RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
शुरू-शुरू मे हमे वहाँ बहुत अजीब सा महसूस होता. उस मोहल्ले में सब लोग अलग अलग दिशाओं से आए थे. वहाँ की हवा में कुछ परायापन महसूस होता था. हम अपने गाँव की उस अपनेपन की गर्माहट के लिए तरसते. हालांके मैं और बहन एक दूसरे में और अपने कामो में इतने व्यसत थे कि हमारा इस ओर ध्यान उतना नही जाता. मगर माँ? माँ के लिए यक़ीनन वो बहुत मुश्किल रहा होगा. लेकिन माँ भी माँ थी, वो कभी किसी परेशानी या व्यथा का जिकर ना करती बल्कि जब भी हम उससे पूछते कि उसे वहाँ किसी बात की तकलीफ़ तो नही है तो वो हंस कर टाल देती और कहती कि उसकी खुशी इसी बात में है कि उसके बच्चे खुश हैं.
जब मैं माँ और बहन को लेकर अपने नये घर पहुँचा तो घर देखकर दोनो को बहुत खुशी हुई. दो मंज़िला घर इतना बड़ा और सुंदर था कि बहन की हुशी का ठिकाना ही ना रहा. मगर उसकी असली खुशी तो अभी बाकी थी जो मैं उसे हमारी शादी के उपहार में देने वाला था, जब मैं उसकी आँखो पर हाथ रखे उसे सड़क पर हमारे घर के दूसरे कोने की तरफ लेकर गया और उसकी आँखो से हाथ हटाया तो सामने एक दुकान थी जिस पर एक नया और बड़ा सा बोर्ड था जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में उसका नाम लिखा था और साथ में लिखा था 'ब्यूटी पार्लर'. मैं जानता था कि उसका शुरू से यही सपना था कि उसका अपना ब्यूटी पार्लर हो. बोर्ड को पढ़ उसकी आँखे भर आई, उसने मेरा हाथ ज़ोर से दबाया. अगर हम सड़क पर ना खड़े होते तो शायद वो मुझसे लिपट कर रो पड़ती. मगर जब मैने दुकान का शटर उठाया और उसने दुकान देखी तो उसने दाँतों तले उंगलियाँ दबा लीं. मैने इसीलिए एक रकम अलग निकालकर रखी थी यही सोचकर कि उसे एक अच्छा ब्यूटी पार्लर बनाकर दूँगा. दुकान में लगे शीशे और वुड पलाई वर्क से दुकान चमचमा रही थी. बहन के चेहरे पर वो खुशी थी जिसे देखने को मेरा दिल तरसा करता था,. वो उस तोहफे के लिए दिनो बल्कि महीनो तक मेरा शुक्रिया करती रही.
सहर में जाकर मैने और बहन ने पहले घर को अच्छे से व्यवस्थित किया. जिस सेठ से मैने उसे खरीदा था उसने वहाँ की तमाम चीज़ें वैसे ही छोड़ दी थी सिवाय कुछ एक चीज़ों के. क्योंकि वो उस समान को परदेश नही ले जा सकता था चाहे वो कीमती ही था. घर का फर्निचर बहुत सुंदर था. मैने और बहन ने वहाँ पहुँचने के अगले दिन जब पूरे घर को खंगाला कि हमे क्या क्या खरीदना पड़ेगा तो यह देखकर हमारी खुशी का ठिकाना ना रहा कि हमारे इस्तेमाल की लगभग हर चीज़ मौजूद थी, बिल्कुल एक छोटी सी लिस्ट बनी थी जिन चीज़ों को हमे खरीदन पड़ता. उस लिस्ट में एक चीज़ थी जो घर में नही थी शायद सेठ ने बेच दी थी मगर जिसका बहन को बहुत शौक था वो था एक रंगीन टीवी जो उस ज़माने में गाँवो से नदारद ही थे.
बॉम्बे पहुँचने के तीन दिनो बाद एक पंडित को रिश्वत देकर मैने अपनी शादी का इंतज़ाम किया. बहन और मेरी खुशी का तो कोई ठिकाना नही था मगर माँ थोड़ी खामोश थी. उसने बेटा बेटी की शादी के लिए नज़ाने कितने सपने संजोए होंगे जो हमारी उस गुपचुप शादी की वजह से टूट गये थे. लेकिन उस शाम तक शायद हमे इतना खुश देख माँ के चेहरे पर भी रौनक आ गयी थी.
