RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
जब तक उस मुगीफार्म और घर की रिजिस्ट्री मेरे नाम नही हो गयी मुझे डर लगता रहा कि कही सेठ अपनी बात से मुकर ना जाए. उस घर और उस मुर्गिफार्म से मैने एक नाता जोड़ लिया था. उनमे अपने हंसते, फलते फूलते परिवार के सपने देख रहा था. मगर सेठ अपनी बात पर कायम रहा और उसने मुझे खुशी खुशी अपना घर और मुर्गिफार्म सौंप दिया. लेकिन उसने आख़िरी बार फिर से अपनी शर्त दोहराई कि मैं अपना घर और मुर्गिफार्म किसी को नही बेचुँगा.
घर को मैने पैंट पोलिश करवाई. दुकान के लिए मुझे ख़ासी तैयारी करनी पड़ी. बहुत कुछ सामान खरीदना था, फिर एक बोर्ड भी बनवाना था. अंत में ,मैं सब कामो से फ्री होकर घर गया जहाँ बहन जो सहर से लौट चुकी थी, माँ के साथ मेरा बेसब्री से इंतजार कर रही थी. इतने दिन लगने पर वो चिंतत हो गयी थीं मगर मेरे चेहरे की खुशी से उन्हे मालूम हो गया कि सब ठीक ठाक रहा है. बहन की खुशी का तो ठिकाना ही नही था. वो तो खुशी के मारे बच्चों जैसी हरकते कर रही थी, कभी हँसती कभी मुँह बनाती, आख़िरकार माँ को उसे डांटना पड़ा तब जाकर वो थोड़ी शांत हुई. वो तीन साल से ज़्यादा समय बाद घर लौटी थी और उसके घर में आ जाने से हमारा घर फिर से घर बन गया था. माँ भी बहन को इतना खुश देखकर बहुत खुश थी. उस रात हालाँकि मैं बहुत थका हुआ था मगर मैं और बहन आधी रात के बाद तक बातें करते रहे. उसने इस दिन के लिए बहुत क़ुर्बानी दी थी इसलिए अब उससे खुशी संभाले नही संभलती थी.
उस दिन हम कोई साढ़े तीन साल बाद एक ही बिस्तर पर रात गुज़ार रहे थे. मगर हमे सेक्स की कोई इच्छा नही थी. जो खुशी जो आनंद हमे एक दूसरे के साथ प्राप्त हो रहा था उसके आगे सेक्स का सुख कुछ भी नही था. वो मुझसे सवाल पर सवाल पूछती रही और मैं उसके जबाव देता रहा. मैने उसे माँ और मेरे संबंधो के बारे में बताया तो उसने कोई प्रतिक्रिया नही दी. मुझसे चिपके वो बार बार मुझसे पूछी कि मुझे उससे कितना प्यार है, मुझे उसकी कितनी याद आती थी, वग़ैरेह वग़ैरेह.........
.मैं उसे अपने सीने से लगाए उसका माथा उसके गाल चूमता उसे बार बार बताता रहा कि मुझे उससे कितनी मोहब्बत है, कि मुझे उसकी कितनी याद आती थी, कि मैं उसके जाने के बाद उसे याद करके कैसे अकेला रोया करता था....??वो मेरी बातें सुनती मुस्करा पड़ती, हँसती फिर से वोही स्वाल दोहराती. आख़िर आधी रात के करीब माँ अपने कमरे से चिल्लाकर बोली कि अब सो जाओ, आधी रात हो गयी है और बहन को कहा कि अब हँसना बंद करो. मगर बहन नही मानी. वो बात करती, हँसती जब मैं उसे इशारा करता कि इतना उँचा ना हँसे तो वो अपने होंठो पर उंगली रख लेती और हां मैं सर हिलाती मगर फिर अगले ही पल फिर से हंस पड़ती. मैं भी उसके साथ हँसने लगता. ...........
वो रात अजब थी. ऐसा लग रहा था जैसे हमे संसार की सारी खुशियाँ मिल गयीं हों.....हमे अपनी किस्मत से अपने भगवान से अब कोई शिकवा नही था. वो ऐसे ही बातें करती करती मेरे कंधे पर सर रखे सो गयी. और मैं उसके सुंदर, भोले चेहरे को निहारता रहा, उसकी छोटी सी उपर को उठी नाक को चूमता रहा और सोचता रहा कि मैं कितना खुशकिस्मत हूँ कि वो मेरे पास है जब तक कि खुद मुझे नींद ने अपने आगोश में ले लिया
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