RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
माँ शेड के कमरे में नंगी बैठी स्टोव पर खाना गरम कर रही थी. वो एक लकड़ी के गुटके पर बैठी थी जो हमारे लिए स्टूल का काम देता था. उसके घुटनो पर उसके भारी मम्मे दबे हुए थे, और टाँगे थोड़ी खुली होने से चूत के होंठ थोड़ा सा खुल गये थे. अंदर से लाली झलक रही थी. मेरे लंड मैं कुछ तनाव आना सुरू हो गया था. माँ ने खाना गरम कर लिया था और स्टोव पर चाय रख वो खाना लेकर चारपाई पर आ गयी. खाना रख वो मेरे पास आई और अपने कपड़े लेने लगी तो मैने उसका हाथ झटक दिया.
"माँ इतनी भी क्या जल्दी है कपड़े पहनने की, देखो कितनी गर्मी है. चलो पहले खाना खाते हैं फिर कपड़े पहन लेना"
"अगर कोई आ गया तो हमे देखकर क्या समझेगा" माँ ने पूछा तो मैं हंसकर उसके मम्मे को प्यार से सहला कर कहा "क्या कहेगा? यही कहेगा कि माँ बेटा आपस में प्यार कर रहे हैं. बेटा माँ की ले रहा है. और क्या कहेगा?"
"कुछ शरम करो.........देखो बेटा सच में खेतों के बीच कोई और बात थी मगर यहाँ ऐसे नंगे अच्छा नही है. कोई भी आ सकता है"
"ओह माँ तुम भी कितना डरती हो" मैं उसके दोनो मम्मे दबाता बोला. "इधर कोई नही आएगा. ना कभी कोई आया है, ना कभी कोई आएगा. देखो आसमान में बदल घिर रहे हैं, लगता है बारिश होगी. ऐसे में कॉन आएगा" मैने माँ को समझाने का प्रयत्न किया मगर उसके चेहरे पर चिंता दिखाई दे रही थी.
"माँ क्यों परेशान होती हो, चलो हम खिड़की खोल लेते हैं. इधर कोई आएगा तो हमे दूर से दिखाई पड़ेगा. चलो अब खाना खाते हैं. बहुत भूख लग रही है, बहुत मेहनत करवाई है तुमने आज" माँ मेरी बात सुनकर कुछ शरमा सी गयी. मगर इतना शुक्र था वो मेरी बात मानकर चारपाई पर मेरे साथ बैठकर खाना खाने लगी. माँ मेरे सामने पालती मारकर बैठी थी. उसकी चूत पूरी खुलकर मेरी आँखो के सामने थी. मैं खाना ख़ाता ख़ाता बस माँ की चूत को घुरे जा रहा था. उस गुलाबी चूत को देखकर ही मेरे अंदर नशा सा छाने लगता था.
"खाने पर ध्यान दो. क्या ऐसे नज़र जमाए देखे जा रहे हो?" माँ ने थोड़ा सा गुस्सा दिखाते कहा.
"हाए माँ क्या कहूँ. तेरी इस गुलाबी चूत के बलिहारी जाऊ,'इससे नज़र हटती ही नही. देख तेरी चूत को देखने से मेरा लंड फिर से हार्ड हो गया है" मैने माँ को अपने खड़े हुए लंड की ओर इशारा करके कहा तो माँ के गाल लाल हो उठे. चेहरे पर शरम की लाली सी दौड़ गयी. उसने अपनी टाँगे खोल कर मोड़ कर अपनी चूत को छुपाना चाहा मगर असफल रही. मैं हंस पड़ा तो माँ खीज उठी.
"कुछ शरम कर. अब ऐसे बात करेगा अपनी माँ से"
"अरे क्यों गुस्सा करती हो माँ. अभी तो हमारे मज़ा करने का समय है. थोड़ा खुलेंगे तभी तो असली मज़ा आएगा ना?"
"क्यों अभी तक पेट नही भरा. इतना टाइम तक तो लगे रहे अभी और कॉन सा मज़ा करना बाकी है?"