पहली रात हम लगभग पूरी रात बातें करते रहे. बहन ने अपने तीन साल के बनवास के बारे मे खूब बातें की. शुरू मे वो हंस रही थी. वो अपने काम की, हॉस्टिल की और दुकान की मज़ेदार बातें सुनाती खूब हँसी. मगर फिर धीरे धीरे वो खुलने लगी, फिर वो बताने लगी कि उसने किस तरह एक एक पल सीने पर पत्थर रखकर काटा था. मेरे सीने पर सर रखे वो बता रही थी कि मेरी तरह वो भी कभी कभी कितना निराश और उदास हो जाया करती थी., कि कभी कभी उसे लगता कि वो सुनहरा सपना जो वो देख रही है शायद कभी पूरा नही होगा, कि कभी कभी अकेलेपन और तन्हाई से वो किस तरह सभी से चिप चिप कर रोया करती थी. मैं उसकी पीठ सहलाता उसकी बातें सुनता रहा. मुझे अपनी कमीज़ पर गीलेपन का अहसास हो रहा था, वो रो रही थी, उसकी बातों से नमी मेरी आँखो में भी आ गयी थी. रात लगभग आधे से ज़्यादा गुज़र चुकी थी और वो बोलते बोलते रुक गयी थी तब उसने सर उठाकर मेरी आँखो में देखा. कुछ देर वैसे ही देखने के बाद वो उपर को हुई और मेरी गर्दन में बाहें डाल मेरे आँखो में देखते उसने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए. वो चुंबन अंतहीन था. वो चुंबन वाकई अंतहीन था. वो मेरे होंठो को चूमती, मेरे चेहरे को चूमती जा रही थी. धीरे धीरे हमारी उत्तेजना और प्यार का मिलाप होता गया, हमारे बदन से कपड़े उतरते गये और हम आखिकार एकाकार हो गये. वो रात वाकई में कभी ना भूलने वाली रात थी. मेरे जिस्म के नीचे उसका मछली की भाँति तड़फता जिस्म, उसकी आहें, उसकी कराहें, उसकी सिसकियाँ सब कुछ नया था. कुछ भी पहले जैसा नही था. सिर्फ़ वो जिस्मानी सुख नही था, एक ऐसा सुख था जो हम अपनी रूहों में महसूस कर रहे थे. पहले हमेशा ऐसा लगता था कि हमारी प्यास बढ़ती जाती थी, जितना हम उस प्यास को बुझाने की कोशिश करते वो उतनी ही बढ़ती जाती. मगर इस बार ऐसा नही था. जब उस रात में बहन के अंदिर स्खलित हुआ तो मन में कोई प्यास बाकी नही थी. मैं पूरी तरह से तृप्त था. बहन की अधमुंदी आँखे, उसके अधखुले होंठ और स्खलन के बाद उसका मेरे सीने पर बेजान होकर ढेर हो जाना भी बता रहा था कि आज उसकी प्यास भी मिट गयी थी. उससे पहले हमारा मिलन सिर्फ़ जिस्मानी सुख के ये होता था मगर उस रात मैने महसूस किया कि हमारे प्यार की कितनी गहराई है. हमारे प्यार ने उस कांक्रीड़ा को हमारी रूहों के मिलाप में बदल दिया था कि हम अब दो नही रहे थे, हम आज एक हो गये
हम अपने नये आशियाने में दिन गुज़रने लगे. एक महीने तक तो मैं और बहन अपनी सफलता, अपने मिलन, अपनी शादी का जशन मनाते रहे. दिन रात हम अपने कमरे में घुसे रहते, एक दूसरे से दूर होने का मन ही नही होता था. माँ ने पहले पहले सबर किया मगर अंत में एक दिन जब उससे रहा ना गया तो उसने हमे खूब डांटा. वो ही थी जो हमारे पड़ोसियों से रिश्ते बनाने में लगी थी, घर का काम करती थी, खाना बनाती थी, हमारे पास इतनी फ़ुर्सत कहाँ थी कि हम किसी बात पर ध्यान देते.
खैर एक महीना गुज़र गया. मैं और बहन आने वाली जिंदगी की प्लॅनिंग करने लगे. सबसे पहले मैने और बहन ने उसके ब्यूटी पार्लर के लिए सामान करिदा और फिर उसको उसकी दुकान में व्यवस्थित किया. वो अपनी कमाई के पैसे खरच करना चाहती थी मगर मैने उसे मना कर दिया. वो रकम मैं संभाल कर रखना चाहता था ताकि कभी आपदा के समय इस्तेमाल कर सकूँ. एक बार जब बहन का ब्यूटी पार्लर सेट हो गया और उसने छोटी सी पूजा करके उसे सुरू कर दिया तो अब मुझे अपने काम के बारे में सोचना था. मैने मुर्गिफार्म की अच्छे से सफाई करवाई और उसके बाद चूज़ों की नयी खेप डालने लगा. पूरी शेड भरकर सारा काम निपटाकर देखा तो मेरे पास लगभग आधी रकम बच गई थी जो मैने हमारे गाँव के घर, दुकान और ज़मीन को बेच कर कमाई थी.
बहन का काम अच्छा चल निकला. उस एरिया मे उसकी दुकान के अलावा एक और दुकान थी जो काफ़ी दूर थी. जल्द ही उसकी दुकान में रश रहने लगा. वो अपने हुनर की पूरी माहिर थी, सूरत में तीन साल की उसकी मेहनत रंग दिखा रही थी. वो पूरा दिन व्यस्त रहने लगी. उसका काम काफ़ी बढ़ गया. उसकी सफलता से प्रभावित होकर और लड़कियाँ भी उसके पास आने लगी. साल गुज़रते गुज़रते उसकी दुकान में तीन लड़कियाँ काम करने लगी थी.
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