजली की नंगी तार को छू लिया हो.
"उूउउफफफफफफफफफफफ्फ़......,अब......अब इसे अपनी चूत के मखमली होंठो के बीच उपर से नीचे घूमाओ" मैने उसे कहा
उसने वैसे ही किया और वो फिर से कांप उठी. उसका स्खलन हुए अभी ज़यादा समय नही हुआ था मगर लगता था वो फिर से स्खलित होने वाली है. कभी कभार ऐसा होता था.
"हाआआईई...." वो कराह रही थी
"मैं अब....अंदर डालूँगा.....ठीक है?"
"हूँ......डालो.....डालो जल्दी से"
"उफफफफफफफ्फ़......" सिसकते हुए उसने मेरे लंड का सिरा अपनी गीली चूत के छेद पर टिका दिया. मैने लंड को अंदर धकेला और टोपी अंदर जाते ही उसने अपनी आँखे भींच ली. उसने अपना हाथ मेरे लंड से हटा दिया. मैने एक इंच और अंदर डाल दिया. उसके चेहरे का तनाव बता रहा था मेरा मोटा लंड उसे कितनी तकलीफ़ दे रहा था. उसकी इतनी तंग गीली चूत में लंड डालने मे इतना मज़ा आ रहा था कि मेरी भी आँखे बंद हो गयी. कितनी तंग चूत है बहन की. मैं तो उसकी तंग चूत में अपना मोटा लंड घुसेड़ने का अहसास भूल ही गया था. मैने एक झटके से अपनी आँखे खोल दीं. मैने फिर से उदासी और डर का तेज़ झोंका अपने अंतर मे महसूस किया. मुझे हैरत थी मैं इस अहसास को क्यो कर भूल गया था.
"ओह भाई......कितना लंबा है तुम्हारा....कितना मोटा है.....एकदम लगता है मेरी चूत के लिए ही बना है" उसकी बात सुन मैं अपनी सोच से बाहर निकला और मैने लंड थोड़ा पीछे खींच कर फिर से अंदर धकेला.
मेरी आँखे फिर से बंद हो गयी. यह याद करने की कोशिस छोड़ दी कि आख़िरी बार मैने बहन को कब चोदा था, और धीरे धीरे मैं लंड अंदर और अंदर डालने लगा. बाहर निकाल फिर से अंदर डालते डालते जल्द ही मेरा पूरा लंड उसकी चूत मे समा चुका था. फिर से मेने उसकी तंग चूत की दाद दी और उसकी बात को भी माना कि हम एक दूसरे के लिए ही बने हैं. वो अपनी चूत को भींच कर मेरा लंड निचोड़ रही थी. मैं उससे कभी भी जुदा नही होना चाहता था. एक पल के लिए भी नही.
"हइईई......उंगूँगूंघ.............मुझे बहुत अच्छा लगता है जब तुम मुझे इस तरह अपने अंदर निचोड़ती हो"
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