"अरे माँ वो तो थोड़ी गर्मी निकली थी बदन से. असली मज़ा तो अभी करेंगे" मैने अपनी उंगली माँ की चूत की ओर बढ़ाई,'माँ ने मेरा हाथ झटका मगर मैं माना नही और फिर से उंगली चूत की ओर बढ़ा दी, उसने फिर से मेरा हाथ झटक दिया. ऐसे कुछ पलों तक चलता रहा, अंत मैं माँ ने हार मानते हुए मेरा हाथ नही झटका. मैने अपनी उंगली माँ की चूत के होंठो की लकीर पर फेरी और फिर धीरे से उसे अंदर घुसेड दिया. "हाए" माँ सिसक उठी. मेरी उंगली को गीलेपन का अहसास हुआ. मैने दो तीन बार उगली आगे पीछे कर जब बाहर निकाली तो वो पूरी भीगी हुई थी.
"माँ तुम्हारी तो पूरी चू रही है. लगता है फिर से बेटे के लंड से मरवाना चाहती है" माँ कुछ नही बोली. मगर कब्से से उसके कड़े हो चुके निपल उसकी कहानी बयान कर रहे थे.खाना लगभग ख़तम हो चुका था. माँ ने उठकर खाना ख़तम किया और बर्तन उठाकर चाय ग्लासों में डालने लगी. जब वो चाय डालने के लिए झुकी तो पीछे से उसकी गान्ड का टाइट छेद और उसकी गीली चूत चमक उठे. मेरे लंड ने एक तेज़ झटका खाया. उसने मुझे गिलास पकड़ाया और अपना ग्लास लेकर खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गयी. बादल घिरने लगे थे और रोशनी कम होने लगी थी. लगता था बारिश कभी भी हो सकती है. मैं माँ के पीछे जाकर खड़ा हो गया. मुझे वो दिन याद आ गया जब कोई डेढ़ साल पहले मैं और माँ वहाँ खड़े थे और बाहर ज़ोरदार बारिश हो रही थी. उस दिन हमारे बीच पहली बार संबंध बना था और दूसरी बार आज, लगभग डेढ़ साल बाद. माँ के पीछे खड़ा चाय की चुस्कियाँ लेता मैं उस दिन को याद कर रहा था जो अब भी मेरे मन में पूरी तरह जीवंत था.
"तुम्हे याद है वो दिन........उस दिन भी बारिश हो रही थी जब हम दोनो ने........कितना समय बीत गया है....कितना कुछ बदल गया है इन चन्द महीनो में" माँ के पीछे खड़ा होने के कारण मुझे नही मालूम वो खुश थी या उदास थी.
"माँ जो भी बदला है अच्छे के लिए ही बदला है...तुम खुश तो हो ना माँ" मैने पूछा तो माँ थोड़ा पीछे हुई और उसने अपनी पीठ मेरे बदन से चिपका दी.
"मैं बहुत खुश हूँ......तुम दोनो इतनी मेहनत कर रहे हो.......इतना कुछ हासिल करके दिखाया है तुमने.....बॅस मुझे इस बात का दुख है जो काम जो मेहनत हमे करनी चाहिए थी वो तुम कर रहे हो. मुझे इसी बात का दुख है कि मैं और तुम्हारे पिता तुम्हारे लिए कुछ कर नही पाए.......तुम्हारे पिता ने तो कभी कोशिस भी नही की और मुझमे इतनी हिम्मत ही नही थी कि......" माँ का उदास स्वर सुनकर मुझे थोड़ा दुख हुआ. वो हमारी पुरानी प्रस्थितियों के लिए खुद को कसूरवार मानती थी
"मेरी प्यारी माँ तुमने आज तक कभी हमे किसी भी चीज़ की कमी नही होने दी. हमने काम तो अब सुरू किया है, इतने सालों से हम तुम पर ही तो निर्भर थे. फिर तुम अकेली हम दोनो का बोझ उठाए क्या करती. इसलिए अपना दिल छोटा मत करो माँ. बुरा समय गुज़रा समझो, अब हमारे अच्छे दिन आ गये हैं, तुम खुश रहो. हमारी माँ जैसी अच्छी माँ किसी के पास नही होगी......और सेक्सी भी...है ना माँ" मैने अंतिम लफाज़ माँ का मूड हल्का करने के लिए कहे तो उसने अपनी कोहनी पीछे मेरे पेट पर मारी. "बेशरम" उसके मुख से फूटा. मेरी हँसी छूट गयी. शुक्र था चाय ख़तम हो चुकी थी, मैने गिलास दूर फेंक दिया. अपने हाथ आगे कर मैने माँ के मम्मे पकड़ लिए.
"सच ही तो है...तुम जैसी कामुक और नशीले बदन वाली माँ किसके पास होगी" मैने माँ का गाल चूमते हुए कहा.
|