Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:33 PM,
#52
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
भीड़ को चीरते हुए मैं उसको इधर उधर देखने लगा मैं खुद को कोसने लगा की क्यों सो गया मैं , कहा ढूंढ रही 
होगी वो मुझे काफ़ी देर हो गयी ट्रेन चलने का टाइम होने लगा धीरे धीरे ऊपर से आज भीड़ भी इतनी ज्यादा की 
सारे शहर को ही कही जाना हो जैसे , और तभी मुझे जानी पहचानी सूरत दिखी एक साइड में बदहवास सी खड़ी 
थी वो माथे पर सारे जहाँ की टेंशन लिए मैं भाग कर उसके पास गया उसने मुझे देखा एक रहत की सांस ली और 
फिर गुस्से से पिल पड़ी मुझे पर 
नीनू-“कहाँ, मर गए थे ”

मैं- यार, आ तो मैं काफ़ी देर पहले गया था पर मुझे नींद आ गयी थी 
नीनू- “नींद आ गयी थी, इतनी लापरवाह कैसे हो सकते हो तुम कितनी देर हुई मुझे परेशान होते हुए समझ क्या 
रखा है तुमने , सब कुछ तुम्हारे हिसाब से नहीं चलता है लाइफ में सीरियस होना सीखो देखो ट्रेन छुटने में दस
मिनट बचे है “

मैं-“शांत हो जा मेरी झाँसी की रानी पहले चल सीट का जुगाड़ देखते है फिर डांट लेना ”
मैंने उसके सामान को लादा और ट्रेन में चढ़ गए किस्मत से सीट का जुगाड़ भी हो गया पर उसका गुस्सा कम न 
हुआ, बात उसकी भी जायज थी पर अब जाने भी दो यार मैंने पेप्सी की बोतल खोली और दो चार घूंट भरे नीनू 
जलती नजरो से मुझे घूर रही थी आज तो मार ही डालेगी मुझे ऐसा लग रहा था ,मैंने उसका हाथ पकड़ा पर 

उसने चिटक दिया , मुझे भी गुस्सा आने लगा पर वो भी अपनी गुस्सा भी अपना वो तो अपनी भडास निकाल ले 
मुझ पर हम अपना हाल-इ-दिल किसको बताये ट्रेन चल पड़ी मैंने वॉकमेन की लीड लगायी कानो में और आँखों को 
कर लिया बंद 

“तुझे ना देखू तो चैन मुझे आता नहीं एक तेरे सिवा कोई और मुझे भाता नहीं ” ये वाला गाना सुनते हुए मैं रति के बारे में सोचने लगा , दरअसल इस गाने का सुरूर मुझ पर कुछ इस तरह से चढ़ने लगा ऊपर से सफ़र मेरा 

दिल गुस्ताखी पर उतार आया , रति की बड़ी जोर से याद आने लगी , बस याद ही थी अपने पास और क्या 
उसके मिलने से बिछड़ने तक के हर पल मेरी आँखों के सामने से गुजरने लगी , दिल रोने को करने लगा पर यहाँ
कोई तमाशा थोड़ी न बनवाना था अपना तो सोने का नाटक करने लगा जयपुर आने में बहुत समय लग्न था 
से नीनू किलसी पड़ी थी एक बार थोड़ी सी आँख खोलकर देखा तो वो कोई किताब पढ़ रही थी जी तो किया 
इसके चश्मे पर ही एक थप्पड़ दू पर गोर से देखा तो बड़ी प्यारी लग रही थी तो मेरे चेहरे पर मुस्कान सी आ गयी
उसका ध्यान पूरी तरह से किताब में था और मेरा मन भटक रहा था ऊपर से वॉकमेन में चलते रोमांटिक गाने मेरा 

और दिमाग ख़राब कर रहे थे इस लड़की की पसंद भी अनोखी थी शोखियो में अलग ही अंदाज छुपा रखा था इसने

मैं उस से बाते करना चाहता था पर वो डूबी थी किताब में तो सोने के सिवा और कोई चारा नहीं था मैंने अपनी

टाँगे फैलाई और लम्बा हो गया मद्धम गति से बजते संगीत के सुरूर में नींद ने मुझे अपने आगोश में भर लिया 

पर ये नींद भी बड़ी जुल्मी निकली सपने में रति को ले ही आई वो जो बात दिल में कही दबी रह गयी थी वो 
सपने में आने लगी 

उसके हाथो में मेरा हाथ था उसकी साँसे जैसे मुझसे टकरा रही हो उसके होंठ मुझे जैसे बुला रहे हो अपनी और 

दिल फिर से मचलने लगा , बेकाबू होने लगा और जैस ही मैं उसको किस करना चालू किया सपना टूट गया और 

आँख खुल गयी , आँखों को मिचकाते हुए मैंने अपने अस पास देखा तो ध्यान आया की मैं तो ट्रेन में हूँ , ये कोई 

स्टेशन था ट्रेन रुकी हुई थी दो चार मिनट लग गए खुद को संभालने में , नेनू ने देखा की मैं उठ गया हूँ तो उसने 

मुझे पानी दिया और बोली-“चाय पीने का मन है ले आओ न ”

अलसाया सा मैं चाय और कुछ चिप्स- बिस्कुट ले आया चाय थी तो बेकार सी ही पर फिर भी थोडा तारो तजा सा फील करने लगा मैं 

