Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:32 PM,
#43
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
बस अब मुझे इस सूखी जमीं पर बादल बनकर खूब बरसना था अपने प्यार की बूँद बूँद से रति को पुलकित कर देना था चूत को मारते हुए मैंने धीरे से उस से पुछा कैसा लग रहा है 

रति- कांपती आवाज में, बहुत अलग सा लग रहा है ऐसे अलग रहा है की जैसे मैं बहुत हलकी हो गयी हू मैं-
ये तो बस शुरुआत है 

मेरे धाक्को की रफ़्तार अपने आप बढती जा रही थी रति की टाँगे अब ऊपर को होने लगी थी आह आह करती हुई वो चुदाई के रंग में रंगती जा रही थी पूरा लंड उसकी चूत में झटके से अन्दर बहार हो रहा तह लंड जब बहार को खीचता तो लगता की चूत की पंखुड़िया उसके साथ ही आएँगी बहुत ही चिकनी और गरम चूत उसकी, चूत से जो पानी रिस रहा था उस से उसकी जांघे और मेरे अंडकोष पूरी तरफ से गीले हो चुके थे रति कभी किस करती कभी अपने हाथो को मेरी पीठ पर रगड़ते हुए चूत मरवा रही थी 


दो जवान जिस्म एक दुसरे में समा चुके थे घपा घप थप थप करते हुए मेरी टंगे उसकी टांगो से टकरा रही थी हम दोनों के होंठ थूक से पूरी तरह सने हुए थे उसका झटके खाता हुआ बदन पहली बार चुदाई के आनंद को प्राप्त करने की दिशा की और बढ़ रहा था साँसे सांसो में घुल रही थी धीरे धीरे उसके कुल्हे मेरे धक्को से कदम ताल मिलाने लगे थे चुदाई का सुरूर हम दोनों पर चा चूका था कमरे का वातावरण जैसे दाहक उठा था दिलो की आग जिस्मो की आग में तब्दील हो चुकी थी 


उसकी चूत बहुत ज्यादा पानी छोड़ रही थी मेरा मस्ताना लंड उसकी चूत की हर दिवार क चूम चूम जा रहा था अचानक से ही रति की पकड़ मेरे जिस्म पर बहुत कस गयी उसने अपनी टटांगो को मेरी कमर की तरफ लपेट लिया और मुझे कस के अपने सीने से लगा लिया उर पता नहीं क्या क्या बद्बदते हुए अपने चरम सुख को महसूस करने लगी, उसकी जिंदगी की पहली चुदाई , पहले सुख को प्राप्त कर लिया था उसने पर मैं उसको अब तेजी से चोदे जा रहा था रति बुरी तरह से हाई हाय करते चुद रही थी वो झड गयी थी इसलिए अब उसक परेशानी हो रही थी 


पर मैं क्या करू जब तक मेरा काम न हो कैसे छोड़ दू उसक पसीने से उसका पूरा बदन गीला हो चूका था वो कराहते हुए बोली छोड़ दो ना मुझे अब सहन नहीं होता है 

मैं- हांफते हुए बस दो मिनट रुको होने वाला है मेरा भी 

मैं धक्के पे धक्के लगाये जा रहा था बिना रुके हुए मेरे चेहरे पर सारा खून जमा होने अलग शरीर का जिस्म बुखार की तरह तपने लगा मेरा और फिर आह जैसे किसी ने बदन से पूरी ताकत निकाल ली हो मेरी मैं उसके ऊपर देह गया लंड से एक के बाद एक वीर्य की पिचकारिया उसकी गरम चूत में गिरने लगी मैं साख से टूटे किसी पत्ते की तरह उसके ऊपर ढेर हो गया
किसी दरख्त की टूटी शाख की तरह एक दुसरे के बाजु में पड़े थे हम लोग बाहर अब बरसात ही रही थी या नहीं पर अन्दर कमरे में अभी अभी एक बारिश थमी थी जिसमे मैं और रति बुरी तरह से भीग चुके थे , मैंने अपना हाथ उसकी छाती पर रखा , उसकी सांसे बहुत तेजी से चल रही थी मैंने उसको अपने सीने से चिपका लिया दिल को करार सा आ गया , थी कौन वो मेरे लिए एक अजनबी जो बस अब अजनबी ना रही थी , वो कैसे एक ताजा हवा के झोंके की तरह मेरे मन मंदिर में उतर गयी थी , क्या ये किस्मत का एक और इशारा था या बस मेरी आवारगी की एक और दास्ताँ 

उसके चेहरे पर उलझ आई बालो की लटो को सुलझाते हे बोला मैं-“रति, ”

वो-हूँ 

मैं- क्या सोच रही हो 

वो- अपने आने वाले कल के बारे में 

मैं- क्या दीखता है 

वो- कुछ नहीं 

मैं- रति, कभी सोचा नहीं था की तुम यु मेरी जिंदगी में आ जाओगी मेरा इस तरह तुम्हारे शहर में आना तुमसे मिलना सब किस्मत का ही तो लिखा है , जो पल तुम्हारे साथ जी रहा हूँ कल को जब यहाँ से जाना होगा कहीं मेरे पांवो की बेडिया ना बन जाये 

वो- कहना क्या चाहते हो 

मैं- कहीं मैं तुम्हे चाहने तो नहीं लगा 

वो- ऐसा नहीं हो सकता 

मैं- क्यों नहीं हो सकता 

वो- मत भूलो की मैं किसी और की थी और उसकी ही रहूंगी , मैंने अभी जो भी तुम्हारे साथ किया उसका भली भाँती अंदाजा है मुझे , जानती हूँ ये बहुत गलत किया है मैंने पर मेरा दिल फिर भी इसे सही कह रहा है 

मैं- दिल की बात दिल जाने मैं तो अपना हाल बता सकता तुम्हे 

वो उठने की कोशिश करते हुए- आः आह दर्द होता हैं 

मैं – कहा पर 

वो- कहीं नहीं 

मैं- बताओ ना 

वो- उठाओ मुझे जरा ऐसा लगता है की किसी ने जान ही निकाल ली हैं मेरी तो ओअः 


मैं उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में भरते हुए, यहाँ दर्द होता है क्या 

वो- बड़े पाजी हो तुम भी , उठाओ न जरा सा , पानी पीना है मुझे 

मैं- मैं लाकर देता हूँ 

मैंने पानी का गिलास उसको पकडाया अँधेरे में कुछ बूंदे उसके पेट पर गिर गयी तो वो चिहुंक उठी 

मैं- क्या हुआ वो ठंडा पानी पेट पर गिर गया मैं हंसने लगा 

मैं फिर से उसके पास लेट गया और रति के हाथ को थाम लिया 

वो- क्या इरादा हैं 

मैं- तुम्हे प्यार करने का 

वो- अभी किया तो था 

मैं- और करना है 

वो-ना बाबा ना अभी तक दुःख रहा हैं मुझे 

मैंने चुपचाप अपने लंड को उसके हाथ में दे दिया लंड उसके हाथ में जाते ही फिर से तनाव में आने लगा रति अपने हाथ को लंड पर ऊपर नीचे करने लगी मैं अपनी ऊँगली को उसकी गहरी नाभि पर फिराने लगा उसके कोमल बदन में फिर से एक बार हलचल सी होने लगी , मैंने अपना मुह उसकी चूची पर लगाया तो उसने कस कर मेरे अन्डकोशो को मसल दिया दर्द और मजे का मिश्रित अनुभव हुआ मुझे , मैंने अपने दांतों से उसके निप्पल को काटा 


“आह , क्या करते हो दुखता हैं ना” 
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