मैं- टाइम क्या हुआ है 

नीनू- ११ बजे है 

मै- अभी तो थोडा टाइम और लगेगा 

वो- हम्म , और सो लो थोड़ी देर 

मैं- ना यार , तूने खाना खा लिया क्या 

वो- हाँ 

मैं- कुछ बचा है तो दे दे भूख सी लगी है 

वो- बैग में टिफ़िन पड़ा है ले लो 

नीनु मामा के घर से टिफ़िन लायी थी कहाँ भी ठीक था पेट भर गया मजा आ गया मैं कुछ देर के लिए दरवाजे 

पर आकार खड़ा हो गया ठंडी हवा फेफड़ो में गयी तो कुछ चैन मिला मैंने सोचा नया दिन पूरा जयपुर घूमके गाँव

की बस पकडनी है , वहा जाते ही फिर से सब पहले की तरह हो जायेगा बोरिंग सा , काश कोई तरीका मिल

की टाइम टू टाइम कहीं बहार जाने को मिले , मैंने ना जाने कब वो दुआ मांग ली काश उस टाइम पता होता की 

बेवक्त मांगी गयी दुआए भी कभी कभी क़ुबूल हो जाया करती है ,

“क्या सोचने लगे , रति की याद आ रही है क्या ” मैंने मुड के देखा तो मेरे पीछे नींनु खड़ी थी 

मैं- “नहीं तो मुझे भला उसकी याद क्यों आएगी ”

नीनू- झूठ बोलते हुए बिलकुल अच्छे नहीं लगते हो और तुमसे झूठ बोला भी नहीं जाता है कब से देख रही हूँ अपसेट हो यही बात हैं ना 

मैं- मुझे नहीं पता 

वो- तो फिर किसे पता है 

मैं- नीनू बस मेरे सर में दर्द हो रहा है 

वो- तुम्हारे सर में नहीं तुम्हारे दिल में दर्द होने लगा है , तुम क्या सोचते हो मुझसे झूठ बोल सकते हो , कभी नहीं चलो अब बता भी दो क्या बात है 

मैं- हां उसकी याद आ रही है 

वो- तो कोई बात नहीं याद करलो पर इतना भी समझ लो की जिस तरह से उस शहर को पीछे छोड़ आये हो उसको भी पीछे छोड़ना होगा 

मैं- कोशिश करूँगा 

वो- हूँम्म्मम्म्म्म 

मैं- तुम्हे क्या लगता है 

वो- किस बारे में 

मैं- क्या मुझे प्यार है 

वो- किस से 

मैं- खामोश रहा कुछ ना बोला 

जब उसकी समझ में आया की मैं क्या कहना चाहता हूँ तो नीनू थोड़ी टेंशन में आ गयी और बोली- पागल हुए हो क्या , कुछ भी सोचने लगते हो , ऐसा कैसे कर सकते हो तुम मेरा मतलब नहीं , ये नहीं हो सकता है तुम ........ तुम...

मैं- तुम क्या ................

वो- देखो आराम से सोचो, प्यार ऐसे कैसे हो जायेगा, वो भी जब तुम हर लड़की को प्यार की नजर से देखते हो 
वैसे भी वो तुमसे उम्र में कितनी बड़ी है , वो शादीशुदा है उसकी और तुम्हारी लाइफ बिलकुल अलग अलग है तुम सोचो भी मत ये बस थोड़े दिन साथ रहने का अट्रैक्शन है और कुछ नहीं “


मैं- हां, शायद ऐसा ही होगा, अब मेरी मज़बूरी थी की मैं नीनू को बता भी नहीं सकता था की रति के साथ मैंने 
क्या क्या गुल खिलाये है वर्ना वो नाराज तो होती ही क्या पता दोस्ती भी तोड़ देती फिल्मो में बहुत देखा था ऐसी 
बातो को तो इस बात को यही पर दबा दिया मैंने “


बहुत देर तक हम लोग उधर ही बैठे रहे बाते करते रहे रति का नशा तो किसी दारू की तरह था आहिश्ता आहिश्ता 

से ही उतरना था , खुद को करके तक़दीर के हवाले पीछा छुटाने की एक कोशिश और सही ये लम्बी दूरी के सफ़र 

से मुझे बड़ी कोफ़्त सी होती थी ख़तम होने को आता ही नहीं था आदमी थक कर चूर हो जाये पर मंजिल का कोई 

पता नहीं ट्रेन भी साली ऐसे टाइम पे जयपुर पहूँची ना इधर के रहे ना उधर के सुबह होने में टाइम था जो 

काटना मुशिकल था पर क्या कर सकते थे भोर होने का इंतज़ार किया उन्निंदी आँखों से स्टेशन पर ही तैयार 

होकर हम चले जयपुर को नापने मन में रोमांच चाव लिए मैं पहले हवा महल जाना चाहता था जबकि नीनू पहले 

जाना चाहती थी तो मन मारके उसकी बात माननी पड़ी और सिटी बस पकड़ ली हमने सुबह सुबह कोई भी 

हो खूबसूरत दीखता ही है और ये तो राजस्थान का दिल था तो बात निराली होनी थी ही 


आमेर की खूबसुरती ने मन मोह लिया मेरा क्या बात थी इसकी गजब जैसे वहा लगा हुआ एक एक पत्थर अपनी 

शौर्य गाथा की कहानी सुना रहा हो माहौल ऐसा था की जैसे कोई बड़ा मेला लगा हो क्या देसी विदेशी आमेर के 

तीनो किलो का दिल खोल कर नजारा लिया मैंने कैमरे की तीन चार रील भर गयी पर मन नहीं भरा था कुछ 

तस्वीरे मैंने और नींनु ने वहा घूम रहे अंग्रेजो के साथ भी खिचवा ली खुद को अंग्रेज से कम नहीं वाली फीलिंग आ

रही थी 
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:33 PM

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